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<html><big><big> नए-नए जॉब्स ने मचाई धूम
</big></big><br><big><big>इंश्योरेंस, हेल्थकेयर और रिटेल में भारी बूम
</big></big><br><span style="color: rgb(0, 0, 0); font-weight: bold;">- अशोक जोशी<br><br></span><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">करियर निर्माण की
'नई दुनिया' गुजरे जमाने के पारंपरिक करियर क्षेत्रों से एकदम अलग और
अलहदा है। जिस तरह समय चक्र तेजी से गुजर रहा है, जिंदगी के सभी
कार्यकलापों में तेजी को तरजीह दी जा रही है। प्रतिस्पर्धा, होड़ और
एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की प्रवृत्ति में किसी को एक जगह ठहरने की फुर्सत
नहीं है, लिहाजा करियर निर्माण पथ पर दौड़ जारी है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">कल
तक अवसरों के सारे रास्ते निर्माण क्षेत्र से शुरू होकर वहीं खत्म हो जाते
थे, जबकि आज सेवा क्षेत्र शीर्ष पर है। कभी सरकारी नौकरियों के प्रति युवा
वर्ग में गजब का आकर्षण था, और आज हालत यह है कि खुद सरकार को यह भय सता
रहा है कि कहीं उनके आईएएस अधिकारी निजी क्षेत्रों की राह न पकड़ लें। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>भ्रम भी, रोमांच भ</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ी</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जॉब
मार्केट में जो हलचल जारी है, उसने जहाँ युवाओं को रोमांचित किया है तो
उनके सामने भ्रम भी निर्मित किया है। आज युवाओं के पास करियर निर्माण की
ढेरों जानकारी उपलब्ध है। जगह-जगह आयोजित प्लेसमेंट कैम्पस और करियर फेयर
ने उन्हें अनेक विकल्प उपलब्ध कराए हैं। इन विकल्पों में कुछ ऐसे नए जॉब्स
भी शामिल हैं, जिन्होंने भारी धूम मचाई है। ऐसे ही कुछ हॉट जॉब्स की
जानकारी प्रस्तुत है :<!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>आगे है एनिमेश</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">न</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">आज
हर युवा के होंठों पर एनिमेशन का राग है। इस अनूठे क्षेत्र ने प्रिंट
मीडिया, टीवी, इंटरनेट, विज्ञापन तथा डिजिटल इंटरफेस के क्षेत्र में
ग्राफिक्स और विजुअल्स के रूप में अपनी पकड़ इतनी मजबूत कर ली है कि
वेबसाइटों से लेकर प्रेजेंटेशन और इंटेरियर से लेकर फैशन इंस्डस्ट्री, सभी
दूर एनिमेशन अग्रणी है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इस
समय हमारे देश के एनिमेशन उद्योग में लगभग साढ़े चार सौ करोड़ रुपया लगा है
और इस क्षेत्र में आगे भी भारी निवेश संभावित है। कार्टून, थ्रीडी फिल्म,
स्पेशल इफेक्ट्स के लिए एनिमेटर्स की भारी माँग है। इस क्षेत्र में
प्रतिष्ठित संस्थान से प्रशिक्षण लेकर शानदार करियर की शुरुआत की जा सकती
है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>बूम बीपीओ क</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ी</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">कल
तक बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) और कॉल सेंटर्स का नाम कोई नहीं
जानता था, लेकिन आज करियर निर्माण क्षेत्र में इन्हीं के सुर सुनाई दे रहे
हैं। बीपीओ इंडस्ट्री ने तो फटाफट पैसा कमाने और लचीली कार्य अवधि की
अवधारणा को इस तरह स्थापित किया है कि सभी दंग हैं। आज हमारे देश में लगभग
ढाई लाख लोग बीपीओ उद्योग को संचालित कर 25 हजार करोड़ रुपए का राजस्व
अर्जित कर रहे हैं। अब यह उद्योग महानगरों से आगे बढ़ता हुआ टू टायर सिटी
में अपनी गतिविधियाँ संचालित कर रहा है, जिससे हर माह बैंकिंग, फाइनेंस और
इंश्योरेंस से 500-1000 युवाओं को रोजगार मिल रहा है। </font><br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/0410/default.asp" target="_blank">स्त्रोत : नईदुनिया अवसर</a><br></html>
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">भारत की
जैव-विविधता, मानव संसाधन, अधोसंरचनात्मक सुविधाओं तथा सरकारी पहल को
देखते हुए आने वाले वर्षों में भारत बायोइन्फरमेटिक्स क्षेत्र का संभावित
सितारा होगा। आईडीसी द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि भारत में
बायोसाइंस विकास की अपार संभावनाएँ हैं। इसमें फार्मा, बायोइन्फरमेटिक्स
(बायो-आईटी), एग्रीकल्चर तथा आर एंड डी शामिल हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">भारत
स्थित फार्मास्युटिकल फर्म्स और अनुसंधान संस्थाएँ किफायती और उच्च
गुणवत्तायुक्त अनुसंधान, विकास और निर्माण की तरफ नजरें टिकाए हुए हैं।
जहाँ तक बायोइन्फरमेटिक्स का प्रश्न है, वह विविध क्षेत्रों यथा बायोलॉजी,
बायोकेमिस्ट्री, बायोफिजिक्स, मालिक्यूलर बायोलॉजी, बायोस्टेटिक्स और
कम्प्यूटर साइंस के निर्देश का परिणाम है। सभी बायोइन्फरमेटिक ऑपरेशंस के
लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए एल्गोरिदमस और संगठित डाटा बेस सर्वाधिक
महत्वपूर्ण हैं। इस तरह के क्रियाकलापों के लिए उच्च स्तरीय हार्डवेयर तथा
सॉफ्टवेयर क्षमताओं की आवश्यकता होती है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>जारी है वर्टिकल ग्रोथ</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">भारत
में बायोइन्फरमेटिक्स का क्षेत्र अत्यधिक तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसकी
अनुलम्ब वृद्धि का कारण यह है कि इस क्षेत्र में आईटी और बायोटेक्नोलॉजी
के बीच सुंदर समन्वय है। भारत में बायोइन्फरमेटिक्स का बंगलोर, हैदराबाद,
पुणे, चेन्नई और दिल्ली में खासा विकास हो चुका है। इन स्थानों पर 200 से
अधिक बायोइन्फरमेटिक्स कंपनियाँ सफलतापूर्वक कार्यरत हैं। इस क्षेत्र में
विकास की अच्छी संभावना को देखते हुए इन्टेल, आईबीएम और विप्रो जैसी
प्रमुख आईटी कंपनियाँ भी बायोइन्फरमेटिक्स से जुड़ गई हैं।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> <!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>सरकारी पहल</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जैव
प्रौद्योगिकी क्रांति में बायोइन्फरमेटिक्स एक बहुत आवश्यक घटक है। संदर्भ
से लेकर टाइप कल्चर कलेक्शन अथवा जैविक सूचनाओं को समग्र अद्यतन बनाए रखने
के लिए जींस श्रृंखलाओं की तुलना लगभग सारे जैव प्रौद्योगिकी पहलुओं के
लिए जरूरी है। भारत वैज्ञानिक तथा शैक्षणिक अनुसंधान का केंद्र होने के
साथ-साथ दुनिया का पहला देश है जिसने राष्ट्रव्यापी बायोइन्फरमेटिक्स
नेटवर्क स्थापित किया है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डिपार्टमेंट </font><font style="font-size: 10pt;">ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ
बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) ने 1986-87 में बायोइन्फरमेटिक्स पर एक कार्यक्रम
आरंभ किया था। इसके एक प्रभाग बायोटेक्नोलॉजी इन्फरमेशन सिस्टम नेटवर्क
(बीटीआईएस) द्वारा 57 प्रमुख अनुसंधान केंद्रों को जोड़कर पूरे देश को अपने
संजाल में शामिल करलिया था। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">बीटीआईएम
द्वारा वैज्ञानिकों को अनुसंधान कार्य के लिए भारी मात्रा में आँकड़े
प्रदान किए जाते हैं। छः राष्ट्रीय संस्थान इंटरएक्टिव ग्राफिक्स पर
स्थापित किए गए हैं जो मालिक्यूलर मॉडलिंग और संबंधित क्षेत्रों के प्रति
समर्पित हैं। इन संस्थानों द्वारा अभी तक 100 से अधिक डाटाबेस तैयार किए
गए हैं। दो प्रमुख डाटाबेस कोकोनट बायोटेक्नोलॉजी डाटाबेस और कम्पलिट
जिनोम ऑफ व्हाइट स्पोरा जिनोम सीण्ड्रोम </font><font style="font-size: 10pt;">ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ श्र्रिम्प जनउपयोग के लिए जारी किए गए थे।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>बायोइन्फरमेटिक्स में संभावनाएँ</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">कान्फीडरेशन </font><font style="font-size: 10pt;">ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ
इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के अनुसार सन् 2005 तक बायोइन्फरमेटिक्स
उद्योग का वैश्विक टर्नओवर 60 मिलियन था जो 2010 तक 150 बिलियन डॉलर तक
पहुँच जाएगा। हालाँकि भारतीय बाजार अमेरिका और योरप की तुलना में कम
परिपक्व है फिर भी यह जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है उससे अंदाजा लगाया जा
सकता है कि कुछ ही वर्षों में यह आगे निकल जाएगा। आईटी ने 2006 तक
बायोसाइंसेज पर 150 मिलियन डॉलर निवेश किए थे जिनमें से अधिकांश पैसा
सिस्टम क्लस्टर्स, स्टोरेज, एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर और सर्विस पर खर्च किया
गया था।</font><br><br></html>
<html> <br>ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में कैरियर के अनेक विकल्प उपलब्ध हैं, पर इन सभी कोसेüज के बीच भी इतने सालों से कॉमर्स स्ट्रीम ने न केवल अपना एक अहम स्थान बना रखा है, बल्कि नए कोर्सेज की राह पर चलने वाले युवा भी कॉमर्स को ही बेस बना रहे हैं। कारण स्पष्ट है कि इस दुनिया में आज व्यापार और वाणिज्य इस कदर हावी है कि हर फील्ड में कॉमर्स के जानकारों की आवश्यकता बनी हुई है। हाल ही में अखबारों में एक खबर सुíखयों में रही कि श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली के छात्रों को कैंपस प्लेसमेंट के तहत 14 लाख प्रति वर्ष वाली पैकेज की नौकरी मिली है। जानकार मानते हैं कि कॉमर्स एक ऐसा विषय है, जो उच्च शिक्षा में भी छात्रों की मदद करता है। बैंकिग, एमबीए, सीए, सीएस, टैक्स कंसल्टेंट, इंवेस्टमेंट कंसल्टेंट जैसी फील्ड में आज भी कॉमर्स स्ट्रीम के स्टूडेंट्स का बोलबाला है। <br><br>बारहवीं कर चुके छात्रों के लिए साइंस की तरह कॉमर्स में भी कई ऐसे कोर्स हैं, जो बेहतरीन कैरियर की सौ फीसदी गारंटी देते हैं। अलग-अलग तरह की विशेषज्ञता वाले कोसोZ का विकल्प कैसे बन रहा है कॉमर्स, बता रहे हैं अनुराग मिश्र <br> <br>ग्लोबल अर्थव्यवस्था के इस दौर में चार्टर्ड एकाउटेंट (सीए) और कंपनी सेक्रेट्री का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी एक वजह मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे लोकप्रिय विकल्पों की असीमित सीटों के मुकाबले सीए और सीएस की चुनिंदा सीटों का होना भी है। इसके अलावा पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं बनी हैं। <br><br><br><br><br>चार्टर्ड अकाउंटेंट<br><br><br>पहले यह माना जाता था कि केवल वाणिज्य अथवा एकाउंटेसी विषय से संबध रखने वाले विद्यार्थी ही सीए परीक्षा में उत्तीर्ण होने की क्षमता रखते हैं। लेकिन अब प्रत्येक विषय के विद्यार्थियों में सीए के प्रति रुचि बढ़ रही है। इंटरमीडिएट या समकक्ष परीक्षा पास करने वाले युवा चार्टर्ड एकाउटेंट बनने के लिए इंस्टीटKूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) द्वारा आयोजित परीक्षा द्वारा प्रवेश पा सकते हैं। चार्टर्ड एकाउंटेंट का काम लेखा तैयार करना, उनकी जांच व सत्यता प्रमाणित करना, प्रबंधकों को समय-समय पर सलाह देना, बजट टैक्स तथा अंतिम खाते तैयार करना आदि है। सीए का लाइसेंस प्राप्त करने के बाद निजी प्रैçक्टस भी की जा सकती है। इस तरह सीए एक फर्म के तौर पर भी कार्य करता है। उनकी छोटी-सी प्रैçक्टस फर्म में ढेरों अन्य प्रकार के रोजगार भी पैदा करती है, जिससे अन्य युवाओं को रोजगार मिलता है। <br><br><br><br><br>कंपनी सेक्रेटरी <br><br><br>बदलते परिवेश में कंपनी सचिव के पद को कंपनियों में प्रिसिंपल ऑफिसर के रूप में मान्यता दी गई है। इस रूप में वह कंपनी के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स, शेयर होल्डर्स और सरकारी एजेंसियों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी होता है। कंपनियों में वह व्यवसाय प्रबंधक के रूप में भी काम करता है। वह कंपनी के वैधानिक कागजातों की देखभाल करता है। कंपनी सेक्रेटरी बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स को समय-समय पर महत्वपूर्ण सुझाव भी देता है। कंपनी के सेक्रेटेरियल, विधि, एकाउंट्स तथा प्रशासनिक विभागों की जिम्मेदारी भी कंपनी सचिव के ऊपर होती है। पब्लिक सेक्टर की कंपनियों में भी सेक्रेटरी को उसके कायोZ के महत्व के मद्देनजर कंपनी की धुरी कहा जा सकता है। प्रिंसिपल ऑफिसर के रूप में वह कंपनी, बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स, शेयर होल्डर्स और गवनüमेंट व रेगुलेटरी एजेंसियों के बीच महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। एक क्वालीफाइड सीएस सिर्फ प्राइवेट व पब्लिक सेक्टर, वित्तीय संस्थानों, स्टॉक एक्सचेंजों में ही नहीं, बल्कि केंद्र व विभिन्न राज्य सरकारों में भी काम करने का अवसर प्राप्त कर सकता है। <br><br><br><br><br>और भी हैं राहें<br><br><br>कॉमर्स स्नातक के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट, चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट, इकोनॉमिस्ट, बैंकर, स्टॉक ब्रोकर, फॉरेन एक्सचेंज डीलर जैसे विकल्प मौजूद हैं। कारोबार तभी हो सकता है, जब संसाधनों को एकत्र कर पूंजी का बंदोबस्त हो। पूंजी या वित्त का जुगाड़ और उसका कायदे से उपयोग का काम हर कंपनी के लिए महत्वपूर्ण है। पूंजी को उत्पादक बनाने के लिए जरूरी है कि उसका कायदे से निवेश हो। उसका उपयोग उत्पादन के लिए हो। निवेश की गई पूंजी और कंपनी में पैसे के उपयोग की देखभाल को फाइनेंस मैनेजमेंट कहते हैं। इस सेक्टर में कॉमर्स से जुड़े लोगों की जबरदस्त मांग है। इसके अलावा शेयर बाजार में आ रहे बूम ने भी कॉमर्स से जुड़े लोगों के लिए नई राहें खोल दी हैं। बतौर शेयर एनालिस्ट (इसमें शेयर बाजार के भविष्य के रूख को भांपने की क्षमता होनी चाहिए), निवेश विश्लेषक, पोर्टफोलियो मैनेजर, माकेüटिंग और ब्रोकिंग एजेंट के रूप में कॉमर्स से जुड़े लोगों के लिए अपार संभावनाएं हैं।<br><br><br>वित्तीय सेवा एक ऐसा क्षेत्र है, जिसकी आवश्यकता सभी उद्योगों में होती है। फिर चाहे वह बैंकिग, एमबीए, सीए, सीएस, टैक्स कंसल्टेंट, कॉस्ट एंड वर्कएकाउंटेंसी, टैक्स मैनेजमेंट, टैक्स प्लानर्स, इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट, फाइनेंशियल ऐंड रिस्क मैनेजमेंट ही क्यों न हो। इन सभी क्षेत्रों में कॉमर्स ग्रैजुएट के लिए अपार संभावनाएं और अवसर हैं। मैनेजमेंट क्षेत्र में भी कॉमर्स स्ट्रीम से ग्रैजुएट स्टूडेंट्स की मांग लगातार बढ़ रही है।<br><br><br>बैचलर इन बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन<br><br><br>यह एक ग्रैजुुएट कोर्स है। इसमें कॉमर्स, अर्थशास्त्र और मैनेजमेंट की बातों की जानकारी दी जाती है। इस कोर्स की पढ़ाई देश के अधिकतर विश्वविद्यालयों तथा उनसे मान्यता प्राप्त संस्थानों में हो रही है। मैनेजमेंट फील्ड में कैरियर बनाने वालों के लिए यह कोर्स खासा उपयोगी है। इसके अलावा फाइनेंस के क्षेत्र में भी कॉमर्स छात्रों के लिए अवसरों की भरमार है। <br><br><br>होटल मैनेजमेंट<br><br><br>बारहवीं की परीक्षा पास कर चुके छात्रों के बीच होटल मैनेजमेंट का कोर्स काफी लोकप्रिय है। विभिन्न संस्थानों में डिगरी इन होटल मैनेजमेंट और डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट कोर्स चलाए जा रहे हैं। इसके बाद आप होटल उद्योग में तो काम कर ही सकते हैं, इसके अलावा एअरलाइंस, कॉल सेंटर, टूर ऐंड ट्रैवल एजेंसी जैसी जगहों में भी जॉब पा <br><br><br>सकते हैं। <br><br><br>ट्रैवल एंड टूरिज्म मैनेजमेंट<br><br><br>कुछ चुने हुए विश्वविद्यालयों में ट्रैवल ऐंड टूरिज्म मैनेजमेंट की पढ़ाई होती है। इसमें डिप्लोमा और सíटफिकेट कोस्ाü उपलब्ध हैं। <br><br><br><br><br>मैटीरियल मैनेजमेंट<br><br><br>इसका दूसरा नाम स्टोर मैनेजमेंट है। उपलब्ध संसाधनों का सवोüत्तम इस्तेमाल मैटीरियल मैनेजमेंट का मुख्य लक्ष्य है। बढ़ती प्रतियोगिता के कारण लागत को कम करना आज कंपनियों की मजबूरी बन गई है। इस ल्ाक्ष्य को मैटीरियल मैनेजमेंट के माध्यम से पाया जा सकता है।<br><br><br>ै<br><br><br>माकेüटिंग/सेल्स<br><br><br>माकेüटिंग और बिक्री के क्षेत्र में भी बारहवीं के बाद कई कोर्स उपलब्ध हैं। बढ़ते उपभोक्ता बाजार के कारण इस क्षेत्र में लोगों की खासी मांग है। जिस तरह रिटेल सेक्टर में कामर्स बैकग्राउंड के प्रोफेशनल्स की खासी डिमांड है, उसी तरह माकेüटिंग और सेल्स प्रोफेशन में भी कामर्स फील्ड के लोगों की मांग लगातार बनी हुई है। <br><br><br>क्या कहते हैं विशेषज्ञ<br><br><br>श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के प्रिसिंपल डॉ पी.सी जैन कहते हैं कि आने वाले समय में जिस तरह से म्ौनजमेंट की मांग बढ़ रही है, इकोनॉमी बूम कर रही है, इससे कॉमर्स वालों के लिए अवसरों की भरमार है। <br><br></html>
[[WelcomeToTiddlyspot]] GettingStarted [[नए-नए जॉब्स ने मचाई धूम]]
/***
|''Name:''|EasyEditPlugin|
|''Description:''|Lite and extensible Wysiwyg editor for TiddlyWiki.|
|''Version:''|1.3.3|
|''Date:''|Dec 21,2007|
|''Source:''|http://visualtw.ouvaton.org/VisualTW.html|
|''Author:''|Pascal Collin|
|''License:''|[[BSD open source license|License]]|
|''~CoreVersion:''|2.1.0|
|''Browser:''|Firefox 2.0; InternetExplorer 6.0|
!Demo
*On the plugin [[homepage|http://visualtw.ouvaton.org/VisualTW.html]], see [[WysiwygDemo]] and use the {{{write}}} button.
!Installation
#import the plugin,
#save and reload,
#use the <<toolbar easyEdit>> button in the tiddler's toolbar (in default ViewTemplate) or add {{{easyEdit}}} command in your own toolbar.
! Useful Addons
*[[HTMLFormattingPlugin|http://www.tiddlytools.com/#HTMLFormattingPlugin]] to embed wiki syntax in html tiddlers.<<br>>//__Tips__ : When this plugin is installed, you can use anchor syntax to link tiddlers in wysiwyg mode (example : #example). Anchors are converted back and from wiki syntax when editing.//
*[[TaggedTemplateTweak|http://www.TiddlyTools.com/#TaggedTemplateTweak]] to use alternative ViewTemplate/EditTemplate for tiddler's tagged with specific tag values.
!Configuration
|Buttons in the toolbar (empty = all).<<br>>//Example : bold,underline,separator,forecolor//<<br>>The buttons will appear in this order.| <<option txtEasyEditorButtons>>|
|EasyEditor default height | <<option txtEasyEditorHeight>>|
|Stylesheet applied to the edited richtext |[[EasyEditDocStyleSheet]]|
|Template called by the {{{write}}} button |[[EasyEditTemplate]]|
!How to extend EasyEditor
*To add your own buttons, add some code like the following in a systemConfig tagged tiddler (//use the prompt attribute only if there is a parameter//) :
**{{{EditorToolbar.buttons.heading = {label:"H", toolTip : "Set heading level", prompt: "Enter heading level"};}}}
**{{{EditorToolbar.buttonsList +=",heading";}}}
*To get the list of all possible commands, see the documentation of the [[Gecko built-in rich text editor|http://developer.mozilla.org/en/docs/Midas]] or the [[IE command identifiers|http://msdn2.microsoft.com/en-us/library/ms533049.aspx]].
*To go further in customization, see [[Link button|EasyEditPlugin-LinkButton]] as an example.
!Code
***/
//{{{
var geckoEditor={};
var IEeditor={};
config.options.txtEasyEditorHeight = config.options.txtEasyEditorHeight ? config.options.txtEasyEditorHeight : "500px";
config.options.txtEasyEditorButtons = config.options.txtEasyEditorButtons ? config.options.txtEasyEditorButtons : "";
// TW2.1.x compatibility
config.browser.isGecko = config.browser.isGecko ? config.browser.isGecko : (config.userAgent.indexOf("gecko") != -1);
config.macros.annotations = config.macros.annotations ? config.macros.annotations : {handler : function() {}}
// EASYEDITOR MACRO
config.macros.easyEdit = {
handler : function(place,macroName,params,wikifier,paramString,tiddler) {
var field = params[0];
var height = params[1] ? params[1] : config.options.txtEasyEditorHeight;
var editor = field ? new easyEditor(tiddler,field,place,height) : null;
},
gather: function(element){
var iframes = element.getElementsByTagName("iframe");
if (iframes.length!=1) return null
var text = "<html>"+iframes[0].contentWindow.document.body.innerHTML+"</html>";
text = config.browser.isGecko ? geckoEditor.postProcessor(text) : (config.browser.isIE ? IEeditor.postProcessor(text) : text);
return text;
}
}
// EASYEDITOR CLASS
function easyEditor(tiddler,field,place,height) {
this.tiddler = tiddler;
this.field = field;
this.browser = config.browser.isGecko ? geckoEditor : (config.browser.isIE ? IEeditor : null);
this.wrapper = createTiddlyElement(place,"div",null,"easyEditor");
this.wrapper.setAttribute("easyEdit",this.field);
this.iframe = createTiddlyElement(null,"iframe");
this.browser.setupFrame(this.iframe,height,contextualCallback(this,this.onload));
this.wrapper.appendChild(this.iframe);
}
easyEditor.prototype.onload = function(){
this.editor = this.iframe.contentWindow;
this.doc = this.editor.document;
if (!this.browser.isDocReady(this.doc)) return null;
if (!this.tiddler.isReadOnly() && this.doc.designMode.toLowerCase()!="on") {
this.doc.designMode = "on";
if (this.browser.reloadOnDesignMode) return false; // IE fire readystatechange after designMode change
}
var internalCSS = store.getTiddlerText("EasyEditDocStyleSheet");
setStylesheet(internalCSS,"EasyEditDocStyleSheet",this.doc);
this.browser.initContent(this.doc,store.getValue(this.tiddler,this.field));
var barElement=createTiddlyElement(null,"div",null,"easyEditorToolBar");
this.wrapper.insertBefore(barElement,this.wrapper.firstChild);
this.toolbar = new EditorToolbar(this.doc,barElement,this.editor);
this.browser.plugEvents(this.doc,contextualCallback(this,this.scheduleButtonsRefresh));
this.editor.focus();
}
easyEditor.SimplePreProcessoror = function(text) {
var re = /^<html>(.*)<\/html>$/m;
var htmlValue = re.exec(text);
var value = (htmlValue && (htmlValue.length>0)) ? htmlValue[1] : text;
return value;
}
easyEditor.prototype.scheduleButtonsRefresh=function() { //doesn't refresh buttons state when rough typing
if (this.nextUpdate) window.clearTimeout(this.nextUpdate);
this.nextUpdate = window.setTimeout(contextualCallback(this.toolbar,EditorToolbar.onUpdateButton),easyEditor.buttonDelay);
}
easyEditor.buttonDelay = 200;
// TOOLBAR CLASS
function EditorToolbar(target,parent,window){
this.target = target;
this.window=window;
this.elements={};
var row = createTiddlyElement(createTiddlyElement(createTiddlyElement(parent,"table"),"tbody"),"tr");
var buttons = (config.options.txtEasyEditorButtons ? config.options.txtEasyEditorButtons : EditorToolbar.buttonsList).split(",");
for(var cpt = 0; cpt < buttons.length; cpt++){
var b = buttons[cpt];
var button = EditorToolbar.buttons[b];
if (button) {
if (button.separator)
createTiddlyElement(row,"td",null,"separator").innerHTML+=" ";
else {
var cell=createTiddlyElement(row,"td",null,b+"Button");
if (button.onCreate) button.onCreate.call(this, cell, b);
else EditorToolbar.createButton.call(this, cell, b);
}
}
}
}
EditorToolbar.createButton = function(place,name){
this.elements[name] = createTiddlyButton(place,EditorToolbar.buttons[name].label,EditorToolbar.buttons[name].toolTip,contextualCallback(this,EditorToolbar.onCommand(name)),"button");
}
EditorToolbar.onCommand = function(name){
var button = EditorToolbar.buttons[name];
return function(){
var parameter = false;
if (button.prompt) {
var parameter = this.target.queryCommandValue(name);
parameter = prompt(button.prompt,parameter);
}
if (parameter != null) {
this.target.execCommand(name, false, parameter);
EditorToolbar.onUpdateButton.call(this);
}
return false;
}
}
EditorToolbar.getCommandState = function(target,name){
try {return target.queryCommandState(name)}
catch(e){return false}
}
EditorToolbar.onRefreshButton = function (name){
if (EditorToolbar.getCommandState(this.target,name)) addClass(this.elements[name].parentNode,"buttonON");
else removeClass(this.elements[name].parentNode,"buttonON");
this.window.focus();
}
EditorToolbar.onUpdateButton = function(){
for (b in this.elements)
if (EditorToolbar.buttons[b].onRefresh) EditorToolbar.buttons[b].onRefresh.call(this,b);
else EditorToolbar.onRefreshButton.call(this,b);
}
EditorToolbar.buttons = {
separator : {separator : true},
bold : {label:"B", toolTip : "Bold"},
italic : {label:"I", toolTip : "Italic"},
underline : {label:"U", toolTip : "Underline"},
strikethrough : {label:"S", toolTip : "Strikethrough"},
insertunorderedlist : {label:"\u25CF", toolTip : "Unordered list"},
insertorderedlist : {label:"1.", toolTip : "Ordered list"},
justifyleft : {label:"[\u2261", toolTip : "Align left"},
justifyright : {label:"\u2261]", toolTip : "Align right"},
justifycenter : {label:"\u2261", toolTip : "Align center"},
justifyfull : {label:"[\u2261]", toolTip : "Justify"},
removeformat : {label:"\u00F8", toolTip : "Remove format"},
fontsize : {label:"\u00B1", toolTip : "Set font size", prompt: "Enter font size"},
forecolor : {label:"C", toolTip : "Set font color", prompt: "Enter font color"},
fontname : {label:"F", toolTip : "Set font name", prompt: "Enter font name"},
heading : {label:"H", toolTip : "Set heading level", prompt: "Enter heading level (example : h1, h2, ...)"},
indent : {label:"\u2192[", toolTip : "Indent paragraph"},
outdent : {label:"[\u2190", toolTip : "Outdent paragraph"},
inserthorizontalrule : {label:"\u2014", toolTip : "Insert an horizontal rule"},
insertimage : {label:"\u263C", toolTip : "Insert image", prompt: "Enter image url"}
}
EditorToolbar.buttonsList = "bold,italic,underline,strikethrough,separator,increasefontsize,decreasefontsize,fontsize,forecolor,fontname,separator,removeformat,separator,insertparagraph,insertunorderedlist,insertorderedlist,separator,justifyleft,justifyright,justifycenter,justifyfull,indent,outdent,separator,heading,separator,inserthorizontalrule,insertimage";
if (config.browser.isGecko) {
EditorToolbar.buttons.increasefontsize = {onCreate : EditorToolbar.createButton, label:"A", toolTip : "Increase font size"};
EditorToolbar.buttons.decreasefontsize = {onCreate : EditorToolbar.createButton, label:"A", toolTip : "Decrease font size"};
EditorToolbar.buttons.insertparagraph = {label:"P", toolTip : "Format as paragraph"};
}
// GECKO (FIREFOX, ...) BROWSER SPECIFIC METHODS
geckoEditor.setupFrame = function(iframe,height,callback) {
iframe.setAttribute("style","width: 100%; height:" + height);
iframe.addEventListener("load",callback,true);
}
geckoEditor.plugEvents = function(doc,onchange){
doc.addEventListener("keyup", onchange, true);
doc.addEventListener("keydown", onchange, true);
doc.addEventListener("click", onchange, true);
}
geckoEditor.postProcessor = function(text){return text};
geckoEditor.preProcessor = function(text){return easyEditor.SimplePreProcessoror(text)}
geckoEditor.isDocReady = function() {return true;}
geckoEditor.reloadOnDesignMode=false;
geckoEditor.initContent = function(doc,content){
if (content) doc.execCommand("insertHTML",false,geckoEditor.preProcessor(content));
}
// INTERNET EXPLORER BROWSER SPECIFIC METHODS
IEeditor.setupFrame = function(iframe,height,callback) {
iframe.width="99%"; //IE displays the iframe at the bottom if 100%. CSS layout problem ? I don't know. To be studied...
iframe.height=height.toString();
iframe.attachEvent("onreadystatechange",callback);
}
IEeditor.plugEvents = function(doc,onchange){
doc.attachEvent("onkeyup", onchange);
doc.attachEvent("onkeydown", onchange);
doc.attachEvent("onclick", onchange);
}
IEeditor.isDocReady = function(doc){
if (doc.readyState!="complete") return false;
if (!doc.body) return false;
return (doc && doc.getElementsByTagName && doc.getElementsByTagName("head") && doc.getElementsByTagName("head").length>0);
}
IEeditor.postProcessor = function(text){return text};
IEeditor.preProcessor = function(text){return easyEditor.SimplePreProcessoror(text)}
IEeditor.reloadOnDesignMode=true;
IEeditor.initContent = function(doc,content){
if (content) doc.body.innerHTML=IEeditor.preProcessor(content);
}
function contextualCallback(obj,func){
return function(){return func.call(obj)}
}
Story.prototype.previousGatherSaveEasyEdit = Story.prototype.previousGatherSaveEasyEdit ? Story.prototype.previousGatherSaveEasyEdit : Story.prototype.gatherSaveFields; // to avoid looping if this line is called several times
Story.prototype.gatherSaveFields = function(e,fields){
if(e && e.getAttribute) {
var f = e.getAttribute("easyEdit");
if(f){
var newVal = config.macros.easyEdit.gather(e);
if (newVal) fields[f] = newVal;
}
this.previousGatherSaveEasyEdit(e, fields);
}
}
config.commands.easyEdit={
text: "write",
tooltip: "Edit this tiddler in wysiwyg mode",
readOnlyText: "view",
readOnlyTooltip: "View the source of this tiddler",
handler : function(event,src,title) {
clearMessage();
var tiddlerElem = document.getElementById(story.idPrefix + title);
var fields = tiddlerElem.getAttribute("tiddlyFields");
story.displayTiddler(null,title,"EasyEditTemplate",false,null,fields);
return false;
}
}
config.shadowTiddlers.ViewTemplate = config.shadowTiddlers.ViewTemplate.replace(/\+editTiddler/,"+editTiddler easyEdit");
config.shadowTiddlers.EasyEditTemplate = config.shadowTiddlers.EditTemplate.replace(/macro='edit text'/,"macro='easyEdit text'");
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet = "/*{{{*/\n";
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar {font-size:0.8em}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".editor iframe {border:1px solid #DDD}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar td{border:1px solid #888; padding:2px 1px 2px 1px; vertical-align:middle}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar td.separator{border:0}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .button{border:0;color:#444}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .buttonON{background-color:#EEE}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar {margin:0.25em 0}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .boldButton {font-weight:bold}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .italicButton .button {font-style:italic;padding-right:0.65em}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .underlineButton .button {text-decoration:underline}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .strikeButton .button {text-decoration:line-through}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .unorderedListButton {margin-left:0.7em}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .justifyleftButton .button {padding-left:0.1em}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .justifyrightButton .button {padding-right:0.1em}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .justifyfullButton .button, .easyEditorToolBar .indentButton .button, .easyEditorToolBar .outdentButton .button {padding-left:0.1em;padding-right:0.1em}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .increasefontsizeButton .button {padding-left:0.15em;padding-right:0.15em; font-size:1.3em; line-height:0.75em}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .decreasefontsizeButton .button {padding-left:0.4em;padding-right:0.4em; font-size:0.8em;}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .forecolorButton .button {color:red;}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += ".easyEditorToolBar .fontnameButton .button {font-family:serif}\n" ;
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet +="/*}}}*/";
store.addNotification("EasyEditToolBarStyleSheet", refreshStyles);
config.shadowTiddlers.EasyEditDocStyleSheet = "/*{{{*/\n \n/*}}}*/";
if (config.annotations) config.annotations.EasyEditDocStyleSheet = "This stylesheet is applied when editing a text with the wysiwyg easyEditor";
//}}}
/***
!Link button add-on
***/
//{{{
EditorToolbar.createLinkButton = function(place,name) {
this.elements[name] = createTiddlyButton(place,EditorToolbar.buttons[name].label,EditorToolbar.buttons[name].toolTip,contextualCallback(this,EditorToolbar.onInputLink()),"button");
}
EditorToolbar.onInputLink = function() {
return function(){
var browser = config.browser.isGecko ? geckoEditor : (config.browser.isIE ? IEeditor : null);
var value = browser ? browser.getLink(this.target) : "";
value = prompt(EditorToolbar.buttons["createlink"].prompt,value);
if (value) browser.doLink(this.target,value);
else if (value=="") this.target.execCommand("unlink", false, value);
EditorToolbar.onUpdateButton.call(this);
return false;
}
}
EditorToolbar.buttonsList += ",separator,createlink";
EditorToolbar.buttons.createlink = {onCreate : EditorToolbar.createLinkButton, label:"L", toolTip : "Set link", prompt: "Enter link url"};
geckoEditor.getLink=function(doc){
var range=doc.defaultView.getSelection().getRangeAt(0);
var container = range.commonAncestorContainer;
var node = (container.nodeType==3) ? container.parentNode : range.startContainer.childNodes[range.startOffset];
if (node && node.tagName=="A") {
var r=doc.createRange();
r.selectNode(node);
doc.defaultView.getSelection().addRange(r);
return (node.getAttribute("tiddler") ? "#"+node.getAttribute("tiddler") : node.href);
}
else return (container.nodeType==3 ? "#"+container.textContent.substr(range.startOffset, range.endOffset-range.startOffset).replace(/ $/,"") : "");
}
geckoEditor.doLink=function(doc,link){ // store tiddler in a temporary attribute to avoid url encoding of tiddler's name
var pin = "href"+Math.random().toString().substr(3);
doc.execCommand("createlink", false, pin);
var isTiddler=(link.charAt(0)=="#");
var node = doc.defaultView.getSelection().getRangeAt(0).commonAncestorContainer;
var links= (node.nodeType!=3) ? node.getElementsByTagName("a") : [node.parentNode];
for (var cpt=0;cpt<links.length;cpt++)
if (links[cpt].href==pin){
links[cpt].href=isTiddler ? "javascript:;" : link;
links[cpt].setAttribute("tiddler",isTiddler ? link.substr(1) : "");
}
}
geckoEditor.beforeLinkPostProcessor = geckoEditor.beforelinkPostProcessor ? geckoEditor.beforelinkPostProcessor : geckoEditor.postProcessor;
geckoEditor.postProcessor = function(text){
return geckoEditor.beforeLinkPostProcessor(text).replace(/<a tiddler="([^"]*)" href="javascript:;">(.*?)(?:<\/a>)/gi,"[[$2|$1]]").replace(/<a tiddler="" href="/gi,'<a href="');
}
geckoEditor.beforeLinkPreProcessor = geckoEditor.beforeLinkPreProcessor ? geckoEditor.beforeLinkPreProcessor : geckoEditor.preProcessor
geckoEditor.preProcessor = function(text){
return geckoEditor.beforeLinkPreProcessor(text).replace(/\[\[([^|\]]*)\|([^\]]*)]]/g,'<a tiddler="$2" href="javascript:;">$1</a>');
}
IEeditor.getLink=function(doc){
var node=doc.selection.createRange().parentElement();
if (node.tagName=="A") return node.href;
else return (doc.selection.type=="Text"? "#"+doc.selection.createRange().text.replace(/ $/,"") :"");
}
IEeditor.doLink=function(doc,link){
doc.execCommand("createlink", false, link);
}
IEeditor.beforeLinkPreProcessor = IEeditor.beforeLinkPreProcessor ? IEeditor.beforeLinkPreProcessor : IEeditor.preProcessor
IEeditor.preProcessor = function(text){
return IEeditor.beforeLinkPreProcessor(text).replace(/\[\[([^|\]]*)\|([^\]]*)]]/g,'<a ref="#$2">$1</a>');
}
IEeditor.beforeLinkPostProcessor = IEeditor.beforelinkPostProcessor ? IEeditor.beforelinkPostProcessor : IEeditor.postProcessor;
IEeditor.postProcessor = function(text){
return IEeditor.beforeLinkPostProcessor(text).replace(/<a href="#([^>]*)">([^<]*)<\/a>/gi,"[[$2|$1]]");
}
IEeditor.beforeLinkInitContent = IEeditor.beforeLinkInitContent ? IEeditor.beforeLinkInitContent : IEeditor.initContent;
IEeditor.initContent = function(doc,content){
IEeditor.beforeLinkInitContent(doc,content);
var links=doc.body.getElementsByTagName("A");
for (var cpt=0; cpt<links.length; cpt++) {
links[cpt].href=links[cpt].ref; //to avoid IE conversion of relative URLs to absolute
links[cpt].removeAttribute("ref");
}
}
config.shadowTiddlers.EasyEditToolBarStyleSheet += "\n/*{{{*/\n.easyEditorToolBar .createlinkButton .button {color:blue;text-decoration:underline;}\n/*}}}*/";
config.shadowTiddlers.EasyEditDocStyleSheet += "\n/*{{{*/\na {color:#0044BB;font-weight:bold}\n/*}}}*/";
//}}}
/***
|''Name:''|LoadRemoteFileThroughProxy (previous LoadRemoteFileHijack)|
|''Description:''|When the TiddlyWiki file is located on the web (view over http) the content of [[SiteProxy]] tiddler is added in front of the file url. If [[SiteProxy]] does not exist "/proxy/" is added. |
|''Version:''|1.1.0|
|''Date:''|mar 17, 2007|
|''Source:''|http://tiddlywiki.bidix.info/#LoadRemoteFileHijack|
|''Author:''|BidiX (BidiX (at) bidix (dot) info)|
|''License:''|[[BSD open source license|http://tiddlywiki.bidix.info/#%5B%5BBSD%20open%20source%20license%5D%5D ]]|
|''~CoreVersion:''|2.2.0|
***/
//{{{
version.extensions.LoadRemoteFileThroughProxy = {
major: 1, minor: 1, revision: 0,
date: new Date("mar 17, 2007"),
source: "http://tiddlywiki.bidix.info/#LoadRemoteFileThroughProxy"};
if (!window.bidix) window.bidix = {}; // bidix namespace
if (!bidix.core) bidix.core = {};
bidix.core.loadRemoteFile = loadRemoteFile;
loadRemoteFile = function(url,callback,params)
{
if ((document.location.toString().substr(0,4) == "http") && (url.substr(0,4) == "http")){
url = store.getTiddlerText("SiteProxy", "/proxy/") + url;
}
return bidix.core.loadRemoteFile(url,callback,params);
}
//}}}
[[नए-नए जॉब्स ने मचाई धूम]]
[[WelcomeToTiddlyspot]]
GettingStarted
आधुनिक व्यवसायों, रोजगारों एवं जाब्स का परिचय
/***
Contains the stuff you need to use Tiddlyspot
Note you must also have UploadPlugin installed
***/
//{{{
// edit this if you are migrating sites or retrofitting an existing TW
config.tiddlyspotSiteId = 'uchitakarma';
// make it so you can by default see edit controls via http
config.options.chkHttpReadOnly = false;
window.readOnly = false; // make sure of it (for tw 2.2)
// disable autosave in d3
if (window.location.protocol != "file:")
config.options.chkGTDLazyAutoSave = false;
// tweak shadow tiddlers to add upload button, password entry box etc
with (config.shadowTiddlers) {
SiteUrl = 'http://'+config.tiddlyspotSiteId+'.tiddlyspot.com';
SideBarOptions = SideBarOptions.replace(/(<<saveChanges>>)/,"$1<<tiddler TspotSidebar>>");
OptionsPanel = OptionsPanel.replace(/^/,"<<tiddler TspotOptions>>");
DefaultTiddlers = DefaultTiddlers.replace(/^/,"[[WelcomeToTiddlyspot]] ");
MainMenu = MainMenu.replace(/^/,"[[WelcomeToTiddlyspot]] ");
}
// create some shadow tiddler content
merge(config.shadowTiddlers,{
'WelcomeToTiddlyspot':[
"This document is a ~TiddlyWiki from tiddlyspot.com. A ~TiddlyWiki is an electronic notebook that is great for managing todo lists, personal information, and all sorts of things.",
"",
"@@font-weight:bold;font-size:1.3em;color:#444; //What now?// @@ Before you can save any changes, you need to enter your password in the form below. Then configure privacy and other site settings at your [[control panel|http://" + config.tiddlyspotSiteId + ".tiddlyspot.com/controlpanel]] (your control panel username is //" + config.tiddlyspotSiteId + "//).",
"<<tiddler TspotControls>>",
"See also GettingStarted.",
"",
"@@font-weight:bold;font-size:1.3em;color:#444; //Working online// @@ You can edit this ~TiddlyWiki right now, and save your changes using the \"save to web\" button in the column on the right.",
"",
"@@font-weight:bold;font-size:1.3em;color:#444; //Working offline// @@ A fully functioning copy of this ~TiddlyWiki can be saved onto your hard drive or USB stick. You can make changes and save them locally without being connected to the Internet. When you're ready to sync up again, just click \"upload\" and your ~TiddlyWiki will be saved back to tiddlyspot.com.",
"",
"@@font-weight:bold;font-size:1.3em;color:#444; //Help!// @@ Find out more about ~TiddlyWiki at [[TiddlyWiki.com|http://tiddlywiki.com]]. Also visit [[TiddlyWiki Guides|http://tiddlywikiguides.org]] for documentation on learning and using ~TiddlyWiki. New users are especially welcome on the [[TiddlyWiki mailing list|http://groups.google.com/group/TiddlyWiki]], which is an excellent place to ask questions and get help. If you have a tiddlyspot related problem email [[tiddlyspot support|mailto:support@tiddlyspot.com]].",
"",
"@@font-weight:bold;font-size:1.3em;color:#444; //Enjoy :)// @@ We hope you like using your tiddlyspot.com site. Please email [[feedback@tiddlyspot.com|mailto:feedback@tiddlyspot.com]] with any comments or suggestions."
].join("\n"),
'TspotControls':[
"| tiddlyspot password:|<<option pasUploadPassword>>|",
"| site management:|<<upload http://" + config.tiddlyspotSiteId + ".tiddlyspot.com/store.cgi index.html . . " + config.tiddlyspotSiteId + ">>//(requires tiddlyspot password)//<<br>>[[control panel|http://" + config.tiddlyspotSiteId + ".tiddlyspot.com/controlpanel]], [[download (go offline)|http://" + config.tiddlyspotSiteId + ".tiddlyspot.com/download]]|",
"| links:|[[tiddlyspot.com|http://tiddlyspot.com/]], [[FAQs|http://faq.tiddlyspot.com/]], [[announcements|http://announce.tiddlyspot.com/]], [[blog|http://tiddlyspot.com/blog/]], email [[support|mailto:support@tiddlyspot.com]] & [[feedback|mailto:feedback@tiddlyspot.com]], [[donate|http://tiddlyspot.com/?page=donate]]|"
].join("\n"),
'TspotSidebar':[
"<<upload http://" + config.tiddlyspotSiteId + ".tiddlyspot.com/store.cgi index.html . . " + config.tiddlyspotSiteId + ">><html><a href='http://" + config.tiddlyspotSiteId + ".tiddlyspot.com/download' class='button'>download</a></html>"
].join("\n"),
'TspotOptions':[
"tiddlyspot password:",
"<<option pasUploadPassword>>",
""
].join("\n")
});
//}}}
| !date | !user | !location | !storeUrl | !uploadDir | !toFilename | !backupdir | !origin |
| 26/04/2008 12:30:39 | YourName | [[Rojagar.html|file:///C:/Documents%20and%20Settings/admin/Desktop/Rojagar.html]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . |
| 26/04/2008 12:52:23 | YourName | [[Rojagar.html|file:///C:/Documents%20and%20Settings/admin/Desktop/Rojagar.html]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . |
| 26/04/2008 12:58:40 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . | ok |
| 26/04/2008 13:26:58 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . | ok |
| 26/04/2008 13:32:40 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . |
| 29/06/2008 13:42:57 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . | ok |
| 29/06/2008 13:46:35 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . |
| 09/07/2008 18:37:58 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . | ok |
| 09/07/2008 18:41:30 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . |
| 27/01/2009 18:44:20 | YourName | [[/|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/]] | [[store.cgi|http://uchitakarma.tiddlyspot.com/store.cgi]] | . | [[index.html | http://uchitakarma.tiddlyspot.com/index.html]] | . |
/***
|''Name:''|PasswordOptionPlugin|
|''Description:''|Extends TiddlyWiki options with non encrypted password option.|
|''Version:''|1.0.2|
|''Date:''|Apr 19, 2007|
|''Source:''|http://tiddlywiki.bidix.info/#PasswordOptionPlugin|
|''Author:''|BidiX (BidiX (at) bidix (dot) info)|
|''License:''|[[BSD open source license|http://tiddlywiki.bidix.info/#%5B%5BBSD%20open%20source%20license%5D%5D ]]|
|''~CoreVersion:''|2.2.0 (Beta 5)|
***/
//{{{
version.extensions.PasswordOptionPlugin = {
major: 1, minor: 0, revision: 2,
date: new Date("Apr 19, 2007"),
source: 'http://tiddlywiki.bidix.info/#PasswordOptionPlugin',
author: 'BidiX (BidiX (at) bidix (dot) info',
license: '[[BSD open source license|http://tiddlywiki.bidix.info/#%5B%5BBSD%20open%20source%20license%5D%5D]]',
coreVersion: '2.2.0 (Beta 5)'
};
config.macros.option.passwordCheckboxLabel = "Save this password on this computer";
config.macros.option.passwordInputType = "password"; // password | text
setStylesheet(".pasOptionInput {width: 11em;}\n","passwordInputTypeStyle");
merge(config.macros.option.types, {
'pas': {
elementType: "input",
valueField: "value",
eventName: "onkeyup",
className: "pasOptionInput",
typeValue: config.macros.option.passwordInputType,
create: function(place,type,opt,className,desc) {
// password field
config.macros.option.genericCreate(place,'pas',opt,className,desc);
// checkbox linked with this password "save this password on this computer"
config.macros.option.genericCreate(place,'chk','chk'+opt,className,desc);
// text savePasswordCheckboxLabel
place.appendChild(document.createTextNode(config.macros.option.passwordCheckboxLabel));
},
onChange: config.macros.option.genericOnChange
}
});
merge(config.optionHandlers['chk'], {
get: function(name) {
// is there an option linked with this chk ?
var opt = name.substr(3);
if (config.options[opt])
saveOptionCookie(opt);
return config.options[name] ? "true" : "false";
}
});
merge(config.optionHandlers, {
'pas': {
get: function(name) {
if (config.options["chk"+name]) {
return encodeCookie(config.options[name].toString());
} else {
return "";
}
},
set: function(name,value) {config.options[name] = decodeCookie(value);}
}
});
// need to reload options to load passwordOptions
loadOptionsCookie();
/*
if (!config.options['pasPassword'])
config.options['pasPassword'] = '';
merge(config.optionsDesc,{
pasPassword: "Test password"
});
*/
//}}}
/***
|''Name:''|UploadPlugin|
|''Description:''|Save to web a TiddlyWiki|
|''Version:''|4.1.0|
|''Date:''|May 5, 2007|
|''Source:''|http://tiddlywiki.bidix.info/#UploadPlugin|
|''Documentation:''|http://tiddlywiki.bidix.info/#UploadPluginDoc|
|''Author:''|BidiX (BidiX (at) bidix (dot) info)|
|''License:''|[[BSD open source license|http://tiddlywiki.bidix.info/#%5B%5BBSD%20open%20source%20license%5D%5D ]]|
|''~CoreVersion:''|2.2.0 (#3125)|
|''Requires:''|PasswordOptionPlugin|
***/
//{{{
version.extensions.UploadPlugin = {
major: 4, minor: 1, revision: 0,
date: new Date("May 5, 2007"),
source: 'http://tiddlywiki.bidix.info/#UploadPlugin',
author: 'BidiX (BidiX (at) bidix (dot) info',
coreVersion: '2.2.0 (#3125)'
};
//
// Environment
//
if (!window.bidix) window.bidix = {}; // bidix namespace
bidix.debugMode = false; // true to activate both in Plugin and UploadService
//
// Upload Macro
//
config.macros.upload = {
// default values
defaultBackupDir: '', //no backup
defaultStoreScript: "store.php",
defaultToFilename: "index.html",
defaultUploadDir: ".",
authenticateUser: true // UploadService Authenticate User
};
config.macros.upload.label = {
promptOption: "Save and Upload this TiddlyWiki with UploadOptions",
promptParamMacro: "Save and Upload this TiddlyWiki in %0",
saveLabel: "save to web",
saveToDisk: "save to disk",
uploadLabel: "upload"
};
config.macros.upload.messages = {
noStoreUrl: "No store URL in parmeters or options",
usernameOrPasswordMissing: "Username or password missing"
};
config.macros.upload.handler = function(place,macroName,params) {
if (readOnly)
return;
var label;
if (document.location.toString().substr(0,4) == "http")
label = this.label.saveLabel;
else
label = this.label.uploadLabel;
var prompt;
if (params[0]) {
prompt = this.label.promptParamMacro.toString().format([this.destFile(params[0],
(params[1] ? params[1]:bidix.basename(window.location.toString())), params[3])]);
} else {
prompt = this.label.promptOption;
}
createTiddlyButton(place, label, prompt, function() {config.macros.upload.action(params);}, null, null, this.accessKey);
};
config.macros.upload.action = function(params)
{
// for missing macro parameter set value from options
var storeUrl = params[0] ? params[0] : config.options.txtUploadStoreUrl;
var toFilename = params[1] ? params[1] : config.options.txtUploadFilename;
var backupDir = params[2] ? params[2] : config.options.txtUploadBackupDir;
var uploadDir = params[3] ? params[3] : config.options.txtUploadDir;
var username = params[4] ? params[4] : config.options.txtUploadUserName;
var password = config.options.pasUploadPassword; // for security reason no password as macro parameter
// for still missing parameter set default value
if ((!storeUrl) && (document.location.toString().substr(0,4) == "http"))
storeUrl = bidix.dirname(document.location.toString())+'/'+config.macros.upload.defaultStoreScript;
if (storeUrl.substr(0,4) != "http")
storeUrl = bidix.dirname(document.location.toString()) +'/'+ storeUrl;
if (!toFilename)
toFilename = bidix.basename(window.location.toString());
if (!toFilename)
toFilename = config.macros.upload.defaultToFilename;
if (!uploadDir)
uploadDir = config.macros.upload.defaultUploadDir;
if (!backupDir)
backupDir = config.macros.upload.defaultBackupDir;
// report error if still missing
if (!storeUrl) {
alert(config.macros.upload.messages.noStoreUrl);
clearMessage();
return false;
}
if (config.macros.upload.authenticateUser && (!username || !password)) {
alert(config.macros.upload.messages.usernameOrPasswordMissing);
clearMessage();
return false;
}
bidix.upload.uploadChanges(false,null,storeUrl, toFilename, uploadDir, backupDir, username, password);
return false;
};
config.macros.upload.destFile = function(storeUrl, toFilename, uploadDir)
{
if (!storeUrl)
return null;
var dest = bidix.dirname(storeUrl);
if (uploadDir && uploadDir != '.')
dest = dest + '/' + uploadDir;
dest = dest + '/' + toFilename;
return dest;
};
//
// uploadOptions Macro
//
config.macros.uploadOptions = {
handler: function(place,macroName,params) {
var wizard = new Wizard();
wizard.createWizard(place,this.wizardTitle);
wizard.addStep(this.step1Title,this.step1Html);
var markList = wizard.getElement("markList");
var listWrapper = document.createElement("div");
markList.parentNode.insertBefore(listWrapper,markList);
wizard.setValue("listWrapper",listWrapper);
this.refreshOptions(listWrapper,false);
var uploadCaption;
if (document.location.toString().substr(0,4) == "http")
uploadCaption = config.macros.upload.label.saveLabel;
else
uploadCaption = config.macros.upload.label.uploadLabel;
wizard.setButtons([
{caption: uploadCaption, tooltip: config.macros.upload.label.promptOption,
onClick: config.macros.upload.action},
{caption: this.cancelButton, tooltip: this.cancelButtonPrompt, onClick: this.onCancel}
]);
},
refreshOptions: function(listWrapper) {
var uploadOpts = [
"txtUploadUserName",
"pasUploadPassword",
"txtUploadStoreUrl",
"txtUploadDir",
"txtUploadFilename",
"txtUploadBackupDir",
"chkUploadLog",
"txtUploadLogMaxLine",
]
var opts = [];
for(i=0; i<uploadOpts.length; i++) {
var opt = {};
opts.push()
opt.option = "";
n = uploadOpts[i];
opt.name = n;
opt.lowlight = !config.optionsDesc[n];
opt.description = opt.lowlight ? this.unknownDescription : config.optionsDesc[n];
opts.push(opt);
}
var listview = ListView.create(listWrapper,opts,this.listViewTemplate);
for(n=0; n<opts.length; n++) {
var type = opts[n].name.substr(0,3);
var h = config.macros.option.types[type];
if (h && h.create) {
h.create(opts[n].colElements['option'],type,opts[n].name,opts[n].name,"no");
}
}
},
onCancel: function(e)
{
backstage.switchTab(null);
return false;
},
wizardTitle: "Upload with options",
step1Title: "These options are saved in cookies in your browser",
step1Html: "<input type='hidden' name='markList'></input><br>",
cancelButton: "Cancel",
cancelButtonPrompt: "Cancel prompt",
listViewTemplate: {
columns: [
{name: 'Description', field: 'description', title: "Description", type: 'WikiText'},
{name: 'Option', field: 'option', title: "Option", type: 'String'},
{name: 'Name', field: 'name', title: "Name", type: 'String'}
],
rowClasses: [
{className: 'lowlight', field: 'lowlight'}
]}
}
//
// upload functions
//
if (!bidix.upload) bidix.upload = {};
if (!bidix.upload.messages) bidix.upload.messages = {
//from saving
invalidFileError: "The original file '%0' does not appear to be a valid TiddlyWiki",
backupSaved: "Backup saved",
backupFailed: "Failed to upload backup file",
rssSaved: "RSS feed uploaded",
rssFailed: "Failed to upload RSS feed file",
emptySaved: "Empty template uploaded",
emptyFailed: "Failed to upload empty template file",
mainSaved: "Main TiddlyWiki file uploaded",
mainFailed: "Failed to upload main TiddlyWiki file. Your changes have not been saved",
//specific upload
loadOriginalHttpPostError: "Can't get original file",
aboutToSaveOnHttpPost: 'About to upload on %0 ...',
storePhpNotFound: "The store script '%0' was not found."
};
bidix.upload.uploadChanges = function(onlyIfDirty,tiddlers,storeUrl,toFilename,uploadDir,backupDir,username,password)
{
var callback = function(status,uploadParams,original,url,xhr) {
if (!status) {
displayMessage(bidix.upload.messages.loadOriginalHttpPostError);
return;
}
if (bidix.debugMode)
alert(original.substr(0,500)+"\n...");
// Locate the storeArea div's
var posDiv = locateStoreArea(original);
if((posDiv[0] == -1) || (posDiv[1] == -1)) {
alert(config.messages.invalidFileError.format([localPath]));
return;
}
bidix.upload.uploadRss(uploadParams,original,posDiv);
};
if(onlyIfDirty && !store.isDirty())
return;
clearMessage();
// save on localdisk ?
if (document.location.toString().substr(0,4) == "file") {
var path = document.location.toString();
var localPath = getLocalPath(path);
saveChanges();
}
// get original
var uploadParams = Array(storeUrl,toFilename,uploadDir,backupDir,username,password);
var originalPath = document.location.toString();
// If url is a directory : add index.html
if (originalPath.charAt(originalPath.length-1) == "/")
originalPath = originalPath + "index.html";
var dest = config.macros.upload.destFile(storeUrl,toFilename,uploadDir);
var log = new bidix.UploadLog();
log.startUpload(storeUrl, dest, uploadDir, backupDir);
displayMessage(bidix.upload.messages.aboutToSaveOnHttpPost.format([dest]));
if (bidix.debugMode)
alert("about to execute Http - GET on "+originalPath);
var r = doHttp("GET",originalPath,null,null,null,null,callback,uploadParams,null);
if (typeof r == "string")
displayMessage(r);
return r;
};
bidix.upload.uploadRss = function(uploadParams,original,posDiv)
{
var callback = function(status,params,responseText,url,xhr) {
if(status) {
var destfile = responseText.substring(responseText.indexOf("destfile:")+9,responseText.indexOf("\n", responseText.indexOf("destfile:")));
displayMessage(bidix.upload.messages.rssSaved,bidix.dirname(url)+'/'+destfile);
bidix.upload.uploadMain(params[0],params[1],params[2]);
} else {
displayMessage(bidix.upload.messages.rssFailed);
}
};
// do uploadRss
if(config.options.chkGenerateAnRssFeed) {
var rssPath = uploadParams[1].substr(0,uploadParams[1].lastIndexOf(".")) + ".xml";
var rssUploadParams = Array(uploadParams[0],rssPath,uploadParams[2],'',uploadParams[4],uploadParams[5]);
bidix.upload.httpUpload(rssUploadParams,convertUnicodeToUTF8(generateRss()),callback,Array(uploadParams,original,posDiv));
} else {
bidix.upload.uploadMain(uploadParams,original,posDiv);
}
};
bidix.upload.uploadMain = function(uploadParams,original,posDiv)
{
var callback = function(status,params,responseText,url,xhr) {
var log = new bidix.UploadLog();
if(status) {
// if backupDir specified
if ((params[3]) && (responseText.indexOf("backupfile:") > -1)) {
var backupfile = responseText.substring(responseText.indexOf("backupfile:")+11,responseText.indexOf("\n", responseText.indexOf("backupfile:")));
displayMessage(bidix.upload.messages.backupSaved,bidix.dirname(url)+'/'+backupfile);
}
var destfile = responseText.substring(responseText.indexOf("destfile:")+9,responseText.indexOf("\n", responseText.indexOf("destfile:")));
displayMessage(bidix.upload.messages.mainSaved,bidix.dirname(url)+'/'+destfile);
store.setDirty(false);
log.endUpload("ok");
} else {
alert(bidix.upload.messages.mainFailed);
displayMessage(bidix.upload.messages.mainFailed);
log.endUpload("failed");
}
};
// do uploadMain
var revised = bidix.upload.updateOriginal(original,posDiv);
bidix.upload.httpUpload(uploadParams,revised,callback,uploadParams);
};
bidix.upload.httpUpload = function(uploadParams,data,callback,params)
{
var localCallback = function(status,params,responseText,url,xhr) {
url = (url.indexOf("nocache=") < 0 ? url : url.substring(0,url.indexOf("nocache=")-1));
if (xhr.status == httpStatus.NotFound)
alert(bidix.upload.messages.storePhpNotFound.format([url]));
if ((bidix.debugMode) || (responseText.indexOf("Debug mode") >= 0 )) {
alert(responseText);
if (responseText.indexOf("Debug mode") >= 0 )
responseText = responseText.substring(responseText.indexOf("\n\n")+2);
} else if (responseText.charAt(0) != '0')
alert(responseText);
if (responseText.charAt(0) != '0')
status = null;
callback(status,params,responseText,url,xhr);
};
// do httpUpload
var boundary = "---------------------------"+"AaB03x";
var uploadFormName = "UploadPlugin";
// compose headers data
var sheader = "";
sheader += "--" + boundary + "\r\nContent-disposition: form-data; name=\"";
sheader += uploadFormName +"\"\r\n\r\n";
sheader += "backupDir="+uploadParams[3] +
";user=" + uploadParams[4] +
";password=" + uploadParams[5] +
";uploaddir=" + uploadParams[2];
if (bidix.debugMode)
sheader += ";debug=1";
sheader += ";;\r\n";
sheader += "\r\n" + "--" + boundary + "\r\n";
sheader += "Content-disposition: form-data; name=\"userfile\"; filename=\""+uploadParams[1]+"\"\r\n";
sheader += "Content-Type: text/html;charset=UTF-8" + "\r\n";
sheader += "Content-Length: " + data.length + "\r\n\r\n";
// compose trailer data
var strailer = new String();
strailer = "\r\n--" + boundary + "--\r\n";
data = sheader + data + strailer;
if (bidix.debugMode) alert("about to execute Http - POST on "+uploadParams[0]+"\n with \n"+data.substr(0,500)+ " ... ");
var r = doHttp("POST",uploadParams[0],data,"multipart/form-data; boundary="+boundary,uploadParams[4],uploadParams[5],localCallback,params,null);
if (typeof r == "string")
displayMessage(r);
return r;
};
// same as Saving's updateOriginal but without convertUnicodeToUTF8 calls
bidix.upload.updateOriginal = function(original, posDiv)
{
if (!posDiv)
posDiv = locateStoreArea(original);
if((posDiv[0] == -1) || (posDiv[1] == -1)) {
alert(config.messages.invalidFileError.format([localPath]));
return;
}
var revised = original.substr(0,posDiv[0] + startSaveArea.length) + "\n" +
store.allTiddlersAsHtml() + "\n" +
original.substr(posDiv[1]);
var newSiteTitle = getPageTitle().htmlEncode();
revised = revised.replaceChunk("<title"+">","</title"+">"," " + newSiteTitle + " ");
revised = updateMarkupBlock(revised,"PRE-HEAD","MarkupPreHead");
revised = updateMarkupBlock(revised,"POST-HEAD","MarkupPostHead");
revised = updateMarkupBlock(revised,"PRE-BODY","MarkupPreBody");
revised = updateMarkupBlock(revised,"POST-SCRIPT","MarkupPostBody");
return revised;
};
//
// UploadLog
//
// config.options.chkUploadLog :
// false : no logging
// true : logging
// config.options.txtUploadLogMaxLine :
// -1 : no limit
// 0 : no Log lines but UploadLog is still in place
// n : the last n lines are only kept
// NaN : no limit (-1)
bidix.UploadLog = function() {
if (!config.options.chkUploadLog)
return; // this.tiddler = null
this.tiddler = store.getTiddler("UploadLog");
if (!this.tiddler) {
this.tiddler = new Tiddler();
this.tiddler.title = "UploadLog";
this.tiddler.text = "| !date | !user | !location | !storeUrl | !uploadDir | !toFilename | !backupdir | !origin |";
this.tiddler.created = new Date();
this.tiddler.modifier = config.options.txtUserName;
this.tiddler.modified = new Date();
store.addTiddler(this.tiddler);
}
return this;
};
bidix.UploadLog.prototype.addText = function(text) {
if (!this.tiddler)
return;
// retrieve maxLine when we need it
var maxLine = parseInt(config.options.txtUploadLogMaxLine,10);
if (isNaN(maxLine))
maxLine = -1;
// add text
if (maxLine != 0)
this.tiddler.text = this.tiddler.text + text;
// Trunck to maxLine
if (maxLine >= 0) {
var textArray = this.tiddler.text.split('\n');
if (textArray.length > maxLine + 1)
textArray.splice(1,textArray.length-1-maxLine);
this.tiddler.text = textArray.join('\n');
}
// update tiddler fields
this.tiddler.modifier = config.options.txtUserName;
this.tiddler.modified = new Date();
store.addTiddler(this.tiddler);
// refresh and notifiy for immediate update
story.refreshTiddler(this.tiddler.title);
store.notify(this.tiddler.title, true);
};
bidix.UploadLog.prototype.startUpload = function(storeUrl, toFilename, uploadDir, backupDir) {
if (!this.tiddler)
return;
var now = new Date();
var text = "\n| ";
var filename = bidix.basename(document.location.toString());
if (!filename) filename = '/';
text += now.formatString("0DD/0MM/YYYY 0hh:0mm:0ss") +" | ";
text += config.options.txtUserName + " | ";
text += "[["+filename+"|"+location + "]] |";
text += " [[" + bidix.basename(storeUrl) + "|" + storeUrl + "]] | ";
text += uploadDir + " | ";
text += "[[" + bidix.basename(toFilename) + " | " +toFilename + "]] | ";
text += backupDir + " |";
this.addText(text);
};
bidix.UploadLog.prototype.endUpload = function(status) {
if (!this.tiddler)
return;
this.addText(" "+status+" |");
};
//
// Utilities
//
bidix.checkPlugin = function(plugin, major, minor, revision) {
var ext = version.extensions[plugin];
if (!
(ext &&
((ext.major > major) ||
((ext.major == major) && (ext.minor > minor)) ||
((ext.major == major) && (ext.minor == minor) && (ext.revision >= revision))))) {
// write error in PluginManager
if (pluginInfo)
pluginInfo.log.push("Requires " + plugin + " " + major + "." + minor + "." + revision);
eval(plugin); // generate an error : "Error: ReferenceError: xxxx is not defined"
}
};
bidix.dirname = function(filePath) {
if (!filePath)
return;
var lastpos;
if ((lastpos = filePath.lastIndexOf("/")) != -1) {
return filePath.substring(0, lastpos);
} else {
return filePath.substring(0, filePath.lastIndexOf("\\"));
}
};
bidix.basename = function(filePath) {
if (!filePath)
return;
var lastpos;
if ((lastpos = filePath.lastIndexOf("#")) != -1)
filePath = filePath.substring(0, lastpos);
if ((lastpos = filePath.lastIndexOf("/")) != -1) {
return filePath.substring(lastpos + 1);
} else
return filePath.substring(filePath.lastIndexOf("\\")+1);
};
bidix.initOption = function(name,value) {
if (!config.options[name])
config.options[name] = value;
};
//
// Initializations
//
// require PasswordOptionPlugin 1.0.1 or better
bidix.checkPlugin("PasswordOptionPlugin", 1, 0, 1);
// styleSheet
setStylesheet('.txtUploadStoreUrl, .txtUploadBackupDir, .txtUploadDir {width: 22em;}',"uploadPluginStyles");
//optionsDesc
merge(config.optionsDesc,{
txtUploadStoreUrl: "Url of the UploadService script (default: store.php)",
txtUploadFilename: "Filename of the uploaded file (default: in index.html)",
txtUploadDir: "Relative Directory where to store the file (default: . (downloadService directory))",
txtUploadBackupDir: "Relative Directory where to backup the file. If empty no backup. (default: ''(empty))",
txtUploadUserName: "Upload Username",
pasUploadPassword: "Upload Password",
chkUploadLog: "do Logging in UploadLog (default: true)",
txtUploadLogMaxLine: "Maximum of lines in UploadLog (default: 10)"
});
// Options Initializations
bidix.initOption('txtUploadStoreUrl','');
bidix.initOption('txtUploadFilename','');
bidix.initOption('txtUploadDir','');
bidix.initOption('txtUploadBackupDir','');
bidix.initOption('txtUploadUserName','');
bidix.initOption('pasUploadPassword','');
bidix.initOption('chkUploadLog',true);
bidix.initOption('txtUploadLogMaxLine','10');
/* don't want this for tiddlyspot sites
// Backstage
merge(config.tasks,{
uploadOptions: {text: "upload", tooltip: "Change UploadOptions and Upload", content: '<<uploadOptions>>'}
});
config.backstageTasks.push("uploadOptions");
*/
//}}}
अगले साल यदि आप किसी प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने के असफल हो जाते हैं तो आपको यह सोच कर निराश नहीं होना पड़ेगा कि अब आप मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर पाएंगे। क्योंकि एक अग्रणी हॉस्पिटल चेन भारत में पहली बार डिस्टेंस लरनिंग के द्वारा एमबीबीएस प्रोग्राम ऑफर करने की तैयारी कर चुका है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया जो कि भारत में मेडिकल एजुकेशन को रेग्युलेट करती है, के सूत्रों के अनुसार मैक्स हेल्थकेयर और यूएस बेस्ड ओसिनिया यूनिवर्सिटी लगातार मेडिकल काउंसिल से संपर्क में हैं ताकि डिस्टेंस लरनिंग से एमबीबीएस प्रोग्राम को तुरंत शुरू किया जा सके। इतना ही नहीं सूत्रों का कहना है कि उनका प्रपोजल अप्रूव होने की फाइनल स्टेज में है।
गौरतलब है कि ओसीनिया युनिवर्सिटी युनाइटेड स्टेट में ऑनलाइन और डिस्टेंस मेडिकल प्रोग्राम ऑफर करती है। और अब मैक्स हेल्थकेयर को भारत में यह कोर्स स्ट्रक्चर शुरू करने में सहायता करेगी।
अभी भारत में कुछ पैरामेडिकल प्रोग्राम हैं जो ओपन युनिवर्सिटी (इग्नू) द्वारा आयोजित करवाए जा रहे हैं और कुछ अभी तक मेडिकल काउंसिल द्वारा अप्रूव होने के इंतजार में हैं। चूंकि एमबीबीएस कोर्स में बहुत ज्यादा प्रेक्टिकल ट्रेनिंग की जरूरत होती है इसलिए डिस्टेंस कोर्स में हमेशा इस कोर्स को सम्मिलित करने के बारे में सोचा भी नहीं जाता था।
मैक्स हेल्थकेयर के मेडिकल ऑपरेशन्स के एग्ज्यूकिटिव डायरेक्टर डॉ. परवेज अहमद बताते हैं कि मैक्स की योजना है कि कोर्स व पाठ्यक्रम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन के अनुसार हो और इसकी डिलिवरी का मोड ओसिनिया युनिवर्सिटी के प्रोग्राम जैसा ही हो। उन्होंने बताया कि कोर्स का थ्योरी पार्ट इंटरेक्टिव इंटरनेट टूल के जरिए डिस्टेंस मोड में कंडक्ट होगा और प्रैक्टिकल मैक्स हेल्थकेयर के जगह-जगह कार्यरत हॉस्पिटल के कैम्पस में आयोजित किए जाएंगे।
गौरतलब है कि मैक्स हेल्थकेयर अपने 6 हॉस्पिटल्स को अपग्रेड कर रहा है और कंपनी के सूत्रों के अनुसार 3 सालों में उनकी क्षमता 4000 बिस्तर वाली होगी। डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट अनिल कोहली ने डिस्टेंस एमबीबीएस कोर्स का स्वागत किया है।
अमेरिका में शिक्षा प्रणाली भारत से भिन्न है। अमेरिका में 18 वर्ष की उम्र के बाद तथा बारहवीं पास करने के बाद उच्च शिक्षा का द्वार खुलता है।
बहुत से युवाओं का सपना होता है कि वे विदेश खासकर अमेरिका में शिक्षा प्राप्त करें। कैसी है अमेरिकी शिक्षा प्रणाली? डालते हैं एक नजर
बैचलर्स या अंडरग्रेजुएट स्टडी
बैचलर्स या अंडर ग्रेजुएट डिग्री कोर्स मुख्यत: चार साल का होता है। कुछ एक्सलरेटेड पाठ्यक्रम तीन साल के होते हैं, तो वहीं पर कुछ प्रोफेशनल कोर्सेस की अवधि पांच साल की भी होती है। कई कॉलेज बैचलर डिग्री के दूसरे साल में ही ऐसोसिएट डिग्री देते हैं। इसके बाद किसी खास क्षेत्र में एक से तीन साल तक प्रशिक्षण भी देते हैं।
ग्रेजुएट स्टडी (मास्टर्स डिग्री)
अमेरिका में चार साल के बैचलर कोर्स या अंडरग्रेजुएट डिग्री की पढ़ाई पूरी करने के बाद अगर आप उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको ग्रेजुएट स्टडी (मास्टर्स डिग्री) की पढ़ाई करनी होगी। अगर आपने किसी भारतीय विश्वविद्यालय से तीन वर्षीय डिग्री कोर्स (बीए, बीएससी,बीकॉम) किया है, तो आपको अमेरिका में ग्रेजुएट कोर्स करने के लिए एक साल का अतिरिक्त डिग्री कोर्स करना होगा। आप जिस भी एडिशनल कोर्स का अध्ययन करेंगे, उसका चुनाव आपके लिए नियुक्त स्टूडेंट एडवाइजर द्वारा किया जाएगा।
रिसर्च (डॉक्टोरल डिग्री)
शोध आधारित सबसे उच्चतर पाठ्यक्रम 3 से 6 साल की अवधि का होता है। जो विश्वविद्यालय स्तर पर बैचलर डिग्री को पढ़ाने की योग्यता देता है। जो भारतीय छात्र मास्टर डिग्री रखते हैं, वे पीएचडी के लिए आवेदन कर सकते हैं। दाखिले के लिए मुख्य आधार आवेदक की किसी खास शोध विषय में रुचि होना है।
निजी शिक्षण संस्थान
अमेरिका में निजी संस्थानों द्वारा भी लिबरल आट्र्स (बीए,बीएफए) तथा साइंस (बीएस) में चार वर्षीय अंडर ग्रेजुएट कोर्स कराया जाता है। निजी शिक्षण संस्थानों से ग्रेजुएट वर्क (मास्टर्स डिग्री) करने के लिए बैचलर डिग्री आवश्यक होती है।
विश्वविद्यालय
अमेरिकी विश्वविद्यालय एक ऐसे संस्थान होते हैं, जिनमें अनेक अंडरग्रेजुएट, गे्रजुएट कॉलेज तथा प्रोफेशनल स्कूल शामिल होते हैं। गे्रजुएट स्कूल एक या दो साल के एडवांस कार्यक्रम के तहत आर्ट और साइंस में मास्टर डिग्री तथा पीएचडी कराते हैं। प्रोफेशनल स्कूल में विशेष्ाकर किसी खास विषय की पढ़ाई होती है। जैसे मेडिसिन, फामेüसी, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, लॉ आदि।
जूनियर या कम्युनिटी कॉल्ोज
इन कॉलेजों में केवल आर्ट तथा साइंस में दो वष्ाीüय एसोसिएट डिग्री (ए.ए तथा ए.एस) दी जाती है। एसोसिएट डिग्री लेेेने के बाद स्टूडेंट्स को अपनी बैचलर डिग्री कोर्स करने के लिए चार साल का कॉलेज या यूनिवçर्सटी कोर्स कर लेना चाहिए।
वोकेशनल एवं टेçक्नकल संस्थान
ये संस्थान व्यापार और तकनीकी क्षेत्र से जुडे़ क्षेत्रों में टे्रनिंग देते हैं। इन संस्थानों में कोर्स की अवधि विषयों के चयन पर निर्भर करती है। ये संस्थान टे्रनिंग लेने वाले छात्रों को सटिüफिकेट प्रदान करने के बाद किसी संस्थान में नौकरी भी उपलब्ध करा सकते हैं।
क्लास शिड्यूल
सामान्यत: सभी यूनिवçर्सटी और कॉलेज का सत्र अंतिम अगस्त और सितंबर महीने के प्रारंभ से शुरू होता है तथा मई या जून में खत्म होता है। शैक्षणिक सत्र संस्थानों के आधार पर सैमेस्टर, ट्री सैमेस्टर (तीन सैमेस्टर) तथा क्वार्टर में बंटा होता है। प्रत्येक सैमेस्टर चार महीने का होता है और दो बराबर भागों में बंटा होता है। ट्री सेमेस्टर सिस्टम सोलह सप्ताह के तीन बराबर भागों में बंटा होता है। क्वार्टर सिस्टम 11 सप्ताह के तीन बराबर भागों में बंटा होता है।
छात्रों को समझाने के लिए क्लास में लेक्चर के दौरान कंप्यूटर प्रोजेक्शन तथा मल्टीमीडिया का उपयोग किया जाता है। छात्रों को प्रिंटेड क्लास नोट्स उपलब्ध कराया जाता है।
प्रत्येक छात्र की सहायता के लिए एक एडवाइजर की नियुक्ति की जाती है, एडवाइजर फैकल्टी का ही सदस्य होता है। सलाहकार छात्रों के अध्ययन में सहायता प्रदान करते हैं। वे छात्रों की प्रोग्रेस की मॉनीटरिंग भी करते हैं और उनकी प्रगति के अनुरूप सहायता करने के लिए प्लानिंग करते हैं। किसी खास कोर्स में दाखिले के लिए छात्र को एडवाइजर की अनुमति लेनी पड़ती है।
क्लास का आकार
आमतौर पर विश्वविद्यालयों में अंडरग्रेजुएट स्तर के इंट्रोडक्टरी कोर्स में औसत 100-150 छात्र होते हैं। उच्च शिक्षा के क्लास में कम छात्र होते हैं। मास्टर डिग्री में आमतौर पर 20 तथा पीएचडी में 10 छात्र होते हैं।
परीक्षा
यहां पर सैमेस्टर के आधार पर परीक्षा ली जाती है। प्रत्येक सैैमेस्टर में चार टेेस्ट होते हैं। छात्रों को वैकçल्पक प्रश्न, रीजनिंग तथा विषय से जुडे़ सवाल हल करने होते हैं। तीन प्रकार के टेस्ट होते हैं- ओपेन बुक टेस्ट, क्लोज्ड बुक टेस्ट तथा होम टेस्ट। ओपेन बुक टेस्ट में नोट्स, बुक आदि का प्रयोग किया जा सकता है। क्लोज्ड बुक टेस्ट भारत में होने वाली परीक्षा की तरह होता है। तीसरा होम टेस्ट होता है, इसमें आप प्रश्नपत्र अपने घर ले जा सकते हैं, जिसे निर्धारित समय के अंदर हल कर के जमा करना होता है।
ग्रेडिंग
अमेरिका में ग्रेडिंग प्रणाली का प्रचलन है। अमेरिकन यूनिवçर्सटी छात्रों को प्रदर्शन के आधार पर रैंक देता है, जो ए,बी,सी,डी,ई,एफ,आई ग्रेड में बंटा होता है। ए ग्रेड सबसे उच्च होता है। ए से डी ग्रेड पाने वाला छात्र पास होता है। ग्रेड आई का अर्थ इनकम्पलीट माना जाता है तथा टीचर की इजाजत मिलने तक कोर्स को रोक दिया जाता है।
सभी ग्रेड के लिए निश्चित पाइंट होते हैं। ए ग्रेड के लिए चार, बी के लिए तीन सी के लिए दो पाइंट होते हैं। सभी कोसेüस के लिए जीपीए (ग्रेड पाइंट एवरेज) होता है। इसके लिए सामान्य स्कोर 1.0 से 4.0 तक होता है। अगर जीपीए 3.0 के करीब नहीं है, तो ग्रेजुएशन में दाखिला नहीं मिल सकता है।
अखिलेश
इंजीनियरिंग एक ऐसा फील्ड है, जिसमें सफलता को लेकर शायद ही किसी को संदेह होगा। यही कारण है कि हर साल देश के विश्वस्तरीय आईआईटी संस्थानों में दाखिले का मार्ग प्रशस्त करने वाली आईआईटी जेईई परीक्षा में लाखों की संख्या में विद्यार्थी अपना भाग्य आजमाते हैं। इस परीक्षा में अब केवल तीन दिन शेष हैं। ऐसे में, छात्रों पर दबाव स्वाभाविक है। उनकी व्यक्तिगत आशाएं और अभिभावकों की उनसे लगी अपेक्षाएं उन्हें काफी नर्वस करती हैं। इस समय निराशा सबसे जल्दी हावी होती है। परिणामस्वरूप, छात्र का विश्वास स्वयं की तैयारी और जानकारी से उठ जाता है। यह स्थिति इस मोड़ पर ठीक नहीं है। इस संदर्भ में श्यामरुद्र पाठक छात्रों को सलाह देते हैं, `परीक्षा के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाएं। इसे जीवन और मरण का प्रश्न मानना गलत दृष्टिकोण होगा। मुझे बहुत दुख होता है, जब मैं परीक्षा में विफलता के भय से छात्रों के सुसाइड की खबरें पढ़ता हूं। परीक्षा आपकी जानकारी का मूल्यांकन करती है। उसे पूरे व्यक्तित्व और अपने जीवन से जोड़कर न देखें। अगर विफलता मिली है, तो अगले साल के लिए फिर कमर कस लें। लेकिन निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि बहुत से ऐसे उदाहरण हमारे सामने आए हैं, जो परीक्षा में सफल नहीं थे, किंतु उन्होंने उ”वल भविष्य पाया। गांधी जी का उदाहरण लें। वह प्रखर विद्यार्थी नहीं थे। उन्हें पढ़ने के लिए इंग्लैंड इसलिए जाना पड़ा, क्योंकि यहां लेक्चर्स समझ में नहीं आते थे। दक्षिण अफ्रीका भी उन्हें इसलिए जाना पड़ा, क्योंकि उनकी प्रैçक्टस ठीक नहीं चल रही थी। अपनी विफलताओं से डरे बिना वह आगे बढ़ते गए और आज सभी जानते हैं कि उनका जीवन कितनों के लिए प्रेरणादायक बन गया है। धीरूभाई अंबानी, जमशेदजी टाटा इन सभी ने कोई व्यावसायिक कोर्स नहीं किया, फिर भी सफलता का इतिहास रचा है।´ कहने का तात्पर्य यह है कि एक्जाम्स में आवश्यकता इस बात की होती है कि आप निराशा से हार न मान जाएं। क्योंकि कोई भी एग्जाम आपके भविष्य और जीवन की दिशा का कोई अंत नहीं है, वह आपकी वर्तमान स्थिति के बारे में बताता है। आईआईटी जेईई में सफलता के संदर्भ में भी मैं छात्रों से कहना चाहूंगा कि आईआईटी में चुने जाने के बाद भी बहुत से लोग वहां के अनुसार अपने को ढाल नहीं पाए। कुछ असंतुष्ट रहे, तो कुछ उदाहरण ऐसे हैं, जिनमें छात्र को इंजीनियरिंग की डिगरी के बाद भी नौकरी नहीं मिली। कुछ छात्रों के ऐसे उदाहरण मेरे सामने आए, जो पढ़ाई के दौरान वहां के माहौल से निराश होते गए और संघर्ष कर पाने में अपने-आपको विफल पाया। यह जान लीजिए कि आईआईटी में चुना जाना कोई जंग जीतना नहीं है। आमतौर पर अभिभावक आईआईटी में चुने जाने को सेटल हो जाना मानते हैं। यह भी गलत है। जो छात्र आईआईटी में चयनित नहीं होते, वे भी आगे चलकर टेçक्नकल फील्ड में सफल होते देखे गए हैं। इसे जीवन का एकमात्र अवसर न मानें। इसका मतलब यह नहीं है कि एग्जाम्स में सफलता के लिए प्रयास ही न करें। जीवन विकास की सतत प्रक्रिया है। यह ध्यान में रखते हुए तैयारी करें। परीक्षा कक्ष में भी पूरे इन्वॉल्वमेंट के साथ अपने उत्तरों को लिखें भी। क्योंकि हम कोई भी प्रयास आरंभ इसलिए नहीं करते कि उसे व्यर्थ जाने देना है। इसीलिए कर्म करें और अच्छे नंबर लाने का प्रयास भी करना जरूरी है। अगर मन में प्रश्न उठे कि विफल रहने पर इतनी पढ़ाई का क्या फायदा मिलेगा। तो रवींद्रनाथ टैगोर की यह उक्ति याद रखें कि किसी भी बैकग्राउंड की नॉलेज उपयोगी होती है। आप आज जो समय लगाकर तैयारी करेंगे, उससे मिली जानकारी केवल आईआईटी जेईई में सफलता के लिए ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी उपयोगी साबित होगी। जहां तक बात है तैयारी की, तो कई महीने पहले से की गई तैयारी के साथ ही परीक्षा से ठीक एक दिन पहले भी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
8 अप्रैल को आईआईटी-जेईई परीक्षा है। महीनों की तैयारी को आजमाने का अब समय आ गया है। इस दौर में तैयारी की सही तकनीक बता रहे हैं आईआईटी-जेईई एक्जाम में बैठने वाले छात्रों का मार्गदर्शन कर रहे श्यामरुद्र पाठक
-आईआईटी जेईई की परीक्षा के कुछ दिन पहले से रात में जागकर पढ़ने की आदत को छोड़ने की कोशिश करें। अन्यथा आपकी बायोलॉजिकल क्लॉक परीक्षा भवन में आपको झपकियां लेने पर मजबूर कर देगी, क्योंकि आपने तैयारी के दौरान रात में जागने और दिन में विश्राम करने का शिड्यूल बना रखा होगा।
-हो सके, तो सारी पढ़ाई परीक्षा के एक दिन पहले ही समाप्त कर लें। यह जान लें कि इस परीक्षा में विश्लेषणात्मक और वर्णनात्मक शैली की आवश्यकता नहीं होती है। बिंदुओं में आपको उत्तर देने होते हैं। इसीलिए बहुत ज्यादा पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती। अत: क्षमता से ज्यादा मेहनत न करें। पर्याप्त सोएं।
-अगर नींद न आए, तो केवल लेटे रहें, विश्राम करें। मस्तिष्क को चिंता और भारमुक्त रखें।
-सिलेबस कितना कवर हो पाया है, यह सोचकर चिंतित न हों। सामान्यतया 40-50 फीसदी सिलेबस की तैयारी की जा सकती है। इससे आगे यदि आप नहीं कर पाए, तो उसकेलिए चिंतित न हों। कई बार चौंकाने वाले परिणाम प्राप्त होते हैं।
-परीक्षा भवन में नर्वस होकर न पहुंचे।
-एग्जाम देते समय ध्यान लगाकर उत्तर लिखें। खासतौर पर गणित में। सावधानीपूर्वक एक-एक सूत्र को समझना और वैसा ही लिखना सफलता के लिए आवश्यक है।
-जो जानते हैं, उसे माक्र्स में कन्वर्ट करने की कोशिश करें। इसका सही तरीका यह है कि प्रश्नपत्र देखकर घबराएं नहीं। एकदम शांत मन से प्रश्नपत्र पढ़ें और आखिर तक उसे हल करने का प्रयास करें।
-कोई भी सवाल दो बार से कम न पढ़ें। कई बार प्रश्न इतना घुमा-फिराकर पूछा जा रहा होता है कि एक बार में समझ में नहीं आता है कि पूछा क्या जा रहा है। इसलिए एक बार में ध्यान से पढ़कर प्रश्न समझें और दोबारा प्रश्न पढ़ने के माध्यम से यह क्रॉस चेक करें कि जो समझा है, वह सही है या नहीं।
-कई बार प्रश्न को हल करने का सूत्र भी प्रश्न मेंं ही कहीं दिया रहता है। प्रश्न के माध्यम से परीक्षक आपको कौन सा क्लू दे रहे हैं, उसे भी ढूंढने की कोशिश करें।
-किसी भी प्रश्न को एक सीमा से ज्यादा समय न दें, क्योंकि इस परीक्षा में आपके अंक देखे जाते हैं। आपने कौन सा प्रश्न किया है, इससे कोई सरोकार नहीं होता। ऐसे में केवल एक प्रश्न को हल करने पर अटक जाना ठीक नहीं होगा। जो तुंरत न समझ में आए उसे छोड़कर आगे के प्रश्न पढ़ें।
-प्रश्न कठिन लगे तो हिम्मत न हारें। जो बहुत सिंपल दिखता है, वह प्रश्न कठिन हो सकता है और जो बहुत कठिन है, वह भी हल हो जाएगा, ऐसा मानकर प्रयास करें। एक शिक्षक होने के नाते मुझे भी यही लगता है कि प्रश्नों को समय दें, कई बार अचानक उन्हें हल करने का सूत्र समझ आ जाता है।
-कितना भी खराब परफॉमेZस हो, हिम्मत बिलकुल न हारें।
-जटिल प्रश्नों को बाद में हल करें।
-समय का पूरा उपयोग करें। क्योंकि एक-एक अंक केअंतर से रैंक में अंतर आ सकता है।
-पेंसिल, पेन व अन्य महत्वपूर्ण कागज आदि चेक कर लें।
प्रतिमा पंाडेय
एक महत्वपूर्ण कैरियर विकल्प है `इंजीनियरिंग´। हालांकि, जो इस फील्ड का चयन करते हैं, उनके लिए आधारशिला दसवीं के बाद ही तैयार कर दी जाती है। और जिसे इंजीनियर बनना है, नि:संदेह वह आईआईटी संस्थानों में दाखिला लेने का सपना जरूर संजोता है। किंतु इन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा यानी आईआईटी-जेईई उत्तीर्ण करने के लिए कुछ ज्यादा ही मेहनत की दरकार होती है। अभी भी आवेदन भरे जा रहे हैं और परीक्षा की तैयारी भी शुरू हो चुकी है। यह कोई सामान्य परीक्षा नहीं है, इसलिए आप भी लग जाएं अपनी तैयारी में।
आईआईटी संस्थानों में प्रवेश पाना है, तो इसकी प्रवेश परीक्षा के लिए कमर कस लें। छात्रों के लिए चैलेंज मानी जानेवाली इस परीक्षा पर आप कैसे अपनी पकड़ बनाएं।
योग्यता
आईआईटी/जेईई परीक्षा में वही छात्र सçम्मलित हो सकते हैं, जिन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा 60 प्रतिशत अंकों के साथ (अजा/अजजा व शारीरिक विकलांग के लिए 55 प्रतिशत) उत्तीर्ण कर ली हो। यहां पर यह जानना आवश्यक है कि छात्र जेईई के लिए क्रमिक वर्ष में केवल दो बार ही प्रयास कर सकते हैं। अथाüत यदि छात्र ने 2007 में 10+2 की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली हो, तो वे अप्रैल 2008 की परीक्षा में बैठने के लिए योग्य हैं। यदि किसी छात्र को एक बार एडमिशन मिल गया, तो वे दोबारा नहीं लिए जाएंगे। इसमें वही छात्र आवेदन करें, जिनकी जन्मतिçथ 1 अक्टूबर, 1983 अथवा उसके बाद की हो। जबकि अजा, अजजा अथवा शारीरिक रूप से विकलांग अभ्यçथüयों को सरकारी नियमानुसार छूट दी जाएगी।
परीक्षा की रूपरेखा
यह प्रवेश परीक्षा दो प्रश्नपत्रों के आधार पर आयोजित की जाती है। प्रथम प्रश्नपत्र एवं द्वितीय प्रश्नपत्र।
दोनों ही प्रश्नपत्रों में भौतिकी, रसायन शास्त्र एवं गणित के अलग-अलग तीन सेक्शन होते हैं, जिसके द्वारा छात्रों की एनालिटिकल पावर की जांच की जाती है। सभी प्रश्न वस्तुनिष्ठ होते हैं तथा उनका स्तर भी 10+2 के समकक्ष होता है। परीक्षा का माध्यम हिंदी तथा अंगरेजी दोनों भाषाएं होती हैं। अभ्यथीü को आवेदन करते समय ही आवेदन पत्र में यह माध्यम दर्शाना होता है। हालांकि पिछले कुछ वषोेüं में यह परीक्षा दो चरणों में आयोजित की जाती थी, लेकिन 2006 के बाद से यह एक ही चरण में संपन्न होती है। इसमें एक ही दिन दोनों प्रश्नपत्रों की परीक्षा ली जाती है तथा उसके लिए 3-3 घंटे का समय निधाüरित किया गया है। पिछले साल के प्रश्नपत्र को देखें, तो प्रथम प्रश्नपत्र में 82 तथा द्वितीय प्रश्नपत्र में 81 प्रश्न पूछे गए थे, जबकि आगामी परीक्षा के प्रश्नपत्र के स्वरूप के बारे में पहले से यह कोई तयशुदा पैटनü नहीं है। गलत उत्तर दिए जाने पर निगेटिव मार्किंग का प्रावधान है।
प्रमुख बिंदु
पिछले साल इंजीनियरिंग की परीक्षा में हिंदी भाष्ाा के छात्रों का सक्सेस रेट 2 : 75 के करीब था। इस परीक्षा का स्तर काफी कठिन माना जाता है, इसीलिए इसकी तैयारी विशेष महत्व रखती है। चूंकि यह परीक्षा बारहवीं के बाद आयोजित की जाती है, अत: छात्र उसी तैयारी को आधार बनाकर परीक्षा दे सकते हैं। नीचे तैयारी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दिए जा रहे हैं-
-यह एक उच्चस्तरीय परीक्षा है, जिसमें प्रश्नों का स्तर तथा स्वरूप बारहवीं का ही होता है। अत: बिना भ्रमित हुए अपनी तैयारी को उसी दायरे में रखें।
-अध्ययन सामग्री के रूप में बारहवीं कक्षा के स्तर की एनसीईआरटी की पुस्तकें ही चुनें, क्योंकि इनमें दिए गए तथ्य प्रमाणित तथा कसौटी पर खरे होते हैं।
-यदि आप इस वर्ष बारहवीं की परीक्षा में बैठ रहे हैं, तो अपनी तैयारी को इस ढंग से करें कि आगे चलकर वह आपके इंजीनियरिंग परीक्षा में भी सहायक हो।
-अपनी सुविधा एवं सामथ्र्य के अनुसार कोचिंग सेंटर का चयन कर लें, तो काफी सम्यक सहायता, जैसे परीक्षा में आने वाले प्रश्नों का स्वरूप पता चलता है।
-अध्ययन के बीच-बीच में समय निकालकर पुराने प्रश्नपत्रों एवं मॉडल पेपरों को हल करने की कोशिश करें। इससे आपकी तैयारी प्रवेश परीक्षा के अनुरूप होती रहेगी।
-प्रश्नों का स्वरूप बहुविकल्पीय होगा। अत: फैक्चुअल पॉइंट पर विशेष ध्यान देने की कोशिश, करें ताकि सही ऑप्शंस का चुनाव तत्काल हो सके।
-ग्रुप डिस्कशन को भी तैयारी का प्रमुख अस्त्र बनाया जा सकता है।
-परीक्षा के माध्यम के तौर पर जो भी भाषा चुनें, उसमें आपकी पकड़ जरूर हो।
<html><br>अविराम गति से मजबूत होती अर्थव्यवस्था ने उद्योग जगत तथा ढांचागत विकास- जैसे टेलिकॉम, बिजली, पानी सेनिटेशन, सड़क, रेलवे, हवाई मार्ग, रीयल इस्टेट, सेज तथा अबüन डेवलपमेंट की जरूरत को बढ़ा दिया है। ऐसे में तकनीकी रूप से प्रशिक्षित लोगों की मांग बेतहाशा बढ़ी है। इस प्रकार कैरियर के दृष्टिकोण से इंजीनियरिंग का कोर्स पहले भी अहम था, पर अब इसमें संभावनाओं का खासा विस्तार हो गया है। ऑल इंडिया इंजीनियरिंग इंट्रेस एग्जामिनेशन यानी टि्रपल ई एकमात्र ऐसी अखिल भारतीय स्तर की परीक्षा है, जो देश के विभिन्न्ा अभियंत्रण कॉलेजों में दाखिला दिलाती है। यह परीक्षा अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाती है। इसके परीक्षा केंद्र सभी राज्यों में केन्द्रित होते हैं। इस साल यह परीक्षा आगामी 27 अप्रैल को आयोजित की जाएगी। <br><br> अखिल भारतीय टि्रपल ई की परीक्षा कोई तुक्का नहीं है। यह गंभीर और समग्र अध्ययन के साथ परीक्षा कक्ष में एकाग्रता की मांग करती है। इंजीनियरिंग के फील्ड में कैरियर के शीर्ष पर पहुंचानेवाली इस परीक्षा के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर राकेश कुमार चौबे की नजर। <br> <br><br><big><big>योग्यता</big></big><br>इस प्रवेश परीक्षा में वे छात्र शामिल हो सकते हैं, जो बारहवीं विज्ञान विषय से उत्तीर्ण हुए हैं। बारहवीं कक्षा की अंतिम परीक्षा में शामिल हो रहे छात्र भी परीक्षा दे सकते हैं। बारहवीं में भौतिकी, रसायन विज्ञान तथा गणित विषय अवश्य हो।<br><br><br><big><big>एग्जाम पैटनü</big></big><br>इस प्रवेश परीक्षा के अंतर्गत दो प्रकार के प्रश्न-पत्र होते हैं। प्रथम प्रश्न पत्र में भौतिकी, रसायन विज्ञान तथा गणित से प्रश्न पूछे जाते हैं। इन तीनों विषयों से 60-60 प्रश्न पूछे जाते हैं। कुल 180 प्रश्न होते हैं और उनको हल करने के लिए 180 मिनट यानी तीन घंटे का समय निर्धारित होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो एक प्रश्न पर एक मिनट का समय तय होता है। सभी प्रश्न वस्तुनिष्ठ प्रकार केहोते हैं तथा सभी प्रश्नों पर एक समान अंक का निर्धारण होता है। बीई या बीटेक में दाखिला पाने के इच्छुक युवाओं को भौतिकी, रसायन के संयुक्त प्रश्नपत्र के साथ गणित का प्रश्नपत्र देने की ऐçच्छकता होती है, जबकि बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर के पाठKक्रम हेतु गणित और ऐप्टीटKूड टेस्ट देने की अनिवार्यता है। इस प्रश्न पत्र में भी कुल 180 प्रश्न पूछे जाते हैं तथा तीन घंटे का समय निर्धारित होता है। सभी प्रश्न वस्तुनिष्ठ प्रकार के होते हैं। <br><br><br>इस परीक्षा में निगेटिव माकिZग का प्रावधान है। एक भी प्रश्न गलत होने पर अंक काट लिए जाएंगे। गलत जवाब देने पर 1/3 अंक काट लिये जाते हैं। अधिक से अधिक ऐसे प्रश्नों को हल करने की कोशिश करें, जिनके बारे में आप पूरी तरह आश्वस्त हों। टाइम मैनेजमेंट पर ध्यान दें। एक ही प्रश्न पर अधिक देर तक उलझना महंगा साबित हो सकता है। अभी चूंकि दिन शेष हैं, मॉक टेस्ट पेपर केअभ्यास से प्रश्न-पत्र को समय सीमा केभीतर हल करने का अभ्यास करें।<br><br><br><big><big>पाठKक्रम</big></big><br>प्रवेश परीक्षा का आधार 10+2 की परीक्षा है। एनसीईआरटी की पुस्तकों का अध्ययन करके बेसिक मजबूत करें। सहायक अभ्यास पुस्तिकाओं का अभ्यास भी बेहद जरूरी है।<br><br><br><big><big>गणित</big></big><br>इस विषय में मुख्य रूप से कॉम्लेक्स नंबर, क्वाड्रेटिक इक्वेशन, मैटि्रक्स, डीटरमीनर्स, कॉçम्बनेशन, बायोनोमियल थियोरम, लिमिट्स, कैलकुलस, कोआडिüनेट ज्योमेट्री, वेक्टर, स्टेटिस्टिक्स, प्रोबेबिलिटी, एलजेबरा, त्रिकोणमित्ति तथा गणितीय रीजनिंग से प्रश्न पूछे जाते हैं। छात्रों को इस पाठ पर आधारित प्रश्नों केसाथ अनवरत अभ्यास करना चाहिए। प्रश्नों को हल करने के लिए अधिक से अधिक फामूüलों का इस्तेमाल करें। <br><br><br><big><big>भौतिकी</big></big><br>इस विषय में सैद्धांतिक पक्ष से 80 फीसदी प्रश्न पूछे जाते हैं, जबकि 20 फीसदी प्रश्न प्रयोगमूलक पूछे जाते हैं। यह प्रश्न न्यूटन के नियम, संवेग, संरक्षण का सिद्धांत, उत्पलावन का सिद्धांत आदि पर पूछे जाते हैं।<br><br><br>भौतिकी के अंतर्गत मुख्य रूप से मीजरमेंट, गति का सिद्धांत, कार्य, ऊर्जा, पावर, रोटेशनल मोशन, गुरुत्वाकर्षण, बायोडायनेामिक्स, काइनेटिक एनर्जी, इलेक्ट्रोस्टेट, करेंट, मैगनेटिक ऑçप्टक्स व कम्युनिकेशन सिस्टम संबंधी प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके लिए छात्रों को सैद्धांतिक पक्षों पर अपनी पकड़ मजबूत करनी चाहिए। न्यूमैरिकल तथा प्रयोगमूलक प्रश्नों के साथ सतत अभ्यास करें।<br><br><br><big><big>रसायन विज्ञान</big></big><br>इस विषय केअंतगर्त तीन हिस्सों से प्रश्न पूछे जाते हैं। पहला फिजिकल केमिस्ट्री, इसकेअंतर्गत परमाणु, परमाçण्वक संरचना, रासायनिक बंधन, संतुलन आदि पर प्रश्न पूछे जाते हैं। न्यूमेरिकल आधारित प्रश्न अधिक होते हैं।<br><br>दूसरा अकाबüनिक रसायन है। इसके अंतर्गत तत्व, यौगिक, हाइड्रोजन, ऑक्स्ाीजन आदि पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। तीसरा काबüनिक रसायन विज्ञान है। इसके तहत एलकेन, एल्काइन, एसिटीलिन, इथीलीन, अल्कोहल व रोजमर्रा केजीवन में रसायन विज्ञान पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। <br><br><br><big><big>दूसरा प्रश्न पत्र</big></big><br>मुख्य रूप से दूसरा प्रश्न पत्र आर्किटेक्चर तथा प्लानिंग से संबंधित होता है। इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों के सृजनात्मक कौशल का परीक्षण करना है। इसकेतहत छात्रों के डिजाइनिंग, इमेजीनेशन, ऑबजरवेशन, सृजनात्मकता तथा आर्किटेक्चरल अवेयरनेस का मूल्यांकन किया जाता है। इसके लिए ड्राइंग तथा डिजाइनिंग पर फोकस करना जरूरी है। <br><br><br><big><big>काउंसिलिंग</big></big><br>परीक्षा में सफल होने पर छात्रोंं को काउंसिलिंग के लिए बुलाया जाता है। इस समय छात्रों के सटिüफिकेट्स की जांच की जाती है तथा मेरिट लिस्ट में रैंक के आधार पर कॉलेज एवं फैकल्टी का निर्धारण किया जाता है। काउंसिलिंग एक व्यावहारिक मंच है, जिसके माध्यम से छात्रों की नामांकन संबंधी त्रुटियों का निवारण किया जाता है।<br><br><br><big><big>पूरी मस्ती के साथ दें परीक्षा</big></big><br>एआई टि्रपल ई प्रवेश परीक्षा की तैयारियों में जुटे छात्रों के लिए अपनी सालभर की तैयारी को समेटने का समय आ गया है। हर साल इस परीक्षा में भाग लेने वाले प्रतियोगियों की संख्या में इजाफा होने से स्टूडेंट्स को कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। 27 अप्रैल को होने जा रही टि्रपल ई की परीक्षा में अब चंद दिन ही शेष हैं। ऐसे में छात्र-छात्राओं पर परीक्षा, आशा व अपेक्षाओं का दबाव होना स्वाभाविक है। पर यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि इस समय अधिक तनाव आपकी महीनों की तैयारी पर विपरीत असर डाल सकता है।<br><br>परीक्षा की तैयारियों में जुटे स्टूडेंट्स व उनके अभिभावकों को यह बात जेहन में रखनी चाहिए कि कोई भी परीक्षा जीवन से बड़ी नहीं होती। ऐेसे में जी तोड़ मेहनत और परीक्षा की तैयारी में जान की बाजी तक लगा देने वाली बातों में समझदारी नहीं है। अक्सर स्टूडेंट्स अच्छी परफॉरमेंस के प्रेशर में या परीक्षा में फेल होने के भय से नर्वसनेस व डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। अत: परीक्षा की तैयारी आनंद के साथ करें। परीक्षा पास करना ही काफी नहीं है। मजबूत आधार का फायदा प्रैçक्टकल फील्ड में मिलता है। इसी कारण प्रवेश परीक्षाओं में सफल नहीं भी होने वाले छात्र व्यावहारिक स्तर पर अच्छी परफॉरमेंस देकर ऊंचे स्थानों पर पहुंच जाते हैं।<br><br>पर, इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप परीक्षा के लिए आवश्यक प्रयास के प्रति लापरवाही बरतें। यह समय अपनी महीनों की पढ़ाई को अपडेट करने का है। अंतिम दिनों में तैयारी के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखेंं। <br><br>-जहां तक संभव हो अब नए विषय समझने में समय न लगाएं। यह वक्त पाठKक्रम के दोहराव व मॉडल टेस्ट पेपर के अभ्यास का है। ऐसा करना विषय पर आपकी पकड़ मजबूत बनाएगा, जिससे आपका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। <br><br>-विभिन्न कोचिंग संस्थानों द्वारा अंतिम दिनों में स्टूडेंट्स के लिए क्रेश कोसेüज चलाए जाते हैं। कुछ ही दिनों में इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी और सफलता के दावों के भुलावे में न पड़ें। ऐसा करने से न सिर्फ पैसा व आपका समय व्यर्थ होगा, बल्कि अपनी तैयारी के संबंध में नर्वसनेस भी बढ़ेगी। ऐसे छात्रों के लिए बेहतर है कि वे अपना समय पूर्ण किए हुए पाठKक्रम के अभ्यास में लगाएं।<br><br>-अधिकतर छात्र अपनी वास्तविक तैयारियोंं से परिचित होते हैं। ध्यान रखें कि यह कोई सतही परीक्षा नहीं है और न ही फार्मूला रटना ही सबकुछ है। जिन छात्रों ने पहले तैयारी नहीं की है, उनके लिए कुछ ही दिन में सब कुछ पूरा करने का लक्ष्य बेहद कठिन है। वास्तविक स्थिति को नजरअंदाज कर बड़ी अपेक्षाएं रखना मायूसी का कारण बन सकता है। <br><br>-इस बात की चिंता न करें कि आपका कितना कोर्स कवर हो चुका है। पूरा पाठKक्रम पढ़ने व समझने में समय लगाने से बेहतर है कि जितना सिलेबस आपने पढ़ा है, उसे आप अच्छी तरह से कर सकें। 50 से 60 फीसदी कोर्स अच्छी तरह करने वाले छात्र भी अच्छे नतीजे प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। <br><br>-परीक्षा में चूंकि नेगेटिव माकिZग का भी प्रावधान है, ऐसे में तुक्केबाजी में उत्तर देने की प्रवृत्ति से बचें। उन्हीं प्रश्नों का उत्तर दें, जिनके विषय में आप विश्वस्त हों। जिन प्रश्नों को पढ़कर आपको लगता है कि आप 80 से 90 प्रतिशत प्रश्न को समझ रहे हैं, उन्हीं प्रश्नों को हल करने में समय देंं । एक ही प्रश्न में अधिक देर उलझने से बचेंं।<br><br>-प्रश्न पत्र हल करते समय पूरी तरह फोकस्ड रहें, खासकर गणित कैलकुल्ोशन करते समय। छोटी सी गलती आपको अधिक देर तक उलझा सकती है। प्रश्न हल करने से पहले प्रश्न को दो बार जरूर पढ़ें। इससे जल्दबाजी में महत्वपूर्ण बिंदु छूटने की संभावना नहीं रहती। <br><br>-पिछली परीक्षा में पूछे गए प्रश्नपत्रों को समय सीमा के भीतर हल करने का अभ्यास करें। ऐसा करना आपको परीक्षा भवन में हड़बड़ी व घबराहट से दूर रखेगा। <br><br>-अंत में- सकारात्मक भाव रखेंं। अंतिम दो-तीन दिन देर रात तक न पढ़ें। पूरी मस्ती के साथ परीक्षा देंं। <br><br><br><span style="font-weight: bold;">(श्री पाठक आईआईटी, दिल्ली से एमटेक हैं)</span></html>
<html>
- <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);">प्रभाशंकर उछान</font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ा<br><br></font> 19<font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">वीं सदी में
औद्योगिक क्रांति के आगमन के साथ ही औद्योगिक संरक्षा की शुरुआत हुई। 1850
से 1900 के बीच ज्यादातर औद्योगिक देशों ने कारखानों में कार्यरत श्रमिकों
के लिए कार्य के घंटे निर्धारित करने के साथ-साथ दुर्घटनाओं के मुआवजे से
संबंधित कानून बनाए।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इस
दिशा में ट्रेवलर्स इंश्योरेंस कंपनी, अमेरिका के एचडब्ल्यू हेनरिच ने
औद्योगिक संरक्षा पर लोकप्रिय पुस्तक लिखी जिसका प्रकाशन मेकग्रॉहिल बुक
कंपनी द्वारा किया गया। हेनरिच ने लगभग आठ हजार औद्योगिक दुर्घटनाओं का
अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि ज्यादातर दुर्घटनाएँ असुरक्षित क्रियाओं
और असुरक्षित परिस्थितियों के परिणामस्वरूप होती हैं। इनमें से 88 प्रतिशत
दुर्घटनाओं का कारण असुरक्षित क्रिया और 10 प्रतिशत दुर्घटनाओं का कारण
असुरक्षित परिस्थिति और मात्र 2 प्रतिशत दुर्घटनाओं का कारण प्राकृतिक
आपदाएँ हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इन्हीं
कारणों को जानने के बाद संरक्षा अधिनियम बनाकर नियोक्ताओं को बेहतर कार्य
दशाएँ बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। भारत सरकार ने कारखाना अधिनियम 1948
बनाकर पूरे देश में 1 अप्रैल 1949 से लागू किया जिसका पालन सभी औद्योगिक
इकाइयों के लिए अनिवार्य है। इस दिशा में देश-विदेश में प्रयास किए गए
जिनमें नेशनल सेफ्टी काउंसिल अमेरिका, रायल सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑव
एक्सिडेंट, यूके, नेशनल सेफ्टी काउंसिल, भारत, ब्रिटिश सेफ्टी काउंसिल तथा
लांस प्रिवेंशन एसोसिएशन ऑव इंडिया ने औद्योगिक संस्था को बेहतर बनाने के
लिए उल्लेखनीय कार्य किए।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> <div class="innerBlock_Right"><br></div><!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">औद्योगिक
संस्था के मानकीकरण में भारत मानक संस्थान द्वारा आईएसओ-14000 प्रदान कर
इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य किया गया है। विभिन्न औद्योगिक
इकाइयों में संस्था अधिकारियों की नियुक्ति ने जहाँ अरबों रुपए की संपत्ति
को नष्ट होने से बचाया वहीं बहुमूल्य मानवीय जीवन को भी अकाल मौत से
सुरक्षित किया है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमारा संस्थान बैंक नोट प्रेस
है। जहाँ खतरनाक तथा ज्वलनशील रसायनों का प्रयोग किया जाता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">संरक्षा
विभाग की स्थापना से पूर्व यहाँ दुर्घटनाएँ हुई हैं, लेकिन जबसे पृथक से
संरक्षा विभागस्थापित कर वरिष्ठ संरक्षा अधिकारी की देखरेख में संरक्षा
कानूनों का कार्यान्वयन किया गया है, न केवल दुर्घटनाएँ थम गई हैं, बल्कि
लगातार कई वर्षों से दुर्घटना रहित उत्पादन कर बैंक नोट प्रेस अखिल भारतीय
स्तर पर संरक्षा पुरस्कार प्राप्त करता आ रहा है।<br><br></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यहाँ संरक्षा विभाग
ने औद्योगिक संरक्षा के महत्व को इतनी अच्छी तरह से प्रचारित-प्रसारित
किया है कि मजदूर से लेकर महाप्रबंधक तक न केवल इससे परिचित हैं बल्कि
पूरी निष्ठा से संरक्षा प्रावधानों का पालन कर रहे हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">संस्था
के प्रति जागरूकता का यह असर हुआ है कि आज नियोक्ता सिर्फ संरक्षित उपकरण
ही नहीं बल्कि एक संरक्षित वातावरण भी प्रदान करता है। वह अपने
कर्मचारियों तथा अधिकारियों को संरक्षा संबंधी शिक्षा प्रशिक्षण भी प्रदान
करवाता है। वास्तव में देखा जाए तो संस्था प्रबंधन में आने वाली समस्याओं
का पता लगाना ही उसका निराकरण करने जैसा है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>बढ़ रहे हैं अवसर </i></b></font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">औद्योगिक
संस्था से होने वाले फायदों को देखते हुए लगभग सभी औद्योगिक इकाइयों में
फायर और सेफ्टी ऑफिसर के पद सृजित होने लगे हैं। इस क्षेत्र में अच्छे
अवसर और काम के बदले अच्छा वेतन प्रतिसाद देखते हुए युवा वर्ग औद्योगिक
संरक्षा तथा फायर इंजीनियरिंग में अपने करियर निर्माण की अच्छी संभावना
देख रहा है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इसका
एक सुखद पक्ष यह भी है कि युवक ही नहीं युवतियाँ भी इस चुनौतीपूर्ण करियर
में उतरकर औद्योगीकरण को सुरक्षित तथा संपन्न बना रही हैं। आने वाला युग
औद्योगिक युग है लिहाजा इंडस्ट्रीयल सेफ्टी और फायर इंजीनियरिंग जैसे
करियर कल के हॉट करियर साबित होंगे। </font><br><br><span style="font-weight: bold;">(</span><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0); font-weight: bold;"><i>लेखक बैंक नोट प्रेस, देवास के वरिष्ठ संरक्षा अधिकारी हैं)</i></font><br></html>
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इवेंट मैनेजमेंट
एडर्वटाइजिंग और मार्केटिंग का ही एक रूप है। इस प्रोफेशन में जितना
ग्लैमर है, उतना ही यह क्षेत्र चुनौतियों से भरा हुआ है। इवेंट मैनेजमेंट
में रचनात्मक दिखाने का भरपूर मौका है। यूँ तो हर क्षेत्र में कठिन
परिश्रम की जरूरत होती है, लेकिन जब बात इवेंट मैनेजमेंट की आती है तो
इसमें अपेक्षाकृत अधिक परिश्रम और क्रिएटिविटी लगती है क्योंकि इसमें एक
साथ कई बिंदुओं पर फोकस करना होता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इवेंट
मैनेजमेंट के तहत किसी ग्रुप के लिए इवेंट आयोजित करना होता है। इसमें
प्रोफेशनल और कम्यूनिटी दोनों तरह के आयोजन शामिल हैं। किसी कंसेप्ट का
सही विज्यूलाइजेशन, प्लानिंग, बजटिंग और एक्सिक्यूशन इस क्षेत्र में बहुत
मायने रखते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इवेंट
मैनेजमेंट के अंतर्गत फैशन शो, म्यूजिकल शो, कार्पोरेट सेमीनार,
एक्जिबिशन, थीम पार्टी, प्रोडक्ट लॉंचिंग और वेडिंग सेरेमनी आयोजित करनी
होती है। हर इवेंट की अपनी अलग माँग और चुनौती होती है, जिसमें आपकी
क्षमता का निर्धारण होता है। इवेंट मैनेजमेंट आपको स्वतंत्र रूप से काम
करने का मौका देता है।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> </font><!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>योग्यता- </b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इवेंट
मैनेजमेंट पूरी तरह से क्रिएटिव फील्ड है, जिसमें आपकी निर्णय लेने की
क्षमता (डिसीजन मैकिंग स्किल्स) पर ही सबकुछ निर्भर करता है। अगर आप
क्रिएटिव हैं और अपनी क्षमताओं पर यकीन रखते हैं तो आप इस क्षेत्र में
सफलता के झंडे गाड़ सकते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>कोर्स- </b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इवेंट मैनेजमेंट में कई तरह के कोर्स उबलब्ध हैं जो आपकी काबिलियत को निखारते हैं। इवेंट मैनेजमेंट कोर्स इस प्रकार हैं।<br><br></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>डिप्लोमा कोर्स- </b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इवेंट मैनेजमेंट में डिप्लोमा कोर्स के लिए निम्न इंस्टिट्यूट हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">अमिटी इंस्टिट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, नई दिल्ली</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">रितनंद बलदेव एजूकेशन फाउंडेशन (आरबीईएफ), एकेसी हाउस, ई-27 डिफेंस कॉलोनी, नई दिल्ली। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">इंस्टिट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड फ्यूचर मैनेजमेंट ट्रेंड्स (आईटीएफटी), चंडीगढ़ </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">एससीओ 1-2-3, लेवल </font><font style="font-size: 10pt;">III, </font><font style="font-size: 10pt;">सेक्टर- 17 चंडीगढ़।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">इंटरनेशनल सेंटर फोर इवेंट मार्केटिंग एंड मैनेजमेंट (आईसीईएम), नई दिल्ली</font><br>6<font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">/14, </font><font style="font-size: 10pt;">II </font><font style="font-size: 10pt;">फ्लोर, सर्वप्रिय विहार, नई दिल्ली।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा कोर्स- </b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">नेशनल एकैडमी ऑफ इवेंट मैनेजमेंट एंड डेवेलेपमेंट (एनएईएमडी), मुंबई</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">नंदनवन बिल्डिंग वल्लभ भाई रोड़, विले पार्ले, मुंबई। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">नेशनल एकैडमी फोर मीडिया स्टडीज, अहमदाबाद</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">अपर लेवेल, पंचधारा कॉमप्लेक्स, एसजी हाईवे, अहमदाबाद</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">अमिटी इंस्टिट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, नई दिल्ली</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">रितनंद बलदेव एजूकेशन फाउंडेशन (आरबीईएफ), एकेसी हाउस, ई-27 डिफेंस कॉलोनी, नई दिल्ली। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">कॉलेज ऑफ इवेंट एंड मैनेजमेंट(सीओईएम), पुणे</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">लेन नंबर 11, प्रभात रोड़, पुणे। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">इंपायर इंस्टिट्यूट ऑफ लर्निंग (ईआईएल), मुंबई </font><br>414, <font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">सेनापति बागपत रोड़ र्लवर पार्ले, मुंबई। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">इंस्टिट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड फ्यूचर मैनेजमेंट ट्रेंड्स (आईटीएफटी), चंडीगढ़</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);">एससीओ 1-2-3, लेवल </font><font style="font-size: 10pt;">III, </font><font style="font-size: 10pt;">सेक्टर- 17 चंडीगढ़।</font><br></html>
व्यवसाय जगत की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समय-समय पर जहां नए पाठ्यक्रमों को नया जामा पहनाया गया, वहीं उनके नाम भी बदल दिए गए हैं। इसी कड़ी में एक नाम है इवेंट मैनेजमेंट यानी आयोजन प्रबंधन। हालांकि इवेंट मैनेजमेंट कोई बहुत नया क्षेत्र नहीं है, यह पहले से ही मौजूद था, लेकिन आज यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है, बल्कि अधिक पेशेवर रूप में हमारे सामने आया है। ऐसे में, प्रबंधन की विस्तृत होती शाखाओं ने युवाओं का काम आसान कर दिया है।
चाहे कोई बड़ी पार्टी हो या किसी कंपनी या प्रोडक्ट की लांचिंग, किसी नई स्कीम की शुरुआत हो या रैली का आयोजन, सबको चाहिए कुछ इवेंट मैनेजर। डी पी पांडेय का आलेख
्रकार्यक्षेत्र
आçथ्üाक उदारीकरण के मौजूदा दौर में कई तरह के परिवर्तन आए हैं। बात चाहे समाजिक ढांचे की हो या आçथ्üाक ढांचे की, सभी का स्वरूप बदला है। यही कारण है कि लोग अपने किसी भी कार्यक्रम को बेहतर बनाने में लगे हुए हैं। इस सोच ने लोगोें को अपना इवेंट सफल बनाने के लिए किसी ऐसी संस्था से मदद लेनी पड़ती है, जो उनकी इच्छाओं की पूर्ति कर सके। इन इवेंट को उचित तरीकों से मैनेज करना ही इंवेट मैनेजमेंट कहलाता है। इसके अंतर्गत फैशन शो, शादी, बथü डे पाटिüयां, पे्रस कांफें्रस, सेमिनार, खेल आयोजन आदि को सफल बनाने के किया जाता है। इस एवज में इंवेट कंपनियों को मोटी रकम मिलती है। आंकड़ों के अनुसार, इस व्यवसाय का देश भर में करीब 600 करोड़ रुपये से भी अधिक का कारोबार है। इसमें हर साल 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी भी हो रही है। लिहाजा इस क्षेत्र में रोजगार की असीम संभावनाएं उभरकर आई हैं। साफ तौर पर मैनेजमेेेंट का मतलब कार्यक्रम प्रबंधन है। इसके अंतर्गत विभिन्न्ा प्रकार के कायोüं का संपादन किया जाता है। इसके काम का स्वरूप काफी हद तक जनसंपर्क से मिलता-जुलता है। यदि कॉरपोरेट क्षेत्र में अच्छी पकड़ है, तो आप काफी सफल साबित हो सकते हैं।
शैक्षणिक योग्यता
अभी कुछ समय पहले तक इसके लिए कोई शैक्षिक योग्यता निधाüरित नहीं की गई थी। लेकिन जैसे-जैसे इसका ग्लैमर बढ़ता गया, वैसे-वैसे इसमें कुशल लोगोें की मांग बढ़ती गई। यही करण है कि आज इसके लिए बाजार में कई तरह के कोर्स मौजूद हैं। कई संस्थानों में इसके लिए विशेष कोर्स संचालित किए जाते हैं, जिनके लिए स्नातक होना आवश्यक है।
व्यक्तिगत कौशल
व्यावहारिक रूप से कोई भी गे्रजुएट युवक जो बहुमुखी प्रतिभा का धनी है और असरदार तरीके से दूसरे के सामने अपनी बात रख सकता है तथा उसके अंदर विश्लेष्ाणात्मक और विशेष्ा परिçस्थतियों में निर्णय लेने की क्षमता होनी आवश्यक होती है, क्योंकि जब आप इस तरह के आयोजन की जिम्मेदारी उठाते हैं, तो हो सकता है कि आयोजन के दौरान कोई विशेष्ा परिçस्थति आ जाए, उससे कैसे निपटा जाए वही और उसी समय साथ ही ऐसा प्रयास हो कि उस तरह की परिस्थति भविष्य में न उत्पन्न हो।
एक इवेंट मैनेजर को न जटिल से जटिल परिस्थितियों में साहस और धैर्य का परिचय देना पड़ता है। ऐसे अवसरों पर उसके बेहतर ताल्लुकात किसी अप्रिय स्थिति से निपटने में उसके लिए मददगार साबित होते हैं।
इवेंट मैनेजर मेंे न सिर्फ कलात्मक रुचि होनी चाहिए, बल्कि उसे इंटीरियर डेकोरेशन और जिस विषय को वह संचालित कर रहा है, उसकी संवेदनशीलता को समझना पड़ता है। उदाहरण के लिए, आरक्षण विरोधी आंदोलन को प्रभावी रूप देने के लिए आरक्षण विरोधी आंदोलन के नेताओं ने इवेंट कंपनी को इसका जिम्मा सौंपा। और इसका असर देखने में आया। मीडिया कवरेज, भीड़ का इकट्ठा किया जाना और इस मसले को कानूनी रूप से भी दमदार तरीके से पेश किए जाने को सभी लोगों ने साफ-साफ महसूस किया। दरअसल यह आंदोलन के प्रबंधन का ही कमाल था। यह और बात है कि इसके आयोजक इससे मुकरते रहे।
असल में, सिर्फ इसी व्यवसाय में नहीं, बल्कि आज के दौर में प्रबंधन के किसी भी शाखा में यह गुण होना आवश्यक है कि आप अपने ग्राहक को कैसे खुश रख सकते हैं और अगर वह एक बार आपके पास आता है, तो आपकी कामयाबी इसी बात में है कि वह हर बार आप के पास ही आए। एक अच्छे इवेंट मैनेजर के लिए अच्छा वक्ता भी होना आवश्यक हो जाता है आपकी वाणी में जितनी मधुरता होगी, उतना ही सामने वाला प्रभावित होगा।
इवेंट मैनेजर में जो सबसे आवश्यक गुण माना गया है, वह है दबाव में कार्य करने की क्षमता। अगर आप दबाव में सही और सटीक निर्णय ले सकते हैं, तभी आप कुशल प्रबंधक बन सकते हैं।
इवेंट मैनेजमेंट का कैरियर कुछ और गुणों की मांग करता है। मसलन, भाषा पर आपकी कितनी पकड़ है। इसलिए हिंदी और अंगरेजी पर नियंत्रण ही आपको आगे तक ले जा सकता है।
पाठ्यक्रम
-सटिüफिकेट कोर्स इन मैनेजमेंट
(यह पाठ्यक्रम तीन से छह माह का होता है, इसके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता 12वीं होती है।)
-डिप्लोमा इन मैनेजमेंट
(यह पाठ्यक्रम तीन से एक वष्ाü का होता है, इसके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्नातक होती है।)
-पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमेंट
(यह पाठ्यक्रम तीन से एक वष्ाü का होता है, इसके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्नातक होती है।)
-पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मैनेजमेंट ऐंड पब्लिक रिलेशन
(यह पाठ्यक्रम तीन से छह माह का होता है, इसके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्नातक होती है।)
रोजगार के अवसर
आजकल इस क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की अधिक डिमांड है। हर जगह इवेंट कंपनियां खुल रही हैं, जिनसे इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। युवाओं का रुझान भी इसकी तरफ तेजी से बढ़ रहा है। यही कारण है कि यह उद्योग तेजी से फ ल-फूल रहा है। इसमें पहली नियुक्ति प्रशिक्षु के रूप में की जाती है। पदोन्नति के बाद आपको को-ऑडिüनेटर की जिम्मेदारी मिलती है और उसके बाद आप सुपरवाइजर के रूप में कार्य कर सकते हैं।
वेतनमान
इवेंट मैनेजमेंट में शुरुआती वेतन 10-15 हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, वैसे-वैसे वेतन में भी वृद्धि होती है। अमूमन एक दो साल का अनुभव होने पर 20,000 से 40000 रुपये आसानी से मिल जाते हैं। प्रतिदिन के हिसाब से भी प्रशिक्षुओं को चार्ज दिया जाता है, जो 500 से लेकर 1500 रुपये तक हो सकती है। इसके अलावा आप अनुभव के साथ अपना खुद की पीआर एजेंसी चला सकते हैं। जाहिर है, पीआर एजेंसी में आमदनी की कोई सीमा नहीं, इसमें आमदनी आपकी मेहनत और व्यक्तिगत संबंधों पर निभüर करता है।
संस्थान
-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन, जेएनयू कैंपस, नई दिल्ली।
-इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म ऐंड फ्यूचर मैंनेजमेंट ट्रेंड्स, चण्ढीगढ़
-मुद्रा इंस्टीट्यूट ऑफ कम्यूनिकेशन, शोला अहमदाबाद।
-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, 7 एवन आरकेड, डीजे रो विल पालेü मुंबई।
-इवेंट मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, 711, एसके मार्ग, बांद्रा (पश्चिमी), मुंबई - 50
-कॉलेज ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, लेन -11 प्रभात रोड, पुणे
-नेशनल इंस्टीट़यूट ऑफ इवेंट मैनेमेंट, नंदावन बिçल्डिंग, अंसारी रोड मुंबई -56
-नेशनल ऐकेडमी ऑफ मैनेजमेंट ऐंड डेवलेपमेंट, ग्राउंड फ्लोर, नंदनवन बिçल्डंग, पलेü, मुंबई-56
-नेशनल इंस्टीट्यूट फòार मीडिया स्टडीज एस जी हाइवे, अहमदाबाद-380054
-इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट जुहू तारा रोड, सांताक्रूज मुंबई-400013
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>हाल में आई कुछ फिल्मो</i></font><i><font style="font-size: 10pt;">ं- </font><font style="font-size: 10pt;">साँवरिया,
क्रिस, माई फ्रेंड गणेश, हम तुम, राजू चाचा, अभय, जजंतरम-ममंतरम, हैरी
पॉटर, लॉर्ड ऑफ द रिंग्स के बारे में गौर करें, तो पता चलता है कि इन सभी
फिल्मों में एक खासियत रही है, वह है एनीमेशन का प्रयोग। </font></i><font style="color: rgb(0, 0, 0);">पिछले कुछ वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया में आए बूम के कारण 3 डी और 2 डी एनीमेशन के बाजार में भी वृद्धि हुई। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एनीमेशन
अपने रचनात्मक और अच्छी कमाई वाले करियर के लिए बहुत तेजी से प्रचलित हो
रहा है। छोटे पर्दे ने एनीमेशन का बखूबी प्रयोग किया है। टी.वी. पर दिखाए
जाने वाले अधिकांश विज्ञापनों में एनीमेशन का सहारा लिया जा रहा है। इस
लिहाज से इस क्षेत्र में अवसरों की भरमार है। एक सर्वेक्षण के मुताबित
आगामी 3 से 4 साल में इस क्षेत्र में 60 हजार रोजगार के अवसर उपलब्ध
होंगे। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एनीमेशन
का विस्तार विज्ञापन, सिनेमा और गेम तक है। लेकिन अन्य क्षेत्रों के
मुकाबले इस क्षेत्र में रोजगार का सृजन तेजी से हो रहा है। भारत में
एनीमेशन के अवसर बढ़ने का कारण यह भी है कि जहाँ अमेरिका में एक एनीमेटेड
फिल्म बनाने के लिए 100 से 175 मिलियन डॉलर खर्च होते हैं, वहीं भारत में
इसी फिल्म को बनाने में केवल 15 से 25 मिलियन डॉलर की खपत होती है। इस
लिहाज से एनीमेशन फिल्मों में आउटसोर्सिंग से भी इसमें मदद मिलेगी।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> </font><!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">भारत
में वर्तमान में करीब 10000 एनीमेटर हैं, जबकि मौजूद माँग के मुताबिक
50000 एनीमेटर की जरूरत है। जैसे-जैस माँग में तेजी आएगी, रोजगार के अवसर
भी बढ़ेंगे। इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने के लिए सिर्फ रचनात्मक दिमाग की
जरूरत है। अमूमन फाइन आर्ट और कम्प्यूटर का ज्ञान रखने वाले लोग इस
क्षेत्र में अपना करियर बनाते हैं, लेकिन किसी भी क्षेत्र में रचनात्मक
रुचि रखने वाले लोगों के लिए एनीमेशन को करियर के रूप में चुनना अच्छा
विकल्प साबित हो सकता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एनीमेशन
में स्टोरी बोर्ड, कैरेक्टर डिजाइनिंग, मूवमेंट, माउल्डिंग, शेड,
थ्री-डी, कलर, बैक ग्राउंड तथा कई और भी क्षेत्रों में काम किया जाता है।
इन सबको एक साथ जोड़ने के लिए प्लानर और एडिटर होता है। इस तरह एक
एनीमेशन के लिए कई लोगों का सहयोग होता है। यदि आप में रचनात्मकता है और
आपकी रुचि इनमें से किसी भी एक क्षेत्र में है तो आपके लिए एनीमेशन के
दरवाजे खुले हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>एनीमेशन
के लिए कंपनियाँ एनीमो, माया, 3 डी स्टूडियो मैक्स, एडोब आफ्टर इफेक्ट,
टिकटैकटून, फ्लैश गिफ्ट एनीमेटर, यूलीड के साथ एडोब फोटो शॉप,
इल्यूस्ट्रेटर, कोरल ड्रॉ में काम करती हैं। </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">एनीमेटर
को शुरुआती दौर में 8000 से 10 हजार रुपए तक का वेतन मिलता है, लेकिन कुछ
ही वर्षों में यह अंक 40 हजार से 60 हजार रुपए का आँकड़ा छू लेता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>कहाँ लें प्रशिक्षण -- </i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">एप्टेक यूनिवर्सिटी के अंतर्गत एरिना मल्टीमीडिय</font><font style="font-size: 10pt;">ा</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">माया इंस्टीट्यूट के अंतर्गत माक अकादम</font><font style="font-size: 10pt;">ी</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी, जयपु</font><font style="font-size: 10pt;">र</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुण</font><font style="font-size: 10pt;">े</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">सी-डाक मल्टी लोकेशन, ए-34 इंडस्ट्रियल एरिया, फेस-8, एसएएस नगर, मोहाल</font><font style="font-size: 10pt;">ी</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">सेंटर फॉर डिपार्टमेंट ऑफ इमेजिंग टेक्नालॉजी, चित्रांजलि स्टूडियो, तिरुवेल्लम, तिरुअनंतपुर</font><font style="font-size: 10pt;">म</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">हीट एनीमेशन एकेडमी, 7 ए रोड, 12 बंजारा हिल्स, हैदराबाद और मुंब</font><font style="font-size: 10pt;">ई</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">आईआईटी गुवाहाटी, मुंब</font><font style="font-size: 10pt;">ई</font></i><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>* </i></b></font><i><font style="color: rgb(0, 0, 255);">नेशनल स्कूल ऑफ डिजाइन सेंटर, पलाडी, अहमदाबाद<br><br></font></i>(<font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);">वेबदुनिया न्यूज)</font></html>
उड्डयन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के आगमन ने अवसरों के नए रास्ते खोल दिए हैं। जिन्हें आसमान की ऊंचाइयों में उड़ने का हौसला है, वे अब अपने सपने को साकार कर सकते हैं। जरूरत है, तो सिर्फ सही ट्रेनिंग की ।
आखिर आसमान में उड़ने की तमन्ना किसे नहीं होती है। युवावर्ग में इसकी चाहत सबसे ज्यादा होती है। आए दिन नए एयरलाइंस के लांच होने से एविएशन क्षेत्र में युवाओं के लिये संभावनाएं बढ़़ी हैैंं। एयरलाइन्स कंपनियोंं में प्रशिक्षित युवओं की हमेशा दरकार होती है। ऐसे मेंं एयर होस्टेेस का कै रियर युवतियों के लिए एक बेहतरीन कैरियर ऑप्शन है।
कोर्स व योग्यताएं
कई निजी संस्थानों में एयर होस्टेस केे छह महीने और एक साल की अवधि के डिप्लोमा कोर्स संचालित है। इस दौरान छात्रों को एक सफल एयर होस्टेस या फ्लाइट स्टीवाड्üस बनने की ट्र्रेनिंग दी जाती है। कोर्स में फ्लाइट प्रक्रिया, उaयन शिष्टाचार, कस्टमर केयर, उड्डयन तकनीकी, प्राथमिक उपचार और विमान सुरक्षा से संबधित अहम जानकरियों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है।
इस कोर्स को करने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 10+2 है। इस क्षेत्र में भविष्य बनाने वाले छात्रों का व्यक्तित्व आकष्ाüक होना जरूरी है। छात्र की कम्यूनिकेशन स्किल बेहतर होनी चाहिए । भाष्ााओं का ज्ञान इस क्षेत्र में एक अहम रोल अदा करता है। अंगरेजी के साथ फ्रेंच, जर्मन, रूसी, उदूü आदि भाष्ााओंं पर पकड आपकी अतिरिक्त योग्यता मानी जाएगी। इस प्रोफेशन में कोई निश्चित समय निर्धारण नहीं होता है। विभिन्न फ्लाइट केसमय के आधारों पर डयूटी का निर्धारण होता है।
ऐसे में आपको व्यस्त कार्यक्रम में काम करने का अभ्यस्त होना चाहिए। जेट एयरवेज में एयर होस्टेस रह चुकीं आशा शर्मा का कहना है कि धैर्य, कठिन परिश्रम और बेहतर कम्यूनिकेशन स्किल इस पेशे की अनिवार्य मांग हैै। एयर होस्टेस बनने के लिए आयु सीमा 19से 25 वर्ष के बीच होनी चाहिए तथा लंबाई कम से कम 157.5 सेमी. होनी चाहिए।
कार्यकलाप
एयर होस्टेस का कार्य जिम्मेदारियों से भरा होता है। विमान सेवाओं में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका एयर होस्टेस की होती है। विमान के उड़ने और उतरने केदौरान तमाम सूचनाएं देना एयर होस्टेस का काम है। उसे अपनी मुस्कान केसाथ पूरी यात्रा में यात्री को किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो, इसका खयाल रखना होता है।
संभावनाएं
देश में सरकारी एयर लाइन्स का एकाधिकार समाप्त होने से, कई प्राइवेट कंपनियां इस क्षेत्र मेंं आ गई हैं, जिससे इस क्षेत्र में संभावनाए काफी प्रबल हो गई है। कोर्स करने के बाद छात्रों को एयर डेक्कन, किंगफिशर, जेट एयरवेज, स्पाइसजेट, एयर सहारा, इंडियन एयरलाइन्स, ब्रिटिश एयरवेज के साथ विदेशी एयरलाइंस में जॉब के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। प्रशिक्षित लड़कियां ग्राउंड होस्टेस, रिजवेüशन सेल्स एजेंंट, एयरपोर्ट ऑपरेशन, स्टिवडेüस, सुपरवाईजर आदि पदों पर भी नौकरी पा सकती हैं। एयर होस्टेस ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट एआईईटी के एमडी ए-के- जैन ने बताया कि देश विदेश की सभी प्रमुख एयरलाइन्स कंपनी अपना विस्तार कर रही है, जिससे प्रशिक्षित छात्रों की मांग बढ़ गई है।
वेतनमान
एयर होस्टेस का वेतनमान एयर लाइन्स के आकार, उसकी नीतियों पर निर्भर करता है। कई हवाई सेवा कंपनियों में समस्त सुविधाओं के साथ 20 से 25 हजार रुपये के बीच वेतनमान मिल जाता है। तो वहीं नई एयर लाइन्सों में आपको 15 से 20 हजार रुपये शुरुआती वेतन मिल सकता है।
संस्थान
-एयर होस्टेस एकेडमी, 48 रिंंग रोड, लाजपत नगर-3, नई दिल्ली
फोन-011-29832771-75
-फ्रैंंकफिन एयरहोस्टेस एकेडमी, एम- 5 भवानी हाऊस, एनडीएसई-2, नई दिल्ली-110049
फोन- 91-484- 4014400
-इंडियन एविएशन एकेेडमी, 7/8, ओशिवरा , अंधेरी(वेस्ट)
फोन- 009122- 26749058
-अरिहंत इंस्टीटयूट
गाजियाबाद- 2010039(यू.पी)
फोन- 0120- 3222232
-पैसेफिक एअरवेज,पाकेट जीएच 6/35, पश्चिम विहार, नई दिल्ली- 110087
-फ्रीबर्ड एवियशन ऐंड मैनेजमेंट सíवस, टीसी-41/2454 मनकौड़, त्रिवेंद्रम-9, केरल
सिकंदर सिंह
<html><font style="color: rgb(0, 0, 0);"></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एयरोनॉटिकल
इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम एयरोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा संचालित किया
जाता है। 10+2 (गणित) में उत्तीर्ण होने के पश्चात जो मेधावी छात्र
इंजीनियरिंग में प्रवेश हेतु विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल नहीं
हो पाते या स्थानाभाव के कारण चयन श्रेणी में नहीं आ पाते तथा प्राइवेट
इंजीनियरिंग कॉलेजों में डोनेशन/कैपिटेशन के रूप में एक मोटी रकम दे पाने
में असमर्थ हों, उनके लिए यह पाठ्यक्रम वरदान सिद्ध हो सकता है।</font><br> <br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>एयरोनॉटिकल सोसायटी इंडिया क्या है : </b>पं.
जवाहरलाल नेहरू की सहायता एवं संरक्षण द्वारा सन् 1948 में स्थापित यह एक
प्रतिष्ठित प्रोफेशनल खंड 'क' एवं 'ख' को डिग्री भारत सरकार की एयरोनॉटिकल
इंजीनियरिंग में डिग्री के तुल्य मान्य है। सोसायटी का उद्देश्य हवाई जहाज
अभियांत्रिकी एवं एयरोनॉटिकल प्रोफेशन की ओर रुझान पैदा करना है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>प्रवेश योग्यत</b>ा
: 10+2 गणित, भौतिक शास्त्र एवं रसायन शास्त्र में जिन छात्रों के 50
प्र.श. से अधिक अंक हों अथवा तीन वर्षीय पॉलिटेक्निक डिप्लोमाधारी हों।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>प्रैक्टिकल ट्रेनिं</b>ग : खंड ख के चार विषय उत्तीर्ण होने के पश्चात सोसायटी छात्रों को 4 से 6 माह की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग हेतु हिन्दुस्तान</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एयरोनॉटिकल
लिमिटेड, एअर इंडिया, पवन हंस, वायुदूत, डी.जी.सी.ए. नेशनल एयरोनॉटिक्स
लैबोरेटरी आदि जगहों पर भेजती है। इस हेतु छात्रों से कोई खर्च नहीं लिया
जाता।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>अवसर एवं भविष्</b>य
: एयरोनॉटिकल इंजीनियर्स केंद्र सरकार के अधीन उच्च पदों पर कार्य हेतु
चयनित होते हैं। हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमि., एयर इंडिया, पवन हंस,
रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन, नेवी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन,
भारतीय तटरक्षक, नेशनल एयरोनॉटिक्स लैबोरेटरी आदि प्रतिष्ठित जगहों पर
कार्यरत होते हैं। चुनी हुई धारा अनुरूप एम.टेक. कर सकते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इंजीनियरिंग
कौंसिल परीक्षा लंदन में सीधे ही भाग दो में उच्च शिक्षा हेतु प्रवेश ले
सकते हैं। स्नातक स्तर की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठ सकते हैं, जो
भारतीय इंजी. सर्विसेस, सम्मिलित रक्षा सेवा, यू.पी.एस.सी. आदि यहां तक कि
बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर्स की परीक्षा में बैठ सकते हैं। इसके अलावा
एम.बी.ए. तथा एम.सी.ए. जैसे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते
हैं। आजकल प्राइवेट एयरलाइंस की बाढ़ सी आई है। इस तरह एक सुनहरा भविष्य
सामने होता है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0); font-weight: bold;">(लेख</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">क </font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">इंस्टीट्यू</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">ट </font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">ऑ</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">फ </font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">साइं</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">स </font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">एं</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">ड </font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">मैनेजमें</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">ट </font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">क</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">े </font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">डायरेक्ट</font><font style="font-size: 10pt; font-weight: bold;">र </font><font style="font-size: 10pt;"><span style="font-weight: bold;">हैं। )</span><br></font></html>
<html><font color="#191970" face="AU" size="5"><b></b></font>भारतीय स्टेट बैंक की पहचान न सिर्फ वित्तीय क्षेत्र में कुशल प्रबंधन के लिए है, अपितु इसके द्वारा समय-समय पर विभिन्न पदों के लिए घोषित रिक्तियां भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहती हैं। एसबीआई का कार्यक्षेत्र दिन-प्रतिदिन फैलता जा रहा है तथा देश में इसकी लगभग 9,000 शाखाएं मौजूद हैं। इस समय एसबीआई का कार्यक्षेत्र दूसरे देशों में भी तेजी से बढ़ रहा है तथा करीब 32 देशों में इसने अपना दायरा फैला लिया है। आने वाले कुछ दिनों में यह दायरा और आगे बढ़ने की उम्मीद है। कैरियर के लिहाज से भी यह बैंक युवाओं के लिए काफी सहायक रहा है। अभी हाल ही में एसबीआई ने परिवीक्षाधीन अधिकारी (पीओ) के लिए जो आवेदन आमंत्रित किये थे, उसकी परीक्षा की तिçथ 27 अप्रैल को निर्धारित की गयी है।<br><br> एसबीआई में परिवीक्षाधीन अधिकारी बनने के लिए तैयारी बेहतर होनी चाहिए। यह मत भूलें कि इस परीक्षा में कई हजार अभ्यर्थी सçम्मलित होते हैं, जिनकी भाषिक तथा तार्किक मेधा ही असली चुनौती है। <br> <br><br>परीक्षा की संरचना<br>इसमें पीओ की नौकरी हासिल करने के लिए अभ्यथीü को तीन चयन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।<br><br><br>प्रारंभिक परीक्षा<br>प्रथम चरण में आयोजित होने वाली प्रारंभिक परीक्षा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर आधारित होती है तथा इसके लिए अभ्यथीü को दो घंटे का समय दिया जाता है। पूछे जाने वाले प्रश्न तर्क शक्ति, अंगरेजी भाषा, सामान्य जागरूकता तथा संख्यात्मक अभिरुचि पर आधारित होते हैं। इसके अलावा कम्प्यूटर से भी संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रश्नोें का माध्यम हिन्दी व अंगरेजी दोनों होता है। इसके प्रमुख क्षेत्र निम्न हैं-<br><br><br>तर्कशक्ति- यह परीक्षण अभ्यथीü से यह जांचने के लिए तय किया गया है कि आप कितनी अच्छी तरह सोच एवं समझ सकते हैं। इसके अंंतर्गत विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। यह आंशिक रूप से भाषिक (जो शब्दों पर आधारित होते हैं) तथा अभाषिक (जो आकृति एवं रेखाचित्र पर निभüर करते हैं) होते हैं।<br><br><br>संख्यात्मक अभिरुचि- यह परीक्षा संख्यात्मक गणनाओं, जैसे संगणन, संख्यात्मक तर्कसंगतता, सारिणियों एवं आलेखों से निष्कर्ष निकालने आदि में आपकी गति एवं सटीकता की जांच के लिए है। प्रत्येक आलेख अथवा सारिणी पर प्रश्न पूछे जाएंगे। इसमें प्रत्येक आलेख या सारिणी का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना होगा तथा उन्हें उत्तर पत्रिका में अंकित करना होगा।<br><br><br>अंगरेजी भाषा- इस खण्ड का प्रयोजन अभ्यथीü के अंगरेजी भाषा ज्ञान की परीक्षा करना है। व्याकरण, शब्दावली, वाक्य पूर्ण करना, समानाथीü, विपरीताथीü अनुच्छेेद की समझ आदि से संबंधित प्रश्नों द्वारा आपके अंगरेजी भाषा संबंधी ज्ञान की परीक्षा की जाएगी।<br><br><br>सामान्य जागरूकता- इस परीक्षा का प्रयोजन प्रत्याशी को अपने आस-पास घटने वाली घटना की जानकारी तथा उसके समाज में अनुप्रयोग के ज्ञान को आंकना है। ये प्रश्न अभ्यथीü के वर्तमान घटनाक्रम तथा भारतीय भूगोल, देश व उसके निवासियोंं, भारतीय इतिहास, इसकी सांस्कृतिक विरासत, स्वतंत्रता संग्राम तथा भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं पर पूछे जा सकते हैं।<br><br><br><br>मुख्य परीक्षा<br>मुख्य परीक्षा के अंतर्गत रीजनिंग, डाटा इंटरप्रीटेशन, इंग्लिश यूजेज तथा माकेüटिंग नॉलेज के प्रश्न आते हैं। इसके लिए तीन घंटे का समय निधाüरित किया गया है। समय का विभाजन दो तरह से होता है। प्रथम दो घंटे में वस्तुनि9ठ प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं तथा अंतिम के एक घंटे वर्णनात्मक परीक्षा के लिए होते हैं। इसमें अभ्यथीü की अंगरेजी भाषा में दक्षता का आकलन किया जाता है। इसके अलावा परिçस्थतियों को समझने, उनका विश्लेषण करने, अनुपम विचारों या परिçस्थतियों की कल्पना कर सकने जैसे गुण होने भी आवश्यक हैं। वर्णनात्मक परीक्षा केवल उन्हीं प्रत्याशियों की ली जाएगी, जिन्हें वस्तुनिष्ठ परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर वरीयता सूची में स्थान प्राप्त हुआ हो।<br><br><br>साक्षात्कार<br>साक्षात्कार के लिए उन्हीं अभ्यçथüयों को बुलाया जाता है, जिन्होंने प्रारंभिक व मुख्य परीक्षाओं में न्यूनतम 40 प्रतिशत अंक प्राप्त किया हो, जबकि आरक्षित श्रेणी के अभ्यçथüयों को 5 प्रतिशत छूट का प्रावधान है। साक्षात्कार के लिए अभ्यçथüयों को बाद में सूचित किया जाता है। इसमें सामान्य तौर पर करेंट अफेयर्स, एकेडमिक कैरियर, देश-विदेश की प्रमुख हलचलों तथा बैंकिंग अभिरुचि पर प्रश्न किए जाते हैं। साथ ही अभ्यथीü की पर्सनैलिटी को भी आंकने की कोशिश की जाती है।<br><br><br>तैयारी के प्रमुख चरण<br>एसबीआई पीओ बनने के लिए तैयारी की रणनीति बेहतर होनी चाहिए, अन्यथा सफलता पाने से आप कोसों दूर निकल जाएंगे। यह मत भूलें कि इस परीक्षा में कई हजार अभ्यर्थी सçम्मलित होते हैं। अत: अपनी रणनीति को निम्न बिन्दुओं के आधार पर अग्रसर करें-<br><br>-परीक्षा के पैटनü को भलीभांति समझ लें तथा उसी के अनुरूप तैयारी करें। इसके लिए पिछले वर्ष के प्रश्नपत्रों को आधार बनाएं।<br><br>-तार्किक प्रश्नों को तभी हल किया जा सकेगा, जब आपकी प्रेजेंस ऑफ माइंड अच्छी हो।<br><br>-करेंट अफेयर्स एवं सामान्य जागरूकता के लिए नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करें तथा महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को नोट कर लें।<br><br>-संख्यात्मक अभियोग्यता में अधिकांश प्रश्न दसवीं के पाठ्यक्रम से पूछे जाते हैं। इससे जुड़े चैप्टरों का भरपूर अभ्यास कर लें।<br><br>-कम्प्यूटर के प्रश्न बेसिक जानकारी से संबंधित होते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम एवं फंडामेंटल से जुड़े प्रश्नों पर नजर रखें।<br><br><br><br>प्रभाकर चन्द</html>
<html><br>इçम्तहान चाहे कोई भी हो, यदि उसकी जानकारी सही तरीके से न हो, तो अच्छे से अच्छा विद्याथीü भी पीछे रह जाता है। मेडिकल व इंजीनियरिंग का क्षेत्र भी कुछ इसी तरह का है, जिसमें युवा अपनी पूरी काबिलियत दिखा सकते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान के तो कहने ही क्या।<br><br> अखिल भारतीय स्तर पर कंबाइंड मेडिकल व डेंटल (पीटी) परीक्षा मेंं तीन स्तरों पर मेधा साबित करने के बाद विद्यार्थी कैरियर का वह मुकाम हासिल करता है, जहां लोग उसे धरती पर भगवान की संज्ञा देते हैं। <br> <br>देश के सभी सीबीएसई संस्थानों के प्री-मेडिकल/प्री-डेंटल पाठयक्रमों में नामांकन हेतु ऑल इंडिया प्री-मेडिकल/प्री-डेंटल प्रवेश परीक्षा 2008 इस साल छह अप्रैल को आयोजित की जा रही है। इस परीक्षा में लाखों छात्र शामिल होते हैं, जाहिर है, इसमें आपके अध्ययन, स्मरण शक्ति, वस्तुनिष्ठ तरीकेके प्रश्न को निश्चित समयावधि में हल करने की दक्षता तथा समय प्रबंधन की क्षमता की भी जांच होगी। इस परीक्षा में बैठने के पूर्व परीक्षार्थियों को कुछ महत्वपूर्ण तथ्य अवश्य जानकारी में रखने चाहिए।<br><br><br><br><br>शैक्षणिक योग्यता<br><br><br>परीक्षा में वही छात्र बैठने के योग्य हैं, जिन्होंने 12 वीं की परीक्षा फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी व अंग्रेजी आदि विष्ायों में पास की हो। सामान्य वर्ग के विद्याçथüयों को प्रवेश परीक्षा देने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत अंक लाने जरूरी हैं। अजा-अजजा के विद्याçथüयों के लिए 40 प्रतिशत अंक लाना जरूरी होता है। जो विद्याथीü इस साल 10+2 की परीक्षा दे रहे हैं, वे भी इसकी पीटी देने के योग्य हैं। इसके अतिरिक्त निम्नवणिüत कुछ सामान्य योग्यताएं ऐसी हैं, जो सभी परीक्षार्थियों के लिए एक समान हैं: प्राथीü की उम्र कम से कम17 साल होनी जरूरी है। जिस साल विद्याथीü पीटी में दखिला लेने जा रहा है, उस साल के दिसंबर से उसकी उम्र गिनी जाती है। इसलिए साल के 31 दिसंबर तक जोड़ने पर उसकी आयु 17 वर्ष होनी अनिवार्य है। प्राथीü की उम्र 25 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि दिसंबर तक जोड़ने पर प्राथीü की उम्र 6 महीने भी कम होती है, तब भी वह पीटी दे सकता है, बशतेü प्रवेश के समय उसकी उम्र कम से कम क्7 साल अवश्य हो जाए। इस परीक्षा में विहित प्रावधानों के अनुसार आरक्षण के नियम लागू होते हैं।<br><br><br>-विद्याथीü को केवल 3 बार ही अवसर दिए जाते हैं। चौथी बार वह इस परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता।<br><br><br>-पीटी में नेगेटिव माकिZग होती है। इसलिए प्रश्नों का उत्तर आश्वस्त होने पर ही दें।<br><br><br><br><br>परीक्षा के चरण<br><br><br>प्रवेश परीक्षा दो चरणों में संपन्न होती है। पहला, प्रीलिमिनरी एग्जाम व दूसरा, अंतिम परीक्षा। दोनों परीक्षाओं में लगभग एक महीने का अंतर होता है। उसी बीच प्रारंभिक परीक्षा का रिजल्ट भी उन विद्याçथüयों को ज्ञात हो जाता है, जिन्हें अंतिम परीक्षा देनी होती है। दोनों परीक्षाओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।<br><br><br><br><br>प्रारंभिक परीक्षा <br><br><br>इस परीक्षा में आपको एक ही परीक्षा देनी होती है, जिसके प्रश्नपत्र में 200 ऑब्जेçक्टव टाईप प्रश्न होते हैं। इसमें फिजिक्स, केमेस्ट्री और बायोलॉजी से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। हर प्रश्न के चार विकल्प दिए रहते हैं, जिनमें से एक सही विकल्प आपको चुनना होता है। प्रश्नोत्तर के लिए मशीन द्वारा खासकर डिजाइन की गयी ग्रेडेवल शीट्स पर बॉल पाइंट पेन से जवाब पर निशान लगाना होता है। परीक्षा की अवधि तीन घंटे है।<br><br><br><br><br>अंतिम परीक्षा<br><br><br>अंतिम परीक्षा दो पेपर में विभाजित की गई है व दोनों परीक्षाओं की अवधि दो-दो घंटे होती है। इसके पहले पेपर में फिजिक्स और केमेस्ट्री से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। दूसरे पेपर में बायोलॉजी यानी बॉटनी व जूलॉजी से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। अंतिम परीक्षा में नॉन-ऑब्जेçक्टव टाईप प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनके जवाब देने के लिए विद्याçथüयों को अलग से एक आंसर शीट दी जाती है। <br><br><br><br><br>प्रश्नपत्र की भाष्ाा<br><br><br>विद्यार्थी अपनी सहूलियत के अनुसार प्रश्न पत्र या तो अंग्रेजी में या फिर हिंदी में हल कर सकते हैं। यह विकल्प उनके लिए आवेदन पत्र भरते समय ही पूछा जाता है। परीक्षा देते समय आप भाष्ाा का बदलाव नहीं कर सकते।<br><br><br><br><br>स्कोरिंग एेंड मार्किंग<br><br><br>द्दहर प्रश्न 3 अंक का है। हर सही जवाब के लिए 3 अंक दिए जाते हैं और गलत जवाब के लिए एक अंक उसमें से काट लिया जाता है। अगर विद्याथीü जवाब को खाली छोड़ देता है, तो कोई अंक नहीं काटा जाता। यदि एक प्रश्न के लिए दो उत्तर पर निशान लगा दिया हो, तो वह उत्तर गलत मान लिया जाएगा और उस गलत उत्तर के लिए एक अंक काट लिया जाएगा। <br><br><br>-चैकिंग के समय आनसर शीट के साइड 2 पर जो टेक्स्ट बुकलेट कोड प्रिंट होता है, वही अंतिम कोड माना जाता है इसलिए कोड को ध्यान से लिखना चाहिए। <br><br><br>-विद्याथीü को आंसर शीट में कोई रफ वर्क या हिसाब किताब नहीं करना चाहिए।<br><br><br><br><br>मेरिट लिस्ट<br><br><br>फाइनल एग्जाम में उत्तीर्ण परीक्षार्थियों को मेरिट लिस्ट में शामिल किया जाता है। मेरिट लिस्ट में शामिल विद्याçथüयों को 15 प्रतिशत कोटा के अंतर्गत प्रवेश दिया जाता है। <br><br><br>यदि दो या दो से ज्यादा विद्याçथüयों के अंतिम परीक्षा में एक समान अंक आते हैं तो प्रवेश परीक्षा के समय जिस विद्याथीü के बायोलॉजी या बोटनी व जूलॉजी में सबसे अधिक अंक आए होते हैं, उसका चुनाव किया जाता है। इसके अलावा उम्र, शैक्षणिक योग्यता, अन्य मेरिट को भी वरीयता का मानदंड बनाया जाता है।<br><br><br><br><br>अदर स्टेट कोटा<br><br><br>सीबीएसई द्वारा 15 प्रतिशत विद्यार्थियों को यह छूट है कि वे अपने होम स्टेट से अलग किसी अन्य राज्य के मेडिकल संस्थान में प्रवेश के लिए एप्लाई कर सकते हैं। मेडिकल और डेंटल कोसेüस के लिए यह कोटा आंध्रप्रदेश व जम्मू और कश्मीर को छोड़कर यूनियन ऑफ इंडिया, स्टेट गवनüमेंट, म्युनिसिपल और भारत के स्थानीय अथॉरिटीज के अंतर्गत लागू है। विशेष जानकारी के लिए आप वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट सीबीएससी डाट एनआईसी डाट इन पर लॉग-इन कर सकते हैं।<br><br><br><br> <br>प्त विनीता झा <br><br></html>
<html><br>ग्लोबलाइजेशन का दौर चल रहा है। सूचना और तकनीक के कारण काम करने के तौर तरीकों में बदलाव आया है, तो बाजार भी विशाल हो गया है। जहां सभी के लिए अवसरों की समानता है। लाखों-करोड़ों नहीं, कई ऐसे रोजगार हैं, जिन्हें शुरू करने के लिए आपको बहुत अधिक पूंजी निवेश की जरूरत नहीं पड़ती। पर, आप अपनी मेहनत के द्वारा जितना चाहें, उतना कमा सकते हैं। यानी बात यह कि हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा। आपके मन में सवाल जरूर उठ रहा होगा, कि आखिर ऐसे कौन से रोजगार क्षेत्र हैं, जिनमें कम पैसे में मुनाफा कमाया जा सकता है। आइए जानते हैं ऐसे बिजनेस के बारे में।<br><br> नारायण मूर्ति हों या शिव नडार, छोटी शुरुआत से बड़े करिश्मे करनेवाले उद्योगपतियों की फेहरिस्त लंबी है। कम पूंजी के बावजूद ऐसे कई स्वरोजगार क्षेत्र हैं, जो आपको स्थापित कारोबारी बना सकते हैं। बता रहे हैं। <br> <br><br><br>डोमेस्टिक हेल्प एजेंसी<br><br><br>आजकल शहरों में होम मेड की खासी जरूरत है। लोगों को अच्छी मेड ढूंढ़ने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे में आप थोड़े से पैसे लगाकर अपनी रजिस्टर्ड डोमेस्टिक हेल्प एजेंसी खोल सकते हैं। इसके लिए आपको बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं। तीन से चार कमरे के ऑफिस्ा में भी आप अपने काम की आसानी से शुरुआत कर सकते हैं। साथ ही जो वर्कर किसी और जगह से आ रही हैं, उनके ठहरने का इंतजाम कर लें। आपकी एजेंसी के माध्यम से घरों में काम करने वाली मेड्स लोगों को आराम से मिल जाएंगी, साथ ही लोगों को सुरक्षा से जुड़े मसलों के बारे में भी चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।<br><br><br><br><br>कैट¨रग सíवस<br><br><br>आजकल बड़े शहरों में फूड डिलीवरी सिस्टम का खासा चलन है। आप फूड डिलीवरी सेंटर खोल सकते हैं। इसको खोलने के लिए आपको ज्यादा लागत भी नहीं लगानी होगी। एक छोटी-सी जगह ले लें, चार से पांच खाना बनाने वाले कर्मचारियों को रख लें, अपना एरिया तय करके तीन से चार डिलीवरी ब्वॉय रखकर आप अपने इस रोजगार को आगे बढ़ा सकते हैं।<br><br><br><br><br>सोयाबीन से दुग्ध पदार्थों का उत्पादन<br><br><br>आप जानते ही हैं कि सोयाबीन को खनिज तेल के उत्पादन के लिए प्र्रयोग में लाया जाता है। पर, अब इसे खाद्य सामगि्रयों के उत्पादन के लिए भी प्रयोग में लाया जा रहा है। जैसे सोया आटा, दूध, पनीर, बिस्कुट आदि। सोयाबीन को पूंजी अíजत करने वाला अनाज भी माना जाता है, क्योेंकि सोया तेल की कीमत बढ़ने से इसकी कीमत भी बढ़ती है। इस उद्योग को दो से ढाई लाख रुपए में शुरू किया जा सकता है।<br><br><br><br><br>आलू चिप्स एवं आलू पाउडर उद्योग<br><br><br>आलू लगभग सभी वगोZ में पसंद किया जाता है। आलू के चिप्स की खपत बहुतायत में होती है। आलुओं को कीटाणु रहित करने के लिए गर्म पानी में उचित मात्रा में सोडियम मेटा बाइसल्फाइट मिलाकर 2 से 3 मिनट तक डाले रखते हैं। फिर इनको बाहर निकालकर ठंडा कर लेते हैं। आलुओं का छिलका उतारने की परेशानी से बचने के लिए कारवोरंडम पिलर जैस्ाी हल्की मशीनों का प्रयोग किया जाता है। चिप्स की कटाई व उनकी समान मोटाई के लिए भी मशीनों का प्रयोग करना अच्छा रहता है।<br><br><br><br><br>वेडिंग प्लानिंग<br><br><br>आजकल के व्यस्ततम शैडKूल में शादियों व अन्य कार्यक्रमों के आयोेजन की जिम्मेदारियां संभाल लें। वेडिंग प्लानर शादी की साज-सज्जा, उसकी तैयारियों में शुरू से अंत तक सारे इंतजाम देखता है। वेडिंग प्लानर का काम शुरू करने के लिए आप अपना एक ऑफिस बना लें। उसे रजिस्टर्ड करा लें। ऐसे लोगों को रखें, जो इस काम को बेहतर ढंग से कर सकने में सक्षम हों। चूंकि शादी की पूरी जिम्मेदार वेडिंग प्लानर की होती है, इसलिए आपके पास इंटीरियर डेकोरेटर्स और कैटरिंग से जुड़े लोगों की जानकारी भी होनी चाहिए।<br><br><br><br><br>यूनिफॉर्म मेकिंग<br><br><br>आजकल ड्रेस कोड का चलन प्रचलन में है। ऐसे में आप यूनिफॉर्म मेकिंग का कारोबार कर सकते हैं। आप स्कूल, लॉ व मेडिकल कॉलेज से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। आजकल कंपनियों में ड्रेस कोड लागू है,उन कंपनियों से अनुबंध करके यूनिफॉर्म मेकिंग का काम शुरू कर सकते हैं।<br><br><br><br><br>प्रापर्टी मैनेजमेंट<br><br><br>आजकल रियल इस्टेट में जबरदस्त बूम है। ऐसे में अगर आप अपने हाथ इस सेक्टर में आजमाएं तो क्या कहने! आप प्रापर्टी डीलिंग का काम शुरू कर सकते हैं, इसके साथ ही आप लोगों को रेंट पर मकान दिलवा कर भी अच्छी आय अíजत आय कर सकते हैं।<br><br><br><br><br>मोबाइल और हार्डवेयर नेटवíर्कंग<br><br><br>आज के दौर में मोबाइल और कंप्यूटर आदमी की जरूरत में शुमार हो गए हैं। ऐसे में अगर आप मोबाइल रिपेयरिंग और कंप्यूटर हार्डवेयर से जुड़े काम करें, तो अच्छा खासा कमा सकते हैं। बस आप कहीं से इससे जुड़ा कोर्स कर लें, जिससे आपको इनकी रिपेयरिंग की बेसिक मालूमात हो जाएं। छोटी-सी जगह से आप इस काम की शुरुआत कर सकते हैं। साथ ही इसके लिए आपको ज्यादा पूंजी भी खर्च नहीं करनी पड़ेगी। इस काम की शुरुआत पचास हजार से एक लाख रुपए तक में की जा सकती है।<br><br><br><br><br>डोमेस्टिक वर्क एजेंसी<br><br><br>आज के दौर में हर शख्स के पास समय की कमी है। ऐसे में आपके सामने एक अच्छा ऑप्शन है कि आप डोमेस्टिक वर्क एजेंसी खोल लें। इसमें आप लोगों के बिजली, टेलीफोन के बिल, प्लçम्बंग, रिपेयरिंग जैसे कामों के लिए वर्कर उपलब्ध करा सकते हैं। इसमें भी अच्छी कमाई है।<br><br><br><br><br>इवेंट मैनेजमेंट<br><br><br>ऑफिसों व घरों में समय-समय पर पाíटयां आयोजित होती हैं। ऐसे में आप इन पाíटयों को अरेंज करने का काम कर सकते हैं। इस बिजनेस को शुरू करने में आपको ज्यादा पूंजी भी नहीं लगानी होगी। इस कारोबार की शुरुआत करने के लिए आपको एक ऑफिस की जरूरत होगी, जहां लोग आपसे इवेंट मैनेज कराने के लिए संपर्क कर सकें। इस तरह के मैनेजमेंट कर्मियों की खासी डिमांड है।<br><br> <br>प्त अनुराग मिश्र <br><br></html>
मंडी का नाम आते ही गांव और वहां के हाट-बाजार की तसवीर जहन में उभर आती है, लेकिन अब ये हाट-बाजार भी बदलते जमाने के साथ हाईटेक हो चुके हैं और लोग ऑनलाइन गेहूं और चावल के भाव कोट कर रहे हैं। वास्तव में, मंडी अब धीरे-धीरे कमोडिटी बाजार या जिंस बाजार के नाम से जाना जाने लगा है और जिंसों के वायदा कारोबार (फ्यूचर ट्रेडिंग) में रोजगार के ढेर सारे अवसरों का सृजन हुआ है। जिंस बाजार वह बाजार है, जहां गेहूं, चावल, दलहन, तिलहन, तेल आदि का व्यापार होता है। जिस तरह से शेयरों में कारोबार के लिए स्टॉक एक्सचेंज काम करते हैं, उसी तरह कमोडिटी में कारोबार के लिए कमोडिटी एक्सचेंज काम करते हैं।
क्या है कमोडिटी एक्सचेंज?
कमोडिटी एक्सचेंज में गेहूं और अरहर दाल जैसे गल्ले के साथ-साथ सोना-चांदी जैसी वस्तुओं की `कीमत का व्यापार´ होता है। कीमत के व्यापार से मतलब है कि किसी वस्तु के भविष्य की कीमत का अनुमान लगाना और उस कीमत के आधार पर वस्तु की खरीद-फरोख्त करना। मसलन आज से छह महीने बाद गेहूं की कीमत क्या होगी। इसके लिए किसान, विक्रेता, गल्ले के व्यापारी और निवेशक सभी ऑनलाइन अपना भाव कोट करते हैं। ध्यान दीजिए, गेहूं की उपज होगी छह महीने बाद, पर उसके भाव का अनुमान छह महीने पहले लगाया जा रहा है और उसी आधार पर उसकी खरीद-फरोख्त भी जारी है। इसे वायदा कारोबार कहते हैं।
इस समय देश में प्रमुख तौर पर तीन कमोडिटी एक्सचेंज काम कर रहे हैं। इनमें से दो एक्सचेंज- मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज और नेशनल कमोडिटी ऐंड डेराइवेटिव्स एक्सचेंज मुंबई में स्थित हैं। जबकि तीसरा एक्सचेंज नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया अहमदाबाद में स्थित है। एनसीडीईएक्स के जोनल हेड (नॉर्थ व ईस्ट) आर. रघुनाथन ने कहा कि देश का कमोडिटी बाजार शेयर बाजार के मुकाबले पांच गुना ज्यादा बड़ा है। उन्होंने बताया कि देश में ज्यादातर मंडियां असंगठित हैं और इनके संगठित होने से वास्तव में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा। उल्लेखनीय है कि इन एक्सचेंजों में कमोडिटी फ्यूचर ट्रेडिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग, çक्लयरिंग और सेटलमेंट प्रणाली मौजूद है।
कमोडिटी ट्रेडिंग में आए बूम के चलते तीन साल में ही कारोबार 28 गुना बढ़ गया है। इससे कमोडिटी ट्रेडिंग में कुशल कर्मचारियों की भारी मांग पैदा हो गई है। जहां वर्ष 2003-04 में देश के विभिन्न कमोडिटी एक्सचेंजों में कुल कारोबार महज करीब 1.29 लाख करोड़ रुपये का था, वह वर्ष 2006-07 में बढ़कर 36.76 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। अकेले साल 2004-05 में ही कारोबार की मात्रा में पांच गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई। अगर चालू वित्त वर्ष की बात करें, तो अगस्त तक यानी पांच महीनों में ही कुल कारोबार 15 लाख करोड़ रुपये के स्तर को छू गया है।
उद्योग चैंबर एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2010 तक कमोडिटी फ्यूचर माकेüट में अतिरिक्त एक लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। एसोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत के मुताबिक, मौजूदा समय में एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई में सर्राफा, क्रूड ऑयल, तिलहन (सरसों, मूंगफली), मसाले (काली मिर्च, जीरा,), धातु (स्टील, तांबा, निकल), दलहन (अरहर, मसूर, उड़द), चीनी, गुड़, काजू, रबड़ सहित 70 से अधिक कमोडिटी में कारोबार होता है।
एक्सचेंज के फायदे
कमोडिटी एक्सचेंज भविष्य का भाव तय कर किसानों को बिचौलियों की मनमानी से बचाता है, उन्हें फसल उगाने का निर्णय लेने में मदद करता है। अगर किसान को मालूम हो जाए कि चार महीने बाद गेहूं की कीमत 800 रुपये प्रति çक्वंटल होगी, तो वह उसी हिसाब से गेहूं की फसल पर खर्च करेगा। यदि उसे अनुमान है कि वह 200 टन गेहूं पैदा कर पाएगा, तो वह इस भाव में खरीदार भी ढूंढ सकता है। व्यापारी भविष्य के भाव की ऑनलाइन जानकारी हासिल करके माल की बुकिंग कर सकते हैं। हेजिंग और आरबिटेüज के जरिये निवेशक पैसा कमा सकते हैं। एक उदाहरण लीजिए, कमोडिटी फ्यूचर माकेüट में आपने आठ हजार रुपये प्रति तोला के हिसाब से दस तोला सोना बुक कर दिया। अगले सप्ताह सोने की कीमत में उछाल आया और सोने का भाव नौ हजार रुपये प्रति तोला हो गया। आपने सोने को इस भाव में बेच डाला और दस तोले के हिसाब से कुल दस हजार रुपये कमा डाले। गौर करने की बात यह है कि आपने सोना केवल बुक किया था, खरीदा नहीं था।
कैसे करें शुरू में कारोबार
कमोडिटी एक्सचेंज से कारोबार करने का तरीका ठीक वैसा ही है, जैसा कि शेयर बाजार के साथ कारोबार का। ब्रोकर या सब ब्रोकर के पास जाएं और एक ट्रेडिंग अकाउंट खुलवाएं। पता कर लें कि वह ब्रोकर या सब ब्रोकर कमोडिटी में कारोबार की सुविधा उपलब्ध कराता है या नहीं। उदाहरण के लिए, आईसीआईसीआई डाइरेक्ट, रेफको सिफी सिक्योरिटीज और एसएसकेआई (शेयरखान), इंडिया इन्फोलाइन व मोतीलाल ओसवाल आदि कमोडिटी में ट्रेडिंग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ट्रेडिंग एकाउंट में माíजन मनी जमा करानी होती है, ताकि उसी अनुपात में वायदा कारोबार की अनुमति प्राप्त हो सके। आमतौर से माíजन पांच से दस फीसदी के बीच और ब्रोकरेज फीस 0.06 से 0.15 फीसदी के बीच होती है। अलग-अलग वस्तुओं के लिए दलाली प्रभार की दरें अलग-अलग होती हैं। सौदे का निपटारा उन बैंकों के जरिये होता है, जिनसे संबंधित कमोडिटी एक्सचेंज का करार हो।
अवसर
ब्रोकर
ब्रोकर निवेशकों, किसानों और ट्रेडरों को ऑनलाइन ट्रेडिंग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं और कारोबार की मात्रा के हिसाब से शुल्क लेते हैं। हालांकि ब्रोकर बनने के लिए व्यक्ति का नेटवर्थ काफी अधिक होना चाहिए।
सब ब्रोकर
कमोडिटी एक्सचेंज के सदस्य (ब्रोकर) अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए सब ब्रोकर नियुक्त करते हैं। कोई भी व्यक्ति ब्रोकर से संपर्क कर सब ब्रोकर बन सकता है और अपने गांव या शहर में टर्मिनल स्थापित कर कमोडिटी में वायदा कारोबार की सुविधा प्रदान कर सकता है। शुरुआती दौर में यदि वह चाहे, तो टर्मिनल लगाने के बजाय इंटरनेट कनेक्शन लेकर भी वायदा कारोबार में ट्रेडिंग शुरू कर सकता है। आज भी कई इलाके ऐसे हैं, जहां लोग वायदा कारोबार की अवधारणा से अनभिज्ञ हैं।
विश्लेषक
वायदा कारोबार में विश्लेषकों की भारी मांग है। कमोडिटी के क्षेत्र में विश्लेषक या शोधकर्ता का काम किसी खास उत्पाद के भविष्य का पता लगाना होता है। मसलन अंतरराष्ट्रीय बाजार में चने की क्या स्थिति है। इस बार देश में चने की बुवाई कितनी हुई है। अन्य देशों में मांग की क्या स्थिति है और फसल पर मौसम का क्या असर होगा आदि। इन सभी बातों का विश्लेषण कर वह भविष्य में चने की मांग और आपूर्ति के बारे में निष्कर्ष निकालता है। कमोडिटी एक्सचेंज के साथ-साथ सब ब्रोकरों को भी विश्लेषकों की जरूरत पड़ती है। मौजूदा समय में न केवल विश्लेषक के तौर पर, बल्कि कमोडिटी ब्रोकर के तौर पर सैकड़ों ट्रेंड स्टूडेंट्स की मांग है।
गोदाम मालिक
किसान यदि चाहें, तो एक सहकारिता बनाकर वेयरहाउस स्थापित कर सकते हैं। इसके लिए वे राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम से संपर्क कर सकते हैं। वेयरहाउस स्थापित करने के लिए नाबार्ड द्वारा 25 फीसदी रियायत पर लोन दिया जाता है, जबकि टेस्टिंग लैब के लिए लोन पर तीस फीसदी की रियायत दी जाती है। इसके लिए उन्हें अपने क्षेत्र में स्थित क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंक से संपर्क करना चाहिए और अपनी योजना से बैंक को अवगत कराना चाहिए।
एग्रीगेटर
देश में छोटे-छोटे किसानों से कमोडिटी खरीदकर बड़ी मात्रा में ऐसी कमोडिटी की ट्रेडिंग करने वाले व्यक्ति को एग्रीगेटर कहते हैं। वास्तव में, गांवों में कई दशकों से एग्रीगेटर सक्रिय हैं, लेकिन वह माल इकट्ठा कर उसे बड़ी मंडी में ले जाकर बेचते हैं। वहीं फ्यूचर ट्रेडिंग के मामले में एग्रीगेटर माल इकट्ठा कर उसका भाव एक्सचेंज में कोट करता है और मुनाफा कमाता है।
डीलर
वायदा कारोबार में डीलर की भूमिका समय-समय पर कमोडिटी के भाव का पता लगाना, ट्रेडर से माल खरीदना और उसे बेचना और नए ग्राहकों से संपर्क करना है। इस तरह से डीलर मुनाफा कमाता है और किसान को मुनाफा दिलाने की कोशिश करता है। कमोडिटी एक्सचेंज में कमोडिटी माकेüट ट्रेडिंग, जोखिम प्रबंधन और क्लीयरिंग, सेटलमेंट और डिलीवरी के लिए भी पेशेवरों की काफी मांग है।
अप्रत्यक्ष रोजगार
कमोडिटी एक्सचेंज में अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार सृजन की भारी संभावनाएं हैं। देश में जैसे-जैसे एक्सचेंज के जरिये वायदा कारोबार का विस्तार होगा, अलग-अलग क्षेत्रों में कंप्यूटर ऑपरेटर, पेशेवर प्रबंधकों, बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर, लैब विशेषज्ञ आदि की जरूरत पड़ेगी। वास्तव में अभी फ्यूचर ट्रेडिंग में बैंकों, म्यूचुअल फंडों और कई दूसरे संस्थानों को हिस्सा लेने की अनुमति नहीं है। लेकिन सरकार जैसे ही इन संस्थानों को कारोबार में हिस्सा लेने की मंजूरी देती है, कई नए क्षेत्रों का सृजन होने से बड़ी संख्या में लोगों की जरूरत पड़ेगी।
संस्थान
-कमोडिटी ब्रोकरेज फर्म कावीü कॉमट्रेड (डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू. कॉमट्रेड.कॉम) एमसीएक्स के साथ मिलकर शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम संचालित कर रही है।
-उत्तराखंड में जीबी पंत विश्वविद्यालय (डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू. जीबीपीयूएटी.एसी.इन) में एग्री बिजनेस कोर्स में कमोडिटी ट्रेडिंग को जगह दी गई है।
-एमसीएक्स, मुंबई वेलिंगकर इंस्टीट्यूट (डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू. वेलिंगकर.ओआरजी) के साथ मिलकर कमोडिटीज माकेüट में डिप्लोमा प्रदान कर रहा है।
-रघुनाथन ने बताया कि एनसीडीईएक्स दो महीने में कमोडिटीज माकेüट के ई-लनिZग आधारित सटिüफिकेट कोर्स शुरू करने जा रहा है। इसके लिए एक्सचेंज ने एनसीडीईएक्स इंस्टीट्यूट ऑफ कमोडिटी रिसर्च की स्थापना की है, जो पूरे देश में यह कोर्स संचालित करेगा। उन्होंने कहा कि बारहवीं पास विद्यार्थियों के लिए शुरू होने वाले इस कोर्स को करने के बाद अन्य विकल्पों के साथ ही स्वरोजगार शुरू कर सकेंगे।
-दूसरी ओर आईआईएम अहमदबाद, मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, आईएमटी जैसे अग्रणी बिजनेस स्कूलों ने भी अपने पाठ्यक्रमों में कमोडिटी ट्रेडिंग को वरीयता देनी शुरू की है।
राजेंद्र गुप्ता
कर्मचारी चयन आयोग द्वारा संयुक्त स्नातक स्तरीय (प्रा.) परीक्षा वष्ाü में एक बार अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाती है। यह परीक्षा त्रिस्तरीय होती है-प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार। प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही आप को मुख्य परीक्षा के लिए बुलाया जाता है तथा इसमें उत्तीर्णüü होने वाले अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है।
कर्मचारी चयन आयोग संयुक्त स्नातक (प्रा.) परीक्षा - 2006
आवेदन पत्र मिलने का समय - 12 अगस्त 2006
अंतिम तिçथ- 8 सितंबर-2006
परीक्षा तिçथ- 26 नवंबर 2006
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महत्वपूर्ण तथ्य
समय प्रबंधन पर विशेष्ा ध्यान दें
-अंकगणित के प्रश्नों पर अधिक जोर दें।
-विगत वष्ाोZ के प्रश्नों को तथा उस पर आधारित प्रश्नों को ईमानदारी से हल करें।
-कम से कम पुस्तक पढ़ें।
-बाजारू और सस्ती पुस्तकों से बचें, प्रामाणिक पुस्तकों का ही अध्ययन करें।
-अध्ययन हमेशा टु द पॉइंट ही करें।
परीक्षा का स्वरूप
-पेपर संख्या - 1, कुल प्रश्न - 200, सामान्य अध्ययन - 100, समय - दो घंटे
-पेपर संख्या - 2, अंकगणित, कुल प्रश्न - 200, कुल अंक - 100
-समय - दो घंटे
नोट - दोनों प्रश्नपत्र बहुविकल्पीय प्रकार के होंगे। प्रश्नपत्र का स्वरूप हिंदी तथा अंग्रेजी में होगा।
गणित की तैयारी
गणित इस परीक्षा का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, जो सफलता और असफलता के बीच के अंतर को कम कर देता है। गणित विषय में छात्रों को दो प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक तो प्रश्न का उत्तर न जानने का और दूसरा जानते हुए भी सही उत्तर नहीं निकाल पाने का। पहली समस्या के समाधान के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता होती है, जबकि दूसरे प्रकार की समस्या के समाधान के लिए गणित के संक्षिप्त सूत्रों को अपनाना जरूरी होता है। पूरी परीक्षा वस्तुनिष्ठ प्रकार की होती है। सीमित समय में अधिक से अधिक प्रश्नों के उत्तर देने वाले अभ्यर्थी ही सफल होतेे हैं ।
गणित के प्रश्नों की संख्या पर निगाह डाली जाए, तो उसकी तस्वीर कुछ इस तरह की होती है।
-लाभ तथा हानि : इससे 5-6 प्रश्न पूछे जाते हैं। इसमें कई प्रकार के प्रश्न होते हैं, लेकिन एक बार सूत्रों को समझने और याद करने के बाद आप सभी प्रश्नोें के उत्तर बड़ी आसानी से दे सकते हैं।
-औसत - इससे संबंधित 4 से 5 प्रश्न आते हैं।
-अनुपात तथा समानुपात - इस अध्याय की तैयारी अच्छी तरह से करें, क्योंकि इस भाग से सबसे अधिक प्रश्न यानी 7-8 प्रश्न पूछे जाते हैं। अगर आप इसकी तैयारी कर लेते हैं, तो कम समय में अधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं।
-प्रतिशत - अंकगणित के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक है। इस भाग से कम से कम 6-7 प्रश्न पूछे जाते हैं।
-मिश्रण - इससे पूछे जाने वाले प्रश्न प्राय: किसी सस्ती तथा उससे मंहगी वस्तु को एक विशेष्ा अनुपात में मिलाकर बनने वाले मिश्रण से संबंधित होते हैं।
-समय तथा दूरी - इससे संबंधित प्रश्न काफी सरल होते हैं। अगर आप इनके सूत्रों को अच्छी तरह से तैयार कर लें तथा उन पर लगातार अभ्यास करेंगे, तो आप आसानी से उत्तर दे सकते हैं।
-चक्रवृद्धि ब्याज - पिछले कुछ वष्ाोंü से चक्रवृद्धि ब्याज से संबंधित प्रश्नों की संख्या अधिक आती है। यह भाग अपेक्षाकृत थोड़ा कठिन होता है, इससे संक्षिप्त सूत्र को कंठस्थ करके निरंतर अभ्यास करें।
-ज्यामिति - इससे संबंधित 12-13 प्रश्न होते हैं। अगर आप इनके सूत्रों को समझ जाते हैं, तो इन्हें आसानी से हल किया जा सकता है।
सामान्य ज्ञान की तैयारी
सामान्य ज्ञान भाग से मुख्यत: समसामयिकी पर आधारित प्रश्न होते हैं। इसके अतिरिक्त इतिहास, भूगोल, विज्ञान और आçथüक व्यवस्था से संबंधित प्रश्न भी पूछे जाते हैं। समसामयिकी में विगत एक वष्ाü की घटनाओं पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। उम्मीदवार को पिछले एक वष्ाü की घटनाओं को एक जगह संकलित कर उनको दोहराते रहना चाहिए। समसामयिकी के प्रश्नों के लिए अभ्यथीü को नियमित एक-दो समाचार पत्र और उच्च स्तर की किसी प्रतियोगी पत्रिका का अध्ययन करना चाहिए। इनमें खासकर आçथüक, राजनैतिक, खेल, विज्ञान पुरस्कार और महत्वपूर्ण समझौते संबंधित समाचारों पर ध्यान दें। परंपरागत प्रश्नों में इतिहास के लिए महत्वपूर्ण तिçथयां, राजवंश और उनके शासक के कार्यकाल और उनके द्वारा किए गए कायोZ, महत्वपूर्ण युद्धों की तिçथयों और उससे संबंधित घटनाओं को याद रखें। भूगोल के लिए राजनीतिक और प्राकृतिक पेपर पर ध्यान दें, जिसमें राजधानी और मुद्रा के साथ नदियों के उद्गम स्थल, प्रमुख जलप्रपात और बांध के नाम और वे किस नदी और किस देश में स्थित हैं, याद करें। विज्ञान विष्ाय की तैयारी के लिए मुख्यत: खोज और वैज्ञानिक यंत्र के साथ-साथ जीव विज्ञान पर विशेष्ा ध्यान दें, जिसमें मानव के शरीर से संबंधित विष्ायों पर विशेष्ा ध्यान दें।
nतर्कशक्ति परीक्षा- तर्कशक्ति परीक्षा बैंक परीक्षा का सबसे महत्वपूर्ण अंश होता है। यद्यपि यह सबसे आसान भाग होता है, लेकिन इसको हल करते समय उम्मीदवार के सामने, जो सबसे बड़ी समस्या आती है, वह है समय की, अत: अभी से कम समय में अधिक से अधिक प्रश्न हल करने का प्रयास करें। प्रश्नपत्रों का नियमित अभ्यास आपकी गति को बढ़ा सकता है। बस परीक्षा में भवन में गति के साथ-साथ शुद्धता पर भी ध्यान दें। इस भाग में मुख्यत: कोडिंग-डिकोडिंग, सेंटेंस अरेंजमेंट, रिलेशनशिप, शब्द पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं।
डी.पी.पाण्डेय
अगर आप सरकारी नौकरी चाहते हैं, तो आपको कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं पर नजर रखनी चाहिए। सरकारी नौकरी पाने का यह एक विश्वसनीय और आसान रास्ता है। प्रतिवर्ष स्टाफ सेलेक्शन कमीशन यानी कर्मचारी चयन आयोग की ओर से ढेर सारी नियुक्तियां आयोजित की जाती हैं। इस आयोग की स्थापना भारत सरकार केअंतर्गत की गई है। इसके माध्यम से सरकारी आफिसों और संगठनों में निचले पदों पर नियुक्ति प्रवेश परीक्षा के माध्यम से की जाती है।
आज भी आम मध्यवगीüय युवाओं के लिए सरकारी नौकरी एक सपना होती है। एसएससी की परीक्षाएं इस दिशा में एक सुनहरा मौका होती हैं। आप भी इन मौकों को हाथ से न जाने दें। बेहतर भविष्य की गारंटी हैं ये परीक्षाएं।
परीक्षाएं और पद
एसएससी की ओर से मंत्रालयों/सरकारी विभागों, भारत सरकार के अधीनस्थ संबद्ध कार्यालयों, सीएजी और अकाउंट जनरल के कार्यालय में गैर तकनीकी समूह `सी´ और नॉन गैजेटेड पदों पर समूह `बी´ में नियुक्तियां की जाती हैं। इस उद्देश्य से आयोजित परीक्षाएं हैं-
-कंबाइंड मैटि्रक लेवल एग्जामिनेशन।
-कंबाइंड ग्रैजुएट लेवल एग्जामिनेशन।
-सेक्शन ऑफिसर (कमर्शियल)।
-सेक्शन ऑफिसर (ऑडिट)।
-जूनियर ट्रांसलेटर (सीएसओएल)।
-जूनियर इंजीनियर (सीपीडब्लूडी)।
-इंवेस्टिगेटर (एनएसएसओ)।
-सेंट्रल पुलिस ऑगेüनाइजेशंस (एसआई) एग्जामिनेशन।
-टैक्स असिस्टेंट (इनकम टैक्स और सेंट्रल एक्साइज डिपार्टमेंट) एग्जामिनेशन।
स्कीम
इन सभी पदों के लिए कंबाइंड ग्रैजुएट और मैटि्रक लेवल परीक्षाएं प्रतिवर्ष आयोजित की जाती हैं। इनके लिए शैक्षिक योग्यता शतेZ क्रमश: ग्रैजुएशन और हाईस्कूल उत्तीर्ण होना है। ये प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार या शारीरिक कुशलता परीक्षण या स्किल टेस्ट के तीन चरणों में होती हैं। सेक्शन ऑफिसर्स और इन्वेस्टिगेटर जैसे पदों के लिए प्रारंभिक परीक्षानहीं होती।
सफलता के लिए जरूरी
एसएससी की सभी परीक्षाएं एक दिन में समाप्त हो जाती हैं। इसलिए इनकी तैयारी में धैर्य के साथ-साथ गति और समय सीमा का खयाल रखना बेहद जरूरी है। डॉ. एन.के शुक्ल केअनुसार कुछ खास बातें जो आपको इस एग्जाम में सफल बना सकती हैं।
परीक्षा के स्तर के अनुसार बेसिक तैयारी पर जोर दें। विज्ञान, गणित और अंगरेजी के सामान्य सिद्धांतों की खास तैयारी करें। प्रश्नपत्र के प्रारूप को लेकर सरप्राइज के लिए तैयार रहें। तकनीकी विषयों में पहले विस्तार और फिर बिंदुवार तैयारी करें। परीक्षा से पहले प्रश्नों की संख्या और निर्धारित समय के अनुसार कृत्रिम परीक्षाएं देकर तालमेल बिठाएं। जीएस के लिए अंतिम दिनों के घटनाक्रम पर भी नजर रखें।
प्रतिमा पांडेय
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>बढ़ती ही जा रही है माँग</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">बार
कौंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार हर साल 15 हजार से अधिक वकील अपना पंजीयन
कराते हैं और उनकी माँग लगातार बढ़ती ही जा रही है। हालाँकि वकीलों का काम
बहुत ज्यादा मुश्किल और चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यह कार्य उतना ही दिलचस्प
और संतुष्टिजनक भी है। यह बात अलग है कि इस पेशे की हकीकत हिन्दी फिल्मों
में दिखाए जाने वाले चकाचौंधपूर्ण पेशे से हटकर है। इस क्षेत्र में पैसा
भी खूब बरसता है, लेकिन यह सब रातोंरात नहीं होता, बल्कि अनुभव और विशेषता
से विश्वसनीयता और समृद्धि का ग्राफ ऊँचा उठता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>दो तरह से संभव है प्रवेश</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">विधि
क्षेत्र में दो तरह से प्रवेश लिया जा सकता है। एलएलबी की तीन साल की
डिग्री के लिए किसी भी विषय में 50 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक उपाधि
होना चाहिए। पाँच वर्षीय इंटिग्रेटेड लॉ प्रोग्राम के लिए न्यूनतम बारहवीं
तक शैक्षिक योग्यता जरूरी है। दिल्ली विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी तीन
वर्षीय लॉ डिग्री प्रदान करती है। मध्यप्रदेश के भी लगभग 90 महाविद्यालयों
और लगभग सभी विश्वविद्यालयों में यह पाठ्यक्रम चलाया जाता है। दिल्ली
विश्वविद्यालय में छात्रों को प्रवेश परीक्षा में प्रदर्शित निष्पादन के
आधार पर दिया जाता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यह
परीक्षा आब्जेक्टिव, बहुविकल्प प्रश्न-पत्रों तथा सामान्य ज्ञान और लीगल
एप्टीट्यूट पर आधारित होती है। इसके अलावा इसमें विधि संबंधित सामान्य
ज्ञान, विश्लेषण, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सामयिक घटनाओं, सामान्य
विज्ञान, भारतीय इतिहास, भूगोल, राजनीति तथा अर्थव्यवस्था पर भी प्रश्न
पूछे जाते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">विधि
विभाग में प्रतिवर्ष 1500 छात्रों को प्रवेश दिया जाता है, जिसमें 22.5
प्रतिशत सीटें एससी/ एसटी तथा 3 प्रतिशत सीटें विकलांगों के लिए आरक्षित
होती हैं। इस पूरे पाठ्यक्रम की फीस मात्र 4500 रुपए है। दिल्ली
विश्वविद्यालय में उच्च अध्ययन के लिए पूर्णकालिक तथा अंशकालिक एलएलएम की
कक्षाएँ भी संचालित की जाती हैं। इसकी फीस भी मामूली है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">स्कूल ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ </font><font style="font-size: 10pt;">इंडियन
यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) छात्रों को बार और कानून के अन्य करियरों हेतु
सुसज्जित करने के लिए पाँच वर्षीय इंटिग्रेटेड बीए-एलएलबी (ऑनर्स) संचालित
कर रही है। इसी तरह के पाँच वर्षीय पाठ्यक्रम इंदौर और भोपाल में भी चलाए
जा रहे हैं, जिनमें ऑल इंडिया इंटरेंस टेस्ट के माध्यम से प्रवेश दिया
जाता है। एनएलएसआईयू द्वारा 2 वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम भी चलाया जा रहा
है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ </font><font style="font-size: 10pt;">लॉ, हैदराबाद भी इसी पैटर्न के पाठ्यक्रम चला रही है। इसी तरह द यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ </font><font style="font-size: 10pt;">लॉ,
बंगलोर; गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ लॉ, मुंबई; लॉ कॉलेज, पुणे; बनारस हिन्दू
विश्वविद्यालय; इलाहाबाद विश्वविद्यालय; सीम्बियोसिस सोसाइटीज लॉ कॉलेज,
पुणे और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ, हैदराबाद द्वारा लॉ में प्रोफेशनल
डिग्री प्रदान की जा रही है। देश के 500 से अधिक कॉलेजों में हजारों छात्र
शिक्षा ले रहे हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>डिग्री के बाद</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">विधि
में उपाधि प्राप्त करने के बाद प्रत्याशी बार में अपना पंजीयन करवा सकते
हैं। इस समय नामांकन के लिए किसी तरह की आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई
है। लेकिन इस प्रोफेशन में उत्कृष्टता पाने के लिए विधिक ज्ञान, अध्यवसाय,
दृढ़ निश्चय, धैर्य के साथ-साथ अच्छी स्मरण शक्ति, बहस करने की क्षमता, गहन
तैयारी तथा बेहतर प्रस्तुतीकरण क्षमता आवश्यक है। </font><br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/1227/default.asp" target="_blank">स्रोत : नईदुनिया अवसर</a></html>
<html><div id=":c7" class="ArwC7c ckChnd"><font color="#191970" face="AU" size="5"><b> </b></font><img src="http://www.amarujala.com/newcareer/image/20090122/br1.jpg" align="left" border="0">
<font color="#191970" face="AU" size="4">
</font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">बराक
ओबामा, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, डॉ भीमराव अंबेडकर को जो बात समान
बनाती है, वह है इन सभी का लॉ ग्रेजुएट होना। एक समय था जब कानून को पेशे
के तौर पर अपनाने वाले कम ही लोग देखने को मिलते थे। लेकिन आज ऐसा नहीं
है। आज लॉ के क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए बड़ी तादाद में युवा सामने आ
रहे हैं। इसकी मुख्य वजह समाज और देश सेवा के साथ-साथ कमाई और मिलने वाला
सम्मान है। आज कानून के क्षेत्र में कई नए आयाम और विषय जुड़ रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर पेटेंट, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट, इनवायर्नमेंट,
ह्यूमन राइट आदि। न्याय व दूसरी वैधानिक जरूरतों को पूरा करने के लिए
सरकार, कॉरपोरेट्स, मल्टी नेशनल कंपनियों, व विभिन्न संगठनों द्वारा
कानून के जानकारों की मांग की जाती है। पहले लॉ की पढ़ाई के लिए ग्रेजुएट
छात्र ही योग्य माने जाते थे। लेकिन अब बारहवीं केबाद भी स्टूडेंट पांच
वर्षीय प्रोग्राम के तहत लॉ की पढ़ाई कर सकते हैं। </font></font></div><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><br>
<table align="right" bgcolor="#000000" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" width="35%"><tbody><tr>
<td align="top" bgcolor="#d5d5ff" width="100%">
<table border="0" width="99%"><tbody><tr><td>
<div align="justify"><font style="text-align: left;" color="black" face="AU" size="4"><img src="http://www.amarujala.com/newcareer/image/startquote.gif" align="top" width="10"> देश
के ग्यारह राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए कैट की तर्ज
पर कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (क्लैट) का आयोजन किया जाने लगा है। 17 मई को
आयोजित होने जा रही इस परीक्षा में भाग लेने वाले उम्मीदवारों के लिए यह
समय क्लैट की तैयारी की सफल रणनीति बनाकर उस पर खरा उतरने का है, बता रही
हैं ज्योत्सना सिंह। </font><img src="http://www.amarujala.com/newcareer/image/endquote.gif" align="top" width="10"></div>
</td></tr>
</tbody></table></td></tr>
</tbody></table>
</font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">देशभर
में कुल ग्यारह राष्ट्रीय लॉ स्कूल हैं। इनमें प्रवेश के लिए इस वर्ष
हैदराबाद स्थित नालसर यूनिवर्सिटी क्लैट-2009 की परीक्षा 17 मई, 2009 को
आयोजित कर रही है। वर्ष 2008 से पूर्व तक सभी संस्थानों में अलग-अगल
प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती थी। लेकिन वरुण भगत की याचिका पर गौर करते
हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्टूडेंट्स को विभिन्न संस्थाओं की परीक्षाओं
के तनाव व आर्थिक खर्च से बचाने के लिए मैनेजमेंट संस्थानों के लिए कैट की
तर्ज पर राष्ट्रीय स्स्थाांनों में प्रवेश के लिए कॉमन एडमीशन का प्रावधान
बनाया।</font></font></font></div><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br></font></font></font><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">परीक्षा में शामिल होने की योग्यता</font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">कॉमन
लॉ एडमिशन में बैठने के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को 50 प्रतिशत
अंकों केसाथ बारहवीं अथवा समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। क्लैट
परीक्षा में बैठने के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों की अधिकतम आयुसीमा
20 वर्ष और अन्य वर्गों के लिए 22 वर्ष है। रायपुर स्थित हिदायतुल्लाह
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एस शांताकुमार के अनुसार 'परीक्षा में
उम्मीदवार की अपने विषय की समझ व कानून विषय की पढ़ाई के लिए जरूरी
एप्टीट्यूड की जांच की जाती है। इसके लिए प्रवेश परीक्षा के प्रश्नपत्र
में एप्टीट्यूड संबंधी कई प्रश्न पूछे जाते हैं।' इस बात को स्वीकार करते
हुए नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूडिशियल साइंसेज, कोलकाता में लेक्चरर ए
मजूमदार कहते हैं 'किसी स्टूडेंट के चयन के दौरान उनकी विश्लेषण क्षमता,
तर्क करने का कौशल और कम्युनिकेशल स्किल की जांच करते हैं, जो एक वकील में
होना जरूरी है।'</font></font></font></font></font></font></div><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">रोजगार के क्षेत्र</font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify">
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">प्रो
शांताराम बताते हैं 'आज तहसील, जिला और राज्य स्तर तक ही लीगल प्रैक्टिस
सीमित नहीं है। ग्लोबल स्तर पर भी वकीलों के लिए कई नई संभावनाएं पैदा हुई
हैं। आवश्यक कौशल और जानकारी रखने वालों के लिए अवसरों की कोई कमी नहीं
है। झगड़ों का निपटारा करने, समझौते, मध्यस्थता आदि के अलावा सूचना
प्रौद्योगिकी, बायोटेक्नोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी, इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी
राइट, मानव अधिकारों की सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय व्यापार व निवेश, विलय व
अधिग्रहण, प्रतिस्पर्धा विवाद, पेटेंट आदि ऐसे नए क्षेत्र हैं, जिनमें लॉ
स्टूडेंट्स की रुचि बढ़ रही है। वर्तमान में देश में लॉ स्टूडेंट्स को न
सिर्फ आकर्षक व ऊंचे सैलरी पैकेज ऑफर किए जा रहे हैं, बल्कि स्टूडेंट्स
को कैंपस प्लेसमेंट में विदेशी कंपनियों द्वारा भी नौकरी के लिए चुना जा
रहा है। आने वाले सालों में भारत से काम संचालित करने वाली विदेशी लॉ
फर्मों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी। लॉ फर्म, बैंक, इंश्योरेंस कंपनीज,
मल्टीनेशनल कंपनियां, एलपीओ, लीगल जर्नलिज्म आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जहां लॉ
स्टूडेंट्स के लिए आकर्षक अवसर हैं।</font></font></font></font></font></font></font></font></font></div><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">कैसे करें तैयारी</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">क्लैट
परीक्षा की तैयारी के लिए सबसे पहले पूर्व वर्षों के पेपर अवश्य देख लें।
अपना शब्दकोष बढ़ाएं और पढ़ने की गति तेज करें। नियमित अखबार व
पत्र-पत्रिकाएं पढ़ें। अंगरेजी वाले भाग में क्लैट परीक्षा उत्तीर्ण करने
के लिए भाषा पर अच्छी पकड़ होनी जरूरी है। प्रश्नपत्र में वाक्य सुधार,
वर्बल एबिलिटी के अलावा अधूरे वाक्यों को पूरा करें, एंटानिम्स,
सिनोनिम्स, इडियम, फ्रेजेज आदि के माध्यम से परीक्षार्थियों की
अवधारणात्मक समझ को जांचा जाता है। लॉजिकल रीजनिंग के भाग में परीक्षार्थी
की विश्लेषण क्षमता, तार्किक एटीट्यूड को जांचा जाता है। सामान्य जानकारी
के प्रश्न हल करने के लिए सम-सामायिक घटनाओं पर नजर रखना जरूरी है। लीगल
एप्टीट्यूड में सामान्य संवैधानिक विधि-विधानों और कुछ तथ्यात्मक जानकारी
की अपेक्षा की जाती है।</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">क्लैट-2009</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">-परीक्षा की तिथि: 17 मई, 2009</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">-फॉर्म जमा कराने की अंतिम तिथि: 10 अप्रैल, 2009</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली फैकल्टी ऑफ लॉ</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">-एलएलबी/एलएलएम-2009</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">-फॉर्म की बिक्री प्रारंभ: 2 फरवरी</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">-फॉर्म जमा कराने की अंतिम तिथि: 9 मार्च </font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">-एलएलबी प्रवेश परीक्षा की तिथि: 22 मार्च</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">-एलएलएम प्रवेश परीक्षा की तिथि: 29 मार्च</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली </font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">कॉमन एंट्रेंस टेस्ट</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">एलएलएम: 9 जून, 2009</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">बीए, एलएलबी(ऑनर्स) / बीबीए, एलएलबी (ऑनर्स): 9 जून, 2009</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify"><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">फॉर्म की बिक्री: 1 फरवरी से शुरू </font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify">
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">रैंकिंग</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify">
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">लॉ स्कूल ट्यूटोरियल ने भारत के लॉ स्कूलों की टीयर स्लैब के अनुसार रैंकिंग की है। रैंकिंग इस प्रकार है:</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font><div align="justify">
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">टीयर-1 </font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
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<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">एनएलएसआईयू, बंगलुरू, नालसर, हैदराबाद, एनयूजेएस, कोलकाता</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
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<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">टीयर-2</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
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<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">एनएलआईयू, भोपाल, एनएलयू जोधपुर, दिल्ली फैकल्टी अॅाफ लॉ</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
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<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">टीयर-3</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
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<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">क्राइस्ट
कॉलेज ऑफ लॉ, आईएलएस पुणे, सिम्बायोसिस पुणे, जीएनएलयू, गांधीनगर, जीएलसी
मुबंई, एचएनएलयू, रायपुर, यूपीईएस, देहरादून, एनयूएएलएस कोचीन, एमिटी लॉ
स्कूल, भारती विद्यापीठ यूनिवर्सिटी, पुणे</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
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<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">टीयर-4</font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><br>
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<font color="#191970" face="AU" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font face="au" size="4"><font style="text-align: left;" face="au" size="4">फैकल्टी
ऑफ लॉ, बीएचयू, यूएलसी बंगलुरू, आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, मोहाली, केरल
लॉ अकेडमी, के आईआईटी लॉ स्कूल, भुवनेश्वर, द न्यू ज्यूरिस अकेडमिया लॉ
स्कूल, एयूएएलएस, कोच्चि सीएनएलयू, पटना, आरएमएलएनएलयू, लखनऊ, आरजीएनयूएल
पटियाला<br><br><span style="color: rgb(25, 25, 112); font-weight: bold;">स्रोत : अमर उजाला</span><br></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></font></div>
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कृषि विज्ञान अपने-आप में एक संपूर्ण दुनिया है। इसमें पौधों केजीवन से लेकर पशुपालन तथा जलजीव आदि तक से जुड़े विषयों की शिक्षा, शोध तथा अनुसंधान पर मुख्य रूप से बल दिया जाता है।
बदलते वक्त के साथ कृषि में इंजीनियरिंग, बैंकिंग, माकेüटिंग जैसे पहलू भी शामिल हो गए हैं। नई तकनीक के साथ ही कृषि में रोजगार के नए क्षेत्र सामने आए हैं। प्रस्तुत है प्रतिमा पांडेय का आलेख
वैसे कृषि केक्षेत्र को कैरियर की मुख्य धारा में शामिल नहीं किया जाता। पर यह जानकारी का अभाव ही कहा जाएगा, क्योंकि निवेश, अनुसंधान और तकनीक के लिहाज से इस समय कृषि क्षेत्र केंद्र में है। इस क्षेत्र में आप ग्रैजुएशन करके शुरुआत कर सकते हैं। कृषि केक्षेत्र में कोर्स उपलब्ध करा रहे बहुत से प्रतिçष्ठत विश्वविद्यालय हैं। हालांकि यह भी सही है कि इस क्षेत्र में आप फील्ड में रहकर जो सीख सकते हैं, उसे क्लासरूम शिक्षा के आधार पर सिखाया नहीं जा सकता। लेकिन औपचारिक प्रशिक्षण जरूरी है।
कार्य-विस्तार
कृषि के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को इंस्पेक्शन और रेगुलेशंस, बीजों और खाद की खरीद में किसानों को सुरक्षा प्रदान करना, सार्वजनिक स्वास्थ्य के उपयुक्त वगीüकरण करना, खाद्यान्न और चारे का प्रबंधन करना, केमिकल्स, बीज और खादों के वितरण, क्वालिटी कंट्रोल, कृषि सलाहकारिता, डाटा कलेक्शन, पशुधन की सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियां, अंतरराष्ट्रीय खाद्य सेवाओं संबंधी कार्य करने होते हैं।
फामिZग के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। इस क्षेत्र में काफी संख्या में निवेश और तकनीकी जानकारी की आवश्यकता होगी। संरक्षण केक्षेत्र में भी कृषि वैज्ञानिकों की खास भूमिका होती है। स्थान विशेष की मृदा, जल, जंगल, मत्स्य, वन्य प्राणी, वनस्पति संरक्षण के क्षेत्र में उनकेलिए खूब चैलेंजेज होते हैं। उनके विकास और पुनस्थाüपन की योजना बनाना भी उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा होती है।
पर्यावरण के क्षेत्र में एक कृषि वैज्ञानिक उद्योगों, घरेलू और सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले जल के उपयोग को व्यवस्थित करने, उसके नियम बनाने आदि में काम करता है। वह बाढ़ नियंत्रण, जल संवहन, प्रदूषण नियंत्रण और झीलों व जलधाराओं के विकास संबंधी कार्य भी करता है।
एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग
कृषि अभियंता उपयोगी मशीनरी को बेहतर बनाने केप्रयोगों से लेकर, कृषि उपकरणों के निर्माण व उत्पादन का कार्य देखते हैं। इसके अलावा खेतों के ढांचे को फसल की दृष्टि से अधिक लाभदायी बनाने, मृदा व जल संरक्षण, ग्रामीण इलाकों के विद्युतीकरण, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण आदि पर भी काम करते हैं।
योग्यता व अवसर
विज्ञान विषयों से बारहवीं के बाद बीएससी (कृषि) की डिगरी लेकर आप एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट, बायोडायवçर्सटी, पर्यावरण आदि के क्षेत्र में नियुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। बैचलर ऑफ वेटरिनरी साइंस ऐंड एनिमल हस्बैंड्री की डिगरी के बाद आपको पशुचिकित्सा, औषधि निर्माता कंपनियों, डेयरी फामोZ, पशुशालाओं, चिçड़याघरों में नियुक्ति मिलती है। कृषि इंजीनियरिंग में बीएससी या बीटेक डिगरी के बाद आप एग्रीकल्चर प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों में नियुक्ति केअलावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं राज्य कृषि अनुसंधान परिषद में भी कार्यरत हो सकते हैं। इसी प्रकार बीटेक (डेरी टेक्नोलॉजी), फिशरीज, हॉर्टीकल्चर, फॉरेस्ट्री, सेरीकल्चर, एग्रोमाकेüटिंग, बैंकिंग ऐंड कोऑपरेशन में बीएससी डिगरी करने के बाद आपको संबंधित क्षेत्र में नियुक्तियां आसानी से प्राप्त हो सकती है। अगर आप एग्रीकल्चर साइंस, इकोनॉमिक्स और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त हैं, तो कृषि व्यापार में लगी कंपनियों में आपके लिए अवसर बन सकते हैं। लेकिन कॉलेज टीचिंग या कृषि विकास के क्षेत्र में जाने के लिए आपको पीजी स्तर पर शिक्षा प्राप्त करनी होगी। बहुत सी सरकारी एजेंसियां, राज्यों के कृषि विभाग, बैंक, विभिन्न व्यापारिक फमोंü में भी कृषि विज्ञान के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं को नियुक्ति प्राप्त होती है। फॉरेस्ट्री के क्षेत्र में हुई हरित क्रांति ने एग्रीकल्चर इंजीनियर्स के लिए कई अवसर बनाए हैं।
संरक्षण और मनोरंजन, जिसमें पर्यटन, गोल्फ कोर्स का विकास, कमर्शियल नर्सरीज, लैंडस्केप और सार्वजनिक मनोरंजन के क्षेत्र में भी कृषि वैज्ञानिकों के लिए अनेक अवसर हैं।
शिक्षा
इस समय देश में लगभग 27 राज्य आधारित कृषि विश्वविद्यालय हैं। एक सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवçर्सटी है। सामान्य यूनिवçर्सटी के तहत 35 एग्रीकल्चरल कॉलेज हैं। इनमें एक दर्जन क्षेत्रों में अंडरग्रैजुएट कोर्स कराए जा रहे हैं।
स्नातक स्तर के पाठKक्रमों में मुख्य रूप से बीएससी (कृषि), बीटेक (कृषि इंजीनियरिंग), बीएससी (वानिकी), बीएससी (फिशरीज) व बीएससी (डेयरी टेक्नोलॉजी) प्रमुख हैं। इन पाठKक्रमों की कुल सीटों केलगभग 15 फीसदी सीटों केलिए प्रतिवर्ष अखिल भारतीय स्तर की चयन परीक्षा का आयोजन किया जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा संचालित इस परीक्षा में विज्ञान विषयों समेत बारहवीं पास छात्र शामिल हो सकते हैं। शेष 85 फीसदी सीटों के लिए प्रादेशिक स्तर पर होने वाली चयन परीक्षा के माध्यम से दाखिले दिए जाते हैं। कई विश्वविद्यालय विशेष रूप से एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में कोर्स उपलब्ध करा रहे हैं। इसकी अवधि 4 से 5 साल तक हो सकती है। इस कोर्स में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स या एग्रीकल्चर की बैकग्राउंड वाले छात्रों को प्रवेश दिया जाता है।
फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी या एग्रीकल्चर को वैकçल्पक विषय केतौर पर लेकर बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद आप एग्रीकल्चर में ग्रैजुएट डिगरी व पोस्ट ग्रैजुएट डिगरी लेकर अपने कैरियर की शुरुआत कर सकते हैं, जबकि फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स विषयों के साथ बारहवीं के बाद एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग, डेरी टेक्नोलॉजी, फूड साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी, एग्रीकल्चरल माकेüटिंग, बैंकिंग ऐंड को-ऑपरेशन विषयों में से किसी एक में ग्रैजुएशन करके भी आप इस क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा सकते हैं।
अगर आपको हॉर्टीकल्चर, फॉरेस्ट्री, फिशरीज या सेरीकल्चर जैसे क्षेत्रों में रुचि है, तो बारहवीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी या वैकçल्पक विषय के तौर पर एग्रीकल्चर लेकर बारहवीं के बाद अपने रुचि के क्षेत्र में डिगरी ले सकते हैं।
एग्रीकल्चर से ग्रैजुएशन के बाद पीजी स्तर पर एग्रीकल्चर मैनेजमेंट, रूरल मैनेजमेंट या ऐेसे ही किसी अन्य संबंधित क्षेत्र में स्पेशलाइज कर सकते हैं।
प्रमुख विश्वविद्यालय
-नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीटKूट, करनाल, हरियाणा।
-सेंट्रल इंस्टीटKूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन, मुंबई।
-इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटKूट, पूसा, नई दिल्ली।
प्रमुख कॉलेज
-चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा।
-राजा बलवंत सिंह कॉलेज, आगरा।
-अलीगढ़ यूनिवçर्सटी, सेंटर ऑफ एग्रीकल्चर, अलीगढ़।
-इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटKूट, पीओ एग्रीकल्चर इंस्टीटKूट, इलाहाबाद।
-बीएचयू इंस्टीटKूट ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज, वाराणसी।
-चंद्रशेखर आजाद, कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर।
-पं. गोबिंद बल्लभ पंत कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, नैनीताल।
-इंस्टीटKूट ऑफ एडवांस स्टडीज, फैकल्टी ऑफ एग्रीकल्चर (डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर बॉटनी), मेरठ।
-कॉलेज ऑफ हॉर्टीकल्चर ऐंड फॉरेस्ट्री, सोलन।
-पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।
-कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, पालमपुर।
प्त प्रतिमा पांडेय
एमबीए की पहली सीढ़ी
आज हर क्षेत्र में व्यावसायिक कुशलता को महत्व दिया जा रहा है। इस दौर में प्रबंधन (मैनेजमेंट) के क्षेत्र मेंं जाने के लिए किसी भी संस्थान या विश्वविद्यालय की डिगरी या स्नातकोत्तर डिप्लोमा एक आवश्यकता सी बन गई है। यहां तक कि आज इंजीनियरिंग की डिगरी लेकर भी छात्र एमबीए कर रहे हैं। ऐसे में सिर्फ बीए, एमए की डिगरी का महत्व बहुत कम रह गया है। खासतौर पर शानदार कैरियर के लिए तो यह कोर्स बहुत बड़ी जरूरत बन चुका है।
मैट की राह
कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) या मैनेजमेंट एप्टीटKूड टेस्ट (मैट) के जरिये प्रबंधन के कोर्स में प्रवेश पाया जा सकता है। लेकिन जिस तरह प्रबंधन की तरफ ज्यादातर स्नातकों का रुझान होने लगा है और जिस तरह नौकरियों के लिए प्रबंधन की डिगरी या स्नातकोत्तर डिप्लोमा की अनिवार्यता बढ़ने लगी है, उसे देखते हुए एमबीए कोर्स में प्रवेश पाना भी कठिन होता जा रहा है।
प्रबंधन का कैरियर चुनने वाले अत्यंत प्रतिभाशाली युवाओं के लिए कैट बेहतर विकल्प है। लेकिन जो युवा कैट में कुछ कोशिशों के बाद अब और समय नहीं गंवाना चाहते हैं, उनके लिए मैट एक बेहतर विकल्प है। कैट और मैट के बारे में बात करने से पहले यह बता देना उचित होगा कि कैट के जरिये देश के सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन संस्थानों में प्रवेश पाया जा सकता है। कैट के माध्यम से श्रेष्ठता में समकक्ष दूसरे दर्जनों संस्थानों में भी प्रवेश मिल सकता है, इसीलिए कैट तुलनात्मक रूप से कठिन परीक्षा है। पर यह भी सच है कि किसी कठिन परीक्षा की तैयारी यदि कर ली जाए, तो बनिस्बत थोड़ी आसान परीक्षा को पास करना कठिन नहीं रह जाता। बहरहाल, प्रबंधन के क्षेत्र में जाने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए यही सुझाव है कि वे कैट की तैयारी करें। अगर प्रवेश परीक्षा पास कर लें, तो बेहतर और अगर सफलता न मिले, तो यही तैयारी आपको मैट के लिए काम आएगी।
शैक्षिक योग्यता
कैट की प्रवेश परीक्षा पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा के अलावा प्रबंधन के कई अन्य कोसोüं के लिए भी होती है। इस प्रवेश परीक्षा में कोई भी स्नातक बैठ सकता है, चाहे वह स्नातक स्तर की अंतिम वर्ष की परीक्षा दे रहा हो या किसी भी उम्र का कामकाजी हो (बशतेü स्नातक हो) और स्नातक स्तर पर उसने न्यूनतम 50 फीसदी अंक प्राप्त किए हों।
परीक्षा का प्रारूप
कैट की तैयारी को मोटे तौर पर तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहला-क्वांटिटेटिव एप्टीटKूड (गुणात्मक अभिरुचि), जिसे सामान्य बोलचाल में गणित संबंधी तैयारी कहा जा सकता है। दूसरा, डेटा इंटरप्रिटेशन (आंकड़ों की व्याख्या) और लॉजिकल रीजनिंग (तार्किक विवेचन), तीसरा वबüल एबिलिटी (मौखिक क्षमता), जिसे अंगरेजी विषय की तैयारी कहा जा सकता है। क्वांटिटेटिव एप्टीटKूड में गणित संबंधी कोर्स होता है, जो
सामान्यत: 10वीं, 11वीं और 12वीं के पाठKक्रम पर आधारित होता है। इसके तहत गणित के प्रश्न उच्च स्तर के न होकर बुनियादी होते हैं। इसमेंं आपकी तर्क क्षमता को आंका जाता है। डेटा इंटरप्रिटेशन में फैक्ट्स और फिगर्स के साथ और सामान्यत: ग्राफ आदि पर आधारित प्रश्न होते हैं। लॉजिकल रीजनिंग में पजल की तरह के यानी पहेलीनुमा सवालों को अपनी तर्कक्षमता से हल करना होता है। जबकि वबüल एबिलिटी में अंगरेजी विषय में आपकी शाçब्दक और भाषा संबंधी योग्यता का आकलन किया जाता है। इसमें अंगरेजी के शब्दों का ज्ञान व व्याकरण की जानकारी आपके लिए मददगार साबित होती है। रीडिंग कॉçम्प्रहेंशन के सेक्शन में अंगरेजी के पैराग्राफ दिए होते हैं। उन्हें पढ़कर तय समय में उत्तर देना होता है, इसमें आपकी तेजी से पढ़ने की योग्यता काम आती है।
मैट
मैनेजमेंट एप्टीटKूड टेस्ट (मैट) की परीक्षा एमबीए और उसके समकक्ष प्रबंधन कार्यक्रमों के लिए होती है। यह साल में चार बार आयोजित होती है, जनवरी, मई, सितंबर और दिसंबर में। यह परीक्षा देश के सभी प्रमुख शहरों में और देश से बाहर 12 शहरों में आयोजित की जाती है। मैट का प्रश्नपत्र ढाई घंटे का होता है।
प्रश्नपत्रों के खंडों में प्रमुख हैं, लैंग्वेज कॉçम्प्रहेंशन (भाषा-बोध), क्वांटिटेटिव एबिलिटी (गणित की समझ और योग्यता), डाटा इंटरप्रिटेशन (आंकड़ों का विश्लेषण और क्षमता), इंटेलीजेंस ऐंड क्रिटिकल रीजनिंग (बौद्धिक क्षमता व विवेचन की क्षमता), इंडियन ऐंड ग्लोबल एन्वायरमेंट (भारत और विश्व संबंधी सामान्य ज्ञान) और जनरल स्टडीज। इस तरह देखें, तो कैट और मैट के सवालों का दायरा एक है। इससे स्पष्ट है कि कैट की तैयारी करते हुए आपकी मैट की तैयारी खुद-ब-खुद हो जाती है। सामान्य ज्ञान और समसामयिक विषयों की तैयारी अखबार और पत्रिकाएं पढ़तेहुए अलग से हो सकती हैं। यह तैयारी कैट की परीक्षा के बाद जीडी और इंटरव्यू की खातिर आपको करनी ही होती है। तैयारी के मंत्रजहां तक कैट का प्रश्न है, यहां एक बात और बता देना उचित होगा कि इस परीक्षा के लिए कोई निश्चित पाठKक्रम नहीं होता। इसलिए कुछ चीजें रटकर या समझकर इसे पास नहीं किया जा सकता। इसमें सबसे बड़ी जरूरत होती है अंगरेजी भाषा में लगातार सुधार करने की और पढ़ने की रफ्तार बढ़ाने की। इसी तरह बुनियादी स्तर की गणित को बेहतर ढंग से समझ लेना जरूरी है और डेटा इंटरप्रिटेशन के लिए बहुत तेजी से डेटा पढ़कर उन्हें हल करने का अभ्यास भी जरूरी है। रीजनिंग वाले प्रश्नों के लिए भी निरंतर अभ्यास की जरूरत होती है। कैट में प्रश्नों का ट्रेंड लगातार बदलता जा रहा है। कु छ वर्ष पहले तक 150 से 180 प्रश्न आया करते थे। इधर के वषोZ में प्रश्नों की संख्या घटती जा रही है। 2006 की कैट परीक्षा में सिर्फ 75 प्रश्न दिए गए थे। 2006 से प्रश्नपत्र हल करने के लिए दिया जाने वाला समय भी बढ़कर ढाई घंटे हो गया है, जो पहले दो घंटे का था। शायद इस तरह की रणनीति के पीछे उद्देश्य ज्यादा प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अवसर देना भी हो सकता है। ऐसे प्रतिभाशाली विद्यार्थी, जो बिना कोचिंग के भी प्रवेश परीक्षा पास करने में सक्षम हों। कैट या मैट की परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों को कुछ बातों पर खासतौर पर गौर करना चाहिए। इस तरह की कुछ टिप्स हम यहां दे रहे हैं। हालांकि कैट की परीक्षा तो इतनी फुलप्रूफ होती है कि इसमें परीक्षा पास कर लेने का कोई शॉर्ट कट नहीं है, जो टिप्स केरूप में दिया जा सके। तैयारी और सावधानी संबंधी टिप्स ही आपके लिए उपयोगी हो सकते हैं।
-अपनी तैयारी छह-आठ महीने पहले शुरू कर दें।
-परीक्षा से संबंधित बुनियादी प्रश्नों और समस्याओं को पहले हल करना शुरू करें।
-आप अपनी तैयारी किसी भी इंस्टीटKूट की पाठKसामग्री से कर सकते हैं।
-इंस्टीटKूट के पेपर आदि के लिए नामांकन करा लें।
-आप पैकेज घर ले जा सकते हैं या मॉक टेस्ट दे सकते हैं।
-इस तैयारी को रोजाना कुछ समय दें, ताकि अभ्यास बना रहे।
-हर हफ्ते अपनी परफॉरमेंस देखें और अपनी कमजोरियों का आकलन करें।
-पिछले वषोZ के कैट के परचे देखते रहें।
-प्रश्नों को दी गई समय-सीमा में हल करने का अभ्यास करें।
-तीनों खंडों के प्रश्नों को हल करना जरूरी है, क्योंकि तीनों में अलग-अलग पास होने से ही आप कैट की परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं।
-चूंकि दबाव में काम करने की योग्यता और समय का प्रबंधन किसी भी मैनेजर के लिए जरूरी है, इसलिए इस परीक्षा के लिए टाइम मैनेजमेंट बहुत महत्वपूर्ण है। तीनों प्रश्नपत्रों को बराबर समय देने केलिए ही नहीं बल्कि हर एक प्रश्न को समय देने की दृष्टि से इस परीक्षा में आपकी योग्यता का आकलन किया जाता है।
-प्रश्नपत्र को पहले तीन-चार मिनट पढ़ें और दिए गए निर्देशों को खासतौर से ध्यान से पढ़ें।
-यदि कोई प्रश्न आधे मिनट में हल नहीं होता है, तो उसे छोड़ दें, क्योंकि समय का आपने ध्यान रखना है।
नवंबर माह से लेकर दिसंबर तक कैट, मैट, स्नैप, एनमैट जैसी कई प्रबंधन परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। मैनेजमेंट कोर्स में दाखिले की प्रतिçष्ठत परीक्षा कैट के अलावा मैट (मैनेजमेंट एप्टीट्यूड टेस्ट) का अपना विशेष्ा महत्व है। मैट ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (एआईएमए) द्वारा आयोजित की जाने वाली महत्वपूर्ण परीक्षा है। आने वाले दो दिसंबर को यह परीक्षा होगी। यह परीक्षा वष्ाü भर में चार बार फरवरी, मई, सितंबर तथा दिसंबर में होती है। इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के पश्चात लगभग 120 प्रमुख बिजनेस स्कूलों में दाखिला मिल सकता है। यदि आप भी मैनेजमेंट को अपनाना चाहते हैं, तो विकल्प के रूप में मैट आपके सामने है।
प्रबंधन में जाने के लिए कैट के अलावा मैट भी एक अच्छा विकल्प है। इसे कैट परीक्षा से कम न समझें।
शैक्षिक योग्यता
मैट में वही छात्र बैठ सकते हैं, जिन्होंने स्नातक की परीक्षा 50 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की हो। इसके अलावा स्नातक की अंतिम वष्ाü की परीक्षा में बैठने वाले छात्र भी इसके लिए योग्य माने जाते हैं। यहां पर यह ध्यान देना आवश्यक है कि स्नातक परीक्षा में न्यूनतम प्रतिशत का नियम प्रयोग में लाया जाता है।
परीक्षा का प्रारूप
यह परीक्षा 200 अंकों की होती है तथा इसके लिए ढाई घंटे का समय निधाüरित किया गया है। वस्तुनिष्ठ परीक्षा के रूप मेें आयोजित होने वाली यह परीक्षा निगेटिव मार्किंग पर आधारित है। अथाüत गलत उत्तर दिए जाने पर एक चौथाई अंक काट लिए जाएंगे। इसमें रीडिंग कॉçम्प्रहेंशन, डाटा इंटरप्रिटेशन, क्वांटिटेटिव एबिलिटी, लॉजिकल एेंड क्रिटिकल रीजनिंग, सामान्य अध्ययन आदि विषयों से संबंधित प्रश्न होते हैं। इस परीक्षा में कुल 200 प्रश्न पूछे जाते हैं। परीक्षा पांच भागों में बांटी गई है। इन पांचों भागों में से प्रत्येक से 40-40 प्रश्न पूछे जाते हैं।
रीडिंग कॉçम्प्रहेंशन : कैरियर लॉन्चर के एकेडेमिक मेंटर अर्जुन बाधवा के अनुसार इस भाग में पूछे जाने वाले प्रश्न अथüव्यवस्था, दवा उद्योग, विज्ञान, समाज शास्त्र, इतिहास आदि से संबंधित होते हैं। प्रश्न पत्र की भाषा अंंगरेजी होती है, तथा इनका टॉपिक भी इन्हीं विषयों पर आधारित होता है। बड़े-बड़े पैसेज दिए जाते हैं और उन्हीं में से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। चूंकि इनमें दिए गए पैसेज बड़े होते हैं, अत: उनको पढ़ने में अधिक समय खर्च होता है। इसमें यह ध्यान देना होता है कि उसे पूरा न पढ़कर केवल मुख्य बिंदुओं को आत्मसात कर लिया जाए तथा उसी के आधार पर उत्तर देकर समय की बचत करें। इसमें सवालों की तादाद ज्यादा होती है। अत: तत्काल निर्णय लेना होता है। इस खंड में ज्यादातर गलतियां दो तरह से होती हैं, कैलकुलेशन मिस्टेक तथा सेलेक्शन प्रॉब्लम। अकसर समय के अभाव में कुछ सवाल आते हुए भी नजर में नहीं आते। इसलिए पहली कोशिश यह करें कि सभी प्रश्नों पर एक नजर अवश्य दौड़ाएं। कोशिश यही करें कि आपके ऊपर दबाव हावी न हो। नहीं तो अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे।
क्वांटिटेटिव एबिलिटी : यह भाग गणित पर आधारित होता है, जिसमें यह भाग तभी हल हो पाता है, जब आपको कॉन्सेप्ट की जानकारी पूरी तरह से हो। इसे हल करते समय विशेष सावधानी की भी जरूरत पड़ती है।
लॉजिकल एेंड क्रिटिकल रीजनिंग : लॉजिकल वाले भाग में प्रश्न तार्किक विवेचना पर आधारित होेते हैं। रीजनिंग प्रवृत्ति के अंतर्गत वबüल व नॉन वबüल प्रकृति से संबंधित प्रश्न दिए जाते हैं। पिछले प्रश्नपत्रों के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रश्न काफी घुमावदार होते हैं। इन्हें रटने के बजाय समझने का प्रयास करें।
सामान्य अध्ययन : प्रूडेंस एकेडेमी के डायरेक्टर मनोज सिंह के अनुसार जीएस के प्रश्नपत्र मेें देश के अलावा विदेश से भी जुड़ी हलचलों पर जानकारी मांगी जाती है। बिजनेस से जुड़ी खबरें भी इसी खंड का हिस्सा होती हैं। इसकी तैयारी के लिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं, करेंट अफेयर्स बुक्स के अलावा जी.के. विद डेरिक (6 वॉल्यूम), करेंट इकोनॉमी, इकोनॉमिक टाइम्स, इंडिया फिजिकल ऐंड जियोग्राफिकल व बिजनेस की खबरों वाले प्रतिçष्ठत अखबारों से जानकारियां जुटानी चाहिए। इसके माक्र्स इंटरव्यू में काउंट किए जाते हैं।
तैयारी कैसे करें
-अध्ययन सामग्री को लेकर अधिक भ्रमित न हों।
-समाचार पत्र, पत्रिकाओं में दिए गए संपादकीय लेख तथा बिजनेस की खबरों को नजरअंदाज न करेें।
-अध्ययन सामग्री के रूप में एनसीईआरटी की पुस्तकें बहुत लाभकारी होती हैं। इसके अलावा ग्रामर, इतिहास, भूगोल तथा राजनीति की पुस्तकें भी इसी बोर्ड से खरीदें।
-पुराने प्रश्नपत्रों तथा मॉक टेस्ट पेपरों को अधिक संख्या में हल करने का प्रयास करें।
-मन में यह उम्मीद रखें कि आपको इस परीक्षा में कामयाब होना है।
संजीव चंद
<html><big><big> मैनेजमेंट की तैयारी कर रहे किसी भी छात्र के लिए भारतीय प्रबंध संस्थानों में दाखिला लेना स्वप्न सरीखा होता है। इन संस्थानों में एडमिशन कैट यानी कॉमन एडमिशन टेस्ट के माध्यम से होता है। इस वर्ष यह परीक्षा आगामी क्त्त् नवंबर को होनी है। कैट के अभ्यर्थियों के पास अब समय कम बचा है, अतएव इस कम समय में अपनी तैयारियों को फाइनल टच देने के बारे में बता रहे हैं। <br><br></big></big><big><big> कैट में मुख्यत: चार विषयों के बारे में पूछा जाता है-<br></big></big><big><big>्वांटिटेटिव एबिलिटी, वबüल एबिलिटी, रीडिंग कॉçम्प्रहेंशन और लॉजिकल रीजनिंग।<br><br><br>-क्वांटिटेटिव एबिलिटी<br>इसमें एरिथमेटिक, एल्जेब्रा और ज्योमेट्री से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। इसके इन सेक्शंस पर अधिक ध्यान दें-<br><br>-वृत्त, त्रिकोण, एरिया, वॉल्यूम।<br>-क्वाड्रेटिक इक्वेशंस, परम्यूटेशन ऐंड कॉçम्बनेशन।<br>-नंबर सिस्टम, गति, समय, दूरी, मिश्रण एवं एलिगेशन।<br><br><br>ऊपर दिए गए सेक्शन को तैयार करने का सबसे सिंपल फंडा है डिवाइड ऐंड रूल। इसे अमल में लाएं और प्रत्येक खंड को कई अन्य खंडों में बांटकर तैयार करें।<br><br><br>-रीडिंग कॉçम्प्रहेंशन: कैसी टेंशन्ा<br>कैट के लिहाज से यह खासा महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस सेक्शन में पढ़े जा रहे हिस्से को समझने की क्षमता का टेस्ट किया जाता है। इसकी तैयारी के लिए आप विभिन्न विषय जैस्ो-इकोनॉमिक्स, राजनीति, पब्लिक अफेयर्स आदि से संबंधित तीन लेख रोजाना पढ़ें। उनकी शब्द सीमा 1,000-1,500 हो। इससे आप इस सेक्शन के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएंगे। कैट एक्सपट्स्ाü के मुताबिक आमतौर पर 350 शब्द प्रति मिनट स्पीड हो, तो अच्छा है।<br><br><br>-वबüल एबिलिटी में कैसी डिफिकल्टी<br>विशेषज्ञों का कहना है कि कैट में वबüल एबिलिटी का एरिया कम समय में हल किया जा सकता है। इस सेक्शन को बेहतर बनाने के लिए आपको वोकैब्लरी और ग्रामर दोनों में ही अच्छी पकड़ होनी चाहिए।<br><br><br>-पैराग्राफ बनाना<br>इसके अंतर्गत आपको कुछ वाक्य दिए जाते हैं, जो क्रम में नहींं होंगे और किसी पैराग्राफ का हिस्सा होंगे। आपको इन वाक्यों को क्रमबद्ध करके पैराग्राफ बनाने का प्रश्न आ सकता है। इस सेक्शन से पार पाने के लिए सबसे बड़ी मुश्किल है उस वाक्य की पहचान करना, जिससे पैराग्राफ की शुरुआत की जा सकती हो। इसके लिए आप वाक्यों के बीच ताíकक संबंधों की पहचान करें, तो यह काम आसान हो सकता है। फिर देखिए कि कौन सा वाक्य पैराग्राफ का अंतिम वाक्य हो सकता है, वही उसका निष्कर्ष होगा।<br><br>-वोकैब्लरी<br>कैट के लिहाज से यह खासा महत्वपूर्ण पहलू है। बिना अच्छी वोकैब्लरी के रीडिंग कांप्रिहेंशन और वबüल एबिलिटी में अच्छा कर पाना मुश्किल है। जब आप कोई पैराग्राफ, पैसेज या आलेख पढ़ रहे हों, तो उन शब्दों का अर्थ डिक्शनरी से देख लें, जिनका अर्थ न पता हो। उन शब्दों को नोट कर लें और शब्दकोश से उनका अर्थ देखें। इससे आप अपने वौकेब्लरी पोर्शन को मजबूत कर पाएंगे।<br><br><br>-लॉजिकल रीजनिंग<br>इससे जुडे़ सवालों को केवल हल करना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उससे जुड़ी अवधारणाओं को भी समझना ज्यादा जरूरी है। इस क्षेत्र में आपकी ताíकक क्षमता की परीक्षा होती है।<br><br><br>-डाटा इंटरप्रिटेशन<br>इस विषय के अंतर्गत गणनाओं और संख्याओं के प्रति आपकी सहजता का आकलन किया जाता है। यहां आप रैंडम ऑर्डर टेक्नीक का इस्तेमाल करके प्रश्नों को हल कर सकते हैं। ये प्रश्न कैट परीक्षा में अहम भूमिका अदा करते हैं।<br><br><br>-मॉक टेस्ट देते रहें<br>यह आपकी तैयारियों का अंतिम चेक पॉइंट है। हर हफ्ते आप कैट लेवल टेस्ट देते रहें। हर टेस्ट देने के बात उन क्षेत्रों को चिçह्नत करें, जिनसे अधिक प्रश्न पूछे जा रहे हैं। मॉक टेस्ट के दौरान किस सवाल का जवाब कैसे दिया है, उसके नोट्स बनाएं। इन सबसे आपको पता चल जाएगा कि आपकी स्पीड बढ़ी है या घटी। मॉक टेस्ट से यह पता चल जाता है कि आपका कौन सा सेक्शन ठीक नहींं जा रहा। उसे दुरुस्त कर आप अपनी तैयारी को पूरी रफ्तार से आगे बढ़ा सकते हैं। चूंकि कैट परीक्षा एक तरह से समय प्रबंधन की भी परीक्षा है, इसलिए यह जान लीजिए कि परीक्षा में वही सफल होगा, जो सही जवाब तेजी से दे सकने की क्षमता रखता है। यह तभी संभव है, जब आप परीक्षा हॉल में होने वाले तनाव के अभ्यस्त हों, प्रश्नों की प्रकृति से परिचित हों और आवश्यक समय के अंदर उन्हें हल करने में सक्षम। अत: फोकस होकर अभ्यास करते रहें।<br><br> <br> प्रशांत कुमार सिंह <br><br></big></big></html>
कॉमर्स विषय के साथ 10+2 पास करने वाले युवाओं के लिए अनेक अवसर हैं। इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए विषयों की जानकारी के अलावा इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, एक्साइज डKूटी, एक्सपोर्ट-इंपोर्ट डKूटी व अन्य संबंधित कानूनों व नियमों की जानकारी भी जरूरी है। जानते हैं कॉमर्स स्टूडेंट्स के लिए कैरियर विकल्पों के बारे में-
-चार्टर्ड एकाउंटेंसी :
देश में इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (इंद्रप्रस्थ मार्ग, नई दिल्ली-52 वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट आईसीएआई डाट ओआरजी द्वारा सीए ट्रेनिंग के लिए विभिन्न स्तरों के कोर्स का आयोजन किया जाता है। यही संस्थान प्रोफेशनल को सी ए का काम करने के लिए मान्यता अथवा रजिस्ट्रेशन देता है। इस संपूर्ण कोर्स को तीन खण्डों में बांटा गया है। प्रोफेशनल एजुकेशन-1, प्रोफेशनल एजुकेशन-2 और फाइनल। इसमें प्रोफेशनल एजुकेशन (पी ई) के 1 और 2 कोर्स में पूरे वर्ष भर दाखिले दिए जाते हैं। परीक्षाओं का आयोजन मई और नवंबर माह में ही किया जाता है । नियमों के अनुसार परीक्षा के दस माह पूर्व रजिस्ट्रेशन किया जाना आवश्यक है । पी ई-1 कोर्स में 10+2 पास करने के तुरंत बाद दाखिले लिए जा सकते हैं। इसकी अवधि दस माह होती है । इन्हें फाइनेंस मैनेजर, फाइनेंशियल कंट्रोलर, फाइनेंशियल एडवाइजर अथवा डायरेक्टर (फाइनेंस) के पदों पर काम मिल सकता है। अधिक जानकारी हेतु संस्थान की वेबसाइट देखें।
-कंपनी सेक्रेटरीशिप :
इस कोर्स का आयोजन द इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया (आईसीएसआई ) द्वारा किया जाता है। कंपनी एक्ट के अनुसार 50 लाख से अधिक पेड-अप कैपिटल वाली कंपनियों में एक कंपनी सेके्रट्री की नियुक्ति होना अनिवार्य है। कोर्स के दौरान कॉरपोरेट, फाइनेंशियल और लीगल मामलों के बारे में ट्रेनिंग दी जाती है। ये कंपनी, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर, शेयर होल्डर और सरकारी रेग्यूलेटरी एजेंसियों के बीच कड़ी का काम करते हैं । यह कोर्स भी मूलत: तीन खंडों में विभाजित है। 10+2 पास युवा फाउंडेशन कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं, जबकि ग्रेजुएट युवा सीधे इंटरमीडिएट कोर्स में दाखिले हासिल कर सकते हैं। परीक्षा के कम से कम नौ माह पूर्व संबंधित कोर्स में दाखिला मिल सकता है । दिसंबर और जून माह में दो बार इसकी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। अधिकृत जानकारी के लिए संस्थान की वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट आईसीएसआई डाट ईडीयू से संपर्क कर सकते हैं
-आईसीडब्ल्यूएआई :
देश में कॉस्ट एेंड मैनेजमेंट एकाउंटेंसी पर आधारित शिक्षा का संचालन द इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट ऐंड वक्र्स एकाउंटेंट्स आफ इंडिया (आईसीडब्ल्यूएआई) द्वारा किया जाता है यह कोर्स भी तीन खंडों में विभाजित है। फाउंडेशन कोर्स में 10+2 के बाद दाखिला पाया जा सकता है। इसकी परीक्षा में ऑर्गेनाइजेशन ऐंंड मैनेजमेंट फंडामेंटल्स, फाइनेंशियल एकाउंटिंग फंडामेंटल्स, इकोनोमिक्स ऐंड बिजनेस फंडामेंटल्स, बिजनेस मैथमैटिक्स ऐंड स्टैटिस्टिक्स फंडामेंटल्स नामक पेपर शामिल हैं। कंप्यूटर आधारित परीक्षाएं अलग होती हैं । अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट आईसीडब्ल्यूआई डाट कॉम देखें।
उपरोक्त कोर्स के अलावा कॉमर्स के छात्रों के लिए कई नए कोर्स देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शुरू किए गए हैं । इनमें प्रमुख रूप से बैचलर ऑफ कॉरपोरेट सैक्रेटरीशिप, बी कॉम (एकाउंटिंग ऐंड फाइनेंस), बी कॉम (बिजनेस स्टडीज), बी कॉम (कंप्यूटर एप्लीकेशन), बी कॉम (फॉरेन ट्रेड), आदि हैं।
-बैचलर ऑफ कॉरपोरेट सैक्रेटरीशिप :
तीन वर्षीय यह कोर्स कंपनी सैके्रटरीशिप की तरह एक विशिष्ट प्रकार का डिग्री कोर्स है। यह कोर्स नियमित व डिस्टेंस एजुकेशन से कर सकते हैं।
-बी कॉम (एकाउंटिंग ऐंड फाइनेंस)
परंपरागत बीकॉम के स्थान पर यह कोर्स करना अधिक उपयोगी है। इसमें सीए की भांति एकाउंटिंग और ऑडिटिंग पर आधारित ट्रेनिंग दी जाती है।
-बी कॉम (कंप्यूटर एप्लीकेशन) :
कॉमर्स विषयों के ग्रेजुएट के लिए कंप्यूटर प्रयोग का जानकार होना आज जरूरी हो गया है । इसमें एकाउंटिंग, फाइनेंस तथा अन्य प्रकार के बुक एंट्री से संबंधित कंप्यूटर उपयोग की जानकारी दी जाती है ।
-बी कॉम (फारेन ट्रेड) :
अब तक इस प्रकार के कोर्स पीजी स्तर पर ही उपलब्ध थे, पर अब यह विषय बी कॉम स्तर पर भी छात्रों के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है ।
-बी कॉम (माकेüटिंग मैनेजमेंट) :
इस अनूठे कोर्स में मैनेजमेंट और माकेüटिंग से संबंधित जानकारियां युवाओं को कॉमर्स की शिक्षा के साथ प्रदान की जाती हैं। देश के गिने-चुने संस्थानों में ही फिलहाल यह कोर्स उपलब्ध है ।
-बी कॉम (ट्रेवल ऐंड टूरिज्म) :
दुनिया भर में टूरिज्म उद्योग का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। विदेशी और घरेलू पर्यटकों की संख्या को बढाने के लिए इस विधा में ट्रेेंड युवाओं की मांग में तेजी देखी जा सकती है। जानकारों के लिए देश-विदेश में पर्याप्त संख्या में अवसर उपलब्ध हैं ।
-बीबीए (बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) :
10+ 2 पास ऐसे युवा जो मैनेजमेंट के कोर्स में दिलचस्पी रखते हैं उनके लिए बीबीए एक महत्वपूर्ण विकल्प है। यह कोर्स डिस्टेंस एजुकेशन से भी किया जा सकता है ।
कॉमर्स विषय की बैकग्राउंड वाले युवाओं के लिए सटिüफिकेट और डिप्लोमा फुलटाइम और पार्टटाइम कोर्स भी विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित किए जाते हैं। इनमें डिप्लोमा एकाउंटिंग, फाइनेंस, स्टैटस्टि्क्स, टैक्सेशन, ई-कॉमर्स आदि प्रमुख हैं।
अशोक सिंह
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">सौंदर्य के प्रति
लोगों में बढ़ते आकर्षण को देखते हुए विशेषज्ञों की माँग काफी बढ़ गई है।
लोग चाहते हैं कि उनका सौंदर्य तो निखरे लेकिन उसमें किसी प्रकार की
असावधानी न हो। ऐसे में युवाओं का रूझान 'कॉस्मेटोलॉजी' की ओर तेजी से बढ़
रहा है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यह
एक प्रकार का विज्ञान है जिसके तहत व्यक्ति के चेहरे, बालों और अन्य भागों
की खूबसूरती बढ़ाई जाती है। इस कोर्स के लिए देश और दुनिया में
प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। जिसके तहत लिखित और मौखिक परीक्षाएँ ली
जाती हैं। प्रतियोगिता में सफल होने वाले विद्यार्थी कई प्रकार के काम कर
सकते हैं जिनमें कॉस्मोलॉजिस्ट, हेयरस्टाइलिस्ट और हेयड्रेसर शामिल है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इस
क्षेत्र में अनुभव प्राप्त कर लेने के बाद आप डिलोमा कोर्स भी कर सकते
हैं। इससे आपकी जानकारी का दायरा और भी बढ़ जाएगा और आप पूरी तरह एक्सपर्ट
हो जाएँगे। इसके बाद आपके लिए कई और रास्ते खुल जाएँगे। वे एक
मैन्यूक्योरिस्ट, नेल तकनीशियन या फिर मेक-अप आर्टिस्ट भी बन सकते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इस
कोर्स को करने के लिए 12वीं उर्त्तीण होना आवश्यक है। साथ ही आपके अन्दर
बेहतर बातचीत का सलीका और अपने आस-पास के परिवेश के बारे में बेहतर
जानकारी होनी चाहिए। आपके अन्दर धैर्य का होना बेहद जरूरी है।<br><br><br><br></font></html>
<html>
डॉ. जयंतीलाल भंडारी<br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> </font><font style="font-size: 10pt;">गृह विज्ञान (होम साइंस) में स्नातक एवं स्नातकोत्तर करने के उपरांत रोजगार के कौन-कौन से अवसर विद्यमान हैं? -</font><font style="color: rgb(128, 128, 0);">टीना उन्हाले, भोपाल</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">गृह
विज्ञान एक विस्तृत और रोजगार संभावनाओं से युक्त क्षेत्र है। इस विषय से
स्नातक और स्नातकोत्तर करने के उपरांत न केवल सरकारी/ प्रायवेट नौकरियाँ
हासिल की जा सकती हैं, बल्कि कई प्रकार के स्वरोजगार भी प्रारंभ किए जा
सकते हैं। राज्य लोक सेवा आयोगों द्वारा समय-समय पर कई तरह की रिक्तियाँ
प्रकाशित की जाती हैं, जिसमें सिर्फ गृह विज्ञान की छात्राएँ ही आवेदन कर
सकती हैं। इसी प्रकार संघ लोक सेवा आयोग भी रिक्तियाँ प्रकाशित करता है,
जिसमें आवेदन के लिए गृह विज्ञान की किसी भी शाखा में बैचलर व मास्टर
डिग्रीहोनी चाहिए। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">होम
साइंस में आप करियर के चार क्षेत्रों का अध्ययन कर सकती है- फूड एंड
न्यूट्रीशन, क्लोथिंग एंड टेक्सटाइल, ह्यूमन डेवलपमेंट तथा फैमिली रिसोर्स
मैनेजमेंट। इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करके आप इन्हीं क्षेत्रों
में नियोजित हो सकती हैं। इसके अलावा आप बायोलॉजिकल केमेस्ट्री,
बायोकेमेस्ट्री, एनोटॉमी, साइकोलॉजी, हेल्थ केयर एंड हाईजीन आदि क्षेत्रों
में विशेषज्ञता हासिल करके जॉब प्राप्त कर सकती हैं। गृह विज्ञान की पढ़ाई
करने के बाद बहुत-सी युवतियाँ गृह विज्ञान पर आधारित लघु उद्योग की शुरुआत
करके भी अच्छी कमाई कर रही हैं।</font><br></html>
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">चार्टर्ड अकाउंटेंसी
एक प्रोफेशनल कोर्स है जिसे 1949 में हमारे देश में आरंभ किया गया था। इसी
साल चार्टर्ड अकाउंटेंट्स एक्ट भी लागू किया गया था। इस पाठ्यक्रम को
चलाने के लिए 1949 में ही द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया
(आईसीएआई) का गठन किया गया था। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यह
संस्थान चार्टर्ड अकाउंटेंसी की परीक्षा भी लेता है और प्रेक्टिस करने के
लिए लाइसेंस भी प्रदान करता है। चार्टर्ड अकाउंटेंसी (सीए) पाठ्यक्रम
चलाने की जिम्मेदारी भी इसी इंस्टीट्यूट की है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>कौन होते हैं चार्टर्ड अकाउंटेंट?</i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">चार्टर्ड
अकाउंटेंट वे लेखाकार होते हैं जो अकाउंटिंग, ऑडिटिंग और टैक्सेशन में
परिष्कृत होते हैं। वे मैनेजमेंट और कॉर्पोरेट केअरटेकर के रूप में भी काम
करते हैं। इन दिनों अकाउंटेंसी एक पेशे अथवा प्रोफेशन के रूप में लोकप्रिय
बन गया है। सीए की सेवाएँ पैसों से संबंधित यहाँ तक की छोटे-मोटे
व्यवसायों के लिए भी आवश्यक मानी जाने लगी हैं।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> <!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इतना
ही नहीं, कंपनी अधिनियम के अनुसार केवल प्रोफेशनल प्रेक्टिस में संलग्न
सीए ही भारतीय कंपनियों के ऑडिटर्स के रूप में नियुक्त किए जा सकते हैं।
चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने के लिए जरूरी है कि इंस्टीट्यूट ऑव चार्टर्ड
अकाउंटेंट ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित चार्टर्ड अकाउंटेंसी की फाइनल परीक्षा
उत्तीर्ण करने के पश्चात आईसीएआई के सदस्य के रूप में मान्य किए गए हों।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>क्या है सीए प्रोग्राम?</i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">चार्टर्ड
अकाउंटेंसी प्रोग्राम प्रशिक्षण अवधि को छोड़कर दो वर्षीय पाठ्यक्रम है।
इसके तीन भाग- प्रोफेशनल एजुकेशन (कोर्स I), प्रोफेशनल एजुकेशन (कोर्स </font><font style="font-size: 10pt;">II ) </font><font style="font-size: 10pt;">और
फाइनल एक्जामिनेशन होते हैं। कोई भी प्रत्याशी जिसने 10+2 परीक्षा
उत्तीर्ण कर ली हो या जिनके परीक्षा परिणाम प्रतीक्षित हों, सीए पाठ्यक्रम
के लिए अपना पंजीयन करवा सकते हैं। </font><br><br>50 <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">प्रश
अंकों वाले वाणिज्य स्नातक तथा गैर वाणिज्य विषय वाले गणित विषय के अलावा
अन्य विषय लेकर 55 प्रश अंकों वाले स्नातक तथा गणित विषयों सहित 60 प्रश
अंकों वाले छात्रों को प्रोफेशनल एजुकेशन कोर्स- I करने से छूट दी जाती है
तथा वे कोर्स-</font><font style="font-size: 10pt;">II </font><font style="font-size: 10pt;">में प्रवेश ले सकते हैं। आईसीडब्ल्यूएआई और कंपनी सेक्रेटरी की फाइनल परीक्षा पास करने वाले सीधे प्रोफेशनल एजुकेशन </font><font style="font-size: 10pt;">II </font><font style="font-size: 10pt;">में रजिस्टर करवा सकते हैं। प्रोफेशनल कोर्स- </font><font style="font-size: 10pt;">II </font><font style="font-size: 10pt;">उत्तीर्ण
करने के बाद प्रत्याशी प्रेक्टिस ट्रेनिंग के लिए आर्टिक्लेड क्लर्क के
रूप में रजिस्टर करवा सकते हैं और सीए के फाइनल कोर्स में प्रवेश ले सकते
हैं। </font><br><br>18 <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">वर्ष
से अधिक आयु वाले प्रत्येक स्नातक आर्टिक्लेड क्लर्क/ ऑडिट क्लर्क के रूप
में रजिस्टर के पात्र हैं। जो अपने आपको बतौर ऑडिट क्लर्क के रूप में
रजिस्टर करवाना चाहते हैं उनके लिए कम्प्यूटर ट्रेनिंग प्रोग्राम अनिवार्य
है। यह प्रोग्राम प्रोफेशनल कोर्स- I अथवा </font><font style="font-size: 10pt;">II </font><font style="font-size: 10pt;">करते हुए भी किया जा सकता है।</font><br> <br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">प्रोफेशनल कोर्स </font><font style="font-size: 10pt;">II </font><font style="font-size: 10pt;">तथा
कम्प्यूटर ट्रेनिंग प्रोग्राम करने के बाद प्रत्याशी किसी भी चार्टर्ड
अकाउंटेंट्स फर्म में आर्टिक्लेड क्लर्क के रूप में रजिस्टर करवा सकता है।
साथ ही सैद्धांतिक शिक्षा के लिए बोर्ड ऑफ स्टडीज के छात्र के रूप में
पढ़ाई भी कर सकते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">प्रत्याशियों
की ट्रेनिंग की अवधि 3 वर्ष होती है। इस अवधि के दौरान उसे उन सभी
क्षेत्रों का गहन ज्ञान प्राप्त होता है जिन क्षेत्रों में वह बतौर सीए
अपनी सेवाएँ प्रदान करता है। आर्टिकलशिप की इस अवधि के दौरान उसे सीए
परीक्षा के लिए लगातार अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। फाइनल परीक्षा
सफलतापूर्वक पूर्ण करने पर प्रत्याशी इंस्टीट्यूट का सदस्य बन जाता है।
इंस्टीट्यूट का सदस्य बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट खुद प्रेक्टिस कर सकता है
या किसी फर्म में नौकरी कर अच्छा नाम और दाम कमा सकता है। </font><br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/0131/default.asp" target="_blank">स्रोत : नईदुनिया अवसर</a></html>
अब वह वक्त गया, जब इंटरव्यू के लिए लंबी-लंबी कतारों में घंटों खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था। फॉमूüला वन रेसिंग जैसी आज की तेज रफ्तार जिंदगी में जहां जीने के पैमाने बदले हैं, वहीं इंटरव्यू भी हाईप्रोफाइल हो गए हैं। टेलीफोन इंटरव्यू ने रिक्रूटमेंट को नई परिभाषा दी है। उम्मीदवार फेस टु फेस इंटरव्यू करने लायक पोटेंशियल का है भी या नहीं, यह पता करना ही आमतौर से टेलीफोन इंटरव्यू का उद्देश्य होता था, पर अब फाइनल सेलेक्शन के लिए भी इसका उपयोग हो रहा है।
क्या होता है टेलीफोन इंटरव्यू में
टेलीफोन इंटरव्यू किसी कंपनी द्वारा प्रतिभागियों को छांटने का प्रथम चरण होता है। टेलीफोन इंटरव्यू करने का सबसे प्रमुख कारण समय की कमी और आए हुए आवेदनों की अधिकता है। इस इंटरव्यू के द्वारा कंपनी सैलरी को लेकर उम्मीदवार की अपेक्षाओं, उसके वर्क प्रोफाइल और एक्सपीरिएंस के बारे में फौरी तौर पर जानकारी ले लेती है। इससे फायदा यह होता है कि इतनी जरा सी जानकारी के लिए कंपनी को प्रतिभागियों की भारी-भरकम भीड़ का सामना नहीं करना पड़ता। साथ ही समय की भी बचत होती है। टेलीफोन इंटरव्यू के द्वारा आपके कम्यूनिकेशन स्किल, विभिन्न परिस्थितियों में काम करने की इच्छा और क्षमता आदि का आकलन करने की कोशिश की जाती है।
एचसीएल में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत अनुराग पांडेय का कहना है कि `टेलीफोन इंटरव्यू ने जॉब तलाश करने वालों की राह आसान कर दी है। अब उन्हें पहले की तरह कंपनी की इंटरव्यू कॉल का महीनों इंतजार नहीं करना पड़ता है। यह बात तो पूरी तरह साबित हो चुकी है कि टेलीफोन और इंटरनेट अब केवल व्यापारिक जरूरत ही नहीं रह गए हैं। बल्कि ये उम्मीदवारों को जॉब ढूंढने में भी मदद कर रहे हैं। टेलीफोनिक इंटरव्यू ने तो इसे पूरी तरह परिभाषित कर दिया है।´
दिल्ली के एक कॉल सेंटर में एचआर मैनेजर का कहना है, `टेलीफोन इंटरव्यू कैंडीडेट के लिए बेहद फायदेमंद होता है। यह कैंडीडेट का टाइम तो बचाता ही है, कॉस्ट इफेçक्टव भी होता है। टेलीफोन इंटरव्यू उनके लिए एक बोनस की तरह होता है, जो किसी दूसरे शहर में जॉब की तलाश कर रहे होते हैं। यह किसी कंपनी में पहले से ही काम करने वालों के लिए भी फायदेमंद है।´ अमेरिकी दूतावास में काम कर चुके मत्थुकुमार, जो टेलीफोन इंटरव्यू का सामना कर चुके हैं, बताते हैं कि जब उन्हें अपनी उसी कंपनी में दूसरी जगह नियुक्ति चाहिए थी, तो केवल एक टेलीफोन इंटरव्यू के माध्यम से ही उनकी समस्या हल हो गई थी।
हालांकि एचसीएल कंपनी की एचआर सलोनी महापात्रा इस बात से इतर इत्तेफाक रखती हैं। उनका कहना है कि टेलीफोन इंटरव्यू से आप कैंडीडेट के चेहरे के हाव-भाव, उसकी पर्सनैलिटी को समझ नहीं सकते। वह इसके फायदे कम, नुकसान ज्यादा मानती हैं। उनके अनुसार सिर्फ टेलीफोन से बातचीत द्वारा किसी कैंडीडेट की सही तसवीर बना पाना बेहद मुश्किल काम है। इसीलिए सही उम्मीदवार की नियुक्ति के लिए टेलीफोन इंटरव्यू का इस्तेमाल करना सौ फीसदी आदर्श नहीं लगता। वहीं ग्लोबस मीडिया सçर्वसेज में एडिटर वेंकट इसे फायदे का सौदा मानते हैं। वह कहते हैं कि टेलीफोन इंटरव्यू से कंपनी और कैंडीडेट, दोनों को अपने जॉब प्रोफाइल के मुताबिक नौकरी चुनने का मौका मिल जाता है। इससे दोनों को आगे की लंबी प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता।
बेसिक तैयारी
टेलीफोन इंटरव्यू देने से पहले नर्वसनेस को दूर करने के लिए कुछ बेसिक तैयारी कर लेनी चाहिए।
-हमेशा ऐसा समय लीजिए, जो आपके लिए सुविधाजनक हो। सुबह, शाम या ऑफिस में इंटरव्यू देने से बचना चाहिए।
-ऐसा समय लीजिए, जिस समय फोन का नेटवर्क ज्यादा व्यस्त न रहता हो और कॉल ड्रॉप होने की संभावना कम रहती हो।
-सबसे मुख्य बात आप अपने आस-पास के माहौल को पूरी तरह जांच लें। ऐसा न हो कि एक तरफ आप फोन से बात कर रहे हों और दूसरी तरफ बच्चों के खेलने की आवाजें आ रही हों।
-रिज्यूमे अपने सामने रख लें, जिससे रिज्यूमे से संबंधित सवालों के जवाब आराम से दे सकें।
-अपने पास एक गिलास पानी रखें, क्योंकि इंटरव्यू के दौरान शायद आपको ब्रेक लेने का मौका न मिलें।
-अपने पास एक नोट पैड रख लें, जिससे आप महत्वपूर्ण पॉइंट नोट कर सकें।
-अपनी आवाज में चुस्ती बनाए रखें। इसके लिए आप इंटरव्यू से पहले मनोरंजन संबंधी एçक्टविटी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, गाना गाकर आप आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं।
परफेक्ट अप्रोच
यद्यपि किसी भी कैंडीडेट का टेलीफोन इंटरव्यू करने से पहले उसे इसका एडवांस नोटिस दिए जाने का नियम है, लेकिन ऐसी भी कंपनियां होती हैं, जो इसे फॉलो नहीं करतीं। वहां से आपको अचानक फोन आ जाएगा और इंटरव्यू कंडक्ट किया जाने लगेगा। इसलिए आवेदन भेजने के बाद किसी भी वक्त इंटरव्यू कॉल के लिए मानसिक रूप से तैयार रहें।
इसके लिए वॉइस प्रोजेक्शन का अभ्यास करें। इसका अर्थ यह है कि आप किसी विशिष्ट प्रभाव को अपनी आवाज के माध्यम से कैसे दिखा सकते हैं। मसलन, अगर आपको यह अभिव्यक्त करना हो कि आप अंदर से बहुत फ्रेश और आशावादी अनुभव कर रहे हैं, तो अपनी आवाज के माध्यम से कैसे दर्शाएंगे।
इसका अभ्यास आप टेपरिकॉर्डर के माध्यम से भी कर सकते हैं या किसी मित्र की सहायता भी ले सकते हैं। अपनी आवाज और बोलते समय की खामियों को उनसे पूछें और उन्हें सही करने का भी अभ्यास करें। जैसे कि अगर कोई प्रश्न पूछा जा रहा है, तो शुरुआत में हमùùùùù...अùùùùù...या बीच में ऐसी ध्वनि निकालते हुए अपने तर्क पर विचार करके बोलने की आदत में सुधार लाएं। इसके साथ टेलीफोन इंटरव्यू की प्रैçक्टस और जनरल इंटरव्यू प्रैçक्टस भी करते रहें। इस इंटरव्यू में भी आपको जॉब और कंपनी से संबंधित जानकारी का प्रदर्शन करना होगा, ताकि लगे कि आपने कंपनी के बारे में जानने के लिए थोड़ी मेहनत की है और आपको इस इंटरव्यू की वैल्यू है।
टेलीफोन इंटरव्यू में टेçक्नकल प्रश्न पूछा जाना आम बात है। ऐसे प्रश्न बहुत गंभीर या गहरे नहीं होते, लेकिन उनका उत्तर हर कैंडीडेट को आना चाहिए। यह भी याद रखें कि टेलीफोन से इंटरव्यू कंडक्ट होते समय आपके कानों की भूमिका बढ़ जाती है और इसी के माध्यम से दूसरा भी आपको समझने की कोशिश कर रहा होगा। इसलिए इसका फायदा उठाने की कोशिश करें। क्योंकि टेलीफोन इंटरव्यू का उद्देश्य बातचीत के माध्यम से दूसरे राउंड के लिए आपका मूल्यांकन करना होता है, इसलिए इस बात पर निगाह बनाए रखें कि आप अपनी योग्यता अधिक से अधिक साबित कर सकें।
टेलीफोन इंटरव्यू के दौरान
-अभिव्यक्तिपूर्ण और बहिमुüखी बनें। लेकिन ऐसा न प्रतीत हो कि आप उत्तर देने की जल्दी में हैं और दूसरे को सुनना तक नहीं चाहते।
-चूंकि यह इंटरव्यू टेलीफोन पर होगा, इसलिए कई लोग चीटिंग कर सकते हैं। यानी किसी और को साथ बैठाकर उससे उत्तर पूछकर जवाब दे सकते हैं। पर इससे कन्फ्यूजन भी उत्पन्न हो सकता है। आप एक ही प्रश्न के कई उत्तर दे सकते हैं या फिर हकलाने लग सकते हैं। अपने उत्तर बार-बार बदल सकते हैं।
-आप भी ऑगेüनाइजेशन के बारे में, अपनी जॉब और उसकी जिम्मेदारियों के बारे में प्रश्न कर सकते हैं। लेकिन यह सब आप इंटरव्यू के अंत में पूछें।
-स्पष्ट और आवश्यकतानुसार धीमी गति में बोलें। बहुत तेज आवाज में न बोलें।
-जिनका उच्चारण करने में आपको दिक्कत आती हो या जिनका अर्थ सही-सही आपको पता ही न हो, ऐसे शब्दों का प्रयोग करने से बचेंं।
-ऐसा न सोचें कि सरल भाषा से आपका प्रभाव नहीं जमेेगा। टेलीफोन इंटरव्यू में दारोमदार इस बात पर अधिक होता है कि आप उत्तर में क्या कह रहे हैं और कितने प्रवाह में कह रहे हैं।
-अगर इंटरव्यू दो या तीन मिनट में ही समाप्त हो जाए, तो उस पर अपनी निराशा या आश्चर्य प्रकट न करें। बल्कि प्रोफेशनल अंदाज में पॉजिटिव नोट के साथ उसे समाप्त करें।
-टेलीफोन इंटरव्यू के दौरान सिगरेट पीना, चुइंगम चबाने या कुछ खाने-पीने जैसी एçक्टविटीज न करें।
-मुसकराते हुए बात करिए। इससे इंटरव्यू लेने वाले पर आपका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साथ ही आपकी आवाज की टोन भी बदल जाती है।
-इस बात से हम सभी वाकिफ हैं कि अच्छा श्रोता होना बेहद आवश्यक है, क्योंकि अच्छा श्रोता ही अच्छा वक्ता होता है, इसलिए टेलीफोन इंटरव्यू के दौरान रिक्रूटर की बात को पूरी तरह सुनें, उसे बीच में काटे नहीं। उसके प्रश्न के खत्म होने के बाद ही अपना उत्तर देना शुरू करें।
-अपने उत्तर को कम शब्दों में टु द पॉइंट रखें।
-जिन प्रश्नों के पूछे जाने की संभावना हो, जैसे कि सैलरी, काम करने का अनुभव या लोकेशन आदि, की तैयारी पहले से ही कर लें।
-टेलीफोन इंटरव्यू के दौरान नर्वसनेस दूर करने के लिए 1 से 5 तक गिनती गिनें और सांस को बाहर छोड़ें।
-आप जिस कंपनी में काम कर रहे हैं, उसे छोड़ना क्यों चाहते हैं? इस तरह केप्रश्नों पर कोई टिप्पणी करने से बचें या फिर कंपनी के बारे में कोई गंभीर टिप्पणी करने से बचें।
-अगर आपका इंटरव्यू शॉर्ट डKूरेशन का हो, तो इस पर आश्चर्य व्यक्त न करें।
टेलीफोन इंटरव्यू के बाद कंपनी के लोगों को धन्यवाद की ई-मेल करना न भूलें। उससे रिक्रूटर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
-अपने रिजल्ट का फॉलोअप लेते रहें।
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">अर्थव्यवस्था के
अन्य क्षेत्रों में तेजी से प्रगति होने के बावजूद अब भी भारत में कृषि और
पशुपालन रोजगार का एक बड़ा साधन है। हाल ही में हुए प्रगत प्रौद्योगिकी
बदलाव ने इस क्षेत्र को व्यापक और कमाई की दृष्टि से लाभकारी बना दिया है।
कृषि उद्योग में उद्यानिकी, डेयरी फार्मिंग, पोल्ट्री फार्मिंग और कई
करियर निर्माण क्षेत्र निर्मित हो गए हैं, जिनमें डेयरी उद्योग एक हॉट
क्षेत्र है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>क्या है डेयरी क्षेत्र?</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डेयरी
क्षेत्र दुग्ध उत्पादन तथा दुग्ध पदार्थों के निर्माण से संबंधित है।
इसमें पशुओं का प्रजनन तथा पालन-पोषण भी शामिल है। इन दिनों डेयरी उद्योग
में दूध, मक्खन, चीज, घी, कण्डेंस्ड मिल्क, पावडर, मिल्क, दही जैसे कई
उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं इनके द्वारा कई अन्य उद्योगों के
लिए भी कच्ची सामग्री प्रदान की जा रही है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक ह</b></font><b><font style="font-size: 10pt;">ै </font><font style="font-size: 10pt;">भारत </font></b><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">भारत
के बारे में कहा जाता है कि कभी यहाँ दूध, घी की नदियाँ बहा करती थीं।
पौराणिक काल में भी हमारे यहाँ गाय, मक्खन और दूध की चर्चाएँ हुआ करती
थीं। भौगोलिक दृष्टि से पशुपालन के लिए बेहतर स्थिति का लाभ उठाते हुए आज
भारत दुनिया भर में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया है, जबकि दुग्ध
उत्पादों के निर्माण में यह दूसरे क्रम पर है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>कम लागत, बेहतर अवसर </b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डेयरी
उद्योग में भारत के वर्चस्व का प्रमुख कारण यह है कि यहाँ प्रति लीटर दूध
उत्पादन लागत विश्व में सबसे कम है। भारत में 1 लीटर दूध की लागत 27 सेंट
बैठती है, जबकि अमेरिका में यह 63 सेंट और जापान में 2.8 डॉलर प्रति लीटर
है। यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो मिनरल वाटर उद्योग की तरह ही मिल्क
प्रोसेसिंग उद्योग में भी विकास तथा प्रगति के ढेर सारे अवसर उपलब्ध हो
जाएँगे।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एक
अनुमान के अनुसार अगले 10 वर्षों में दुग्ध उत्पादों का उत्पादन तीन गुना
बढ़ने की संभावना है, जिससे भारत आसानी से दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पाद
निर्माता बन जाएगा। इसके परिणामस्वरूप डेयरी उद्योग में करियर निर्माण के
अनगिनत अवसर उपलब्ध हो जाएँगे।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>विशेष प्रशिक्षण </b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जो
लोग भविष्य में डेयरी टेक्नोलॉजिस्टस् के रूप में प्रशिक्षित होंगे,
वास्तव में वह न केवल प्रौद्योगिकी के रूप में प्रशिक्षित होंगे बल्कि
खेती प्रबंधन के लिए भी दक्षता प्राप्त करेंगे, क्योंकि यह उनके काम का
प्रमुख क्षेत्र होगा और वह डेयरी मैनेजर के रूप में ज्यादा काम करेंगे।<br><br></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>डेयरी मैनेजर का का</b></font><b><font style="font-size: 10pt;">म </font></b><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">किसी
भी विशिष्ट डेयरी प्रबंधक के द्वारा निष्पादित कार्यों में पशुओं का चयन
तथा खरीदी, पशुओं के आवास तथा आहार, डेयरी स्वच्छता की देखरेख, दूध
निकालने की प्रक्रिया का पर्यवेक्षण तथा उसकी मानिटरिंग और डेयरी उत्पादों
का विक्रय शामिल है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>व्यक्तिगत गुण </b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जो
युवा डेयरी टेक्नोलाजिस्ट के रूप में अपना करियर बनाना चाहते हैं, उनका
मस्तिष्क वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित होना चाहिए साथ ही नवाचारों और
परीक्षणों के प्रति रुचिकर होना चाहिए। इसके साथ ही उनमें धैर्य, हाथों से
ग्रामीण परिवेश में काम करने की योग्यता होना चाहिए तथा उन्हें स्थानीय
भाषाओं व प्रभावशाली रूप से प्रयोग करने आना चाहिए, क्योंकि इसी के माध्यम
से वह इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों से वांछित कार्य ले सकेंगे।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>संबंधित ज्ञान </b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डेयरी
उद्योग में करियर बनाने वालों के पास कृषि, अर्थव्यवस्था, पशुपालन, रसायन
शास्त्र, मेकेनिक्स तथा वेक्टेरियोलॉजी का ज्ञान अनिवार्य रूप से होना
आवश्यक है। यद्यपि इन दिनों बड़े शहरों में भी डेयरी संयंत्र स्थापित किए
जा रहे हैं। फिर भी उनमें से अधिकांश या तो शहर से बाहर होते हैं या किसी
नजदीकी गाँवों में। इसलिए डेयरी उद्योग से जुड़ने वालों को ग्रामीण परिवेश
में रहने का अभ्यस्त होना चाहिए। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जो
डेयरी उद्योग के प्रबंधन या विपणन क्षेत्र में नियुक्त हैं उन्हें भी
तकनीकी पहलू के साथ-साथ इस क्षेत्र का मैदानी ज्ञान होना चाहिए। आमतौर पर
डेयरी प्रबंधक प्रशासकीय कार्य के साथ-साथ अपना दैनिक कार्य भी निष्पादित
करता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">उसके
कार्य में स्टॉफ की भर्ती, डेयरी से संबंधित सारे कार्यों का पर्यवेक्षण,
पशु आहार खरीदने का निर्णय लेना और उत्पादों की मार्केटिंग संबंधी कार्य
भी होता है। बड़ी डेयरियों में डेयरी के अलग-अलग विषयों का प्रभार विशेषज्ञ
प्रबंधक के पास होता है।<br><br></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>कहाँ पाए प्रशिक्ष</b></font><b><font style="font-size: 10pt;">ण </font></b><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">देश
के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों द्वारा डेयरी प्रौद्योगिकी में
बीएससी, बी-टेक डेयर टेक्नोलॉजी जैसे पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। इस
तरह के अधिकांश पाठ्यक्रमों में प्रदेश के लिए बीएससी (बारहवीं में गणित
सहित) में मेरिट होनी चाहिए। कुछ संस्थानों द्वारा प्रवेश परीक्षा के
माध्यम से प्रवेश किया जाता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इन
पाठ्यक्रमों की अवधि दो से लेकर साढ़े चार वर्ष तक होती है, जबकि अधिकांश
कोर्स चार वर्ष में ही पूरे हो जाते हैं। जिन छात्रों ने कृषि, वेटरनरी
साइंसेज, प्योर साइंस, इंजीनियरिंग, फूड टेक्नोलॉजी आदि में (स्नातक डेयरी
साइंस/ टेक्नोलॉजी में) पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स कर सकते हैं। तथापि पोस्ट
ग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश के लिए उन्हें प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी
होगी।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">पाठ्यक्रम निम्नलिखित संस्थाओं पर उपलब्ध हैं-</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> गुजरात एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, गुजरात</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> राजस्थान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, बीकानेर</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> यूनिवर्सिटी ऑव एग्रीकल्चर साइंसेज, बंगलोर</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑव, एनिमल एंड फिशरी साइंसेज, कोलकाता</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>मास्टर लेवल पर प्रस्तुत स्पेशलाइजेशन </b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डेयरी
टेक्नोलॉजी, डेयरी केमिस्ट्री, डेयरी माइक्रो बायोलॉजी, डेयरी
इंजीनियरिंग, डेयरी एम्सटेंशन एजुकेशन, फूड टेक्नोलॉजी, जिनेटिक्स एंड
ग्रीडिंग, डेयरी क्वालिटी, कंट्रोल, एनिमल बायोटेक्नोलॉजी, लाइवस्टॉक
प्रोडक्शन एंड मैनेजमेंट, डेयरी प्रॉडक्शन।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>रोजगार के अवसर </b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डेयरी
क्षेत्र में करियर बनाने वालों को सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में
रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध हैं। प्लानिंग, इम्प्लेमेंटिंग, फाइनेंसिंग
और कृषि व्यवसाय में संलग्न प्रमुख सार्वजनिक उपक्रम द नेशनल डेयरी
डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) में भी रोजगार के अन्य अवसर मौजूद हैं। अमूल
की सफलता से प्रेरित होकर प्रत्येक राज्य में सरकार द्वारा डेयरी उद्योग
को बढ़ावा दिए जाने से रोजगार के अवसरों में इजाफा हुआ है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डेयरी उद्योग में टेक्नोलॉजिस्ट के साथ-साथ मैनेजरों की उत्पादन तथा मार्केटिंग दोनों क्षेत्रों में आवश्यकता होती है।</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">नैस्ले,
कैडबरी, ब्रिटानिया, कैलाग्स, हैरिटेज फुड्स, केएफसी, एचएलएल जैसी
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से न केवल भारत में रोजगार के अवसर बढ़े
हैं, बल्कि इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों को अच्छा वेतन मिलना भी
सुनिश्चित हुआ है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इसके
अलावा मदर डेयरी, इण्डाना, मिल्क फूड, अमूल, डाल्मिया, वाडीलाल, परान,
विजया और मिल्क फेड में भी करियर निर्माण के अच्छे अवसर उपलब्ध हैं। जो
युवा शहरी भागमभाग से दूर ग्रामीण परिवेश में रहकर करियर बनाना चाहते हैं,
डेयरी क्षेत्र उनके लिए अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।</font><br><b><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/1025/default.asp" target="_blank">स्रोत: नईदुनिया अवसर</a></b><br></html>
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);">नूपुर दीक्षित</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">घुंघरूओं
की झंकार, संगीत की लय और तबले की थाप पर थिरकते पैर। शास्त्रीय नृत्य
के प्रेमियों और जानकारों के लिए इसकी कल्पनामात्र ही प्राणवायु की तरह
होती है। इस कला के शौकिन अपने शौक को ही अपने कॅरिअर के रूप में चुन सकते
हैं। नृत्य और संगीत के प्रति लोगों का नजरिया पिछले एक दशक में बहुत बदल
गया है। शास्त्रीय नृत्य को देश-विदेश में ख्याति मिल रही है, इसलिए
क्षेत्र में रोजगार और आय के नित नए अवसर भी पनप रहे हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">मीडिया
और टेलीविजन के क्षेत्र में इन कलाओं के विशेषज्ञों की बहुत माँग है। कला
के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लगन, परिश्रम और धैर्य के साथ-साथ
विधिवत प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। पूर्व में इन कलाओं का प्रशिक्षण
घराना परंपरा से दिया जाता था, जिस में शिष्य की पहचान अपने गुरू के
घराने के नाम से होती थी। यह परंपरा आज भी जीवित है इसके साथ ही अब देश के
विभिन्न विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय नृत्य और संगीत के विविध
पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यहाँ
से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद स्वतंत्र कलाकार, नृत्य निर्देशक,
कला निर्देशक, नृत्य प्रशिक्षक के रूप में अपना कॅरिअर सँवारा जा सकता
है। कुछ लोग इन सभी को साथ लेकर चलते है, वे अपने शार्गिदों को प्रशिक्षण
भी देते है, कलाकार के रूप में प्रस्तुतियां भी देते है और नृत्य
निर्देशक के रूप में विभिन्न कला माध्यमों को अपनी सेवाएँ भी प्रदान
करते है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">कई
लोग चाहते हुए भी इस क्षेत्र में अपना कॅरिअर इसलिए नहीं बना पाते है
क्योकि उन्हें लगता है कि यदि वे नामचीन कलाकार नहीं बना सकें तो कॅरिअर
खराब हो जाएगा। स्टेज शो ना करने की स्थिती में अपनी स्वयं की डांस
क्लास खोली जा सकती है। आजकल लोग अपने शौक को पूरा करने के साथ-साथ
व्यायाम करने के उददेश्य से भी नृत्य का प्रशिक्षण लेते है। जिससे इन
कक्षाओं के संचालकों को अच्छी कमाई होती हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात
यह है कि जब आप अपनी रूचि के क्षेत्र में काम करते है तो काम कभी बोझ नहीं
लगता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><b>संस्थान</b></font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, मध्यप्रदेश</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">नृत्य तरंगिनी, नई दिल्ली शिवाजी यूनिवर्सिटी, कोल्हापुर नागपुर यूनिवर्सिटी, महाराष्ट्र सरदार पटेल यूनिवर्सिटी, महाराष्ट्र<br><br><br></font></html>
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">नब्बे के दशक के
संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों के पश्चात जिस क्षेत्र के आकार-प्रकार में
अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, वह है स्वैच्छिक क्षेत्र। जबकि सरकारी क्षेत्रों
में रोजगार के अवसर दिन-प्रतिदिन सिमटते जा रहे हैं, स्वैच्छिक क्षेत्र
में रोजगार के अवसर कई गुना बढ़े हैं। समाज कार्य के क्षेत्रों में न केवल
गैर सरकारी संगठन सक्रिय हुए हैं बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े
कॉर्पोरेट हाउस भी स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण कार्य में धमाकेदार प्रवेश
कर रहे हैं। ऐसी ढेर सारी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ हैं जो
बड़ी संख्या में सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को प्रायोजित कर रही हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">विकास
की इस तेज रफ्तार के साथ प्रोफेशनल समाज कार्य एक ऐसे क्षेत्र के रूप में
उभरा है, जिसमें रोजगार की अपार संभावनाएँ हैं। यद्यपि समाज कार्य का पेशा
भारत में इतना चर्चित नहीं है लेकिन अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया,
न्यूजीलैंड, जापान, कोरिया और चीन मेंसमाज कार्य को एक प्रतिष्ठित पेशे के
रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">समाज
कार्य से जुड़े लोग समाज की इस तरह से मदद करते हैं कि वह अपनी क्षमताओं को
बढ़ाकर अपनी भूमिका को पूरा करने में समर्थ होते हैं। समाज कार्य का पेशा
अन्य पेशों से भिन्न है क्योंकि इसमें न केवल ज्ञान और कौशल की आवश्यकता
होती है, बल्कि नीतिगत मूल धारणाएँ और भावनाएँ भी शामिल होती हैं।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> <!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">समाज
कार्य की खासियत यह है कि इसमें लोगों, व्यक्तियों, दंपतियों, परिवारों,
समूहों अथवा समुदायों के साथ काम करना पड़ता है। इसका उद्देश्य लोगों की
सामाजिक स्थितियों में उचित बदलाव लाकर उनके जीवन की गुणवत्ता को सुधारने
तथा ऊपर उठाने में मदद करना है। इस क्षेत्र में संलग्न लोग पारिवारिक कलह,
व्यवहार तथा भावनात्मक समस्याओं, अवसादों, हताशाओं तथा चिंताओं से जुड़ी
समस्याओं को सुलझाने में लोगों की मदद करते हैं। यह सरकार की कल्याणकारी
योजनाओं की वकालात भी करते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">पेशेवर
सामाजिक कार्यकर्ता बनने के लिए पर्सनल मैनेजमेंट, और इंडस्ट्रीयल
रिलेशंस, क्रिमिनोलॉजी एंड करेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन, मेडिकल एंड
साइकिएट्रिक सोशल वर्क, फेमिली एंड चाइल्ड वेलफेयर, रुरल एंड अरबन
कम्युनिटी डेवलपमेंट तथा स्कूल सोशल वर्क जैसे किसी क्षेत्र में
स्पेशलाइजेशन के साथ सोशल वर्क या समाजशास्त्र में एमए तक की पढ़ाई करनी
आवश्यक है। देश के लगभग सभी स्कूल्स ऑफ सोशल वर्क में प्रशिक्षण सुविधा
उपलब्ध है। सुपरवाइज्ड प्रैक्टिल अनुभव जिसे फील्डवर्क कहा जाता है, वह
सोशल वर्क के प्रत्येक कोर्स के शैक्षणिक पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग माना
जाता है। </font><br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/0221/default.asp" target="_blank">स्त्रोत : नईदुनिया अवसर</a></html>
<html><big><big> नए-नए जॉब्स ने मचाई धूम
</big></big><br><big><big>इंश्योरेंस, हेल्थकेयर और रिटेल में भारी बूम
</big></big><br><span style="color: rgb(0, 0, 0); font-weight: bold;">- अशोक जोशी<br><br></span><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">करियर निर्माण की
'नई दुनिया' गुजरे जमाने के पारंपरिक करियर क्षेत्रों से एकदम अलग और
अलहदा है। जिस तरह समय चक्र तेजी से गुजर रहा है, जिंदगी के सभी
कार्यकलापों में तेजी को तरजीह दी जा रही है। प्रतिस्पर्धा, होड़ और
एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की प्रवृत्ति में किसी को एक जगह ठहरने की फुर्सत
नहीं है, लिहाजा करियर निर्माण पथ पर दौड़ जारी है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">कल
तक अवसरों के सारे रास्ते निर्माण क्षेत्र से शुरू होकर वहीं खत्म हो जाते
थे, जबकि आज सेवा क्षेत्र शीर्ष पर है। कभी सरकारी नौकरियों के प्रति युवा
वर्ग में गजब का आकर्षण था, और आज हालत यह है कि खुद सरकार को यह भय सता
रहा है कि कहीं उनके आईएएस अधिकारी निजी क्षेत्रों की राह न पकड़ लें। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>भ्रम भी, रोमांच भ</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ी</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जॉब
मार्केट में जो हलचल जारी है, उसने जहाँ युवाओं को रोमांचित किया है तो
उनके सामने भ्रम भी निर्मित किया है। आज युवाओं के पास करियर निर्माण की
ढेरों जानकारी उपलब्ध है। जगह-जगह आयोजित प्लेसमेंट कैम्पस और करियर फेयर
ने उन्हें अनेक विकल्प उपलब्ध कराए हैं। इन विकल्पों में कुछ ऐसे नए जॉब्स
भी शामिल हैं, जिन्होंने भारी धूम मचाई है। ऐसे ही कुछ हॉट जॉब्स की
जानकारी प्रस्तुत है :<!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>आगे है एनिमेश</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">न</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">आज
हर युवा के होंठों पर एनिमेशन का राग है। इस अनूठे क्षेत्र ने प्रिंट
मीडिया, टीवी, इंटरनेट, विज्ञापन तथा डिजिटल इंटरफेस के क्षेत्र में
ग्राफिक्स और विजुअल्स के रूप में अपनी पकड़ इतनी मजबूत कर ली है कि
वेबसाइटों से लेकर प्रेजेंटेशन और इंटेरियर से लेकर फैशन इंस्डस्ट्री, सभी
दूर एनिमेशन अग्रणी है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इस
समय हमारे देश के एनिमेशन उद्योग में लगभग साढ़े चार सौ करोड़ रुपया लगा है
और इस क्षेत्र में आगे भी भारी निवेश संभावित है। कार्टून, थ्रीडी फिल्म,
स्पेशल इफेक्ट्स के लिए एनिमेटर्स की भारी माँग है। इस क्षेत्र में
प्रतिष्ठित संस्थान से प्रशिक्षण लेकर शानदार करियर की शुरुआत की जा सकती
है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>बूम बीपीओ क</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ी</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">कल
तक बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) और कॉल सेंटर्स का नाम कोई नहीं
जानता था, लेकिन आज करियर निर्माण क्षेत्र में इन्हीं के सुर सुनाई दे रहे
हैं। बीपीओ इंडस्ट्री ने तो फटाफट पैसा कमाने और लचीली कार्य अवधि की
अवधारणा को इस तरह स्थापित किया है कि सभी दंग हैं। आज हमारे देश में लगभग
ढाई लाख लोग बीपीओ उद्योग को संचालित कर 25 हजार करोड़ रुपए का राजस्व
अर्जित कर रहे हैं। अब यह उद्योग महानगरों से आगे बढ़ता हुआ टू टायर सिटी
में अपनी गतिविधियाँ संचालित कर रहा है, जिससे हर माह बैंकिंग, फाइनेंस और
इंश्योरेंस से 500-1000 युवाओं को रोजगार मिल रहा है। </font><br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/0410/default.asp" target="_blank">स्त्रोत : नईदुनिया अवसर</a><br></html>
<html><!--ArticleText-->
<font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">मैं दसवीं पास हूँ तथा नर्सिंग पाठ्यक्रम करना चाहती हूँ। क्या यह पाठ्यक्रम पत्राचार के माध्यम से किया जा सकता है? -</font><font style="color: rgb(128, 128, 0);">जया सोनी, मंदसौर </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">नर्सिंग का पाठ्यक्रम बारहवीं के बाद किया जाता है। पत्राचार से नर्सिंग पाठ्यक्रम नहीं होता है।</font></html>
पढ़ाई की अंतिम मंजिल तक पहुंचते-पहंुचते हर विद्यार्थी कैरियर की राह बना लेता है। निश्चित रूप से नेशनल एलिजबिलिटी टेस्ट (नेट) छात्रों की इस तलाश का एक बेहतर विकल्प है। पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद दी जाने वाली यह परीक्षा छात्र को शोध हेतु जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) और विश्वविद्यालय स्तर पर अध्यापन हेतु लेक्चररशिप प्रदान करती है। यूजीसी द्वारा यह परीक्षा वर्ष में दो बार जून और दिसंबर माह में 66 चयनित विश्वविद्यालय केंद्रों पर आयोजित की जाती है। इस बार यह परीक्षा 16 दिसंबर को आयोजित की जा रही है।
डिगरी लेवल पर पढ़ाने की मंजिल को पाने का रास्ता है नेट (एनईटी)। इस दिसंबर में होने वाली इस परीक्षा के बारे में बता रही।
इसमें भाषा को सçम्मलित करते हुए मानविकी, कंप्यूटर साइंस, उसके अनुप्रयोग और इलेक्ट्रॉनिक्स को सçम्मलित किया जाता है।
रसायन विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान या लाइफ साइंस, गाणित, फिजिकल साइंस से जुड़े क्षेत्रों में जो लेक्चरर बनना चाहते हैं या इन क्षेत्रों में शोध करना चाहते हैं, उनके लिए यह परीक्षा महत्वपूर्ण है। नेट को संयुक्त रूप से यूनिवçर्सटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) और काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्टि्रयल रिसर्च द्वारा आयोजित किया जाता है।
परीक्षा का प्रारूप
नेट परीक्षा में मुख्यत: तीन प्रश्नपत्र होते हैं। इन प्रश्नपत्रों के माध्यम से आपकी मानसिक योग्यता, सामान्य जागरूकता, आपकी संप्रषेण क्षमता, बात को बता सकने का हुनर, अभिव्यक्ति की बेहतर क्षमता, शिक्षण/ शोध एप्टीटKूड और चुने गए विषय की गहन जानकारी को जांचने की कोशिश की जाती है।
प्रथम प्रश्नपत्र जनरल प्रकृति का होता है। यह आपका शैक्षिक और रिसर्च एप्टीटKूड जांचता है। इसमें मुख्यत: रीजनिंग एबिलिटी, कॉçम्प्रहेंशन, आपकी सोच और सामान्य जागरूकता के स्तर का मूल्यांकन किया जाता है।
दूसरे प्रश्नपत्र में आपके द्वारा चुने गए विषय से शॉर्ट प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रत्येक प्र्रश्नपत्र में 50 बहुविकल्पीय प्रश्न होते हैं। प्रश्नों के उत्तर आपको ओएमआर शीट पर देने होते हैं। ओएमआर शीट को भरने के तरीके के बारे में जानकारी एडमिट कार्ड में लिखी होती है।
तीसरे प्रश्नपत्र में 26 निबंधात्मक प्रश्न होते हैं। ये आपके द्वारा चयन किए गए विषय से ही पूछे जाते हैं। आपके द्वारा चयनित विषय को चार भागों में बांटकर प्रश्न दिए जाते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप प्रथम प्रश्नपत्र में सçम्मलित नहीं होते हैं, तो आपको दूसरे और तीसरे प्रश्नपत्र में बैठने की इजाजत नहीं दी जाएगी। सभी प्रश्नपत्रों को भी तभी जांचा जाएगा, जब आप प्रथम और द्वितीय प्रश्नपत्र में न्यूनतम उत्तीर्ण अंक प्राप्त नहीं कर लेते। जूनियर रिसर्च फेलोशिप उन छात्रों को प्रदान की जाती है,जो पीएचडी करना चाहते हैं। जेआरएफ मेरिट के आधार पर पांच वषोंüे के लिए निर्धारित शतोZ पर दी जाती है। जेआरएफ उन नेट छात्रों को दी जाती है, जो अपने नेट के आवेदन पत्र में जेआरएफ का विकल्प भरते हैं। जेआरएफ के लिए मासिक 10,000 रूपए प्रतिमाह और एसआरएफ के लिए मासिक 12,000 रूपए प्रतिमाह दिए जाते हैं। जेआरएफ के लिए यह 12,000 रुपये प्रतिमाह और एसआरएफ के लिए यह 14,000 रूपए प्रतिमाह कर दी गई है, लेकिन अभी इसे लागू होना शेष है।
निम्नलिखित डिगरियां प्राप्त छात्र नेट परीक्षा दे सकते हैं- मास्टर ऑफ लॉ ऑफ लॉज, मास्टर ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट, मास्टर ऑफ कॉमर्स, मास्टर ऑफ मेडिसिन, मास्टर ऑफ डांस, मास्टर ऑफ एजुकेशन, मास्टर ऑफ इंडोलॉजी, मास्टर ऑफ लॉज, मास्टर ऑफ लाइब्रेरी साइंस, मास्टर ऑफ लिटरेचर/मास्टर ऑफ लेटर्स/, मास्टर ऑफ म्यूजिक, मास्टर ऑफ ओरिएंटल लनिZग, मास्टर ऑफ फिजिकल एजुकेशन, मास्टर ऑफ सोशल वर्क, मास्टर ऑफ साइंस, मास्टर ऑफ स्टैटिस्टिक्स, मास्टर ऑफ सोशल वर्क, मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी, मास्टर ऑफ टेक्सटाइल्स, पारंगत, शिक्षण पारंगत, मास्टर ऑफ आट्र्स, मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशंस, मास्टर ऑफ फाइन आट्र्स, मास्टर ऑफ जनüलिज्म, मास्टर ऑफ लाइब्रेरी ऐंड इन्फो साइंस, शिक्षा आचार्य, मास्टर ऑफ परफॉमिZग आट्र्स, मास्टर ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज, मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग, मास्टर ऑफ फाइनेंस ऐंड कंट्रोल (सेशन 2000-01 तक के शैक्षिक सत्र के दौरान दी गई डिगरी), मास्टर ऑफ बिजनेस इकोनॉमी (2000-01 शैक्षिक सत्र में प्रवेश वाले), मास्टर ऑफ इंटरनेशनल बिजनेस (2000-01 के शैक्षिक सत्र में प्रवेश वाले), मास्टर ऑफ कारपोरेट सेक्रेटरीशिप (2000-01 शैक्षिक सत्र में प्रवेश वाले)
योग्यता
इस टेस्ट को देने के लिए आपकी बेसिक योग्यता परास्नातक स्तर की 55 प्रतिशत अंकों के साथ होनी चाहिए। अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिए अंकों में 5 प्रतिशत की छूट दी गई है। जो छात्र परास्न्ाातक स्तर की परीक्षा के अंतिम वर्ष में बैठ रहे हैं, वह भी नेट की परीक्षा में बैठ सकते हैं, लेकिन उनको उस परीक्षा में उत्तीर्ण तभी माना जाएगा, जब वह नेट परीक्षा के लिए निर्धारित न्यूनतम अंक प्राप्त कर लें। 19 सितंबर,1991 के पहले पीएचडी पूरी कर चुके छात्रों को भी अंकों में 5 प्रतिशत की छूट दी गई है।
यूजीसी के नए नियमों के मुताबिक जो एमफिल पूरी कर चुके हैं, वह अंडरग्रैजुएट लेवल पर पढ़ाने के लिए योग्य हैं। उनके लिए इस बात की बाध्यता नहीं है कि वे नेट परीक्षा उत्तीर्ण करें। पीएचडी धारकों को भी पीजी संस्थानों में लेक्चरर के रूप में पढ़ाने के लिए नेट को पास करना आवश्यक नहीं है।
परवीन मल्होत्रा
<html>नेशनल डिफेंस एकेडमी की स्थापना 57 साल पूर्व हुई थी। यहां के पासआउट्स ने भारतीय सेना में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए कई मानक स्थापित किए हैं। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में देश के किशोर एनडीए की प्रवेश परीक्षा में स्वयं की काबिलियत परखते हैं। कहना न होगा कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एक प्रीमियर इंटर सçर्वस ट्रेनिंग सस्थान है, जहां आम्र्ड फोसेüस के भावी ऑफि सर तराशे जाते हैं। इस एकेडमी में तीन वषोü में कैडेट अपनी विशिष्ट सçर्वस एकेडमी जैसे इंडियन मिलिट्री एकेडमी, नेवल एकेडमी और एअरफोर्स एकेडमी को ज्वॉइन कर एक ऑफिसर के रूप में देश की सुरक्षा के संकल्प के साथ रूबरू होते हैं।<br><br> कैशोर्य में ही कठिन प्रतियोगी परीक्षा, मुश्किल साक्षात्कार और कड़ी मेडिकल जांच से गुजरकर ऑफिसर बनने में जो सफल रहा, उसके हौसले व जज्बे का पारावार मापना मुश्किल होता है। कमीशंड ऑफिसर बनना कोई हंसी-खेल नहीं। इसके लिए चाहिए तन-मन की संपूर्ण फिटनेस और प्रखर बौद्धिक कुशाग्रता। आखिर सवाल रक्षा सेवा का जो है। एनडीए केलिए कैसे होता है चयन, बता रही हैं। <br> <br><br><br>परीक्षा का संचालन<br><br><br>एनडीए परीक्षा का संचालन संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा किया जाता है। कोर्स की प्रशिक्षण अवधि तीन वर्ष होती है। उम्मीदवार जिस विंग में जाना चाहता है, उसका विवरण उसे पहले ही अपनी पहली, दूसरी और तीसरी पसंद के रूप में आवेदन पत्र में लक्षित करना होता है। आखिरी निर्णय मैरिट लिस्ट में उसके द्वारा प्राप्त रैंक पर निर्भर करता है। अभ्यर्थी को यह भी निर्णय करना होता है कि वह एनडीए और नेवल अकादमी (कार्यकारी शाखा) में से किसके तहत प्रशिक्षण लेना चाहता है। अगर उम्मीदवार प्रशिक्षण के लिए एनडीए को चुनता है, तो उसे एनडीए की तीनों विंग आर्मी, नेवी और एअरफोर्स का चुनाव भी अभिरुचि के हिसाब से करना होता है।<br><br><br><br><br>डिगरी<br><br><br>अभ्यर्थी के द्वारा तीन वर्ष की समाçप्त के उपरांत एनडीए अभ्यर्थी को आर्ट, साइंस अैर कंप्यूटर में स्नातक की डिगरी प्रदान करता है। अगर अभ्यर्थी ने तकनीकी स्ट्रीम ज्वॉइन की है, तो उसेे देश के सबसे प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान से इंजीनियरिंग में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिगरी का प्रस्ताव दिया जाता है। प्रतिष्ठित सुरक्षा स्टाफ कॉलेज कोर्स में हो जाने के बाद अभ्यर्थी को सुरक्षा और युद्धनीति स्ट्डीज के तहत साइंस में स्नातकोत्तर की डिगरी प्रदान की जाती है। भारतीय सेना भी देश की कुछ प्रतिष्ठित एकेडमी और संस्थान का संचालन करती है, जहां पर विषयों की एक बड़ी श्रृंखला में इंजीनियरिंग से लेकर मेडीसिन, एडमिनिस्ट्रेशन से लेकर स्ट्रेटजी और प्रबंधन से लेकर शस्त्रीकरण तक के विषयों को शामिल किया जाता है। अभ्यर्थी रिसर्च और डेवलपमेंट भी चुन सकते हैं।<br><br><br><br><br>अहüता<br><br><br>अभ्यर्थी को भारत का नागरिक होना चाहिए। <br><br><br>परीक्षा में बैठने के लिए अभ्यर्थी की आयु 16 1/2 से कम और 1 जनवरी या 1 जुलाई में परीक्षा उत्तीर्ण करने की अवधि तक 19 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। अभ्यर्थी की आयु विंग के मानक के अनुसार होनी चाहिए।<br><br><br>-इंडियन मिलिट्री एकेडमी के लिए 19-24 वर्ष<br><br><br>-नेवल एकेडमी के लिए 19-22 वर्ष<br><br><br>-एअरफोर्स एकेडमी के लिए 19-23 वर्ष<br><br><br>-ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी के लिए 19-25 वर्ष <br><br><br>-सिर्फ पुरुष अभ्यर्थी ही इस परीक्षा के लिए आवेदन कर सकते हैंे।<br><br><br>उम्मीदवार को अविवाहित होना चाहिए। यदि कोई अभ्यर्थी आवेदन पत्र की तारीख तक शादी कर लेता है, तो वह इस परीक्षा के लिए अयोग्य माना जाता है।<br><br><br><br><br>शैक्षिक योग्यता<br><br><br>एनडीए की प्रवेश परीक्षा के लिए उम्मीदवार को 60 प्रतिशत अंक के साथ 12वीं कक्षा उत्तीर्ण होना चाहिए या राजकीय शैक्षिक बोर्ड या यूनिवçर्सटी के द्वारा इस स्तर की परीक्षा देय होनी चाहिए। एनडीए में एअरफोर्स एवं नेवल विंग सहित नेवल एकेडमी (कार्यकारी शाखा) से 10 + 2 कोर्स के लिए अभ्यर्थी को 10 + 2 के स्कूली पैटनü के तहत 60 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं कक्षा उत्तीर्ण होनी चाहिए या राजकीय शैक्षिक बोर्ड-यूनिवçर्सटी के द्वारा फिजिक्स और मैथमेटिक्स के साथ ही इस स्तर की परीक्षा देय होनी चाहिए।<br><br><br>-12वीं की परीक्षा में बैठने वाले अभ्यर्थी भी इस परीक्षा के लिए आवेदन कर सकते हैं।<br><br><br><br><br>शारीरिक स्तर<br><br><br>राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नेवल एकेडमी परीक्षा में दाखिले के लिए निश्चित किए गए शारीरिक मापदंड के हिसाब से उम्मीदवार को शारीरिक और मानसिक रूप से एकदम फिट होना चाहिए। अभ्यर्थी की हाइट यानी ऊंचाई 157.5 सेमी व (एअरफोर्स के लिए 162.5 सेमी) होनी चाहिए। सçर्वस सेलेक्शन बोर्ड के द्वारा उम्मीदवार की संस्तुति करने पर सçर्वस मेडिकल बोर्ड के द्वारा अभ्यर्थी मेडिकल की परीक्षा से गुजरता है। एकेडमी में सिर्फ उन्हीं उम्मीदवारों को प्रवेश दिया जाता है, जिन्हें मेडिकल बोर्ड के द्वारा फिट घोषित किया जाता है। मेडिकल बोर्ड की यह टेस्ट प्रक्रिया बहुत ही गोपनीय होती है।<br><br><br><br><br>वैकेन्सीज<br><br><br>परीक्षा परिणाम आने के बाद एनडीए में भतीü किए जानेवाले रिक्त स्थानों की संख्या 335 होती है, जिसमें आर्मी के लिए 195, नेवी के लिए 39, एअरफोर्स के लिए 66 और नेवल एकेडमी (कार्यकारी संस्था) के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या 35 होती है।<br><br><br><br><br>आवेदन की प्रक्रिया<br><br><br>यूपीएससी के द्वारा सभी परीक्षाओं के लिए एक सामान्य आवेदन पत्र कंप्यूटराइज्ड मशीन से तैयार किये जाते हैं। आवेदन पत्र सामान्य निदेेüशों को समाहित करते सूचना वाउचर को फॉर्म के साथ भरकर, एक एडी कार्ड और एक एनवेलप एप्लीकेशन के साथ निçर्दष्ट हैड पोस्ट ऑफिस/देश से पोस्ट किए जाते हैं। आवेदन की प्रक्रिया और अन्य विवरण संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा प्रमुख अखबारों और रोजगार समाचार में मार्च और सितंबर महीने में प्रकाशित किए जाते हैं। अगर मान्यताप्राप्त पोस्ट ऑफिस में आपको आवेदन पत्र प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की असुविधा हो, तो संबंधित पोस्टमास्टर या यूपीएससी के फार्म सप्लाई मॉनिटरिंग सेल के दूरभाष नं-011-23389366 और फैक्स नं 011-23387310 पर जानकारी ले सकते हैं।<br><br><br><br><br>चयन<br><br><br>अभ्यर्थी का दाखिला एसएसबी द्वारा आयोजित की जानेवाली परीक्षा में लिखित चरण के बाद बुद्धिमता परीक्षा और व्यक्तित्व परीक्षण में उत्तीर्ण होने के पश्चात् ही फाइनल किया जाता है। सभी अभ्यर्थियों क ो प्रथम स्तर की परीक्षा के लिए पहले दिन सिलेक्शन सेंटर/एअरफोर्स सेलेक्शन बोर्ड पर रिपोर्ट करनी होती है। दूसरे स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों को अपने सभी मौलिक प्रमाणपत्र, फोटोकॉपी सहित जमा करने होते हैं।<br><br><br><br><br>परीक्षा का ढांचा<br><br><br>परीक्षा दो स्तरों पर होती है। पहली लिखित परीक्षा और इसमें पास करने के बाद बुçद्धपरीक्षण, अवरोध और समूह टेस्ट एसएसबी के द्वारा संचालित किया जाता है।<br><br><br>इंडियन मिलिट्री एकेडमी , नेवल एकेडमी और एअरफोर्स एकेडमी के लिए<br><br><br>विषय----------अंक-------समय<br><br><br>अंग्रेजी की परीक्षा---300-------2 घंटे<br><br><br>सामान्य ज्ञान------300--------2 घंटे<br><br><br>ऐलीमेंट्री मैथेमेटिक्स---300------2 घंटे<br><br><br>लिखित परीक्षा 900 अंकों की होती है। इसके बाद एसएसबी के द्वारा लिए जानेवाले साक्षात्कार में निर्धारित अंक 900 होते हैं। सभी विषयों के पेपर में सिर्फ वस्तुनिष्ठ प्रश्न ही पूछे जाते हैं। मेथेमेटिक्स और सामान्य ज्ञान टेस्ट के पार्ट बी के सभी प्रश्नपत्र (टेस्ट बुकलेट) अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में तैयार किए जाते हैं। मैथेमेटिक्स के तहत अर्थमेटिक, एलजेबरा, ज्योमेट्री, स्टेटिस्टिक्स से प्रश्न पूछे जाते हैं। सामान्य योग्यता टेस्ट के तहत पार्ट ए में अंग्रेजी ग्रामर, इसके प्रयोग, शब्दकोष, कॉम्परीहैंशन समेत अंगरेजी भाषा पर पकड़ की जांच की जाती है। सामान्य ज्ञान के तहत फिजिक्स, केमिस्ट्री, जनरल साइंस, सोशल स्टडीज, ज्योग्राफी और करंट इवेंट्स संबधी पास उम्मीदवार को एसएसबी द्वारा साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के बाद सफल हुए अभ्यर्थियों को मेडिकल टेस्ट के लिए भेजा जाता है।<br><br> <br> रजनी तोमर <br><br></html>
<html>सशस्त्र सेनाओं में प्रवेश के माध्यमों में नेशनल डिफेंस एकेडेमी परीक्षा यानी एनडीए का अपना अलग स्थान होता है। एनडीए में प्रवेश के लिए संघ लोक सेवा आयोग द्वारा वष्ाü में दो बार परीक्षा का आयोजन किया जाता है।<br><br> भारतीय सेनाओं में कैरियर बनाने वालों के लिए उपलçब्धयों की नई ऊंचाइयां हैं। वेतन, सेवा और भत्तों के लिहाज से यह आकर्षक सेवा क्षेत्र हो गया है। <br> <br><br><br>परीक्षा का स्वरूप<br><br><br>परीक्षा दो चरणों में होती है : लिखित परीक्षा और बुद्धि एवं व्यक्तित्व परीक्षण। लिखित परीक्षा में प्रश्न पत्र गणित और सामान्य परीक्षण के होते हैं। ढाई घंटे के ये प्रश्न पत्र क्रमश: 300 और 600 अंक के होते हैं। दोनों प्रश्नपत्रों में केवल वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं। किसी भी प्रश्न में गलती होने पर नकारात्मक अंक दिए जाते हैं।<br><br><br>-गणित : यह विषय महत्वपूर्ण है। यह प्रश्नपत्र कुल 300 अंकों का होता है। इसमें 150 मिनट में 120 प्रश्न वस्तुनिष्ठ प्रकार के होते है। इसमें प्रश्नों का स्तर दसवीं तथा बारहवीं का होता है।<br><br><br>गणित की तैयारी के लिए पिछले वष्ाोंü के प्रश्न को निश्चित समय में हल करने का अभ्यास करें। संबंधित पदों से संबंधित फॉमूüला तथा प्रमेय को अच्छी तरह से याद करें, खासकर मेन्सुरेशन, बीजगणित, सांçख्यकी से फामूüले, ज्यामिति से प्रमेय तथा त्रिकोणमिति से ज्यामितिक सारणी को याद करें।<br><br><br>-सामान्य क्षमता परीक्षण : इसके दो भाग होते हैं : भाग (क) अंगरेजी का है, जिसमें 200 अंक व भाग (ख) सामान्य ज्ञान 400 अंक का होता है। इस भाग में कुल 15 प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनको 150 मिनट में हल करना होता है।<br><br><br>भाग क के अंतर्गत उम्मीदवार की अंगरेजी भाष्ाा की समझ और शब्दों के कार्य साधन ज्ञान का परीक्षण किया जाता है। अंगरेजी की तैयारी के लिए निरंतर अभ्यास के साथ-साथ व्याकरण पर ध्यान दें। शब्द भंडार बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि आप प्रतिदिन स्तरीय न्यूजपेपर पढ़ें और उसमें से शब्द छांटकर उनका अथü जानें तथा याद करें।<br><br><br>द्वितीय प्रश्न में भी दो भाग होते हैं। उसमें दूसरा भी छह भागों में बंटा होता है। यह भाग कुल ब्00 अंक का होता है।<br><br><br>भाग 1 भौतिक शास्त्र का होता है। इसमें दसवीं तथा बारहवीं स्तर के प्रश्न पूछे जाते हैं। इसमें मुख्य हैं: प्रॉपर्टीज ऐंड स्टेट्स ऑफ मैटर, मोशन ऑफ ऑब्जेक्ट, इफेक्ट ऑफ हीट, रेक्टीलिनियर प्रोपेगेशन ऑफ लाइट, नेचुरल एंड आटिüफियल मैगनेट तथा स्टेटिक ऐंड करेन्ट इलेçक्ट्रसिटी। भाग ख् में फिजिकल एेंड केमिकल चेंज, काबüन के डिफरेन्ट फाम्र्स, एलिमेंट्री आइडिया एबाउट द स्ट्रक्चर ऑफ एटम से प्रश्न पूछे जाते हैं। भाग फ् में जेनरल साइंस से संबंधित प्रश्न होते हैं। भाग ब् में सामान्य अध्ययन से संबंधित प्रश्न होते हैं, जैसे भारतीय इतिहास, स्वतंत्रता आंदोलन, संविधान, प्रशासन, पंचवष्ाीüय योजना इत्यादि। इसके साथ आधुनिक विश्व से भी प्रश्न पूछे जाते हैं। भाग भ् भूगोल का है, जिसमें प्राकृतिक भूगोल, भारत, विश्व से संबंधित प्रश्न होते हैं। भाग म् समसामयिक घटनाओं पर आधारित होता है। इसमें भारत तथा विश्व में घटित होने वाली घटनाओं पर आधारित प्रश्न होते हैं।<br><br><br><br>एसएसबी<br><br><br>लिखित परीक्षा पास करने के बाद अभ्यथीü को सçर्वसेज सेलेक्शन बोर्ड में साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। इसके स्क्रीनिंग टेस्ट में पास होने पर चार दिन अन्य परीक्षणों से गुजरना होता है। स्क्रीनिंग टेस्ट में अभ्यथीü से मनोवैज्ञानिक सवाल पूछे जाते हैं। इसके साथ एक चित्र पर कहानी लिखनी होती है। इसी कहानी पर ग्रुप डिस्कशन होता है।<br><br><br>स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद वास्तव में साक्षात्कार शुरू होता है। इसमें तीन अलग-अलग तरीकों से अभ्यथीü की मनोवैज्ञानिक जांच की जाती है। यह टेस्ट लिखित होता है। एसएसबी के दूसरे भाग यानी ग्रुप टास्क में छात्रों की समूह में कार्य करने की क्षमता, नेतृत्व कुशलता की जांच की जाती है। एसएसबी का तीसरा और अंतिम दौर पर्सनल साक्षात्कार का होता है, जिसमें जीवन और अभ्यथीü की रुचियों के विष्ाय में सामान्य सवाल पूछे जाते हैं।<br><br> <br> <span style="font-weight: bold;">आदित्य कुमार पाण्डेय </span><br><br></html>
कंप्यूटर और इंटरनेट के अधिकाधिक प्रयोग अब न सिर्फ शिक्षा व जानकारियों के लिए हो रहा है, बल्कि रोजगार देने और ढूंढने में भी हो रहा है। कभी रोजगार समाचार पढ़कर कंपनियों और संस्थानों का चक्कर लगाते-लगाते हम थक जाते थे। इसमें समय व ऊर्जा के साथ काफी धन भी खर्च होता था, लेकिन इंटरनेट ने अब यह काम आसान बना दिया है। यही वजह है कि आज ऑन-लाइन जॉब सर्च करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब वह दिन दूर नहीं, जब ई-नियुक्ति रोजगार देने का सबसे लोकप्रिय जरिया बन जाएगी।
जॉब की तलाश में दफ्तरों के चक्कर काटने के दिन गए। अब इंटरनेट ने घर बैठे तमाम अवसरों को आपकी हद में ला दिया है। प्रस्तुत है किरण मिश्रा का आलेख
क्या है ऑन-लाइन जॉब सचिZग?
यदि आप अपनी मौजूदा नौकरी को छोड़ किसी दूसरी कंपनी में जाना चाहते हैं या आप कंपनी में अपनेकाम से खुश नहीं हैं और नौकरी तलाशने के लिए बहाने करने पड़ते हैं, तो अब इसकी जरूरत नहीं है। अब यह काम आपके लिए जॉब साइट्स्ा करेंगी। किसी भी जॉब साइट्स्ा पर अपनी प्रोफाइल के हिसाब से नौकरी सर्च कर लें, çक्लक करें और अच्छी नौकरी पाएं। है न आसान!
नौकरी डॉट काम के वरिष्ठ अधिकारी संजीव बीके चंदानी का कहना है कि ऑन लाइन जॉब सचिZग से रोजगार के कई विकल्प खुल गए हैं। आप एक जगह बैठे-बैठे दुनिया के किसी भी कोने में अपना प्रोफाइल भ्ोज सकते हैं और कंपनियां भी सीधे उम्मीदवार से संपर्क कर सकती हैं।
कंपनियों की बढ़ती रुचि एवं कर्मचारियों के बढ़ते प्रोफाइल के कारण रोजगार पोर्टलों ने पिछले दो साल में काफी तरक्की की है। अब कई कंपनियां अपने यहां नियुक्ति के लिए जॉब साइट्स का सहारा लेने लगी हैं।
अपना प्रोफाइल कैसे बनाएं
ब्रांड बैंड का ही कमाल है कि आज साक्षात्कार से लेकर प्रवेश परीक्षा तक सब कुछ ऑन लाइन होने लगा है। अब आईटी, आईटीईएस, वित्तीय सेवाओं से जुड़ी कंपनियां पचास प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी की भरती ई-नियुक्ति से कर रही हैं। ऐसे में, आपके बायोडाटा का प्रभावशाली होना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले आपको किसी भी जॉब पोर्टल्ा पर अपना रजिस्ट्रेशन करना पड़ता है।
रजिस्ट्रेशन करते समय ध्यान रखें
रजिस्ट्रेशन के लिए आपको एक ऑन लाइन फॉर्म भरना होता है। इस फॉर्म में अपना नाम, पता, ईमेल आईडी, मोबाइल/फोन नंबर जैसी बुनियादी जानकारियों के अलावा अपने शैक्षणिक एवं व्यावसायिक योग्यता, स्किल, कैटेगरी तथा एक्सपीरिएंस के बारे में भी जानकारी देनी होती है। इस प्रक्रिया में आपको अपना लॉग -इन आई डी तथा पासवर्ड भी देना होता है, जिससे भविष्य में आप साइट पर लॉग-इन कर जॉब सर्च या अपना प्रोफाइल अपडेट कर सकते हैं। यह फॉर्म विभिन्न साइटों पर अलग-अलग हो सकती है। लेकिन इन सबका एकमात्र उद्देश्य होता है आपके प्रोफाइल के बारे में जानकारी इकट्ठा करना। इससे आपका ऑन लाइन रिज्यूमे क्रिएट हो जाएगा।
आवेदन का प्रारूप
जॉब ढंूढने के लिए साइट पर एक लिंक होता है, जिसे çक्लक करते ही एक नया वेब पेज खुलता है। इस पेज में आपको अपनी मनपसंद जॉब से संबंधित जानकारियां मांगी जाती हैं। मसलन, स्किल, लोकेशन, अनुभव, अपेक्षित तनख्वाह, ये तमाम जानकारियां भरकर çक्लक करते ही आपके लिए एक नया पेज खुलता है, जिस पर कई जॉब्स देखी जा सकती हैं। आप जिस क्षेत्र के लिए खुद को दक्ष पाते हैं, उसके लिए डायरेक्ट अप्लाई भी कर सकते हैं। आपका यही आवेदन एक ईमेल के रूप में जॉब पोस्ट करने वाली कंपनी के पास चला जाता है। इसके बाद अगर आपका प्रोफाइल किसी कंपनी को जंचता है, तो ईमेल या फोन करके आगे की प्रक्रिया शुरू होती है।
कंपनियां भी तलाशती हैं
जिस प्रकार कोई व्यक्ति जॉब सर्च करता है, उसी प्रकार कंपनियों को भी अच्छे लोगों की तल्ााश रहती है। वे भी जॉब साइट्स पर रिज्यूमे सर्च करती हैं। इसलिए आपको अपने प्रोफाइल में सही-सही एवं अपडेटेड जानकारियां रखनी चाहिए। यदि आप गंभीरतापूर्वक जॉब सर्च कर रहे हैं, तो अपने अनुभव, स्किल्स एवं लोकेशन वगैरह की विस्तृत जानकारी अवश्य दें। मॉन्सटर इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट विकास अग्रवाल कहते हैं, `सही उम्मीदवारों की तलाश के लिए वेबसाइटों का इस्तेमाल सौ प्रतिशत तक बढ़ चुका है, क्योंकि ऑन लाइन भरती उन्हें सही बायोडाटा और सही दक्षता वाले व्यक्ति चुनने के लिए सर्च विकल्पों की विविधता प्रदान करती है। आज ये कंपनियां भरती का 45 फीसदी हिस्स्ाा ऑन लाइन भरती के लिए रख रही हैं, जबकि 15 से 16 फीसदी हिस्सा प्लेसमेंट एजेंसियों, 10 प्रतिशत अखबारों में विज्ञापन पर खर्च कर रही हैं। ऑन लाइन कारोबार रोजगार देने और चाहने वाले, दोनों के लिए सर्वाेत्तम विकल्प बन रहा है।
प्लेसमेंट एजेंसी की भूमिका
आजकल रोजगार दिलाने में जॉब प्लेसमेंट एजेंसी की भूमिका भी काफी बढ़ गई है। अकेले दिल्ली में ही हजार से भी अधिक प्लेसमेंट एजेंसियां हैं। प्लेसमेंट एजेंसियों के कारण प्राइवेट कंपनी मालिकों भी योग्य कर्मचारी ढंूढने की सिरददीü खत्म हो गई है। अब कंपनियां संबंधित प्लेसमेंट एजेंसी को सिर्फ सूचना देती हैं कि उन्हें अमुक पद के लिए इतने युवक व युवतियों की जरूरत है। इससे उन्हें अपने यहां न तो आवेदकों की भीड़ एकत्रित करनी पड़ती है और न इंटरव्यू आदि लेने में घंटों समय बबाüद करना पड़ता है। प्लेसमेंट एजेंसियां पद के काबिल युवक-युवतियों को संबंधित कंपनियों में भेजती हैं, जहां अनौपचारिक बातचीत के बाद उनकी नियुक्ति की जाती है। आपको किसी कंपनी में रिक्तता के बारे में जानकारी मिलती रहे, इसके लिए जॉब प्लेसमेंट कार्यालय में अपना रजिस्ट्रेशन कराना होता है। इसके लिए आपको 100 से 500 रुपये बतौर शुल्क जमा कराना पड़ता है। जब भी एजेंसी के पास किसी कंपनी की रिक्वायरमेंट आती है और उससे कोई प्रोफाइल मैच करता है, तो तत्काल उसे कॉल करती है।
स्वरोजगार के मौके
प्लेसमेंट एजेंसी के काम ने महिलाओं को ज्यादा आकçष्ाüत किया है। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत नहीं होती। सिर्फ प्रचार-प्रसार के लिए थोड़ी-बहुत रकम खर्च करनी पड़ती है। प्रिया पिछले दो साल से कैरियर रियल मैक्स नाम से जॉब प्लेसमेंट एजेंसी चला रही हैं। प्रिया बताती हैं कि रजिस्ट्रेशन के नाम पर उम्मीदवार से हम कोई पैसा नहीं लेते, हाला¨क बहुत सारी प्लेसमेंट एजेंसियां रजिस्ट्रेशन के नाम पर उम्मीदवार से 100 से 500 रुपये लेती हैं। हम सिर्फ कंपनी से धन लेते हैं, जो चयनित उम्मीदवार के एक महीने की तनख्वाह और कुछ सçर्वस टैक्स के बराबर होता है। किस कंपनी में कितनी रिक्तियां हैं और कहां किस तरह की रिक्वायरमेंट है, यह जानने के लिए हमें विभिन्न कंपनियों से संपर्क करना पड़ता है और अगर आपकी सçर्वस अच्छी है, तो कंपनियां खुद ही समय-समय पर नियुक्ति संबंधी जानकारियां देती रहती हैं। हां इस काम में कई बार उम्मीदवारों के साथ माथापच्ची भी करनी पड़ती है। जैसे अगर उनको इंटरव्यू के लिए बुलाओ, तो वे कहेंगे कि आज नहीं कल, 10 बजे नहीं, 2 बजे। कोई न कोई बहाना करके वे टालने की कोशिश करते हैं। ऐसे में, हमें फिर कंपनियों से अगले शेड्यूल के बारे में बात करनी पड़ती है, अगर मान गए तो ठीक, अन्यथा वे दूसरे उम्मीदवार को चुन लेती हैं। इसके अलावा हम उम्मीदवारों का प्रोफाइल विभिन्न जॉब साइट्स पर फॉरवर्ड करते रहते हैं। वैसे कई कंपनियां अपना प्रोफाइल इन साइट्स पर नहीं डालतीं। इसके लिए प्लेसमेंट एजेंसी ही कंपनी और उम्मीदवार केबीच पुल का काम करती है।
प्लेसमेंट एजेंसी चलाने के लिए अंगरेजी भाष्ाा का ज्ञान बहुत जरूरी है। जहां तक आमदनी की बात है, तो इसमें कोई निश्चित आय नहीं होती। कभी-कभी 15 से 20 हजार रुपये मिल जाते हैं। अनुभव के साथ आपकी आय में बढ़ोतरी होती हैं।
महत्वपूर्ण जॉब साइट्स
1. www.naukri.com 2. www.monsterindia.com
3. www.clickjobs.com 4. www.timesjobs.com
5. www.jobstreet.com 6. www.in.jobs.yahoo.com
7. www.jobsahead.com 8. www.placementindia.com
9. www.jobcity.net 10. www.cybermediadice.com
11. www.careerindia.com 12. www.in.recruit.net
13. www.careerbuilderindia.com 14. www.careerjet.co.in
15. www.naukrihub.com 16. www.naukri200.com
17. www.bixee.com 18. www.jobsearch.rediff.com
19. www.careerkhazana.com 20. www.india.jobs.com
बारहवीं के बाद ग्रैजुएशन के लिए प्रवेश की मारामारी के बीच छात्रों में बीए और एमए जैसे डिगरी कोसेüज को लेकर भी ऊहापोह चलती रहती है। कई बार अभिभावकों की ओर से भी छात्र पर परंपरागत कोसेüज को लेकर दबाव बनाया जाता है।
बारहवीं के बाद का समय महत्वपूर्ण है। एक ओर प्रतिçष्ठत परंपरागत कोर्स हैं, तो दूसरी ओर नए प्रोफेशनल कोर्स। सोच-समझकर ही निर्णय लें। प्रतिमा पांडेय का आलेख
प्रोफेशनल या ट्रेडिशनल कोर्स
कॉलेजों में एडमिशन का दौर चल रहा है। हर कॉलेज अपने यहां उपलब्ध विषयों में प्रोफेशनल कोसेüज को ज्यादा प्रचारित कर रहे हैं और छात्र भी उन कोसेüज में प्रवेश के लिए रुचि लेते दिखाई दे रहे हैं।
सच यही है कि आज के दौर की जरूरत है प्रोफेशनल कोसेüज। अगर कॉलेजों में इन्हें हाईलाइट किया जा रहा है, तो इसीलिए, क्योंकि अब कैरियर बनाने की उम्र पचीस या तीस नहीं, बल्कि ठीक ग्रैजुएशन के बाद की हो गई है। यानी बारहवीं के बाद मिले तीन वषोüं की प्लानिंग आप ऐसे करें कि ग्रैजुएशन खत्म होने तक आपके पास एक विशिष्ट तकनीकी दक्षता हो, जिसके आधार पर आप चाहे, तो तुरंत ही नियुक्ति भी प्राप्त कर सकते हो।
ऐसा नहीं है कि परंपरागत कोसेüज की आवश्यकता नहीं रही। लेकिन यह भी सच है कि अगर आपको बेहतर कमाना है और अपनी पहचान बनानी है, तो परंपरागत कोर्स में ग्रैजुएशन के बाद कोई न कोई प्रोफेशनल कोर्स करना ही पड़ेगा। तो फिर समय बरबाद क्यों करें, ग्रैजुएशन से ही प्रोफेशनल एजुकेशन क्यों न ली जाए।
ट्रेडिशनल डिगरियां
ट्रेडिशनल कोर्स पढ़ने का फायदा यह होता है कि किसी विषय के अनेक पहलुओं से आपको परिचित करवाता है। यह चिंतन और विश्लेषण क्षमता को बढ़ाता है और अन्वेषणकर्ता के तौर पर आपको विकसित करता है। किंतु किसी एक तकनीक में दक्षता प्रदान नहीं करता। जिनका लक्ष्य टीचिंग या रिसर्चेस के क्षेत्र में जाने होता है, उनके लिए बीए और एमए की डिगरी महत्वूपर्ण भूमिका निभाती है।
वोकेशनल कोसेüज
एक समय था, जब अपने देश को नई तकनीकों की खोज की आवश्यकता थी। इसीलिए वैज्ञानिक सोच वाले और विषय के सैद्धांतिक पक्ष का ज्ञान रखने वालों की आवश्यकता थी। अब बहुत सी तकनीकें विकसित हो चुकी हैं और उन पर आधारित यंत्रों, उपकरणों और सेवाओं की बहुलता है। यानी अब जरूरत है उन तकनीकों के जानकारों की, ताकि तकनीकों का व्यावहारिक उपयोग बिना बाधा के किया जा सके। यही कारण है कि वोकेशनल कोर्सेज का विकास किया गया। वोकेशनल कोसेüज रोजगारपरक होते हैं। इसीलिए उन्हें पूरा करने पर आपको रोजगार आसानी से मिल जाता है। ये खासतौर पर उन छात्रों के लिए बनाए गए, जिन्हें अन्य सुविधाएं आसानी से मुहैया नहीं हैं।
प्रोफेशनल कोसेüज
पश्चिम में बहुत समय तक थियोलॉजी, लॉ और मेडिकल के क्षेत्र को ही प्रोफेशंस के तौर पर जाना जाता रहा। फिर इंजीनियरिंग और आर्किटेक्ट भी इसमें शामिल हुए। बाद में इसमें डेंटिस्ट्री, टीचिंग, जनüलिज्म, लाइब्रेरियनशिप और फॉरेस्ट्री जैसे विषय शामिल हुए। एक तरह से कहा जा सकता है कि प्रोफेशनल कोसेüज संबंधित विषय में आपको दक्ष बनाते हैं।
जरूरत आज की
आज कैरियर लाइफ की प्लानिंग में तीस से पैंतीस साल का समय वह दौर माना जाता है, जब आप अपने चुने हुए फील्ड में शिखर पर होंगे। ऐसे में, प्रोफेशनल कोर्स उपयुक्त इसलिए है, क्योंकि यह आपको विषय में उच्चस्तरीय दक्षता देता है। जिसके आधार पर कैरियर की शुरुआत आपको पहले पायदान से नहीं करनी पड़ती। बल्कि आप कोर्स समाप्त करने तक ही ऊंचे पदों की जिम्मेदारी संभालने लायक बना दिए जाते हैं।
कैरियर काउंसलर परवीन मल्होत्रा के अनुसार, डिगरी कोसेüस उतने उपयोगी नहीं होते, जितने कि प्रोफेशनल कोसेüस। बीए या एमए डिगरी है , इन्हें करने के बाद आप सीधे जॉब में नहीं जा सकते। इन्हें एकेडेमिक कोर्स कहा जाता है, क्योंकि इनमें सिद्धांत के बारे में समझाया जाता है, व्यावहारिक जीवन में उसके प्रयोग पर किसी प्रकार की ट्रेनिंग नहीं दी जाती।
प्रोफेशनल कोर्स बनाम पारंपरिककोर्स
तो क्या एमए या बीए की डिगरी की सार्थकता समाप्त हो गई है? परवीन मल्होत्रा के अनुसार, आज के दौर में प्रोफेशनल कोर्स करने वालों को जॉब में वरीयता दी जाती है।
यह सच है कि बीए और एमए की सार्थकता खत्म होती जा रही है। आज के दौर की डिमांड को देखते हुए जरूरी हो गया है कि हायर एजुकेशन यानी बीए या एमए आदि के करिकुलम को फिर से बनाया जाए। जॉब माकेüट में स्थिति यह है कि कंप्यूटर्स के एरिया में बीसीए किए छात्र को तो जॉब मिल जाती है, लेकिन उसी जॉब के लिए बीएससी फिजिक्स किए छात्र को कंपनियां वरीयता नहीं देतीं। अगर आपको टीचिंग प्रोफेशन में जाना है, तो बीए और एमए किया जा सकता है, अन्यथा अन्य किसी भी फील्ड जॉब में यह शैक्षणिक डिगरी आपके लिए बहुत अधिक सहायक होने वाली नहीं।
प्रोफेशनल कोसेüस का विस्तार
मेडिकल, इंजीनियरिंग, कंप्यूटर्स, मैनेजमेंट से संबंधित अधिकतर कोसेüज प्रोफेशनल कोसेüज की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। हालांकि इसमें एक उलझाव देखने को मिलता है। अगर प्रोफेशनल ट्रेनिंग ही मिलनी है, तो उसमें बैचलर्स लेवल और मास्टर्स लेवल की क्या जरूरत है? पर अगर आपको बैचलर लेवल से ही प्रोफेशनल कोर्स शुरू कर देने केपीछे एक तो विषय में स्पेशलाइजेशन का बैकग्राउंड तैयार हो जाता है, दूसरे उस फील्ड में शुरुआती पायदान की नौकरियां आसानी से मिल जाती हैं।
प्रमुख प्रोफेशनल कोर्स
बिजनेस मैनेजमेंट
आज का हॉट कैरियर है यह। इस क्षेत्र में आपको व्यापार के विभिन्न पहलुओं- माकेüटिंग, फाइनेंस, ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट से परिचित और उनमें दक्ष किया जाता है। ग्रैजुएशन लेवल पर बीबीए और पोस्ट ग्रैजुएशन के लेवल पर एमबीए की डिगरी मिलती है। अगर उच्चस्तरीय पदों पर काम करना है, तो आपको ग्रैजुएशन के बाद एमबीए जरूर करना चाहिए। इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए कंबाइंड एंट्रेंस टेस्ट या मैनेजमेंट एप्टीटKूड टेस्ट देना होगा। कैट के बाद आपको देश के टॉप मोस्ट प्रबंधन संस्थानों में प्रवेश मिलेगा। कुछ संस्थानों की अपनी प्रवेश परीक्षा भी होती है। पर बिना प्रवेश परीक्षा के इस कोर्स को शायद ही कोई संस्थान करा रहा हो।
इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी
आईटी यानी इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी मेंं सीधे रोजगार पाने वालों की संख्या 10 लाख के पार पहुंच चुकी है और इसमें अप्रत्यक्ष रूप से आईटी के कारण सृजित रोजगारों को भी जोड़ दिया जाए, तो यह संख्या 25 लाख से भी अधिक हो जाएगी। इस क्षेत्र में नेटवकिZग, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, वेब डिजाइनिंग, मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन जैसे क्षेत्रों के अलावा उच्च तकनीक आधारित कई अन्य क्षेत्र भी सामने आ रहे हैं। इनमें कैरियर बनाने के लिए आपको ग्रैजुएट लेवल पर ही इन्फॉरमेशन सिस्टम्स में स्पेशलाइजेशन उपलब्ध कराया जाता है। इसमें आपको बीएससी की डिगरी दी जाती है। अन्यथा बीआईटी, बीटेक, एमसीए, बीसीए जैसे कोर्स भी कर सकते हैं। प्रमुख विश्वविद्यालयों, इंजीनियरिंग संस्थानों में ये कोर्स उपलब्ध हैं।
फाइनेंस
हमारी आर्थिक गतिविधियां अब कहीं अधिक जटिल हो गई हैं। बैंकिंग, चार्टर्ड एकाउंटेंसी और इंश्योरेंस के क्षेत्र कहीं अधिक विकसित हो गए हैं। इनमें रोजगार की कमी नहीं है और उसी केअनुरूप ग्रैजुएशन लेवल से ही इन क्षेत्रों में ट्रेंड करने वाले कोर्सेज भी हैं। बैंकों में पब्लिक सेक्टर बैंक्स में ग्रैजुएट्स के लिए जॉब ही जॉब्स हैं। कॉमर्स के ग्रैजुएट्स के लिए इस क्षेत्र में खूब अवसर हैं।
एविएशन
हाल ही में एविएशन के क्षेत्र में हुई प्रगति किसी से छिपी नहीं है। कई सौ की संख्या में एअरबसों और हेलीकॉप्टरों के शामिल किए जाने के बाद से पायलट के साथ-साथ एविएशन से जुड़े कई अन्य प्रोफेशनल्स की आवश्यकता होगी। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी में बीएससी (एविएशन) पाठKक्रम उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा बारहवीं के बाद आप प्राइवेट पायलट लाइसेंस (पीपीएल) और कमर्शियल पायलट लाइसेंस (सीपीएल) संबंधित कोर्स करके पायलट भी बन सकते हैं। एअरहोस्टेस ट्रेनिंग संस्थानों में प्रवेश लेकर केबिन क्रू का हिस्सा बन सकते हैं। या फिर मेंटिनेंस इंजीनियरिंग कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। शहर के फ्लाइंग क्लब्स से संपर्क करके इस बारे में और अधिक जानकारी हासिल की जा सकती है।
बायोटेक्नोलॉजी
जेनेटिक इंजीनियरों अथवा बायोटेक्नोलॉजिस्ट्स की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है। मेडिकल एवं फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर फील्ड व अन्य औद्योगिक संस्थानों में बायोटेक्नोलॉजिस्ट की विशेष मांग है। इसके बाद आप बायोटेक्नोलॉजी में शिक्षण के क्षेत्र में भी जा सकते हैं। इस कोर्स में आप बीएससी कर सकते हैं। या फिर इंटीग्रेटेड एमएससी (बायोटेक्नोलॉजी) का कोर्स भी उपलब्ध है। आमतौर पर इसके लिए अखिल भारतीय चयन परीक्षा आयोजित होती है।
मेडिकल
मेडिकल के क्षेत्र में फिजिशियन, डेंटिस्ट या अन्य स्पेशलाइजेशन करके आप अपनी पहचान बना सकते हैं। इस क्षेत्र में एमबीबीएस की डिगरी करने केबाद आपके लिए कैरियर की कई राहें खुलती हैं। इसके बाद अपनी प्रैçक्टस के साथ ही अन्य मेडिकल संस्थानों के साथ जुड़कर काम कर सकते हैं। मेडिकल ही नहीं पैरा मेडिकल के क्षेत्र में भी बारहवीं के बाद अनेक प्रोफेशनल कोर्सेज आपके लिए उपलब्ध हैं। नसिZग (बीएससी-नसिZग), रेडियोलॉजी (बीएससी-रेडियोलॉजी), मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी (बीएससी-एमएलटी), ऑप्टोमेट्री (बीएससी-ऑप्टोमेट्री), फामेüसी (बी.फार्मा) के क्षेत्र में भी ग्रैजुएट कोर्सेज कर सकते हैं। एमबीबीएस के कोर्स के लिए अखिल भारतीय स्तर का प्री-मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट देना होता है।
इंजीनियरिंग
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) द्वारा देश भर के विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जामिनेशन (एआईईईई) का प्रत्येक वर्ष मई माह में आयोजन किया जाता है। इसके तहत बीई, बीटेक और बीआईटी पाठKक्रमों की विभिन्न शाखाओं में दाखिले दिए जाते हैं।
लॉ
लॉ के क्षेत्र में रोजगार के अवसर देश की विभिन्न अदालतों, सरकारी विभागों, ज्यूडिशियल सçर्वस (न्यायिक सेवा), विश्वविद्यालयों की लॉ फैकल्टी, बिजनेस हाउस तथा अन्य व्यावसायिक व औद्योगिक संस्थानों में हो सकते हैं। रक्षा सेवाओं की विधि शाखाओं में भी लॉ ऑफिसर के तौर पर नियुक्ति मिल सकती है। आप एन्वायरमेंटल लॉ, साइबर लॉ में स्पेशलाइजेशन के द्वारा अपने लिए रोजगार केअवसर बढ़ा भी सकते हैं। इसके लिए बीए एलएलबी (ऑनर्स) का पांच साल का कोर्स कर सकते हैं। एलएलबी भी किया जा सकता है।
होटल मैनेजमेंट
होटल मैनेजमेंट ट्रेनिंग कोर्स के बाद होटल व रेस्टोरेंट मैनेजमेंट, एअरलाइंस केटरिंग, क्लब मैनेजमेंट, क्रूज शिप होटल मैनेजमेंट, हॉçस्पटल केटरिंग, इंस्टीटKूशनल मैनेजमेंट इत्यादि जैसी कैरियर संभावनाएं हैं। होटल मैनेजमेंट ऐंड केटरिंग टेक्नोलॉजी के अलावा बीएससी (होटल मैनेजमेंट) का कोर्स आपको इस क्षेत्र में बेहतर कैरियर प्रदान कर सकता है। यह कोर्स व्यक्तिगत संस्थानों से भी कर सकते हैं अन्यथा अखिल भारतीय स्तर की प्रवेश परीक्षा दे सकते हैं।
टूरिज्म
टूरिज्म को चिमनी विहीन उद्योग की संज्ञा दी जाती है। इस उद्योग में होटल उद्योग भी सçम्मलित है। होटल्स के अलावा इस क्षेत्र के ग्रैजुएट्स को ट्रैवेल एजेंसियों, रिजवेüशन काउंटर, फ्रंट ऑफिस, माकेüटिंग तथा अन्य प्रकार के टूरिज्म प्रचार से संबंधित कार्यकलापों में नियुक्तियां मिलती हैं। लगभग सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों में बीएससी ट्रैवेल ऐंड टूरिज्म या बीए ट्रैवेल ऐंड टूरिज्म का कोर्स उपलब्ध है।
फार्मास्युटिकल्स का क्षेत्र सबसे तेजी से बढ़ती इंडस्ट्रीज में से एक है। इसमें दवाओं के वितरण, माकेüटिंग, पब्लिक रिलेशन, फार्मा मैनेजमेंट आदि में स्किल्ड लोगों की मांग में काफी तेजी आ गई है। यदि आपने बीएससी, बी.फार्मा या डी.फार्मा किया है, तो आपके लिए राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरियों की कमी नहीं है।
फॉमेüसी एजुकेशन केवल दवाइयों केनिर्माण तक सीमित नहीं रह गई है। अब यह एक उद्योग है, जिसके प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। इसीलिए इसमें फार्मा बिजनेस मैनेजमेंट जैसे नए कोसेüज इंट्रोडKूज किए जा रहे हैं
क्षेत्र
निर्माण और उत्पादन
फामेüसी प्रोफेशनल प्रोडक्शन में (केमिस्ट, ऑफिसर एक्जीक्यूटिव, मैनेजर, वाइस प्रेसीडेंट) अपने लिए अवसर ढूंढ सकते हैं। केवल दवाइयां बनाने वाली कंपनियां ही नहीं, बल्कि कॉस्मेटिक्स, टॉयलेटरीज और डेंटल प्रोडक्ट्स, वेटरिनरी ड्रग्स और परफ्यूमरी से संबंधित कंपनियों में भी उनके लिए खूब मौके हैं।
रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट
किसी भी उद्योग के लिए यह केंद्रीय गतिविधि है। फार्मास्युटिक इंडस्ट्री का तो यही आधार है। इस क्षेत्र में एमफार्मा और पीएचडी किए हुए फामेüसी प्रोफेशनल्स के लिए संभावनाएं हैं। वे नई दवाओं की खोज (एनडीडीआर), प्रोसेस डेवलपमेंट (पीऐंडडी), फॉमूüला बनाने की प्रक्रिया (एफऐंडडी), çक्लनिकल ट्रायल्स आदि के क्षेत्र में नियुक्ति प्राप्त करते हैं।
एनालिसिस और टेस्टिंग
दवाओं की गुणवत्ता और उनकी विश्वसनीयता परखने के लिए भी फामेüसी प्रोफेशनल्स की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र के लिए भी फामेüसी की उच्च स्तरीय डिगरी प्राप्त प्रोफेशनल्स को रखा जाता है। आमतौर पर इस क्षेत्र में एमफार्मा व एनालिसिस /क्वालिटी एश्योरेंस में पीएचडी किए फार्मासिस्ट्स को मौका मिलता है।
माकेüटिंग
फार्मा सेल्स और माकेüटिंग तकनीकी क्षेत्र है। इस क्षेत्र में फामेüसी के ग्रैजुएट्स के लिए शानदार मौके हैं। अगर आपने एमबीए भी किया है, तो आपको पीछे मुड़कर देखने की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी।
हॉçस्पटल फामेüसी
रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट्स के तौर पर आप एक और क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा सकते हैं। इसके तहत आपको हॉçस्पटल्स और ड्रग स्टोर में काम करने का मौका मिलेगा। अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में फामेüसी के अंतर्गत यह क्षेत्र सबसे अधिक अपनाया जाता है। अब अपने देश के हॉçस्पटल्स में भी इसे पहचान मिल रही है।
कम्युनिटी फामेüसी
यह कॉन्सेप्ट भी पश्चिमी देशों में काफी लोकप्रिय और पुराना है। इसके अंतर्गत एक फार्मासिस्ट मरीज और मेडिकल प्रोफेशनल्स, जैसे कि डॉक्टर्स या थेरेपिस्ट्स के बीच के सूत्र की तरह काम करता है। आमतौर पर कम्युुनिटी फार्मासिस्ट समाज सुधार संस्थाओं से जुड़कर यह कार्य करते हैं। इसके तहत वे मरीज की काउंसलिंग, उसे दवाओं से संबंधित संपूर्ण जानकारी आदि उपलब्ध कराते हैं।
शिक्षण
एआईसीटीई के नियमों के अनुसार फामेüसी के लेक्चरर के तौर पर नियुक्ति के लिए आपको एमफार्मा होना आवश्यक है। लेकिन इस क्षेत्र को अपनाने से पहले यह भी जरूरी है कि आपको इस कार्य में जॉब सैटिस्फैक्शन हो। हालांकि इस क्षेत्र में फामेüसी प्रोफेशनल्स की डिमांड बहुत अधिक है।
रेगुलेटरी बॉडीज
विभिन्न राज्यों में एफडीए (फूड ऐंड ड्रग्स कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन) की शाखाएं व उपशाखाएं हैं, जिनमें फामेüसी ग्रैजुएट के नाते आपको ड्रग इंस्पेक्टर, सीनियर ड्रग इंस्पेक्टर, डेपुटी ड्रग कंट्रोलर, असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर आदि के पदों पर नियुक्ति मिल सकती है।
इनके अलावा आप डॉक्युमेंटेशन, लाइब्रेरी इन्फॉरमेशन सçर्वसेज ऐंड फार्मा के क्षेत्र में भी काम कर सकते हैं। फार्मा जनüलिस्म
ग्लोबल कंपटीशन को देखते हुए फार्मा कंपनियों को विभिन्न प्रकार की और नई गतिविधयों केबारे में जानकारी आवश्यक होती है। इसीलिए फार्मा जनüलिज्म का क्षेत्र भी तेजी से विकास कर रहा है। इस क्षेत्र में भी फार्मा ग्रैजुएट्स अपना कैरियर बना सकते हैं।
रेगुलेटरी बॉडीज
फामेüसी एजुकेशन को रेगुलेट करने वाली निम्नलिखित इकाईयां हैं।
-ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेçक्नकल एजुकेशन। (एआईसीटीई)
-फामेüसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और वह यूनिवçर्सटी, जिससे कि महाविद्यालय संबद्ध है।
शिक्षा
आज भारत के 100 से अधिक संस्थानों में फामेüसी में डिगरी कोर्स (बीफार्मा) और 200 से अधिक संस्थानों में डिप्लोमा कोर्स (डीफार्मा) चलाए जा रहे हैं। पुणे, नागपुर, वड़ोदरा और चंडीगढ़ के विश्वविद्यालयों ने फामेüसी एजुकेशन को विशेष दर्जा दिया है और अपने यहां इसके लिए अलग फैकल्टी स्थापित की है। भारत में फामेüसी की शिक्षा दो स्तर पर उपलब्ध है।
विज्ञान विषयों से बारहवीं करने के बाद आप फामेüसी में डिप्लोमा या बैचलर डिगरी प्रोग्राम कर सकते हैं। कुछ भी हो, डिप्लोमा के छात्र डिगरी कोर्स भी कर सकते हैं। उन्हें बीफार्मा. के दूसरे वर्ष में सीधा प्रवेश मिलता है। हालांकि आने वाले वषोZ में सरकार और फामेüसी काउंसिल ऑफ इंडिया डीफार्मा कोर्स हटाने की सोच रही है। इसके बाद फामेüसी प्रोफेशनल बनने के लिए बीफार्मा की डिगरी को ही मान्यता दी जाएगी।
अवसर
भारत में रिसर्च एवं डेवलपमेंट प्रोफेशनल्स की अपार संभावना के देखते हुए मल्टी नेशनल कंपनियां यहां शोध व विकास गतिविधियों के लिए भारी निवेश भी कर रही हैं। इस संबंध में इंडियन फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल दिलीप शाह का कहना है कि भारी मात्रा में निवेश को देखते हुए स्वाभाविक रूप से फार्मा रिसर्च के लिए प्रतिवर्ष एक हजार और साइंटिस्टों की जरूरत होगी।
इसमें दक्ष युवा देशी-विदेशी कंपनियों में कई तरह के आकर्षक काम आसानी से पा सकते हैं। जैसे बिजनेस एक्जीक्यूटिव व आफिसर, प्रोडक्शन एक्जीक्यूटिव, मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव आदि। दो से तीन वर्ष के अनुभव के बाद एरिया मैनेजर, रीजनल मैनेजर, प्रोडक्ट डेवलपर के रूप में प्रमोशन पाया जा सकता है। प्रमुख रैनबैक्सी, सिप्ला, ग्लैक्सो, कैडिला, डॉ. रेड्डीज, टॉरेट, निकोलस, पीरामल, पिफाइजर, जॉन्सन एेंड जॉन्सन, आईपीसीए जैसी प्रमुख फार्मा कंपनियों में आपके लिए खूब अवसर होंगे। फार्मासिस्ट्स प्रमुखत: चार क्षेत्रों में काम करते हैं।
हॉçस्पटल फार्मासिस्ट
हॉçस्पटल में नियुक्त फार्मासिस्ट दवाइयों के भंडारण, दवाइयां बनाने व अन्य मेडिकल एक्सेसरीज आदि की तैयार करते हैं। वे हॉçस्पटल के लिए दवाइयों की सप्लाई, भंडारण, उनकी बजटिंग और उनकी लेबलिंग आदि करते हैं। फार्मासिस्ट्स को पेशेंट्स, डॉक्टरों और नसोZ से मिलना होता है।
रिटेल फार्मासिस्ट्स
मेडिकल रिटेल स्टोर्स में फार्मासिस्ट्स को सामान्य उपभोक्ता के लिए पहले से डोजेस में बंधी दवाई को उपलब्ध कराते हैं। डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाई को किस तरह उपयोग किया जाएगा, रिटेल फार्मासिस्ट्स इस बारे में भी उपभोक्ता का मार्गदर्शन करता है। फार्मासिस्ट्स मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर केमिस्ट शॉप चला सकते हैं। वे मेडिकल प्रैçक्टस कर रहे लोगों को नई दवाइयों के गुण और उनके उपयोग के बारे में जानकारी देते हैं। इसके लिए उन्हें नियमित रूप से हॉçस्पटल्स, क्लीनिक्स, नसिZग होम्स में जाना होता है।
इंडस्टि्रयल फार्मासिस्ट्स
इस दौर में, जब अधिकतर फमेZ पहले से बने फार्मूलों पर दवाइयां बना रही हैं, ऐसे में कंपनियां नई दवाइयों की खोज में भी लगी हैं। इसके लिए वे विस्तार से शोध आदि पर ध्यान दे रही हैं। इनमें नई दवाई के फॉमूüले की खोज, उसका परीक्षण, उसका निर्माण आदि प्रमुख है। निर्माण की प्रक्रिया में प्रोडक्शन का मैनेजमेंट भी एक प्रमुख कार्य है।
रिसर्च फार्मासिस्ट्स
रिसर्च फार्मासिस्ट्स रिसर्च संबंधी गतिविधियों में संलग्न होते हैं। वे रिसर्च संगठनों और प्रयोगशालाओं में काम करते हैं।
वेतन
रिसर्च और इंट्री लेवल पर सैलरी डेढ़ लाख रुपये वार्षिक मिलती है। जो 20 लाख प्रतिवर्ष तक पहुंच सकती है। औषधि उत्पाद के क्षेत्र में भी यही çस्थति है। माकेüटिंग क्षेत्र में तो एक फ्रेशर को तीन से साढ़े तीन लाख वार्षिक तक मिल जाता है। दीपक कुंवर बताते हैं कि उनके यहां के स्टूडेंट्स को आरंभिक वेतन में 8 से 15 हजार रुपयेे तक आसानी से मिल जाते हैं।
प्रमुख संस्थान
-कॉलेज फार्मास्युटिकल माहे मनिपाल- 576119, वेबसाइट: ूूूण्उंदपचंसण्मकन-
-एपिक इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थकेयर स्टडीज, डी-62, प्रथम तल, साउथ एक्सटेंशन, पार्ट - 1, नई दिल्ली-49- दूरभाष्ा 011-24649994, 24649965
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एेंड रिसर्च मोहाली, चंडीगढ़
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फामेüसी, रोड न- 14 जवाहर नगर मार्ग, जमशेदपुर
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, डी-354, विकास मार्ग, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-92
फोन 011-65641862, 09868448877
जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च बेंगलौर- 560064
राजेश कुमार
<html><big>फैशन आज एक ऐसे विशाल उद्योग में तब्दील हो चुका है, जिसमें सृजनात्मक सोच व कुछ नया करने वाले युवाओं के लिए रोजगार के बेहतरीन अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से फैशनेबल परिधानों के निर्माता व आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की खास पहचान बनी है। भारत से होने वाले कुल निर्यात का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा वस्त्र उद्योग के द्वारा ही पूरा किया जाता है। <br><br><br><br><br>वर्तमान çस्थति<br><br>भारतीय फैशन डिजाइनिंग उद्योग का टनüओवर करीब 2000 करोड़ रुपये का है। फैशन उद्योग के विस्तार व विकास के चलते इस क्षेत्र में नौकरी व स्वरोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं। फैशन माकेüट में प्रशिक्षुओं की डिमांड बढ़ने के कारण सरकारी तथा निजी क्षेत्र के बहुत से स्तरीय संस्थान फैशन से संबंधित पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं, जहां फैशन उद्योग की जरूरतों के मद््देनजर प्रोफेशनल्स तैयार किए जा रहे हैं। प्रशिक्षित फैशन डिजाइनर वस्त्रों, परिधानों की कलात्मक व आकर्षक डिजाइनें तैयार करते हैं। बाजार और ग्राहक की रुचि व पसंद के अनुरूप इन परिधानों में एंब्रॉयडरी, बीड्स आदि भी करते हैं। समय की जरूरतों के अनुसार नित नई डिजाइनें पेश करना इनका दायित्व होता है।<br><br><br>कोर्स<br>पाठ्यक्रम के अंतर्गत स्केचिंग, लाइनिंग, बेसिक डिजाइन, डिजाइन आइडिया, पैटनü-मेकिंग, प्रोडक्शन, फैशन-कलर थ्योरी तथा सिलाई कटिंग इत्यादि बातों की विशेष टे्रनिंग दी जाती हैं।<br><br><br>योग्यता<br>इनमें प्रवेश के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 10+2 है। किसी भी विषय से बारहवीं उत्तीर्ण छात्र इस कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। दाखिला प्रवेश परीक्षा व साक्षात्कार के आधार पर दिया जाता है।<br><br><br>क्षेत्र<br>फैशन डिजाइनिंग में बाजार की जरूरतों व मांग के अनुसार निजी तथा सरकारी संस्थानों द्वारा संचालित विभिन्न तरह के फैशन डिजाइनिंग से संबंधित कोर्स संचालित किए जा रहे हैं, जिनमें छात्र अपनी पसंद के क्षेत्र में दाखिला ले सकते हैं। <br><br>कुछ प्रमुख कोर्स इस प्रकार हैं, डिप्लोमा इन रिटेल ऐंड विजुअल मर्चेंडाइजिंग, डिप्लोमा इन फैशन डिजाइनिंग, डिप्लोमा इन डे्रस डिजाइनिंग, फैशन डिजाइनिंग ऐंड क्लॉथ टेक्नोलॉजी, टेक्सटाइल डिजाइनिंग विद कंप्यूटर एडेड डिजाइनिंग, डिप्लोमा इन फैशन ऐंड अपैरल मर्चेंडाइजिंग आदि। इन कोसेüस के जरिये सुनहरा भविष्य बनाया जा सकता है। <br><br><br>अवसर<br>कोर्स पूरा होने के उपरांत फैशन डिजाइन तथा फैशन को-ऑडिüनेटर के रूप में राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। एकेडेमी ऑफ फैशन एेंड डिजाइन, नई दिल्ली के डाइरेक्टर का कहना है कि फैशन क्लोçथंग टेक्नोलॉजी और टेक्सटाइल डिजाइनिंग के कारोबार में आ रहे परिवर्तनों व जरूरतों के मद्देनजर ही प्रोफेशनल तैयार किए जा रहे हैं। <br><br>दूसरी बात यह है कि इस तरह के कोसेüस की फीस अधिक न होने के कारण इसे कोई भी कर सकता है। <br><br>फैशन ऐंड अपरेल मचेंüडाइजिंग के कोर्स को करने के उपरांत 3 माह की टे्रनिंग के लिए संस्थानों द्वारा विभिन्न कपड़ा मिलों तथा टेक्सटाइल मिलों में भ्ोजा जाता है। <br><br>टेक्सटाइल डिजाइनिंग का जॉब ओरिएंटेड कोर्स एक वर्ष में किया जा सकता है। इस कोर्स के अंतर्गत वस्त्र-प्रौद्योगिकी तथा टेक्सटाइल डिजाइनिंग के नवीनतम पैटनü से अवगत कराया जाता है। प्रशिक्षण के उपरांत टेक्सटाइल व कपड़ा मिलों में विजुअल मैनेजर, पैकेजिंग मैनेजर, टेक्सटाइल एडवरटाइजर आदि के रूप में नियुक्ति हो सकती है।<br><br>फैशन इंडस्ट्री में आजकल कंप्यूटर एडेड फैशन डिजाइन की बहुत मांग है। इस कोर्स के अंतर्गत कंप्यूटर स्क्रीन पर डिजाइनिंग वर्क सिखाया जाता है। साथ ही वेब डिजाइन के माध्यम से फैशन के क्षेत्र में विशेष टे्रनिंग दी जाती है। कैड द्वारा फैशन में और अधिक रचनात्मक, सृजनात्मकता और मौलिकता लाने की कोशिशें की जाती हैं। दरअसल अब लगभग हर एक्सपोर्ट व प्रोडक्ट डेवलपमेंट कंपनियों में कंप्यूटर आधारित डिजाइनिंग वर्क हो रहा है। पाठ्यक्रम करने के बाद किसी भी फैशन उत्पाद इकाई में काम के अच्छे अवसर मिल सकते हैं।<br><br>फैशन डिजाइनिंग से संबंधित कोसेüस करने के बाद ब्लैक बैरीज ग्लोब्स, पेंटालून, प्रोलाइन, एस कुमार्स, टाइटन, मुद्रा गारमेंट्स सरीखी कंपनियों में नियुक्ति हो सकती है। गैप, ली एंड फंग, टॉमी मिल फायर और कोल्बो जैसी राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भी आकर्षक वेतनमान में नियुक्ति हो सकती है। प्रख्यात फैशन डिजाइनर रितु बेरी, जेजे वलाया, हेमंत त्रिवेदी, रोहित बल, सुनील वर्मा आदि भी समय-समय पर नवोदित फैशन डिजाइनरों को प्रमोट करने का कार्य करते रहते हैं।<br><br><br><br>कोर्स कराने वाले संस्थान<br><br>राज्य सरकार की ओर से चलाए जा रहे पॉलीटेक्नीक संस्थानों में भी यह कोर्स उपलब्ध है। <br><br>इसके अलावा इस क्षेत्र के प्रमुख संस्थान हैं-<br><br>-नेशनल इंस्टीटKूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, दिल्ली। फोन : (011) 26542000, 26542100<br><br>-एकेडेमी ऑफ फैशन एेंड डिजाइन, दिल्ली। फोन : 011 65644390, 011 43023290<br><br>-एकेडेमी ऑफ फैशन डिजाइन 10-11, पीसीएफ प्लाजा कॉम्प्लेक्स, नदेसर, वाराणसी - 221002<br><br>-पलü एकेडेमी ऑफ फैशन, नई दिल्ली। <br>फोन : 41417693- 94<br><br>-नेशनल इंस्टीटKूट ऑफ फैशन डिजाइन, 2-बी, जल भवन, एममार्ग, सेक्टर-27- ए, चंडीगढ़।<br>फोन : 0172-657958<br><br><br>राजीव कुमार <br><br></big></html>
बायोइन्फॉरमेटिक्स की बदौलत पशु नस्ल सुधार, पेड़-पौधों की उन्नत किस्मों के विकास तथा मत्स्य संपदा में बेहतरी की दिशा में मदद मिलने के प्रति वैज्ञानिक काफी आशावादी हैं। बायोइन्फॉरमेटिक्स ने अनुसंधानों पर होने वाले खचोZ तथा नतीजों के विश्लेषण में लगने वाले समय में काफी कमी की स्थिति ला दी है। अधिकांश विश्वविद्यालयों में बायोइन्फॉरमेटिक्स पाठKक्रमों की शुरुआत किए जाने के कारण अध्यापन के क्षेत्र में कैरियर निर्माण के भरपूर अवसर उपलब्ध हैं।
मेडिकल और इंजीनियरिंग के मेल से जिन नए क्षेत्रों का जन्म हुआ है, उनमें बायोइन्फॉरमेटिक्स अहम है। इस क्षेत्र में संभावनाओं की जानकारी दे रहे हैं अशोक सिंह
बायोइन्फॉरमेटिक्स के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक जीवन एवं प्रोटीन श्रृंखला पर आधारित विशाल सूचना भंडार का विश्लेषण गणितीय सिद्धांतों, सांçख्यकी मॉडलों और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के जरिये कर इस क्षेत्र के लिए भावी उपयोग की जानकारियां जुटाते हैं। बायोइन्फॉरमेटिक्स का जन्म जीव विज्ञान और गणित के तालमेल से हाल के वषोZ में हुआ है। जीवन की छोटी से छोटी इकाई के पीछे के रहस्य की तलाश और जीव जंतुओं में अधिक श्रेष्ठता का समावेश करते हुए विज्ञान को सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना ही इन विशेषज्ञों का लक्ष्य कहा जा सकता है।
भारत में तो बायोइन्फॉरमेटिक्स के क्षेत्र में बिलकुल प्रारंभिक अवस्था ही कही जा सकती है। यही कारण है कि बहुसंख्यक जनता को इस विषय और इसमें निहित विज्ञान के अद्भुत संयोजनों का ज्ञान भी नहीं है। बडे़ शहरों में तो अब थोड़ी-बहुत इसके बारे में चर्चा होने लग गई है, शायद प्रचार माध्यमों में प्रकाशित होने वाली इससे संबंधित खबरों या इक्का-दुक्का संस्थानों में संचालित इस पाठKक्रम से संबंधित विज्ञापनों के कारण। लेकिन कसबों और ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस विषय को लेकर लगभग अंधकारमय स्थिति है।
बायोइन्फॉरमेटिक्स विशेषज्ञ जटिल जीव विज्ञान आधारित सूचनाओं व आंकड़ों का संग्रहण, विश्लेषण तथा भंडारण करने के अतिरिक्त इनको जैविक डेटा में रूपांतरित करने का भी कार्य करते हैं। इसका मकसद है, समय पर इन सूचनाओं का सरलतापूर्वक शोध एवं अनुसंधान कार्यकलापों में इस्तेमाल कर बेहतर से बेहतर मानवोपयोगी नतीजे हासिल कर पाना। बायोइन्फॉरमेटिक्स की मदद से कई प्रकार के अनुसंधान कायोZ में लगने वाले समय को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इतना ही नहीं बायोलॉजिकल रिसर्च के बहुत से पहलुओं को कंप्यूटर डेटाबेस और प्रोग्रामिंग के जरिए भी अंजाम दे पाना संभव हो सका है, बायोइन्फॉरमेटिक्स के विभिन्न टूलों के माध्यम से। कंप्यूटर, सांçख्यकी और गणित के साथ इनके समन्वयन और विश्लेषण पलक झपकते कर दिखाने की आश्चर्यजनक क्षमता भी आज विशेषज्ञों के पास उपलब्ध हो गई है। एक जमाना था, जब इन आंकड़ों को समझने में ही लंबा समय लग जाता था।
बायोइन्फॉरमेटिक्स का उपयोग जीव-जंतुओं से लेकर वनस्पति के क्षेत्र में काफी व्यापक स्तर तक संभव है। ऐसे में भविष्य में इसके सकारात्मक इस्तेमाल को लेकर विशेषज्ञ काफी ज्यादा उत्साहित और आशावादी हैं। यह विषय स्वयं में रोचक और दिलचस्प क्षेत्र है। इसका दायरा मात्र मानव जीनोम तक ही सीमित नहीं कहा जा सकता, बल्कि पशु नस्ल सुधार, पेड़ -पौधों की नई उन्नत किस्मों के विकास, मत्स्य संपदा की बेहतरी में भी इसका भरपूर उपयोग है। इतना ही नहीं, हानिकारक कीटों, रोगाणुओं और विषाणुओं से छुटकारा दिलाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
अगर विस्तृत दायरे से देखा जाए, तो बायोइन्फॉरमेटिक्स के माध्यम से अधिक उपयोगी और आर्थिक रूप से लाभदायक फसलों किस्मों को विकसित करने में मदद मिलेगी।
इसके अतिरिक्त उन्नत किस्मों के पालतू पशुओं का विकास कर पान ा भी इसके माध्यम से संभव है। यही नहीं, फार्मास्युटिकल कंपनियों के रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट विभागों में भी इन विशेषज्ञों की मांग तेजी से बढ़ रही है।
बायोइन्फॉरमेटिक्स विशेषज्ञों के माध्यम से बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनियां अपने रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट के क्षेत्र में होने वाले खचोZ को किस हद तक कम कर सकती हैं, इसका अंदाजा सिर्फ एक उदाहरण के जरिये लगाया जा सकता है। बायोइन्फॉरमेटिक्स की मदद से एक नामी फार्मा कंपनी ने अपने मानव जीनोम प्रोजेक्ट के भावी अनुसंधानों को सिर्फ कंप्यूटर मॉडलों के जरिये कर अच्छी-खासी बचत की। इस प्रोजेक्ट में डीएनए के 80 हजार से अधिक जीवों का विश्लेषण प्रयोगशाला में किया जाना था, जो कि बायोइन्फॉरमेटिक्स विशेषज्ञों ने कंप्यूटर पर ही कर दिखाया।
शिक्षा
देश के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में बीएससी या बीटेक (बायोइन्फॉरमेटिक्स) का पाठKक्रम संचालित किया जाता है। इसमें अमूमन चयन परीक्षा के आधार पर दाखिले दिए जाते हैं। पाठKक्रम का माध्यम अंगरेजी भाषा है।
शैक्षिक योग्यता
आवेदक जीव-विज्ञान और गणित की शैक्षिक पृष्ठभूमि के साथ कम से कम 10+2 पास होना आवश्यक है।
व्यक्तिगत गुण
लंबे समय तक कंप्यूटर केसामने बैठकर जैविक आंकड़ों को इकट्ठा करने और विश्लेषण करने का काम आसान नहीं कहा जा सकता है। एकाग्रचित्त होकर अपनी तार्किक क्षमता का प्रयोग करते हुए परीक्षण परिणामों को समझ-बूझकर इनके सार्थक पहलुओं पर ध्यान लगाना ही इस क्षेत्र में सफलता का एकमात्र पर्याय कहा जा सकता है। जरा सी लापरवाही या चूक महीनों की मेहनत बरबाद कर सकती है।
रोजगार के अवसर
इन विशेषज्ञों के लिए चिकित्सा विज्ञान, कृषि, पशु चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्रों में बतौर वैज्ञानिक भरपूर रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त फार्मास्युटिकल उद्योग के आरऐंडडी (अनुसंधान एवं विकास) विभागों में भी इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है। विश्वविद्यालयों के बायोइन्फॉरमेटिक्स संकाय में लेक्चरर एवं रीडर के रूप में प्रारंभिक नियुक्ति मिल सकती है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कंपनियों में बायोइन्फॉरमेटिक्स आधारित सॉफ्टवेयर के विकास का दायित्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं विशेषज्ञों पर आता है। रोजगार के अवसर विदेशी कंपनियों में भी कम नहीं हैं। इस क्षेत्र में अपने कायोZ के बल पर ख्याति अर्जित करने के बाद बतौर कंसल्टेंट स्वतंत्र रूप से भी काम किया जा सकता है।
संस्थान
-बायोइन्फॉरमेटिक्स इंस्टीटKूट ऑफ इंडिया (इंस्टीटKूट ऑफ एडवांस स्टडीज इन एजुकेशन -डीम्ड यूनिवçर्सटी, राजस्थान से संबद्ध), बी-15, सेक्टर 3, नोएडा।
-सथ्याबामा इंस्टीटKूट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी, (डीम्ड यूनिवçर्सटी), ओल्ड, जेçप्पयर ममल्लापुरम रोड, चेन्नई
-वेल्लोर इंजीनियरिंग कॉलेज, वेल्लोर
-क्राइस्ट कॉलेज राजकोट, गुजरात
-स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, मदुरै, कामराज यूनिवçर्सटी, मदुरै (तमिलनाडु)
यूनिवçर्सटी ऑफ पूना, पुणे (महाराष्ट्र)
अन्य संपर्क
बायोटेक पार्क इन बायोटेक्नोलॉजी सिटी आर एस ए सी कैंपस, सेक्टर जी, कुरसी रोड, लखनऊ।
(पियर्सन एजुकेशन से प्रकाशित कैरियर के विभिन्न विकल्प से...)
अन्नपूर्णा मूर्ति
बायोमेडिकल इंजीनियरिंग इंजीनियरिंग के सिद्धांतों और तकनीकों का मेडिकल के क्षेत्र में एप्लिकेशन है। इसमें इंजीनियरिंग के समस्या समाधान और डिजाइनिंग के गुणों को किसी फिजीशियन की काबलियत के साथ जोड़ा जाता है और फिर उसकी मदद से मरीजों की हेल्थकेयर को बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है। यह अपेक्षाकृत नया कंसेप्ट है, जिसमें रिसर्च एंड डेवलपमेंट का काम होता है। जिन क्षेत्रों में यह रिसर्च एंड डेवलपमेंट किया जाता है, उनमें शामिल हैं बायोइंफॉर्मेटिक्स, मेडिकल इमेजिंग, इमेज प्रॉसेसिंग, बायोमैकेनिक्स, बायोइंजीनियरिंग, सिस्टम एनालिसिस और थ्री डी मॉडलिंग आदि।
वैसे, बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण एप्लिकेशंस में बायोकॉम्पैटिबल प्रॉस्थेसिस, मेडिकल डिवाइसेज, डायग्नोस्टिक डिवाइसेज, एमआरआई और ईईजी जैसे इमेजिंग इक्विपमेंट और फार्मास्युटिकल ड्रग्स शामिल हैं।
एक बायोमेडिकल इंजीनियर फिजीशियन, नर्स, थेरेपिस्ट और टेकिन्शियन जैसे हेल्थकेयर प्रफेशनल्स के साथ मिलकर काम करता है। बायोमेडिकल इंजीनियर्स को कई तरीके के काम करने होते हैं। इनमें शामिल हैं इंस्ट्रूमेंट्स, डिवाइस और सॉफ्टवेयर को डिजाइन करना, नए तरीकों को डेवलप करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों की नॉलेज को मिलाकर प्रयोग करना और क्लिनिकल प्रॉब्लम्स को हल करने के लिए रिसर्च करना।
क्लिनिकल इंजीनियरिंग बायोमेडिकल इंजीनियरिंग का एक भाग है। इस क्षेत्र से जुड़े प्रफेशनल किसी हॉस्पिटल में मेडिकल इक्विपमेंट के मैनेजमेंट के लिए जिम्मेदार होते हैं। दरअसल, किसी हॉस्पिटल का बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग हॉस्पिटल में काम आने वाले मेडिकल इक्विपमेंट की मेंटेनेंस का काम करता है।
बायोमेडिकल इंजीनियरिंग एक विकसित होता हुआ क्षेत्र है, जिसमें स्टडी की तमाम गुंजाइश हैं। इस क्षेत्र में स्पेशलाइजेशन के तमाम क्षेत्र हैं, जिनमें शामिल हैं बायोइंस्ट्रूमेंटेशन, बायोमटीरियल्स, टिश्यू इंजीनियरिंग, बायोमैकेनिक्स, क्लिनिकल इंजीनियरिंग, ऑर्थोपेडिक बायोइंजीनियरिंग, मेडिकल इमेजिंग और रीहैबिलिटेशन इंजीनियरिंग। हेल्थकेयर सिस्टम में हेल्थ मॉनिटरिंग और डिजीज का मैनेजमेंट एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके बारे में माना जा रहा है कि यह तेजी से ग्रो करेगी। बायोमेडिकल इंजीनियर पर हेल्थ केयर प्रफेशनल्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में इस क्षेत्र में पूरी तरह से ट्रेंड बायोमेडिकल प्रफेशनल्स की भारी डिमांड है।
निम्नलिखित संस्थान बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में अंडरग्रैजुएट/पोस्टग्रैजुएट और पीएचडी कोर्स ऑफर करते हैं।
डॉ. एमजीआर एजुकेशनल एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (डीम्ड यूनिवर्सिटी), चेन्नै। यहां से बायोमेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन में बीटेक और एमटेक किया जा सकता है।
शनमुघा आर्ट्स, साइंस, टेक्नॉलजी एंड रिसर्च एकेडमी (डीम्ड यूनिवर्सिटी) थांजावर। बीटेक बायोइंजीनियरिंग, एमटेक बायोमेडिकल सिग्नल प्रॉसेसिंग एंड इंस्ट्रूमेंटेशन।
इंस्टिट्यूट ऑफ एप्लाइड इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलजी, पॉन्डिचेरी। यहां से बीटेक बायोमेडिकल इंजीनियरिंग किया जा सकता है।
द स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी। यहां से बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में बीटेक, एमटेक और पीएचडी की जा सकती है। आईआईटी कानपुर में बायोइंजीनियरिंग में एमटेक और पीएचडी कोर्स उपलब्ध हैं।
मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (डीम्ड यूनिवर्सिटी) माधवनगर मणिपाल। एमटेक बायोमेडिकल इंजीनियरिंग।
वेल्लोर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (डीम्ड यूनिवर्सिटी), वेल्लोर। एमटेक बायोमेडिकल इंजीनियरिंग। पुणे इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलजी, शिवाजी नगर पुणे। एमटेक बायोमेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन।
<html><br>बारहवीं के बाद कैरियर विकल्पों की भरमार है, पर किस स्ट्रीम के पाठKक्रम को बेस बनाकर ऊंची सफलता हासिल की जा सकती है, इसको लेकर अक्सर छात्रोंं में भ्रम बना रहता है। बोर्ड एग्जाम्स के बाद के दो-ढाई महीने कैरियर की दिशा तय करनेवाले हैं। आइए बारहवीं के बाद जीव विज्ञान स्ट्रीम में छात्रों के लिए कैरियर के विभिन्न विकल्पों के बारे में जानते हैं। छात्रों के संपूर्ण मार्गदर्शन के लिए आगामी कçड़यों में अन्य स्ट्रीम के कैरियर विकल्प भी सुझाए जाएंगे।<br><br> बारहवीं के बोर्ड एग्जाम के बाद विभिन्न स्ट्रीम में ढेरों कैरियर विकल्प छात्रों का इंतजार कर रहे हैं। इस बार जीव विज्ञान स्ट्रीम में कैरियर के विभिन्न विकल्पों से रूबरू करा रहे हैं अशोक सिंह <br> <br><br><br>बायोटेक्नोलॉजी<br><br><br>बायोटैक्नोलॉजिस्ट की मांग दुनिया भर में मेडिकल साइंस, एग्रीकल्चर, इंडस्ट्री इत्यादि क्षेत्र में बढ़ती हुई देखी जा सकती है । देश में इस क्षेत्र में सरकारी और निजी क्षेत्र में काफी विकास हुआ है । यही कारण है कि बायोटैक्नोलॉजी में शीर्ष देशों में तथा एशिया में तीसरे स्थान पर भारत का नाम है । इस क्षेत्र में जेनेटिक्स, इम्यूनोलॉजी, सेल बायोलॉजी इत्यादि मेें स्पेशलाइजेशन किया जा सकता है । <br><br><br><br><br>आयुवेüद (बीएएमएस) <br><br><br>आयुवेüद के बढ़ते महत्व को समझाने के लिए यह जान लेना ही बहुत होगा कि वर्ष 2020 तक विश्व का हबüल प्रोडक्ट्स का कारोबार 3 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर पहुंचने की संभावना विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई है । ऐसे में बीएएमएस एक आकर्षक कैरियर विकल्प सिद्ध हो सकता है । बीएएमएस के बाद एमडी के समकक्ष डिग्री हासिल की जा सकती है । सेंट्रल गवनüमेंट हैल्थ स्कीम (सीजीएचएस) के अलावा राज्यों में भी आयुवेüदिक चिकित्सा पद्धति को काफी प्रोत्साहित किया जाता है । <br><br><br><br><br>नसिZग (बीएससी) <br><br><br>खाड़ी देशों के साथ अन्य पश्चिमी देशों में भारतीय ट्रेंड नसोZ की मांग में हाल के वषोüं में काफी तेजी देखने को मिली है । इसके अलावा देश में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कॉरपोरेट अस्पतालों के अस्तित्व में आने और निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी के कारण नसोüं की मांग में आने वाले समय में बढ़ोत्तरी होने की पूरी उम्मीद है । <br><br><br><br><br>बायोकेमिस्ट्री <br><br><br>इस प्रकार के ट्रेंड युवाओं के लिए केमिस्ट, कांट्रेक्ट साइंटिस्ट, लैब टेक्नीशियन, मैन्यूफैक्चरिंग केमिस्ट, प्रिपरेट्री टेक्नीशियन, आरएेंडडी केमिस्ट, रिसर्च एनालिस्ट, क्वालिटी कंट्रोल टेक्नीशियन सरीखे पदों पर नामी संगठनों में नियुक्ति के अवसर हैं। वे चाहें तो पीएचडी कर अध्यापन क्षेत्र में भी कैरियर बना सकते हैं।<br><br><br><br><br>बायोइंफॉरमेटिक्स (बीटेक) <br><br><br>मेडिकल रिसर्च के इस क्षेत्र में जीव विज्ञान का जानकार होने के अलावा गणित की पृष्ठभूमि और इसके उपयोग की जानकारी रखने वाले युवा ही कैरियर बना सकते हैं । इसके अलावा कृषि शोध में भी इसकी उपयोगिता कम नहीं है । <br><br><br><br><br>बायोमेडिकल इंजीनिय¨रग (बीई) <br><br><br>इसके तहत बायोइंस्ट्रåूमेंटेशन इंजीनियरिंग, बायोमैटीरियल इंजीनियरिंग, बायोमैकेनिक्स, सेल्युलर टिश्यू ऐंड जेनेटिक इंजीनियरिंग, क्लीनिकल इंजीनियरिंग, मेडिकल इमेजिंग, ऑर्थोपीडिक बायोइंजीनियरिंग सरीखी शाखाओं का जिक्र किया जा सकता है । उपरोक्त सभी विषयों में बीएससी और बीटेक स्तर के कोर्स देश के विभिन्न संस्थानों में उपलब्ध हैं।<br><br><br><br><br>माइक्रोबायोलॉजी (बीएससी)<br><br><br>बैक्टीरिया, वाइरस, एल्गी, प्रोटोजोआ, यीस्ट सरीखे अत्यंत सूक्ष्म जीवाणुओं, उनकी उपयोगिता एवं औद्योगिक उत्पादन में इनके योगदान से संबंधित अध्ययन एवं शोध का कार्य माइक्रोबायोलॉजी के अंतर्गत किया जाता है । इस विषय की प्रमुख उपशाखाओं में मेडिकल माइक्रोबायलॉजिस्ट, एग्रीकल्चर माइक्रोबायलॉजिस्ट तथा इंडस्टि्रयल माइक्रोबायलॉजिस्ट का नाम लिया जा सकता है । <br><br><br><br><br>एमबीबीएस और बीडीएस<br><br><br>एमबीबीएस की डिगरी हासिल करने के बाद स्पेशलाइजेशन की कई राहें मास्टर्स डिगरी के स्तर पर खुलती हैं। मेडिकल प्रोफेशन में आगे निकलने के लिए मेडिकल साइंस की किसी विशिष्ट शाखा में स्पेशलाइजेशन के लिए एमडी या एमएस डिगरी हासिल की जा सकती है। बारहवीं के बाद एमबीबीएस और बीडीएस में दाखिला देशभर में फैले मेडिकल कॉलेजों में पीएमटी, प्रदेश चयन परीक्षाओं के आधार पर होता है। इनमें खास तौर से सीबीएसई मेडिकल एंट्रेंस, एएफएमसी, पुणे, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, मेडिकल कॉमन एंट्रेंस एग्जाम, महाराष्ट्र, उड़ीसा ज्वॉइंट एंट्रेंस एग्जाम इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है । इनके अलावा मनीपाल एकेडेमी, बीएचयू, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवçर्सटी, जिपमर पांडिचेरी, इंद्रप्रस्थ यूनिवçर्सटी आदि संस्थान भी उल्लेखनीय हैं ।<br><br><br><br><br>पैरामेडिकल कोर्स<br><br><br>इसके तहत मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, रेडियोलॉजी, ऑडियोलॉजी, ऑप्टोमेट्री, न्यूçक्लयर मेडिसिन टेक्नोलॉजी, ऑपरेशन थिएटर असिस्टेंट, फिजियोथैरेपी , नçर्संग अटेंडेंट सरीखे विशिष्ट ट्रेनिंग पाठ्यक्रमों का उल्लेख किया जा सकता है। इनकी जरूरत बड़े अस्पतालों से लेकर छोटे नसिZग होम तक में होती है। समस्त मेडिकल उपकरणों के संचालन और इनके रख-रखाव तक का कार्यभार इन पर होता है । विस्तृत जानकारी के लिए पीजीआई, चंडीगढ़; एम्स, नई दिल्ली; सीएमसी, वेल्लोर; जीटीबी हॉçस्पटल, दिलशाद गार्डन, दिल्ली; मेडिकल कॉलेज, रोहतक, हरियाणा; जवाहरलाल नेहरू इंस्टीटKूट ऑफ पीजी मेडिकल एजुकेशन एेंड रिसर्च, पांडिचेरी; सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली; पटना मेडिकल कॉलेज, पटना, बिहार; एसएन मेडिकल कॉलेज, आगरा आदि से संपर्क कर सकते हैं।<br><br><br><br><br>फामेüसी (बी फार्मा) <br><br><br>दवा निर्माता कंपनियों के रिसर्च एंड डेवलपमेंट विंग में काम करने के अतिरिक्त बतौर मेडिकल रिप्रजेेन्टेटिव कार्य करने के मौके बी फार्मा के बाद तलाशे जा सकते हैं । इतना ही नहीं, अपनी फार्मास्यूटिकल उत्पादन इकाई भी इस डिगरी के आधार पर शुरू की जा सकती है । पाठ्यक्रम कुल चार वर्ष की अवधि का है। मुख्य संस्थानों में कॉलेज ऑफ फामेüसी (दिल्ली विश्वविद्यालय), पुष्प विहार, नई दिल्ली; इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज (पंजाब यूनीवçर्सटी), चंडीगढ़ ; गुरु गोविन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवçर्सटी, कश्मीरी गेट, नई दिल्ली; महर्षि दयानंद यूनिवçर्सटी, रोहतक ; बीआईटी, मेसरा, रांची, झारखंड, बिडला इंस्टीट्यूट ऑफ सांइस एंड टैक्नोलॉजी (पिलानी, राजस्थान), बुंदेलखंड यूनीवçर्सटी (झांसी, उ.प्र.) का नाम इस क्षेत्र में क्वालिटी एजुकेशन के लिए लिया जा सकता है ।</html>
<html>
- <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);">मधु</font><font style="font-size: 10pt;">र </font><font style="font-size: 10pt;">नानेरिय</font><font style="font-size: 10pt;">ा </font><br><br>
यदि हम आज विश्व व्यापार की ओर दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि व्यापार करने
के तौर-तरीकों में व्यापक परिवर्तन आ गया है। दुनियाभर के प्रबंधकों
जिन्हें कि आमतौर पर मैनेजर कहा जाता है, उनकी मानसिकता में इतना बदलाव
आया है कि वे यह सोचने लगे हैं कि केवल संसाधनों की खपत से ही काम नहीं
चलने वाला है, क्योंकि संसाधन न केवल सीमित हैं बल्कि वे दिन-पर-दिन
सिकुड़ते भी जा रहे हैं। <br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इस
बुनियादी आकलन के साथ हमें इन सीमित साधनों को उनकी पूर्ण क्षमता के साथ
इस तरह से प्रबंधित करने की आवश्यकता है कि हमें अपना लक्ष्य प्राप्त हो
सके। इसी लक्ष्य की तलाश करते हुए प्रबंधन का क्षेत्र अस्तित्व में आ गया।
</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">आज
ज्यादा से ज्यादा कंपनियाँ देसी चोला उतारकर अंतरराष्ट्रीय ठप्पा लगाकर
अपना व्यवसाय करने लगी हैं। इसी के साथ वैश्वीकरण के दौर की शुरुआत भी हुई
है। ये विश्वव्यापी कंपनियाँ उन अनछुए बाजारों की खोज में संलग्न हैं,
जहाँ तक कोई नहीं पहुँच पाया है। साथ ही वे अपने व्यापार को अंजाम देने के
लिए ऐसे-ऐसे विचार उपयोग में ला रही हैं जिन्हें पहले कभी सोचा तक नहीं
गया। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इसलिए
व्यापार जगत में ऐसे लोगों ने अपने सिर सफलता का सेहरा बाँधा है जिनका
दिमाग किसी भी तरह के व्यापारिक मौसम तथा परिस्थितियों को आसानी से
शिरोधार्य कर व्यापार को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सके। उनके पास जो आवश्यक
कौशल हो, वह न केवल व्यापार के चालक के रूप में उनसे कार्य करवा सके बल्कि
वह समाज के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह भी उतने ही कौशल से कर सके। इस
परिप्रेक्ष्य में हमारे समाज में ऐसे तथाकथित एमबीएज हैं, जो सर्वश्रेष्ठ
बिजनेस स्कूल में प्राप्त ज्ञान की बदौलत उपर्युक्त खाँचे में एकदम फिट
बैठते हैं।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> <!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">ऐसे
दायित्वपूर्ण प्रोफेशनल्स की दुनियाभर में भारी माँग है जिसने एमबीएज की
माँग तथा आपूर्ति के संपूर्ण चक्र को गति प्रदान की हुई है। हमारे यहाँ
कुछ ऐसे निराशावादी लोग भी हैं, जो यह राग अलापते फिरते हैं कि एमबीए का
गुब्बारा जल्दी ही फुस्स हो जाएगा। लेकिन जब तक व्यापार जगत का अस्तित्व
है और सर्वाधिक प्रभावी तरीके से व्यवसाय चलाने वाले प्रवीण लोगों की
आवश्यकता है, अच्छे बिजनेस स्कूल से निकले मैनेजमेंट ग्रेजुएट्स की माँग
भी बरकरार रहने वाली है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">नया
प्रबंधन इतना व्यापक क्षेत्र है कि वस्तुतः इसमें हम किसी भी क्षेत्र को
शामिल कर सकते हैं तथा एक नए करियर विकल्प को इन क्षेत्रों से तलाशा जा
सकता है। गत कुछ वर्षों में हमने देखा है कि प्रबंधन के क्षेत्र में एक से
बढ़कर एक नए और संभावनायुक्त क्षेत्र उभरकर सामने आए हैं। इनमें डेयरी
मैनेजमेंट, हॉस्पिटल मैनेजमेंट, एविएशन मैनेजमेंट, वेस्ट मैनेजमेंट,
एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट शामिल हैं, साथ ही रोजाना प्रबंधन का एक नया
क्षेत्र इसमें आकर जुड़ रहा है। इसका सीधा-सा अर्थ यही है कि आज का युवा
सपने ही नहीं देख सकता है बल्कि वास्तव में उन्हें साकार होता भी देख सकता
है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">अब
उसे केवल मार्केटिंग, फायनेंस, मानव संसाधन, ऑपरेशंस, इंफॉर्मेशन
टेक्नोलॉजी, एडवरटाइजिंग जैसे परंपरागत क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहना
पड़ेगा। वह अब गैर परंपरागत क्षेत्रों की तरफ भी रुख कर सकता है। यह मानना
पड़ेगा कि अभी भी हमारे यहाँ प्रबंधन के परंपरागत क्षेत्र ही ज्यादा
लोकप्रिय हैं, क्योंकि उन्हें सारे देशों तथा कॉर्पोरेशंस में सहज तथा
व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। लेकिन आज कई कॉलेजों से ऐसी स्वस्थ
प्रवृत्तियाँ विकसित हो रही हैं जिनमें उद्योग जगत की इस विशिष्ट माँग के
अनुरूप अनूठे पाठ्यक्रमों को आरंभ कर उन्हें करियर निर्माण की एक नई
दुनिया से रूबरू कराने के प्रयास जारी हैं। <br><br><br></font>एक नजर उन सर्वाधिक लोकप्रिय विकल्पों की ओर जिन्हें मैनेजमेंट के अभिलाषियों द्वारा सारी दुनिया में आज अपनाया जा रहा है-<br><br><span style="font-weight: bold;">मार्केटिंग</span>
: संभवतया प्रबंधन के क्षेत्र का यह सबसे सदाबहार क्षेत्र है जिसके साथ
रुमानियत की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। इस दावे को कौन झुठला सकता है कि वह
रेमंड कोक के जादू से अभिभूत नहीं है जिसने कि आज घर-घर में पहचाने जाने
वाले ब्रांड मॅकडोनाल्ड को बनाया था या कोक और पेप्सी की जंग भला कौन भूल
सकता है। इन दिनों चहेते पात्रों शाहरुख खान, रणबीर कपूर और दीपिका
पादुकोण के साथ रचे गए कोका कोला के विज्ञापन और उसकी स्प्रिट द्वारा बनाई
गई पैरोडी के रस से दर्शक भीगे हुए हैं।<br><br>ये सब मार्केटिंग की ही
महिमा है। आज किसी भी संस्थान के व्यापारिक उत्थान के लिए मार्केटिंग
आधारभूत गतिविधि है। जैसा कि मैनेजमेंट के पितामह पीटर एफ. ड्रकर ने कहा
है कि किसी भी संगठन के केवल दो मुख्य कार्य होते हैं- एक है मार्केटिंग
और दूसरा है नवाचार। शेष सारे कार्य सहायक कार्य हैं। जिन लोगों में
वाक्पटुता है और जो मस्तमौला प्रकृति के मालिक हैं तथा जिनमें विक्रय के
प्रति स्नेह है और सड़कों पर लंबे समय तक विचरण करने की इच्छा है, वे
मार्केटिंग प्रोफेशनल बनने के सच्चे अधिकारी साबित हो सकते हैं। विक्रय
तथा वितरण, विज्ञापन, ब्रांड मैनेजमेंट, प्रॉडक्ट मैनेजमेंट आदि में करियर
निर्माण के बेहतरीन विकल्प उनकी बाट जोह रहे हैं।<br><br><span style="font-weight: bold;">फायनेंस :</span>
अधिकांश संगठनों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य है वित्तीय
व्यवस्थाएँ जुटाना तथा उनका उचित प्रबंधन करना। वित्त ही ऐसा क्षेत्र है,
जो संगठन के जीवन-रक्त को नियंत्रित करता है यानी कि किसी भी व्यवसाय का
ब्लड प्रेशर उसकी वित्तीय स्थिति के अनुरूप चढ़ता या उतरता है। ऐसे कई
बैकरूम बाईज तथा कंचर्स हैं, जो संगठन के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए
जिम्मेदार होते हैं।<br><br>हालिया समय में स्टॉक मार्केट के बतौर
शक्तिशाली रूप से उभरने अथवा क्रिकेट के बाद सबसे ज्यादा बुखार फैलाने
वाली गतिविधि बनने से इक्विटी, डेरिवेटिव्ज, ट्रेडिंग पोर्टफोलियो
मैनेजमेंट, रिस्क एनालिसिस परंपरागत एमबीए फायनेंस के सिर चढ़कर बोल रहे
हैं तथा ग्लोरिफाइड बुक कीपर का दर्जा प्राप्त कर पैसा बना रहे हैं।
कंज्यूमर बैंक्स, म्यूच्युअल फंड्स तथा प्राइवेट इक्विटी कंपनियाँ,
मर्चेंट बैंक्स, इन्वेस्टमेंट एजेंसीज, क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज तथा असेट
मैनेजमेंट सभी में फायनेंस में डिग्री लेने के बाद शानदार करियर की गारंटी
खुद-ब-खुद मिल जाती है।<br><br><span style="font-weight: bold;">इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी :</span> यह अपेक्षाकृत नया
स्पेशलाइजेशन है। यह छात्रों को प्रबंधन की कला के साथ सूचना प्रौद्योगिकी
के विज्ञान को सम्मिलित करने का मौका प्रदान करता है। किसी भी विषय के
छात्र इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए स्वतंत्र हैं तथा इसे करने के
बाद नेटवर्क मैनेजमेंट, सॉफ्टवेयर मैनेजमेंट, ई-कॉमर्स, सिस्टम
एडमिनिस्ट्रेटर्स अथवा बिजनेस डेवलपमेंट के क्षेत्र तक में भी करियर बनाया
जा सकता है।<br><br><span style="font-weight: bold;">ऑपरेशंस :</span> यह ऐसा क्षेत्र है, जो मुख्यतः इंजीनियर्स
के लिए ही सुरक्षित है। यह विशेष क्षेत्र उन लोगों को आकर्षित करता है
जिनकी औद्योगिक पृष्ठभूमि मजबूत हो तथा जिनमें सिस्टम्स तथा प्रोसेस के
प्रति प्रेम हो। इसे करने के बाद सप्लाय चैन मैनेजमेंट, लॉजिस्टिक्स,
प्रोडक्शन प्लानिंग एवं कंट्रोल, ऑपरेशंस रिसर्च, इन्वेंटरी मैनेजमेंट,
क्वालिटी मैनेजमेंट आदि के क्षेत्र में करियर तलाशा जा सकता है।<br><br>इस
क्षेत्र की एक खासियत यह है कि यदि अच्छा करें तो उनके निष्पादन की
प्रशंसा की जाती है, लेकिन यदि ऑपरेशंस में जरा भी चूक हो जाए तो दिनभर
में हजारों गालियाँ सुनते-सुनते कान भी पक जाते हैं। ये लोग लागत घटाने
तथा प्रक्रिया की दक्षता उच्चतम स्तर तक बनाने के लिए अथक परिश्रम करते
रहते हैं इसलिए पैसा भी अच्छा पाते हैं।<br><br><span style="font-weight: bold;">एडवरटाइजिंग :</span> इसे
मार्केटिंग का ही एक हिस्सा माना जाता है। यह क्षेत्र उन लोगों को आकर्षित
करता है जिनमें सृजनशीलता के प्रति लगन तथा आगे बढ़ने की भावना हो। जिनकी
फाइन आर्ट्स, विजुल आर्ट्स के साथ अँगरेजी तथा हिन्दी कॉपी राइटिंग में
अच्छी पकड़ हो, उनके लिए करियर निर्माण के लिए एडवरटाइजिंग एक शानदार
क्षेत्र है। जो सृजनात्मक गतिविधियों में दिलचस्पी नहीं रखते वे
एडवरटाइजिंग के अन्य क्षेत्र यथा एकाउंट एक्जीक्यूटिव, क्लाइंट सर्विस
एक्जीक्यूटिव, मीडिया प्लानर, क्रिएटिव, ले आउट आर्टिस्ट, कॉपी राइटर के
रूप में करियर बना सकते हैं।<br><br><br>(लेखक पीटी एजुकेशन के नॉलेज रिर्सोस ग्रुप के वाइस प्रेसीडेंट है।)<br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/0424/default.asp" target="_blank">स्रोत : नईदुनिया अवसर</a></html>
देश की इकोनॉमी में आई तेजी को देखते हुए जहां नए-नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन हो रहा है, वहीं कई पुराने क्षेत्रों में नई कंपनियों के उतरने से पेशेवरों की मांग बढ़ रही है। ऐसा ही एक क्षेत्र है, बीमा। उद्योग चैंबर एसोचैम के महासचिव डी.एस. रावत के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में बीमा का सालाना बाजार 25 से 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। वहीं ग्रामीण और कसबाई इलाकों में इसकी सालाना विकास दर 12 से 15 फीसदी है। वर्ष 2010 तक बीमा बाजार के 50 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है और इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पांच लाख लोगों की जरूरत पड़ेगी।
आखिर क्या है बीमा?
एक तय रकम के एवज में नुकसान के जोखिम को ट्रांसफर करना ही बीमा कहलाता है। इसमें बीमित व्यक्ति या वस्तु का जोखिम संबंधित बीमा कंपनी को हस्तांतरित कर दिया जाता है। बीमा कंपनियां खासतौर से दो क्षेत्रों में काम करती हैं। एक, जीवन बीमा और दूसरा साधारण बीमा। जहां जीवन बीमा में व्यक्ति के जीवन का बीमा किया जाता है, वहीं साधारण बीमा के अंतर्गत वाहन, घर, सामान आदि का बीमा किया जाता है। हाल के दिनों में इस क्षेत्र में एक नए सेक्टर स्वास्थ्य बीमा या हेल्थ इंश्योरेंस का भी उदय हुआ है। हेल्थ इंश्योरेंस में अपार संभावनाओं को देखते हुए सरकार बीमा अधिनियम, 1938 में संशोधन करने की तैयारी कर रही है। वर्तमान में स्टार हेल्थ इंश्योरेंस सहित कुछ ही कंपनियां स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दे रही हैं। इसके अलावा बीमा क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा के लिए वित्त मंत्रालय इस क्षेत्र में एफडीआई की मौजूदा सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने पर भी विचार कर रहा है।
बीमा क्षेत्र में संभावनाएं
देश में बीते चार दशक से भी अधिक समय से एलआईसी, जीआईसी सरीखी सरकारी बीमा कंपनियों ने अपनी साख मजबूत और विस्तृत नेटवर्क बनाया है। इनके पास प्रशिक्षित लोगों की बड़ी फौज है। ऐसे में, इस क्षेत्र में निजी कंपनियों को अपनी पैठ बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। निजी कंपनियों को अपना नेटवर्क बढ़ाने के लिए भारी तादाद में लोगों की जरूरत पड़ेगी। इस समय देश में करीब एक दर्जन वाहन इंश्योरेंस कंपनियों में सवेüयरों का अकाल-सा पड़ा हुआ है। बहरहाल, सरकारी कंपनियों में सहायक प्रशासनिक अधिकारी (एएओ), सवेüयर, एक्च्यूरी, सहायक विकास अधिकारी जैसे पदों के लिए आमतौर पर चयन परीक्षा के जरिये नियुक्तियां की जाती हैं, जबकि बीमा एजेंट कंपनी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इंश्योरेंस सेक्टर में बीमा एजेंटों की मांग तेजी से बढ़ रही है।
रोजगार के अवसर
बीमा एजेंट : बीमा एजेंट बनने के लिए स्कूली शिक्षा का स्तर होना काफी है। देश की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी के जोनल मैनेजर अशोक शाह बताते हैं कि बीमा नियामक आईआरडीए के नियमों के मुताबिक, एजेंट बनने के लिए व्यक्ति को कंपनी के सौ घंटे के प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है। एलआईसी यह ट्रेनिंग नि:शुल्क प्रदान करती है। इसके बाद व्यक्ति को इंश्योरेंस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की एक परीक्षा पास करनी होती है। यह
परीक्षा पास करने के बाद व्यक्ति बीमा एजेंट बनने के लिए योग्य घोषित कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि कंपनी ने शहरी क्षेत्रों में एजेंट नियुक्त करने के लिए न्यूनतम योग्यता बारहवीं रखी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में दसवीं पास व्यक्ति बीमा एजेंट बन सकता है। एजेंटों को किसी प्रकार का नियमित वेतन नहीं मिलता, बल्कि जितनी पॉलिसियां वे बेचते हैं, उनके मुताबिक उन्हें कमीशन मिलता है।
एक सफल बीमा एजेंट बनने के लिए व्यक्ति का एक्स्ट्रोवर्ट यानी बहिमुüखी होना जरूरी है, क्योंकि एजेंट को अधिक से अधिक लोगों से मिलना होता है और बीमा के फायदे बताकर उन्हें अपनी पॉलिसी बेचनी होती है। बीमा एजेंट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह किसी समय-सीमा से नहीं बंधा होता और अपनी मेहनत के बल पर वह नई ऊंचाइयों को छू सकता है। इसके अलावा इंश्योरेंस सेक्टर में कंपोजिट एजेंट भी होते हैं, जो जीवन बीमा और साधारण बीमा, दोनों ही तरह की पॉलिसियां बेचते हैं। कंपोजिट एजेंट को आईआरडीए द्वारा आयोजित एक अन्य परीक्षा में भी बैठना होता है। एजेंट कंपनी में विकास अधिकारी के साथ काम करता है। बीमा कंपनियां एजेंटों को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर कुछ इन्सेंटिव भी देती हैं।
इंश्योरेंस सवेüयर- सवेüयर, लॉस एडजस्टर और ऐसेसर तकनीकी रूप से दक्ष होते हैं, जिनका काम अनुभव के आधार पर हुए नुकसान का आकलन करना होता है। मसलन, अगर एक सवेüयर का बैकग्राउंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग का है, तो वह औद्योगिक दुघüटना में हुए नुकसान का आकलन करेगा। आमतौर पर सवेüयर कंपनी के लिए सलाहकार के रूप में काम करते हैं। लेकिन एक सवेüयर का निम्नलिखित संस्थानों से जुड़ा होना या वहां से फेलोशिप प्राप्त होना जरूरी है-
दी इंस्टीट्यूट ऑफ इंश्योरेंस सवेüयर्स ऐंड एडजस्टर्स, मुंबई। मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से डिगरी या डिप्लोमा।
इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स या कॉस्ट एेंड वक्र्स एकाउंटेंट्स से फेलोशिप या एसोसिएशनशिप। मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग संस्थान से डिगरी या डिप्लोमा या नवल आर्किटेक्चर में डिगरी या डिप्लोमा।
इसके बाद व्यक्ति को लाइसेंस के लिए आइआरडीए के पास आवेदन करना होता है, जिसमें व्यक्ति को ए, बी, सी या डी श्रेणी में वगीüकृत किया जाता है। वास्तव में, एक सवेüयर बीमा कंपनी और बीमित व्यक्ति के बीच सेतु का काम करता है। सवेüयर बनने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम आयु इक्कीस वष्ाü होनी चाहिए।
एक्च्यूरी- बीमा क्षेत्र में एक्च्यूरी वह प्रोफेशनल व्यक्ति होता है, जो जोखिम के वित्तीय निष्कष्ाü का विश्लेषण करता है। एक्च्यूरी इसके लिए गणित, सांçख्यकी और वित्तीय सिद्धांतों का उपयोग कर आशंकित घटनाओं का अध्ययन करता है। एक्च्यूरी बनने के लिए उम्मीदवार को 55 फीसदी अंकों के साथ स्नातक होना चाहिए। साथ ही उसने गणित/सांçख्यकी/अर्थशास्त्र/कंप्यूटर विज्ञान में एक कोर्स पूरा किया हो। फाइनेंस में एमबीए कर चुके व्यक्ति भी एक्च्यूरी बन सकते हैं। इनके अलावा जिन्होंने सीए/आईसीडब्लूए/ एमसीए पूरा किया है, वे भी इसके लिए योग्य हैं। एक्च्यूरी का प्रशिक्षण मुंबई स्थित एक्च्यूरियल सोसाइटी ऑफ इंडिया या लंदन स्थित दी इंस्टीट्यूट ऐंड फैकल्टी ऑफ एक्च्यूरीज से प्राप्त किया जा सकता है। बीमा कंपनियों में एक्च्यूरी को भारत में सालाना आठ लाख रुपये तक मिल सकते हैं।
एओ और एएओ : प्रशासनिक अधिकारी और सहायक प्रशासनिक अधिकारी क्लास-1 अधिकारी समूह के अंतर्गत आते हैं। प्रशासनिक अधिकारी बनने के बाद व्यक्ति को छह महीने की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें उसे इंश्योरेंस सेक्टर में काम की प्रकृति से परिचित कराया जाता है। इस पद के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा समय-समय पर परीक्षाएं और इंटरव्यू आयोजित किए जाते हैं।
डेवलपमेंट ऑफिसर- इंश्योरेंस सेक्टर में डेवलपमेंट ऑफिसर क्लास-2 अधिकारी की श्रेणी में आते हैं। ये अधिकारी अपने क्षेत्र में कंपनी की बीमा पॉलिसियों की बिक्री बढ़ाने और उन्हें लोकप्रिय बनाने के लिए काम करते हैं। कंपनी में एजेंटों की भरती, उनके प्रशिक्षण आदि का जिम्मा डेवलपमेंट ऑफिसर के ऊपर ही होता है। डेवलपमेंट ऑफिसर द्वारा नियुक्त एजेंट अपनी मेहनत के बल पर तरक्की कर डेवलपमेंट ऑफिसर के पद तक पहुंच सकता है। डेवलपमेंट ऑफिसर की भरती डिविजनल ऑफिस के जरिये होती है। इस पद के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति की न्यूनतम उम्र 21 वष्ाü होनी चाहिए और उसे कम से कम स्नातक होना चाहिए।
<html>आज भी सम्मानजनक पारिश्रमिक, आकर्षक सुविधाओं तथा प्रगति की व्यापक संभावनाओं के कारण बैंकिंग सेवा क्षेत्र युवा वर्ग में लोकप्रिय बना हुआ है। अधिकांश बैंकों में दो वगोZ में मानव शक्ति का नियोजन किया जाता है। एक है लिपिक वर्ग और द्वितीय अधिकारी वर्ग। लिपिक वर्ग के अंतर्गत लेखा लिपिक, टाइपिस्ट, कैशियर, स्टेनोग्राफर, डेटा एंट्री ऑपरेटर आदि को सçम्मलित किया जाता है। वहीं अधिकारी वर्ग में पीओ, स्टाफ अधिकारी ग्रेड ए, स्टाफ अधिकारी ग्रेड बी आदि को सçम्मलित किया जाता है। बैंकों में दो ग्रेड में परीक्षाएं होती हैं। एक तो पीओ लेवल और दूसरा क्लैरिकल ग्रेड पर।<br><br> विभिन्न क्षेत्रों में पीओ और क्लर्क स्तर पर कई नियुक्तियां होनी हैं। इनका फायदा उठाएं। <br> <br><br><big><big>पीओ लेवल</big></big><br><br>सरकारी क्षेत्र में किसी बैंक की बात हो या निजी बैंक, पीओ बनने की तैयारी एक सी है। इसकी आयु सीमा प्रत्येक बैंक के लिए हर स्तर पर अलग-अलग होती है। सामान्यत: इस पद के लिए आयु सीमा 20 से 28 वर्ष होती है। <br><br><br><big>परीक्षा :</big> चयन प्रक्रिया में आमतौर पर दो प्रश्नपत्र होते हैं। पहला प्रश्नपत्र ऑब्जेçक्टव होता है और दूसरा सब्जेçक्टव। पहले पेपर में सामान्यत: बुद्धि, गणित, सामान्य ज्ञान, साइकोलॉजिकल टेस्ट व अंगरेजी भाषा से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। सामान्य बुद्धि के प्रश्नपत्र में मुख्यत: वबüल व नॉन वबüल प्रश्न पूछे जाते हैं। गणित, औसत, लाभ-हानि, साधारण ब्याज, कार्य और समय, क्षेत्रमिति, ऊंचाई और दूरी, सरलीकरण, प्रतिशत, अनुपात-समानुपात, समय और दूरी पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके अलावा सामान्य ज्ञान के क्षेत्र से बैंकिंग, योजना आयोग के कार्य, कृषि विकास दर, लघु एवं कुटीर उद्योग, शेयर बाजार, विश्व बैंक और बजट, राजकोषीय नीति, समसामयिक घटनाओं और सामाजिक संरचनाओं से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। अंगरेजी में कॉçम्प्रहेंशन, ग्रामर से जुड़ी गलतियों को सही करना, खाली जगह को भरना, समानार्थी शब्द, विपरीत शब्द, इडियम फ्रेजेस पर ध्यान देना जरूरी है। वोकैब्लरी का ज्ञान अच्छा होना चाहिए। इसका दूसरा प्रश्नपत्र सब्जेçक्टव होता है। इसमें अंगरेजी में लेटर राइटिंग, निबंध लेखन और प्रेसीस राइटिंग से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।<br><br><br><big><big>लिपिक वर्ग</big></big><br>आने वाले वर्षों में पब्लिक सेक्टर के बैंकों में लिपिक पदों पर उम्मीदवारों की काफी मांग है। अपने सहयोगी बैंकों के लिए एसबीआई को लिपिक स्तर पर लोगों की जरूरत है। वहींं यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को लिपिक पदों पर 400 क्लर्क-कैशियर की दरकार है। ऐसे में बैंक में क्लर्क और कैशियर बनकर आप अपने भविष्य को संवार सकते हैं। इन पदों के लिए आयु सीमा प्रत्येक बैंक में अलग- अलग हो सकती है। सामान्यत: इसके लिए आयु सीमा 18 से 28 वर्ष होती है।<br><br><big>परीक्षा :</big> लिपिक परीक्षा में वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रश्नपत्र में सामान्यत: सामान्य ज्ञान, गणित और अंगरेजी से जुड़े प्रश्न होते हैं। सामान्य ज्ञान के प्रश्नों में समसामयिक घटनाओं से जुड़े प्रश्न, व्यापार, इतिहास और भूगोल से जुड़े प्रश्न ज्यादा होते हैं। गणित के प्रश्नपत्र में प्रतिशत, औसत, लाभ-हानि, काम-समय, चाल समय, सांçख्यकीय अभियोग्यता से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों को कम समय में हल करने की आपकी योग्यता होनी चाहिए। अंगरेजी में व्याकरण की अशुद्धियां, समानार्थी और विपरीतार्थी शब्दों के ज्ञान की जांच करने की कोशिश की जाती है। लिपिक और कैशियर पदों के लिए कंप्यूटर की बेसिक जानकारी होनी चाहिए। जहां स्टेट बैंक ऑफ इंडिया उन अभ्यर्थियों को देख रहा है, जो अंगरेजी भाषा में बेहतर तरीके से काम कर सकने में सक्षम हों। वहीं पब्लिक सेक्टर के अन्य बैंक उम्मीदवारों के चयन में उन अभ्यर्थियों को ज्यादा तरजीह दे रहे है, जो अंगरेजी लिखने और बोलने दोनों में परफेक्ट हों। लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के बाद साक्षात्कार का बुलावा भेजा जाता है। साक्षात्कार के दौरान उम्मीदवार का व्यक्तित्व, मौलिक विचारधारा, विषय की प्रयोगात्मक समझ, भविष्य अनुमान क्षमता, त्वरित निर्णय प्रक्रिया, सूचना प्रणाली के संबंधित पक्षों की जानकारी आदि की जांच की जाती है। इसलिए आपको सैद्धांतिक के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए।<br><br><br><big>कुछ प्रमुख बातें</big><br><br>-बैंकिग परीक्षा में अंगरेजी एक महत्वपूर्ण रोल अदा करती है। इसके लिए जरूरी है कि आप अंगरेजी पत्रिकाओं का अध्ययन करें।<br><br>-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के नियमित अध्ययन से आप सा<a tiddler="New Tiddler" commandname="saveTiddler" class="button defaultCommand" title="Save changes to this tiddler" href="javascript:;">done</a>मान्य ज्ञान पर अपनी पकड़ मजबूत कर सकते हैं।<br><br>-डिस्कि्रçप्टव प्रश्न पत्र में निबंध लेखन, प्रेसीस लेखन से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए आपको लेखन में पारंगत होना चाहिए।<br><br>-गणित और रीजनिंग के प्रश्नों को कम समय में कर सक ने का अभ्यास करना चाहिए।<br><br> <br><span style="font-weight: bold;">अनुराग मिश्र </span><br><br></html>
<html><table border="0" cellpadding="0" cellspacing="0" width="100%"><tbody><tr><td id="tASH" class="articleSubHeading" valign="bottom">
यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज
</td></tr></tbody></table><br><!--ArticleText-->
<!--Image--><div><table style="margin: 3px 8px 0px 0px;" align="left" border="0" cellpadding="0" cellspacing="0"><tbody><tr><td valign="top"><img src="http://hindi.webdunia.com/news/career/options/0804/21/images/img1080421010_1_1.jpg" alt="" class="imgArticle_New" border="0" hspace="4" vspace="4"></td></tr><tr><td class="imgSource"><table border="0" cellpadding="0" cellspacing="0" width="100%"><tbody><tr><td align="left"><br></td><td align="right" valign="top">ND</td></tr></tbody></table></td></tr></tbody></table></div><!--endImage--> <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यद्यपि
पेट्रोलियम उद्योग में करियर बनाने वाले अधिकांश छात्र भूगर्भशास्त्र की
पृष्ठभूमि से संबंधित होते हैं, जिन्होंने नियमित महाविद्यालयों में
अध्ययन किया होता है। पेट्रोलियम और ऊर्जा को समर्पित देश के पहले ऊर्जा
विश्वविद्यालय की देहरादून में स्थापना से इस क्षेत्र को एक नई दिशा मिली
है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">द
यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज (यूपीईएस) उत्तरांचल राज्य
विधायिका के एक अधिनियम द्वारा स्थापित एक सांविधिक विश्वविद्यालय है। इसे
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 1956 की धारा 2 (एफ) के अंतर्गत यूजीसी
के द्वारा रखी जाने वाली विश्वविद्यालय की सूची में शामिल किया गया है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यह
देश का ऐसा पहला विश्वविद्यालय है जो खासकर पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन के
प्रति समर्पित है। यह अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर
पेट्रोलियम, ऊर्जा और ट्रांसपोर्टेशन क्षेत्रों में कटिंग एज पाठ्यक्रम
प्रदान करता है। इसका मुख्य 25 एकड़ में फैला परिसर एनर्जी एकरिज्
देहरादून की पोंथा घाटी के खूबसूरत वातावरण में स्थित है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>पृष्ठभूमि एवं उद्देश्य </i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यूनिवर्सिटी
ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज (यूपीईएस) सोसायटी अधिनियम 1960 के
अंतर्गत गठित एक लाभ निरपेक्ष समिति हायड्रोकार्बन्स एजुकेशन एंड रिसर्च
सोसायटी (एचईआरएस) का एक उद्यम है। इसका उद्देश्य ऊर्जा प्रबंधन,
पेट्रोलियम, विद्युत ऊर्जा और गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधनों के क्षेत्र में
पेशेवर शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्रदान करना।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> </font><!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"> </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इस
समिति के सदस्यों में पूर्व पेट्रोलियम सचिव, वरिष्ठ प्रोफेशनल्स, विभिन्न
तेल कंपनियों के प्रमुख सहित तेल और गैस उद्योग के प्रतिष्ठित लोग तथा
राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों के विशेषज्ञ शामिल हैं। इसकी दृष्टि
इसे एक आधुनिक सुविधायुक्त प्रीमियर संस्थान के रूप में खुद को स्थापित कर
तेल तथा गैस उद्योग के क्षेत्र में विश्वस्तरीय शिक्षा, प्रशिक्षण,
अनुसंधान परामर्श और आउटरीच सेवाएँ प्रदान करना है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इसका
लक्ष्य ऐसी शीर्षस्थ गुणवत्ता युक्त मानव संसाधन तैयार करना है जो देश के
आर्थिक विकास हेतु पेट्रोलियम उद्योग की उत्पादकता बढ़ाए। इसे उद्योग के
प्रोफेशनल को शिक्षण एवं प्रशिक्षण देने के लिए डिजाइन किया गया है। इसे
विशिष्ट शिक्षण और आउटरीच गतिविधियों के माध्यम से भारतीय पेट्रोलियम
उद्योग के विकास को आगे बढ़ाने में नेतृत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए
तैयार करना तथा पेट्रोलियम उद्योग के सभी तकनीकी और प्रबंधकीय पहलुओं में
अनुसंधान परामर्श और विकास गतिविधियों को सहायता पहुँचाना है।<br><br><br></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>विश्वस्तरीय मान्यता </i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यूनिवर्सिटी
ऑफ पेट्रोलियम एनर्जी स्टडीज एशिया-प्रशांत क्षेत्र का एकमात्र ऊर्जा
विश्वविद्यालय है, जिसके कोर्सों को एनर्जी इंस्टीट्यूट, यूके से संबद्धता
हासिल है। इसके कार्यक्रम तेल तथा गैस, परिवहन, ऊर्जा एवं खनन पर आधारित
हैं। तीन वर्ष की अल्पावधि में ही यह विश्वविद्यालय प्रबंधकों तथा
इंजीनियरों को विकसित करने वाले प्रमुख वैश्विक संस्थान के रूप में उभरा
है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>यूपीईएस से संचालित पाठ्यक्रम </i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><i>कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट द्वारा निम्नलिखित पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं : </i></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>एमबीए (ऑइल एंड गैस मैनेजमेंट)- </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इस
पाठ्यक्रम द्वारा संपूर्ण हाइड्रोकार्बन वेल्यू चैन में रणनीतिपूर्ण
व्यापार मामलों का गहन ज्ञान देकर मैनेजर विकसित किए जाते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>एमबीए (अपसेट असेट मैनेजमेंट)- </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">यह पाठ्यक्रम घाटी तथा भंडारों के प्रबंधन पर आधारित है। </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>एमएस (ऑइल ट्रेडिंग)- </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इस पाठ्यक्रम में प्राइसिंग और रिस्क मैनेजमेंट सहित तेल तथा गैस व्यापार की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के गुर सिखाए जाते हैं। </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>ग्रेजुएट पाठ्यक्रम- </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">यूपीईएस
द्वारा बीवीए (पेट्रो मार्केटिंग) पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है जो
पेट्रो-रिटेलिंग और लुब्रिकेट मार्केटिंग इंडस्ट्री के लिए मार्केटिंग
प्रोफेशनल्स तैयार करता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);"><i>कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा निम्नलिखित पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। </i></font><br>(1) <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>एमटेक (गैस इंजीनियरिंग)- </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इसे गैस इंजीनियरों की नई पीढ़ी तैयार करने के लिए डिजाइन किया गया है। </font><br>(2) <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>एमटेक (पेट्रो-इंफरमेटिक्स)- </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इस
पाठ्यक्रम के द्वारा तेल तथा गैस क्षेत्र के डोमेन एक्सपर्टाइज के भीतर
इंफरमेशन प्रणालियाँ विकसित करने के लिए छात्रों को प्रशिक्षित किया जाता
है। </font><br>(3) <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><i>एमटेक (पाइप लाइन इंजीनियरिंग)- </i></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">इसके
माध्यम से ऐसे इंजीनियर तैयार किए जाते हैं, जो गैस ट्रांसपोर्टेशन
इंफरमेशन सिस्टम की डिजाइन तथा प्रबंधन कर सकें। इसके साथ ही एमटेक
(पेट्रो केमिकल इंजीनियरिंग), एमटेक (हेल्थ, सेफ्टी एंड एनवायरमेंट) के
अलावा रिफाइनिंग टेक्नालॉजी और एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन में पोस्ट
ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">पॉवर
सेक्टर में यूनिवर्सिटी एमबीए (पॉवर मैनेजमेंट तथा एमएससी (एनर्जी
फिशिएंसी) पाठ्यक्रम चलाती है। इंजीनियरिंग कॉलेज द्वारा बीटेक (एप्लाइड
पेट्रोलियमइंजीनियरिंग), बीटेक (गैस इंजीनियरिंग), बीएससी (प्लांट ऑपरेशन)
तथा बीएससी (प्लांट मेंटेनेंस) जैसे महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम संचालित किए
जाते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(255, 0, 0);"><b><i>प्रवेश विवरण </i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एमबीए
कार्यक्रम के लिए यूनिवर्सिटी को ऐसे प्रत्याशियों की आवश्यकता होती है,
जिनके पास चालू वर्ष का वैध मेट/केट स्कोरिंग हो। उन्हें समूह चर्चा तथा
इंटरव्यू के बाद चयनित किया जाता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">बीटेक
कार्यक्रम के लिए प्रत्याशियों के पास वैध एआईईईई/ सीईटी स्कोर होना
चाहिए। उन्हें भी प्रवेश स्पेशलाइज्ड टेस्ट, ग्रुप डिस्कशन और इंटरव्यू के
बाद दिया जाता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">संपर्क- यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज (यूपीईएस) पेट्रोलियम हाउस, देहरादून 242006 फोन 0135-2764370/73<br><br><br></font></html>
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>भारत की शीर्षस्थ 15 बीपीओ कंपनियाँ</b></font><br><br>1. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जेनपेक्ट</font><br>2. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">डब्ल्यूएनएस</font><br>3. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">विप्रो बीपीओ</font><br>4. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एचसीएल बीपीओ सर्विसेज</font><br>5. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">आईसीआईसीआई वनसोर्स </font><br>6. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">आईबीएम दक्ष </font><br>7. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">प्रोजियॉन </font><br>8. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एजिस बीपीओ सर्विसेस </font><br>9. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">ईएक्सएल सर्विस होल्डिंग्स </font><br>10. 24<font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">/7 कस्टमर </font><br>11. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एम्फेसिस बीपीओ </font><br>12. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इंटलनेट ग्लोबल सर्विसेज </font><br>13. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जीटीएल </font><br>14. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">टीसीएस बीपीओ </font><br>15. <font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">ट्रांसवर्क्स </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">स्रोत : नैस्कॉम सर्वेक्षण</font><br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/1129/default.asp" target="_blank">स्रोत : नईदुनिया अवसर</a></html>
मनोविज्ञान कोई ऐसा विषय नहीं, जो सुना हुआ नहीं हो। विद्यार्थियों के लिए कैरियर बनाने के लिए इसमें बहुत से विकल्प हैं। इस कोर्स को करने के बाद आपके व्यक्तित्व का विकास तो होता ही है, दूसरों के व्यक्तित्व को परखने की आपको गजब की दृष्टि प्राप्त हो जाती है।
कोर्स में क्या-क्या है
मनोविज्ञान विषय मूल रूप से मानव व्यवहार में आए सामान्य अथवा असामान्य परिवर्तनों का गहराई से अध्ययन और उनके निवारण से संबंध रखता है। आधुनिक जीवन शैली की बढ़ती जटिलताओं और आपसी होड़ के कारण मानवीय सोच एवं व्यवहार में ऐसे परिवर्तन आना अब सामान्य घटना हो गई है। ऐसे में मनोवैज्ञानिकों की मांग में वृद्धि स्वाभाविक है। खासतौर पर बड़े शहरों में तो मनोवैज्ञानिक परामर्श लेने का चलन काफी जोर पकड़ रहा है। मनोवैज्ञानिकों की विशिष्ट सेवाओं को सरकारी एवं प्राइवेट क्षेत्र की कंपनियों, कॉरपोरेट क्षेत्रों, बड़े बिजनेस समूहों, जनसंपर्क कार्यकलापों से जुड़े लोगों के बीच मान्यता मिलनी शुरू हो गई है।
मनोवैज्ञानिकों की विशेषज्ञता के आधार पर उन्हें विभिन्न श्रेणियों में रख सकते हैं। इंडस्टि्रयल साइकोलॉजिस्ट उद्योगों या कॉरपोरेट हाउसेज से संबंधित समस्याओं को सुलझाने में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। इसी तरह, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट व्यक्तिपरक व्यवहार संबंधी निदान उपलब्ध कराते हैं।
योग्यता
अगर आपने मनोविज्ञान के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया है, तो बारहवीं केबाद ग्रैजुएशन में इस विषय को ले सकते हैं। इस कोर्स में विद्यार्थियों को थ्योरिटिकल के साथ प्रैçक्टकल ट्रेनिंग भी दी जाती है। उसके बाद पोस्ट ग्रैजुएट डिगरी लेकर मनोविज्ञान के किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। अगर आपने ग्रैजुएशन में इस विषय को नहीं लिया है, तो पोस्ट ग्रैजुएशन में आपको साइकोलॉजी विषय नहीं मिल सकता।
रोजगार के अवसर
ग्रैजुएशन की डिगरी लेने का बाद कुछ शॉर्ट टर्म कोर्सेज के बाद आप केस मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम कर सकते हैं। कैरियर काउंसलर के तौर पर काम कर सकते हैं। रिहैबिलिटेशन सेंटर्स में मनोवैज्ञानिकों की आवश्यकता होती हैं। वहां पर भी आपको नियुक्ति मिल सकती है। पोस्ट ग्रैजुएट डिगरी और पीएचडी के बाद भी आपके लिए इन सभी जगहों पर अवसर मिलेंगे और बेहतर आय के साथ भी। पीजी डिगरी के बाद आप मनौवैज्ञानिक परामर्शदाता के तौर पर खुद की प्रैçक्टस आरंभ कर सकते हैं। स्कूलों में स्कूल काउंसलर के तौर पर नियुक्ति मिल सकती है। हॉçस्पटल्स में साइकोलॉजिस्ट के तौर पर काम किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त अध्यापन का क्षेत्र तो आपके लिए खुला है ही।
संस्थान
-बनारस हिंदू यूनिवçर्सटी, वाराणसी।
-अलीगढ़ मुसलिम यूनिवçर्सटी, अलीगढ़। बीए ऑनर्स (मनोविज्ञान) , बीएसस (मनोविज्ञान)
-लखनऊ यूनिवçर्सटी, लखनऊ। (बीए ऑनर्स)
-दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीटKूट, आगरा।
-गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार।
-छत्रपति साहूजी महाराज यूनिवçर्सटी, कानपुर।
-रोहिलखंड यूनिवçर्सटी, रोहिलखंड कैंपस, बरेली।
-कुमाऊं यूनिवçर्सटी, नैनीताल।
-हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवçर्सटी, श्रीनगर।
-दिल्ली यूनिवçर्सटी, दिल्ली।
-जामिया मिलिया इसलामिया, दिल्ली।
-कुरुक्षेत्र यूनिवçर्सटी, कुरुक्षेत्र।
-पंजाब यूनिवçर्सटी, सेक्टर 14, चंडीगढ़।
-पंजाब यूनिवçर्सटी, पटियाला।
-यूनिवçर्सटी ऑफ कश्मीर, श्रीनगर।
विनीता झा
मेडिकल के क्षेत्र में माइक्रोबायोलॉजी बिलकुल उसी तरह से है, जैसे इंजीनियरिंग के
फील्ड में नैनोटेक्नोलॉजी। यानी सिद्धांतों को, वस्तुओं को और समस्याओं को बेहद
सूक्ष्म स्तर तक जाकर देखना, समझना और उनसे उत्पन्न परेशानियों से निपटना।
दरअसल माइक्रोबायोलॉजी केमिस्ट्री और बायोलॉजी का मिलाजुला संगम है। जिन
सूक्ष्मजीवों को हम सामान्य आंखों से नहीं देख सकते, वेे कई तरीके से हमारे लिए
सहायक हो सकते हैं! माइक्रोबायोलॉजी में यही पढ़ाया जाता है। कोर्स के दौरान
माइक्रोब्स यानी सूक्ष्म जीवों के पोषक स्तर, उत्पादन प्रक्रिया और उनके जैविक
विकास के अलावा एडवांस टेक्नीक द्वारा उनके इंडस्टि्रयल और çक्लनिकल इस्तेमाल की जानकारी दी जाती है।
माइक्र ोबायोलॉजी की एबीसीडी
माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई दो शाखाओं में बांटकर की जाती है, इंडस्टि्रयल
माइक्रोबायोलॉजी और मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी। बाकी पढ़ाई तो दोनों शाखाओं
में समान ही है, लेकिन जहां मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी में मनुष्यों और जानवरों में
होने वाली बीमारियों में सूक्ष्मजीवों की वजह और उन्हीं की मदद से निदान के बारे में
जानकारी दी जाती है, तो वहीं इंडस्टि्रयल माइक्रोबायोलॉजी में लेदर, एसिड आदि
के काबüनिक रसायन बनाने पर जोर दिया जाता है। इस बात पर जोर दिया जाता है
कि कैसे विभिन्न उत्पादों से जुड़ी रासायनिक क्रियाओं की जटिलता कम की जा
सके, प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके और उत्पाद सस्ते व बेहतर हों। आप चाहे,
तो बीएससी माइक्रोबायोलॉजी की डिग्री ले सकते हैं।
इन सबके लिए माइक्रोबायोलॉजी की डिग्री के साथ कुछ व्यक्तिगत योग्यताएं होनी
भी जरूरी हैं। मसलन आपको रिसर्च माइंडेड होना चाहिए। एनालिटिकल एबिलिटी
यानी आंकड़ों के आधार पर नए-नए और दिलचस्प निष्कर्षों को निकालना भी
आना चाहिए।
संभावनाएं
चूंकि यह फील्ड रिसर्च से जुड़ा है, सो रोजगार तो लगातार बढ़ना तय है। वैसे भी
माना जाता है कि मेडिकल फील्ड से जुडे़ रोजगारों में भी कभी कोई कमी नहीं आने
वाली। आपके लिए विभिन्न दवा कंपनियों में, हॉçस्पटल्स में, रिसर्च लैब्स में,
पैथोलॉजी लैब्स में, खाद्य उत्पादों से जुड़ी कंपनियों में, फटिüलाइजर कंपनियों में,
जैविक सुरक्षा से जुडे़ डिफेंस रिसर्च इंस्टीटKूट्स में, फटिüलाइजर इंडस्ट्री में, पेपर
इंडस्ट्री में, लेदर इंडस्ट्री में, पर्यावरण सस्थानों में जॉब्स के मौके रहेंगे। इसके
अलावा आप विभिन्न शोध संस्थानों और बायोटेक से जुडे़ शिक्षण संस्थानों में
टीचिंग जॉब भी कर सकते हैं। डेरी इंडस्ट्री में भी जॉब के पर्याप्त मौके मौजूद हैं।
इसके अलावा प्रदूषण निवारण से जुड़ी शोध संस्थाओं या संगठनों में भी जॉब की
कमी नहीं है। इसके अलावा समुद्र के पर्यावरण को स्वच्छ रखने में जुटे संस्थानों में
तो बाकायदा मेरीन माइक्र ोबायोलॉजिस्ट नाम की पोस्ट ही ईजाद कर दी है। उसी
तरह एग्रीकल्चर रिसर्च यूनिट्स में भी एग्रीकल्चरल माइक्रोबायोलॉजिस्ट का पद भी
कुछ जगहों पर परमानेंट के तौर पर प्रकाशित किया जा रहा है।
इसके अलावा एल्कोहल इंडस्ट्री और गारमेंट इंडस्ट्री में भी माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स के
लिए जगह बन रही है। गौर से नजर डालें, तो तकरीबन हर इंडस्ट्री में अब सूक्ष्म जीवों
से होने वाले फायदे के प्रति संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। एक भारतीय अमेरिकी
वैज्ञानिक ने एक सूक्ष्मजीव ढूंढा और उसे सुपरबग का नाम दिया। इसकी खासियत
थी कि ये समुद्र में तेल को बड़ी तेजी से खाता है। तो समुद्र में होने वाले प्रदूषण को
ब इसकी सहायता से दूर किया जा रहा है तो वहीं एक ऐसा सूक्ष्मजीव भी खोजा
गया है जो पॉलीçथन को तेजी से खत्म कर सकता है। जाहिर है पॉलीçथन जैसे
इंडस्टि्रयल वेस्ट को खत्म करने में भी इनका सहयोग लिया जा रहा है। महामारियों
से निपटने में तो माइक्र ोबायोलॉजी का सहयोग पुराना हो चला है, उसके लिए नित
नए फील्ड तलाशे जा रहे हैं। जाहिर है जितने नए फील्डस ढूढे जाएंगे, उतनी ही
ज्यादा जॉब्स भी बढ़ेंगी, इसलिए जो दूर की सोचते हैं, बडे़ सपने देखते हैं, समाज के
लिए कुछ कर गुजरने की चाहत भी दिल में रखते हैं, ये रास्ता उन लोगों के लिए हैं।
संस्थान
माइक्रोबायोलॉजी में बीएससी व एमएससी डिग्री कोर्स उपलब्ध कराने वाले प्रमुख संस्थान
-दिल्ली यूनिवçर्सटी, दिल्ली
-गुरुनानक देव यूनिवçर्सटी, अमृतसर
-गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार।
-पंजाब यूनिवçर्सटी, सेक्टर 14, चंडीगढ़
-दिल्ली यूनिवçर्सटी, दिल्ली
-हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवçर्सटी, हरियाणा
शिखा शर्मा
संचार क्रांति के इस युग में हर चीज कंप्यूटर से जुड़ गई है। ऐसे में कंप्यूटर के जानकारों की मांग इन दिनों सबसे ज्यादा हो गई है। खासकर सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की। इनकी मांग केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी हमारे देश के प्रशिक्षित सॉफ्टवेयर प्रोफेशनलों की खूब डिमांड है।
ऐसे छात्र, जो सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं, उनके लिए एमसीए यानी मास्टर ऑफ कंप्यूटर एçप्लकेशन एक बेहतरीन रास्ता है। एमसीए का कोर्स विभिन्न सरकारी एवं निजी संस्थानों द्वारा कराया जाता है, जो देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से संबद्ध होता है। एमसीए सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में आपके लिए कई राहें खोलता है। कॉमर्स से ग्रैजुएशन के बाद भी आप एमसीए कर सकते हैं।
कोर्स व शैक्षिक योग्यता
एमसीए का कोर्स तीन वष्ाü का होता है, जिसे ग्रैजुएशन के बाद पूरा किया जाता है। इस कोर्स को करने के लिए छात्र को साइंस बैकग्राउंड से होना अनिवार्य है। साथ ही 10+2 तक छात्र ने मैथ्स को एक अलग विष्ाय के रूप में पढ़ा हो। हालांकि कुछ विश्वविद्यालय ग्रैजुएशन तक मैथ्स की मांग करते हैं। एमसीए कोर्स में प्रवेश पाने के लिए किसी भी छात्र की क्वांटिटेटिव, एनालिटिकल और लॉजिकल रीजनिंग मजबूत होनी चाहिए।
चयन प्रक्रिया
एमसीए में नामांकन के लिए विभिन्न संस्थानों व विश्वविद्यालयों द्वारा एक प्रवेश परीक्षा ली जाती है, जिसका उद्देश्य कंप्यूटर एçप्लकेशन या सॉफ्टवेयर प्रोफेशन में उतरने वाले छात्रों की सामान्य वुद्धिमत्ता का सही आकलन करना होता है।
एमसीए में नामांकन पाने के लिए एक कॉमन इंट्रेंस टेस्ट भी होता है। इसमें रैंक के आधार पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में एडमिशन प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि इनके रैंक सभी विश्वविद्यालयों द्वारा मान्य नहीं किए जाते। ऐसे विश्वविद्यालय खुद अपने स्तर पर परीक्षा आयोजित करते हैं।
रोजगार की संभावनाएं
मास्टर ऑफ कंप्यूटर एçप्लकेशन कोर्स के बाद आप एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर सकते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर के लिए इस कंप्यूटर के युग में रोजगार की कोई कमी नहीं रह जाती है। इन दिनों सॉफ्टवेयर डेवलप करने वाली कंपनियों की भारत में भरमार हो गई है। आजकल लगभग हर विदेशी कंपनियों की शाखाएं भारत में खुल गई हैं। बंगलुरू तो ऐसी ही कंपनियों का केंद्र बन गया है। इसकी एक वजह यहां के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों का कार्यकुशल होना भी माना जाता है। सफल छात्रों की विदेशों में भी काफी मांग है। वर्तमान में टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्र में भी कई संभावनाएं बन रही हैं।
एमसीए की डिगरी छात्रों को उस शिखर तक ले जाती है, जहां वे इन्ाफॉरमेशन सिस्टम पॉलिसी एनालिस्ट कंसल्टेंट, डाइरेक्ट या मैनेजर, ई-कॉमर्स, प्रोजेक्ट मैनेजर, रिसर्च एनालिस्ट के पद पर कार्य करते हैं। एमसीए डिगरी प्राप्त ज्यादातर छात्रों को पढ़ाई के अंतिम वष्ाü में ही कैंपस सेलेक्शन मिल जाता है। नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सçर्वसेज कंपनीज अथाüत नैस्कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में आईटी के क्षेत्र में वष्ाü 2008 तक लाखों जॉब सामने आएंगे। साथ ही एमसीए के बाद आगे रिसर्च आदि की राहें भी खुलती हैं।
छात्रों को एडमिशन लेते समय इस बात की तफ्तीश कर लेनी चाहिए कि जिस संस्थान में वह दाखिला लेने जा रहा है, उसकी डिगरी मान्य है भी या नहीं। इन संस्थानों की पूरी तर से प्रमाणिकता जंाचने के बाद ही इसमें आप दाखिला लें।
दूरस्थ और नियमित रूप से एमसीए कराने वाले संस्थान :
-जवाहरलाल नेहरू यूनिवçर्सटी, नई दिल्ली।
फोन: 011-26742676, 26742575
-दिल्ली यूनिवçर्सटी, नई दिल्ली।
फोन: 011-27667099
-इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवçर्सटी, मैदान गढ़ी, नई दिल्ली।
-पंजाब टेçक्नकल यूनिवçर्सटी, जालंधर।
-उत्तर प्रदेश टेçक्नकल यूनिवçर्सटी, लखनऊ।
-इन्वोटेक इंस्टीटKूट ऑफ एडवांस स्टडीज, दिल्ली।
फोन: 011-27317654
-बिरला इंस्टीटKूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नोएडा।
फोन: 0120-2553661/62
राजीव राजू
दोपहर साढ़े बारह बजे का वक्त है। करीब एक किलोमीटर पैदल चलकर अब वह थक चुका है। थकान शारीरिक कम मानसिक अधिक है, क्योंकि अभी-अभी वह एक इंटरव्यू से होकर आया है। वह बस स्टैंड केसमीप पहुंचकर, रेहड़ी वाले से एक गिलास पानी लेकर बेंच पर जा बैठता है। अब कुछ बुदबुदाने भी लगा है। दरअसल मीडिया में एक बेहतर कैरियर की तलाश ही उसे छोटे से गांव से दिल्ली ले आई, लेकिन तलाश जारी है...।
ग्लैमर और चुनौतियों से चर्चा बटोरता प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कैरियर की तलाश में जुटे बड़े युवा वर्ग को आकर्षित करता है। पर कुकुरमुत्तों की तरह उगे मीडिया शिक्षण संस्थानों का उद्देश्य सिर्फ धन कमाना है। पंकज घिçल्डयाल का आलेख
यह कहानी उन हजारों मीडिया स्टूडेंट की है, जो प्रत्येक वर्ष किसी न किसी इंस्टीटKूट से कोर्स कर नौकरी तलाशने निकलते हैं। ऐसा नहीं है कि मीडिया में अपार संभावनाएं नहीं रहीं। नित नए न्यूज चैनलों के कारण निस्संदेह इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन जानकारी के अभाव में छोटे-छोटे गांव, कस्बों से युवा कोर्स करनेे महानगरों में आते हैं। कोर्स की समाçप्त तक वे इंस्टीटKूट की असलियत से भली-भांति परिचित हो जाते हैं। दुभाüग्यवश तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने से पहले उन पहलुओं को जानना जरूरी है, जहां सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
इंस्टीटKूट का चुनाव
अगर आप बारहवीं के बाद मीडिया कोर्स करना चाहते हैं, तो बहुत से विश्वविद्यालय हैं, जहां जनüलिज्म (बी.जे.) में स्नातक स्तरीय पाठKक्रम में दाखिला सकते हैं। कई विश्वविद्यालय फ्रेंचाइजी के माध्यम से भी यह पाठ्यक्रम चलाते हैं। लेकिन विश्वविद्यालय के मुकाबले फ्रेंचाइजी काफी मोटी रकम वसूलते हैं। फ्रेंचाइजी की जांच भली-भांति कर लें। जिन्हें आप अपना भविष्य सौंपने जा रहे हैं, क्या वाकई वे विश्वविद्यालय के फ्रेंचाइजी हैं या नहीं? संबंधित विश्वविद्यालय की वेबसाइट से यह पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है। अधिकतर विश्वविद्यालय केफ्रेंचाइजी इंस्टीटKूट की सूची नेट पर उपलब्ध रहती है। फिर यह आपका अधिकार है कि आप संबंधित विश्वविद्यालय के इंस्टीटKूट से संबंध का प्रमाण मांगे। कई बार देखा गया है कि विश्वविद्यालय ने इंस्टीटKूट की मान्यता रद कर दी है, मगर वह चलता रहता है।
फैकल्टी केबारे में जानकारी
कई बार छात्रों को आकर्षित करने के लिए कक्षा केशुरुआती 2-3 दिन जाने-माने पत्रकारों को बुलाया जाता है। जिससे छात्रों को लगे कि उनका भविष्य सही हाथों में है। पर जोर का झटका धीरे से तब लगता है, जब दो-तीन दिन बाद हस्तियां गायब हो जाती हैं, और छात्र ठगा महसूस करते हैं। इसलिए प्रवेश पूर्व, इंस्टीटKूट से साफ-साफ पूछें कि पूरे सत्र में उन्हें कौन-कौन लोग पढ़ाने वाले हैं।
फीस की जानकारी
इंस्टीटKूट से कोर्स की समाçप्त तक आपसे वसूली जाने वाली फीस का ब्योरा पहले ही मांगे, ताकि बाद में कुछ छिपे खर्च सामने न आ जाएं। कई बार इंस्टीटKूट द्वारा बीच-बीच में अनावश्यक फीस वसूलने की कोशिश की जाती है। उदाहरण के लिए, बिçल्डंग फंड, डिपार्टमेंट चार्ज, लाइब्रेरी आदि। इसके अलावा विश्वविद्यालय की परीक्षा शुल्क , रजिस्ट्रेशन फीस अलग से देनी होती है। यानी आप किसी धोखे में न रहें।
कोर्स का चुनाव
बहुत से इंस्टीटKूट सात से पंद्रह दिन का क्रैश कोर्स चलाते हैं। जिसमें आपको सफल एंकर बनाने का दावा किया जाता है। सामान्यत: इस तरह केकोर्स से बहुत कम ही लोग अपनी मंजिल तक पहुंच पातेहैं। इसलिए कोर्स का चुनाव करते समय पर्याप्त सावधानी बरती जानी चाहिए। जिन्हें करने के बाद आप मीडिया में नौकरी के मजबूत दावेदारों के रूप में उभरें। कुछ कोर्स आपसे पहले ही कुछ स्वाभाविक गुण की मांग करते हैं, मसलन न्यूज ऐंकर के लिए आपकी आवाज, तो स्पष्ट होनी ही चाहिए, साथ ही आपके चेहरे के भाव भी खबर के अनुसार बदलते रहने चाहिए। आपको स और श जैसे शब्दों का भी अंतर बोलते हुए पता होना चाहिए।
बेसिक सुविधाओं की जानकारी
मीडिया के किसी भी कोर्स के दौरान कुछ बेसिक सुविधाएं बहुत जरूरी होती हैं। मसलन लाइब्रेरी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, कैमरे, कंप्यूटर लैब, स्टूडियो आदि। यह सुनिश्चित करें कि ये तमाम सुविधाएं मौजूद हैं भी या नहीं। विश्वविद्यालय के पाठKक्रम में प्रैçक्टकल का भी जिक्र होता है। यह पूछें कि वे उन्हें कैसे करवाते हैं। पाठKक्रम में किसी अखबार या चैनल में इंटनüशिप भी अनिवार्य होती है। कहीं आपको गुमराह तो नहीं किया जा रहा है। ध्यान रखें, कोर्स की फीस के रूप में इंस्टीटKूट आपसे 50 हजार से 2 लाख रुपये तक लेता है, तो इन सभी सुविधाओं का होना जरूरी है।
प्लेसमेंट की व्यवस्था
आज देश में मीडिया इंस्टीटKूट की बाढ़-सी आ चुकी है। हजारों छात्र-छात्राएं प्रत्येक वर्ष नौकरी की तलाश मेंं निकलते हैं। इसलिए इंस्टीटKूट से पूछें कि आखिर कोर्स के बाद आपको नौकरी कहां मिलेगी? कहीं ऐसा, तो नहीं कि वे सिर्फ खोखले वायदे कर रहे हों। यह जानने की कोशिश करें कि पिछले बैच को कहां नौकरी मिली।
कोर्स में प्रवेश मिल जाने पर संजीदगी से कोर्स करें। भाषा पर आपका पूरा अधिकार होना चाहिए। वर्तनी से लेकर निजी शब्दकोष तक काफी मजबूत होनी चाहिए।
कोर्स समाप्त होने तक कुछ स्वयं की तैयारी भी करें
-ट्रांसलेशन का नियमित अभ्यास।
-कंप्यूटर ज्ञान
-कम से कम दो अखबारों को नियमित पढ़ने की आदत डालें।
-पत्रकारिता के विशेष क्षेत्र की खबरों पर फोकस तय करें, मसलन राजनीति, अपराध, व्यापार व उद्योग आदि।
-शहर में हो रहे पसंदीदा कार्यक्रम व सेमिनार में उपस्थित रहना।
-तय कर लें कि आपकी रुचि प्रिंट में है, या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में।
-प्रिंट के लिए क्वार्क, पेजमेकर जैसे सॉफ्टवेयर में महारत होनी चाहिए।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए बेसिक वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर ज्ञान जरूरी है।
<html><p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><span style="font-style: italic; font-weight: bold;">(मेरीखबर से, साभार) </span><br></span></p><p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><br></span></p><p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">ऐसा
घरेलू उद्योग, जिसमें थोड़ी सी पूंजी लगे, काम सरल हो और परिवार के बच्चे,
बूढ़े सभी इसमें कार्य कर सकें, तो मोमबत्तियां बनाने का उद्योग सबसे अच्छा
उद्योग है। इस उद्योग में पूंजी डूबने का खतरा नहीं है, तथा यह कायम बहुत
थोड़ी सी जगह में शुरू हो सकता है। मोमबत्तियां बारह महीने बिकती है।
धर्मशालाओं, चर्चों व होटलों में इनकी खरीददारी काफी होती है। आजकल देश
में बिजली का संकट चल रहा है, अत: बिजली की कटौतीयों के काऱण मोमबत्तियों
की बिक्री भी काफी संख्या में हो रही है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">हाल
में एक सर्वे रिर्पोट से पता चला है कि अभी मोमबत्तियों की बिक्री काफी
मात्रा मे हो रही है, इस उद्योग को घरेलू उद्योग के रूप में पांच-छह सौ
रूपये से लेकर हजार-डेढ़ हजार रूपये तक की पूंजी अथवा स्मॉल स्केल
इंडस्ट्री के रूप में छह-सात हजार रूपये की पूंजी से आरंभ किया जा सकता
है। इस उद्योग की एक विशेषता यह है कि पांच सौ रूपये की पूंजी वाला, पांच
हजार की पूंजी वाले व्यापार से मुकाबला कर सकता है, क्योंकि कच्चा माल
पैराफीन मोम, एक ही भाव से सबको मिलता है और बनाने का खर्चा अर्थात मजदूरी
भी सबकी बराबर ही बैठती है, इसलिए छोटे-बड़े निर्माता की कीमतों में कोई
फर्क नहीं पड़ता। <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">मोमबत्ती
बनाने के लिए कच्चे माल का चुनाव करना मुख्य बात होती हैं। मोमबत्ती के
लिए जिस जलने वाले पदार्थ को चुनाव किया जाए, वह ऐसा हो कि बिना धुंआ या
बदबू किये जलता रहे, गरमी के मौसम में मुलायम न पड़ जाये और न इसकी बत्ती
टेड़ी पड़े और जब इसे पिघलाया जाये और सूत की बत्ती को इसमें डुबोया जाये,
तो यह बत्ती पर चढ़ जाए। पैराफीन मोम में जलने वाले पदार्थ के सब गुण मौजूद
हैं और मोमबत्ती बनाने के लिए जो पैराफीन मोम लिया जाये, वह न तो बहुत
ज्यादा कठोर हो और न बहुत ज्यादा मुलायम हो। इसका द्रवांक 120 से 140
डिग्री फॉरेनहाइट होना चाहिए।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">पैराफीन मोम कच्चे पेट्रोल को रिफाइन करने की क्रिया से प्राप्त होता है अधिकांश पैराफन मोम आसाम आयल कंपनी की<span style=""> </span>डिगबोई
(आसाम) स्थित रिफाइनरी से निकलता है। भारत मे प्रतिवर्ष लगभग 45 हजार टन
पैराफीन मोम का उत्पादन होता है। यह सिल्लियां जैसी होती हैं, जो जूट की
बोरी में पैक होकर आती हैं। एक बोरी में 6350 क़िलो मोम होता है।</span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><o:p></o:p></span> </p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><strong>सूत की बत्ती</strong></span><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">यद्यपि
मोमबत्ती के भार के अनुपात में सूत की बत्ती का भार नगण्य सा ही होता है,
परंतु इसके बिना मोमबत्ती जल नहीं सकती। ज़िस प्रकार घड़ी में स्प्रिंग का
और रेलगाड़ी में इंजन की स्टीम का महत्व होता है, उसी प्रकार मोमबत्ती में
बत्ती का महत्व होता है। इसका कार्य यह है कि पिघले हुए ज्वलनशील पदार्थ
(मोम) को उचित मात्रा में लगातार मोमबत्ती स्वतंत्रतापूर्वक जलती रहें और
अधिक से अधिक प्रकाश देती रहे।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">प्रारंभ
में मोमबत्तियों में सूत की सादी बत्ती प्रयोग की जाती थी, जो सूत के 2-4
धागों को परस्पर ऐंठकर बनायी जाती थी और आजकल भी यही बत्ती अधिक प्रयोग की
जाती है। इस बत्ती में एक खराबी यह है कि जलते समय लौ के अंदर सीधी खड़ी
रहती है और इस पर बिना जला कार्बन जमता चला जाता है, (ज़िसको गुल कहते हैं)
जिसके कारण प्रकाश बहुत हल्का हो जाता है और इस गुल को बार-बार काटना पड़ता
है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">सूत की बत्ती की इस खराबी को दूर करने के लिए बहुत से उपाय समय पर किये गये अंत में यह पता चला कि ऐंठी हुई बत्ती के स्थान<span style=""> </span>पर
यदि गुंथी हुई अर्थात ब्रेडिंग मशीन पर गुंथी हुई बत्ती प्रयोग की जाये,
तो बार-बार गुल काटने की समस्या खत्म हो सकती है, यह बत्ती जलते समय लौ के
बाहर की ओर मुड़ती जाती है और पूरी तरह जलकर राख बनकर गिरती रहती है और
इससे धुंआ भी कम निकलता है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><strong>साधारण मोमबत्तियों का उत्पादन</strong></span><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">पूंजी
होने की दशा में मोमबत्तियों को बनाने का काम अल्युमीनियम के सांचों में
आरंभ किया जा सकता है। ज़ब काम जम जाये और कुछ पूंजी एकत्रित हो जाए, तो
मोमबत्ती बनाने की मशीन खरीदी जा सकती है, ताकि कम लेबर खर्च से अधिक
उत्पादन हो सके।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">हमारे
देश के अधिसंख्य निर्माता अल्युमीनियम के सांचों से ही इस उद्योग की
स्थापना करते हैं, ये सांचे काफी मजबूत होते हैं और कई सालों तक संतोषजनक
काम आते हैं।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">भारत
में कई कंपनियां मोमबत्ती के सांचे बनाती हैं। यदि आप इन्हें यह लिख दें
कि आप किस लंबाई और चौड़ाई की मोमबत्ती बनाना चाहते हैं, तो वे आपको उसी
साइज की मोमबत्तियां तैयार करने वाले सांचे का मूल्य बता देंगे। ये
कंपनियां अनेकों साइजों के मोमबत्तियों के सांचे बनाती है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">मोमबत्ती
बनाने की मशीनों ने इस उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया है। इन
मशीनों से मोमबत्तियों का उत्पादन बड़ी चिकनी, साफ और बहुत चमकदार तरीके से
भी होती है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">मोमबत्ती बनाने की मशीन में दस या अधिक पंक्तियों में पीतल के खोखले<span style=""> </span>पाइप(सिलेंडर)
लगे होते हैं। प्रत्येक पाइप के अंदर एक पिस्टन होता है। इस पिस्टन की
लंबाई पीतल के पाइप से बहुत अधिक होती है तथा इसका नीचे का भाग लोहे के
पतले खोखले पाइप के रूप में होता है। इसके ऊपर के सिरे<span style=""> </span>पर
पीतल का बना पिस्टन का सिरा लगा होता है, ज़िसमें मोमबत्ती की नोक गहराई
में बनी होती है और इसे ऊपर नीचे किया जा सकता है। पीतल के पाइप का ऊपरी
सिरा मोम भरने वाली ट्रे के ऊपर से धरातल तक जाता है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">सूत
की बत्ती बाविनों के ऊपर लिपटी हुई होती है तथा बाविनें मशीन के नीचे के
भाग मे रखी रहती हैं और प्रत्येक बाविन पीतल के पाइप की सीध में रखी जाती
है। बाविन के बीच एक छेद होता है और मशीन के नीचे बने हुए बाविन बोर्ड में
लोहे की लंबी कीलें लगी होती हैं, जिनमें बाविन लगा दी जाती है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">खड़े
हुए पीतल के पाइप जिनकी संख्या मशीन में 96 से लेकर 200 या अधिक हो सकती
है। एक चेंबर के अंदर होते हैं, जिसके अंदर पाइपों में मोमबत्तियां बनाने
के लिए<span style=""> </span>भरे गये पिघले हुए मोम को ठंडा करने के लिए ठंडा पानी भर दिया जाता है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">इन
मशीनों में उल्लेखनीय गुण यह है कि मशीन के लिफ्टिंग लीवर द्वारा पिस्टन
की चाल नियंत्रित करके बनने वाली मोमबत्तियों की लंबाई एक सीमा तक घटायी
या बढ़ायी जा सकती है। इससे एक लाभ यह भी होता है कि एक ही मशीन से केवल
लंबाई में परिवर्तन करके दो साइजों की दो भिन्न मूल्यों में बिकने वाली
मोमबत्तियां बनायी जा सकती हैं।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><strong>मोमबत्ती उत्पादन की व्यावहारिक विधियां</strong></span><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">अल्युमीनियम के सांचों<span style=""> </span>द्वारा
साधारणत: सांचे में तीन भाग होते हैं, जो दो बगली क्लौपों द्वारा आपस में
मिले हुए होते हैं। क्लौंपों को निकाल देने पर ये भाग अलग-अलग हो जाते
हैं। इन भागों में मोमबत्तियां आधी-आधी गहराई में बनी होती हैं एक कपड़े का
टुकड़ा मोबिल ऑयल या अन्य तेल में भिंगोकर इन गहराइयों में तीन भागों में
लगा देना चाहिए तेल लगा देने से तैयार मोमबत्तियां आसानी से निकल आती है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">सांचे
के बीच के भाग के ऊपर एक लोहे की पत्ती लगी होती है, जिसमें छोटे-छोटे
खांचे कटे होते हैं। इस भाग में नीचे की ओर मोमबत्ती की नोक समाप्त होती
है, वहां भी हल्का सा खांचा बना होता है। अगले भाग के ऊपर की पत्ती में एक
सिरे पर सूत की बत्ती को गांठ देकर बांध देते हैं,। फिर इसे पत्ती में बने
हुए खांचे में फंसाते हुए नीचे के भाग में बने हुए खांचे से होकर लायी
जाती है, इस प्रकार यह मोमबत्ती के सेंटर में आ जाती है।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">सांचे
के अंदर मोम पूरी तरह ठंडा होकर जमने में 15 मिनट लगते हैं। इसके बाद
सांचे पानी से निकाल लिए जाते हैं और सूत की बत्ती को सांचे के ऊपरी भाग
के लेवल में एक तेज ब्लेड द्वारा काट कर फालतू मोम को अलग कर देते हैं। अब
सांचों को खेलकर मोमबत्तियां निकाल ली जाती हैं।<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><strong>मशीनों द्वारा</strong></span><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">मशीन
से काम लेने से पहले लोहे के एक तार पर साफ कपड़ा लपेटकर पाइपों के अंदर
डालकर पाइपों को अच्छी तरह साफ कर लेते हैं। ताकि इनके अंदर धूल, मिट्टी
के जो कण लगे हों, वे निकल जाएं इन पाइपों में सूत की बत्ती डालने के लिए
मशीन के हैंडिल को एक ओर इतना घुमाते हैं कि पिस्टनों के सिर पाइपों के
ऊपरी सिरे तक आ जायें अब एक पतला या तार दोहरा मोड़कर इसे पिस्टन के सिर के
छेद में डालकर इतना नीचे तक निकाल देते हैं कि पिस्टन के सबसे नीचे के भाग
से थोड़ा बाहर फांसाकर तार को ऊपर को खींच लेते हैं। बत्ती भी इसके साथ ही
खिंची<span style=""> </span>चली आती है। बत्ती के सिरे पर एक मोटी गांठ
बांधकर इसे नीचे से खींचकर ऊपर फिलिंग ट्रे से भी ऊपर निकाल लेते हैं। इस
प्रकार सब बत्तियां ट्रे से लगभग तीन-तीन इंच ऊपर निकाल ली जाती हैं अब
प्रत्येक दो बाराबर वाली बत्तियों को आपस में गांठ लगाकर बांध देते हैं।<span style=""> </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">अब
मशीन की फिलिंग ट्रे में पिघला हुआ मोम इतना भर देते हैं कि समस्त
सिलेंडरों में भर जाने के बाद ट्रे में 12 इंच ऊचांई तक भरा रहे। यह फालतू
मोम इसलिए रखा जाता है कि ठंडा होते समय मोम नीचे बैठता है, इससे फालतू
मोम आकर उस स्थान में भरता है और मोमबत्ती खोखली नहीं बनती।</span></p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB"><o:p></o:p></span> </p>
<p class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 0pt; text-align: justify;" align="justify"><span style="font-family: Mangal;" lang="EN-GB">जब फिलिंग ट्रे में मोम भर दिया जाए, तो इसको ठंडा करने वाली चेंबर में ठंडा पानी तुरंत ही भर देते हैं ज़ब ट्रे में मोम कुछ<span style=""> </span>जमता
दिखायी देने लगे, तो तेज धारवाली छुरी (स्क्रेपर) द्वारा फिलिंग ट्रे के
साथ-साथ मोम को इस प्रकार काटते हैं कि ऊपर जितनी फालतू बत्तियां गांठ बंधी<span style=""> </span>हुई हैं ये भी कट जायें।</span></p></html>
किसी बड़े शहर में रहने वालों की कुछ बेहद छोटीसमस्याएं बहुत ही विशाल बनकर सामने आती हैं। छोटे शहरों में गांवों से कच्चे माल और ग्रामीण जनजीवन आधारित सेवाओं की आपूर्ति सीधी और बहुलता में होती है। इससे उलट बड़े शहरों में ग्रामीण सेवाओं, जैसे कि खाद्यान्न, सब्जियां, फल, लोक कला संबंधी वस्तुओं आदि की कमी हमेशा ही रहती है और इसी कारण ये वस्तुएं महंगी भी खूब होती हैं। यह तो समस्या का एक पक्ष है। दूसरा पहलू यह भी है कि अब हर एक छोटा शहर बड़े शहर के रंग-ढंग में ढलता जा रहा है, ऐसे मेंग्रामीण क्षेत्रों को रोजगार कहां और कैसे मिले? इसी का आसान हल है रूरल मैनेजमेंट। शहरों की आवश्यकतानुसार ग्रामीण हितों को ध्यान में रखते हुए दोनों क्षेत्रों को लाभ पहुंचाना और संसाधनों का बेहतर उपयोग करना है रूरल मैनेजमेंट। इस क्षेत्र में सरकारी ही नहीं, कई प्रतिçष्ठत प्राइवेट कंपनियां भी उतर आई हैं। लेकिन वे अकेले यह काम अंजाम नहीं दे सकतीं, उन्हें इस क्षेत्र की आवश्यकतानुसार प्रबंधन में प्रशिक्षित लोगों की बहुत अधिक आवश्यकता है। क्या है रूरल मैनेजमेंट भारत गांवों का देश है। इसकी अधिकतर जनसंख्या गांवों में ही निवास करती है। देश के ग्रामीण क्षेत्र बहुत बड़ा बाजार साबित हो सकते हैं। यही वजह है कि तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी व्यावसायिक गतिविधियां इसी क्षेत्र पर केंद्रित कर रही हैं। इसकी उपेक्षा न तो सरकार के लिए, न ही औद्योगिक इकाईयों के लिए संभव है। यही वजह है कि रिलाएंस, टाटा, बिड़ला, पैराशुट जैसी तमाम कंपनियों ने ग्रामीण क्षेत्रों को अपना टारगेट बनाते हुए इनकी खरीद क्षमता के अनुसार अपने उत्पाद बाजार में उतारे हैं। पैराशुट तेल कंपनी ने एक रुपये का छोटा पैक लॉन्च किया, तो टाटा भी एक लाख रुपये की कीमत वाली कार लाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। रिलाएंस कंपनी भी पीछे नहीं है। वह अपने रिटेल शॉप आउटलेट्स को शहरों के उस भाग में स्थापित कर रहे हैं, जहां से कृषि क्षेत्र नजदीक हों। इसका लाभ किसानों को सीधे-सीधे मिलने की संभावना है। विख्यात अर्थशास्त्री अमत्र्यसेन के एक वक्तव्य के अनुसार `ग्रामीण क्षेत्रों को दरकिनार करना, न तो सरकार के पक्ष में है, न ही औद्योगिक घरानों के हित में।श्वेत क्रांति के जनक श्री वगीüज कूरियन का भी यही मानना है कि बड़े शहरों का जितना विकास होना था, हो चुका। अब बारी है छोटे शहरों-कसबों एवं गांवों की। यह जाहिर सी बात है कि अगर इन ग्रामीण क्षेत्रों में विकास हुआ, तो रोजगार के अवसर भी बनेंगे। शिक्षा, स्वास्थ्य, बीमा-क्षेत्र, वित्त, मनोरंजन एवं कृषि संबंधी कायोZ (तकनीकी ढंग से) के साथ-साथ परंपरागत हस्तशिल्प के क्षेत्रों को भी बढ़ावा दिया जाएगा। केवल यह क्षेत्र ही नहीं, आधारभूत ढांचे, नारी उत्थान, बाल-विकास, जल संरक्षण, मत्स्य पालन, पशुपालन, तकनीकी तरीकों से कैश क्रॉप कल्टीवेशन, सॉइल इरोजन जैसे अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित विषयों पर भी कार्य किए जाएंगे। इनके साथ ही माकेüटिंग के जरिये ग्रामीणों के बीच उत्पादों एवं सेवाओं को बेचने तथा नए कस्टमर तैयार करने जैसे कार्य भी होंगे। इतना तो स्पष्ट है कि अलग-अलग प्रकृति के कायोZ को बिना प्रशिक्षण के सफलतापूर्वक संभाल पाना लगभग असंभव होगा। रूरल मैनेजमेंट का कोर्स इसी उद्देश्य को प्राप्त करने में आपकी सहायता करता है। इस कोर्स के माध्यम से युवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों केविकास संबंधी बहुआयामी कायोZ के प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाता है।कोर्सेजग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की अपार संभावनाओं को देखते हुए कई विश्वविद्यालय संबंधित पाठKक्रम चला रहे हैं। रूरल मैनेजमेंट के क्षेत्र में बीएससी., एमएससी, पीजी डिप्लोमा, एमबीए और सटिüफिकेट कोर्स उपलब्ध कराए जा रहे हैं। शिक्षा जिन छात्रों ने कृषि या अन्य संबंधित क्षेत्रों में ग्रैजुएशन किया है, उनके लिए रूरल मैनेजमेंट का कोर्स आसान विकल्प है। इकोनॉमिक्स, सोशियोलॉजी, एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के छात्र भी आवेदन कर सकते हैं। इसकी प्रवेश परीक्षा होती है। कोर्स के माध्यम से प्रयास यह होता है कि ग्रामीण अंचलों में काम कर रही संस्थाओं और कंपनियों के लिए आधुनिक और व्यावसायिक दृष्टिकोण से काम करने वाले कर्मचारी तैयार किए जा सकें। अगर आप इस क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक हैं, तो शुरुआत करें बारहवीं में फिजिक्स, बायोलॉजी, केमिस्ट्री और मैथ्स लेकर। इसके बाद एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग/एग्रीकल्चरल साइन्स/डेरी साइन्स/डेरी टेक्नोलॉजी में ग्रैजुएशन के बाद रूरल मैनेजमेंट में पीजी स्तर के डिग्री कोर्स में प्रवेश लें। हालांकि इस कोर्स में प्रवेश के लिए विज्ञान वर्ग से बारहवीं करना जरूरी नहीं है। किसी भी विषय वर्ग से बारहवीं के बाद कॉमर्स संबंधित विषयों से ग्रैजुएशन करके आप रूरल मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रैजुएशन कर सकते हैं। अवसर रूरल मैनेजर्स गैरसरकारी संगठनों में तो काम करते ही हैं। सरकारी संगठनों, प्राइवेट कंपनियों, रूरल इंडस्ट्रीज, को-ऑपरेटिव्स, बैंकों (नाबार्ड) और वित्तीय संस्थानों में भी उनके लिए खूब अवसर हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपने लिए अवसर तलाश रही विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों में भी रूरल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुके युवाओं के लिए अवसरों की कमी नहीं रहेगी। ये मल्टीनेशनल कंपनियां इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर, रूरल हाउसिंग, ट्रांसपोटेüशन, टेलीकॉम, ऑटोमोबाइल्स, इलेçक्ट्रक, इलेक्ट्रॉनिक्स, रूरल एंटरप्राइज में नीति निर्धारक के तौर पर, कार्यक्षमता में प्रवीणता के लिए सलाहकारिता के क्षेत्र में अपने पांव जमा रही हैं। इसीलिए यह कोर्स इन कंपनियों में आपके लिए अनेक अवसरों के द्वार खोल सकता है।सामान्यत: रूरल मैनेजमेंट का क्षेत्र माकेüटिंग से शुरू होता है। ग्रामीण इलाकों में कंपनी के उत्पाद की खपत कराना यानी माकेüटिंग के कार्य के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, मनोरंजन, बीमा-क्षेत्र, प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिये रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां भी रूरल एरियाज में माकेüटिंग के लिए प्रशिक्षित युवाओं की नियुक्ति कर रही हैं। हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड, रिलाएंस ग्रुप, टाटा-समूह, कोलगेट, निरमा, मारिको, पामोलिव, गोदरेज, प्रॉक्टर ऐंड गैंबल, कोकाकोला, पेप्सी आदि कंपनियां भी अपने उत्पाद को ग्रामीण क्षेत्रों में बेचने के लिए आगे आ रही हैं। आईटीसी ने देश के दूर-दराज के इलाकों में ई-चौपाल के जरिये जो कार्यक्रम चलाए, उसमें सफलता भी पाई थी। माकेüटिंग ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में फाइनेंस सेक्टर में भी नए प्रयास किए जा रहे हैं। बीमा क्षेत्र में अब एलआईसी के अलावा अन्य कई प्राइवेट कंपनियां भी आ गई हैं। प्रतिस्पर्द्धा केचलते रोजगार केअवसरों में भी इजाफा हुआ है। फाइनेंस सेक्टर में कई बहुराष्ट्रीय व राष्ट्रीय कंपनियां माइक्रोफाइनेंस के जरिये इन क्षेत्रों में अपना कारोबार बढ़ा रही हैं। अनेक गैरसरकारी संगठन भी ग्राम विकास के कार्य में लगे हैं। इसके लिए उन्हें कार्यकर्ताओं की आवश्यकता भी होती है। इन सबके साथ डीएफआईडी, केयर, एक्शन एड जैसी बड़ी एजेंसियां भी ग्राम उत्थान को कृतसंकल्प हैं। इसके लिए उन्हें कार्यकर्ताओं की हमेशा आवश्यकता रहती है। कई सरकारी योजनाएं भी इस क्षेत्र के विकास के लिए प्रयासरत हैं। इन सभी क्षेत्रों और संस्थाओं में ग्राम विकास कायोZ में प्रशिक्षित लोगों के लिए खूब अवसर बन रहे हैं।
इस कोर्स को करने के बाद आप चाहे, तो स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं या किसी संस्था से जुड़कर भी काम किया जा सकता है। आरंभ में आपको एक से दो लाख रुपये सालाना की आय हो सकती है, जो कार्य और अनुभव के साथ बढ़ती जाएगी। आप अपना एनजीओ भी स्थापित कर सकते हैं। आरंभ में आपको थोड़ी चुुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है पर आगे काम की गंभीरता और स्थायित्व के आधार पर आपको सरकारी सहायता भी मिल सकती है। ध्यान दें कि...रूरल मैनेजमेंट का कोर्स करने का अर्थ यह नहीं है कि आपकी नियुक्ति ग्रामीण इलाके में ही होगी। अच्छे संस्थान अपने छात्रों को कैंपस प्लेसमेंट की सुविधा देते हैं। आप अपनी मेहनत एवं लगन केचलते किसी बड़ी संस्था से जुड़कर विदेश में भी नियुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। इस सेक्टर में बन रही संभावनाओं के बारे में इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि रूरलनौकरी.कॉम नाम से पूरी एक जॉब वेबसाइट है, जिसमेंं रूरल एरिया से संबंधित विभिन्न प्रकार की जॉब्स, उनमें आवेदन और उनके डिटेल्स आपको मिल सकते हैं।
संस्थान
-इंस्टीटKूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद, गुजरात।
-आईआईएम, अहमदाबाद।
-जेवियर इंस्टीटKूट ऑफ सोशल साइंसेज, रांची।
-जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर।
-आरए पोद्दार इंस्टीटKूट ऑफ मैनेजमेंट, जयपुर, राजस्थान।
-चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार।
-आईआईआरएम, राजस्थान।
-बिरला इंस्टीटKूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड टेक्नोलॉजी, सेंटर फॉर रूरल
मैनेजमेंट, दिल्ली। कोर्स : रूरल बिजनेस मैनेजमेंट में एमबीए
-आंध्रा यूनिवçर्सटी, विशाखापत्तनम। कोर्स : रूरल डेवलपमेंट में
एमए/ कोऑपरेशन ऐंड रूरल स्टडीज मेंं मैनेजमेंट डिप्लोमा कोर्स ।
-चौधरी चरण सिंह यूनिवçर्सटी, मेरठ। कोर्स : रूरल मैनेजमेंट में
एडवांस डिप्लोमा।
-फोर स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट, नई दिल्ली।
-जेवियर इंस्टीटKूट ऑफ डेवलपमेंट ऐंड एक्शन स्टडीज, जबलपुर
-डॉ. वाई एस परमार यूनिवçर्सटी ऑफ हॉर्टीकल्चर ऐंड फॉरेस्ट्री,
मैनेजमेंट विभाग, सोलन, नाउनी।
<html><br>काउंसिलिंग प्रक्रिया<br><br> राज्यस्तरीय सीपीएमटी की तैयारी कर रहे छात्रों को आगामी डेढ़ महीने में उस स्तर तक पहुंचने की चुनौती है, जहां बुद्धि और कौशल के साथ सटीक समय प्रबंधन अत्यंत जरूरी है। इसके बाद ही चिकित्सा महाविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त होगा। <br> <br>पाठ्यक्रम एवं कॉलेज का आवंटन मेरिट के आधार पर काउंसिलिंग के माध्यम से किया जाता है। काउंसिलिंग ऑनलाइन की जायेगी। काउंसिलिंग प्रक्रिया दो चरणों में बंटी है- ऑफ कैम्पस और ऑन कैम्पस।<br><br><br>प्रथम चरण<br><br>लिखित परीक्षा के परिणाम की घोष्ाणा के बाद काउंसिलिंग के योग्य अभ्यर्थियों को अपनी पसंद के कोर्स व संस्थानों के चयन की जानकारी इंटरनेट के माध्यम से दर्ज करानी होगी।<br><br>-वेबसाइट खोलने पर कंप्यूटर स्क्रीन पर आनेवाले निर्देशों के माध्यम से लॉग-इन और पासवर्ड दर्ज कराना होता है, जिसके लिए प्रवेश पत्र की आवश्यकता होगी।<br><br>-लॉग-इन होने के बाद कोर्स व संस्थानों से संबंधित बॉक्स को ऑनलाइन भरना होता है।<br><br><br>द्वितीय चरण<br>-सही मायने में काउंसिलिंग इस चरण से आरंभ होती है, जो कि 17 जुलाई, 2008 से पूर्व होगी।<br><br>-इसके लिए अभ्यथीü को किसी एक काउंसिलिंग केंद्र पर रिपोर्ट करना होगा।<br><br>इस प्रक्रिया में दो दिन लगेंगे।<br><br>-पहले दिन संबंधित सभी मूल प्रमाण पत्र व अंक तालिका की जांच होती है और सिक्योरिटी जमा कराई जाती है।<br><br>-दूसरे दिन मेरिट लिस्ट के आधार पर काउंसिलिंग बोर्ड के समक्ष बुलाया जाता है, जिसमें कोर्स व संस्थानों का आवंटन होता है।<br><br><br>दूसरी काउंसिलिंग 25 अगस्त से 28 अगस्त के मध्य की जाएगी। इसके लिए वही अभ्यथीü योग्य हैं, जिन्होंने पहली काउंसिलिंग में हिस्सा नहीं लिया। पहले कोई सीट जिन्हें आवंटित नहीं की गई है। विकल्पों को बदलना चाहते हैं या फिर पहली में भाग लिया और सीट भी आवंटित किया गया, लेकिन आवंटित कॉलेज में दाखिला नहीं लिया।<br><br><br>कम्बाइंड प्री-मेडिकल टेस्ट (सीपीएमटी) उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग का है, जिसका स्वरूप वस्तुनिष्ठ होता है। <br><br><br>परीक्षा का स्वरूप<br><br>लिखित परीक्षा के दो प्रश्नपत्रों में चार विष्ाय शामिल होते हैं। प्रत्येक प्रश्नपत्र में 100 अंकों के 100 प्रश्न पूछे जायेंगे। प्रथम प्रश्नपत्र में जंतु विज्ञान व वनस्पति विज्ञान और द्वितीय प्रश्नपत्र में रसायन विज्ञान और भौतिकी विज्ञान से प्रश्न पूछे जायेंगे। प्रत्येक विष्ाय से 50 प्रश्न पूछे जायेंगे। चूंकि प्रश्न इंटरमीडिएट स्तर के होते हैं, इसलिए इसके लिए निधाüरित पाठ्यक्रम का अनुसरण करना ज्यादा मुश्किल नहीं है। लिखित परीक्षा में चयनित अभ्यथीü को हिंदी विष्ाय का एक प्रश्नपत्र उत्तीर्ण करना अनिवार्य है, जो हाई स्कूल स्तर के सामान्य ज्ञान पर आधारित होता है। यह सिर्फ क्वालिफाइंग है अथाüत् इसके अंक को मेरिट लिस्ट में शामिल नहीं किया जाता है। इस परीक्षा में नेगेटिव माकिZग नहीं होती।<br><br><br>प्रश्नों की प्रकृति<br>परीक्षा का स्वरूप वस्तुनिष्ठ है। 30-40 प्रतिशत प्रश्न ऐसे होते हैं, जिसे आसानी से हल किया जा सकता है। अगले 30-40 प्रतिशत प्रश्नों को हल करने में थोड़ी सी कठिनाई का सामना करना होता है। शेष्ा 20-30 प्रतिशत प्रश्नों को हल करना कठिन होता है। यही 20-30 प्रतिशत प्रश्न उच्चस्तरीय रैंक प्रदान करने में सहायक होते हैं। ये प्रश्न गणितीय व वैज्ञानिक सूत्रों पर आधारित होते हैं।<br><br><br>विष्ायवार रणनीति<br>रसायन विज्ञान: यह व्यावहारिक विष्ाय है जो सभी की दिनचर्या से जुड़ा होता है। इस विष्ाय के कुछ मूलभूत सिद्धांत व सूत्र हैं, जिनकी बारीकियां व होनेवाले प्रयोग को समझना अत्यंत आवश्यक है। विगत वष्ाोZ में पूछे गये प्रश्नों में सर्वाधिक प्रश्न काबüनिक से ही पूछे गये हैं, लेकिन इस आधार पर भौतिक रसायन को कमतर नहीं आंक सकते। उसके बाद तीसरे स्थान पर अकाबüनिक का आता है।<br><br><br>भौतिक विज्ञान: <br>वष्ाü-दर-वष्ाü इस परीक्षा में भौतिक विज्ञान के स्वरूप में बदलाव आया है। अब सर्वाधिक प्रश्न गणितीय रूप में होते हैं। ऐसे प्रश्नों को हल करने के लिए अध्याय से संबंधित सूत्रों व लघु विधियों पर फोकस करना चाहिए। इन प्रश्नों को हल करने में परंपरागत तरीका अपनाने से समय अधिक लगेगा। <br><br><br>जंतु विज्ञान: <br>यह विष्ाय मेरिट लिस्ट में अच्छे रैंक के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। यदि एक से अधिक अभ्यçथüयों को इन चार विष्ायों के प्राप्तांकों का योग समान होता है, तो जंतु विज्ञान में प्राप्त अंकों की मेरिट लिस्ट तैयार करने में सहायता ली जाती है। विगत वष्ाोZ के प्रश्नपत्रों के विश्लेष्ाण से पता चलता है कि व्यावहारिक विज्ञान से जुड़े प्रश्नों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। उसके बाद आनुवांशिकी व जैव विकास से संबंधित प्रश्न पूछे गये हैं। <br><br><br>वनस्पति विज्ञान:<br> इस विष्ाय से सर्वाधिक 20 प्रतिशत प्रश्न बायो जेनेटिक्स से प्रश्न पूछे जाते हैं। उसके बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अध्याय पारिçस्थतिकी है। इसके लिए टेक्स्टबुक के अलावा दैनिक समाचार पत्र और अन्य अद्यतन जानकारी का सहारा लेना चाहिए।<br><br> <br> गुंजन कुमार सिंह <br><br></html>
<html>तथ्यों की जुबानी लिखें सफलता की कहानी <br>आज हर क्षेत्र में प्रतियोगिता बढ़ी है, इसलिए समझदारी इसी में है कि अपने लिए एक से ज्यादा विकल्प तय करें और उसी के अनुसार तैयारी भी करें। इंजीनियरिंग में अपना भविष्य बनाने का सपना देख रहे छात्रों के लिए उत्तर प्रदेश की यूपीटेक परीक्षा भी ऐसा ही एक बेहतर विकल्प है। यह संभव नहीं है कि आईआईटी जेईईई परीक्षा में हर अभ्यर्थी को सफलता मिल जाए। ऐसे में यूपीटेक परीक्षा स्टूडेंट्स के लिए इंजीनियरिंग शिक्षा प्राप्त करने का एक मौका देती है।<br><br> कैरियर के लिहाज से इंजीनियरिंग सेक्टर हमेशा हॉट रहा है। यूपीटेक की परीक्षा उन मेधावी छात्रों को एक ऐसा मंच मुहैया कराती है, जहां वे अपनी इंजीनियरिंग की अभिरुचियों को विस्तार देकर देश को मजबूत तकनीकी आधार दे सकें। पर इसमें सफलता के लिए चाहिए तैयारी और समझदारी का उत्कृष्ट तालमेल। यूपीटेक के अन्य पहलुओं की जानकारी दे रही हैं। <br><br>-इस परीक्षा में दो प्रश्नपत्र होते हैं। पहले प्रश्नपत्र में फिजिक्स और केमिस्ट्री से जुड़े प्रश्न पूछे जाते है। दूसरा प्रश्नपत्र गणित का होता है। सभी प्रश्न ऑब्जेçक्टव टाइप होते हैं। <br> <br><br>एग्जाम पैटनü<br><br><br>यूपीटेक की परीक्षा में दो प्रश्न पत्र होते हैं। पहले प्रश्न पत्र में फिजिक्स और केमिस्ट्री पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। इसमें कुल 150 प्रश्न होते हैं। दोनों विषयों से बराबर संख्या में प्रश्न पूछे जाते हैं। दूसरा प्रश्नपत्र गणित का होता है, जिसमें कुल 75 प्रश्न पूछे जाते हैं। सभी प्रश्न ऑब्जेçक्टव टाइप होते हैं। प्रश्नोंं के गलत जवाब पर निगेटिव माकिZग का प्रावधान है यानी प्रत्येक गलत उत्तर पर अंक काटे जाते हैं।<br><br><br><br><br>रटने का विषय नहीं है गणित<br><br><br>यूपीटेककी परीक्षा में गणित की तैयारी के लिए आप इसे मुख्यत: चार हिस्सों में बांट सकते हैं- कैलकुलस, एलजेबरा, त्रिकोणमिति और कोऑडिüनेट ज्योमेट्री। वेक्टर से संबंधित प्रश्न समय अधिक लेते हैं। चूंकि इन पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए इन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है । कैलकुलस में मैçक्समा, मिनिमा लिमिट से संबंधित प्रश्न महत्वपूर्ण होते हैं। एलजेबरा में मैटि्रसेस, सारणिक और श्रेणियों से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। इन्हें अच्छी तरह समझ कर अभ्यास करना बेहतर रहेगा। इसके अलावा एलजैबरा में प्रॉबेबिलिटी से जुड़े प्रश्नों की तैयारी करना न भूलें। कोऑडिüनेट ज्योमेट्री और त्रिकोणमिति के प्रश्नों का भी अभ्यास जरूरी है। ये प्रश्न आसान होने के साथ स्कोरिंग भी होते हैं। कोआíडनेट ज्योमेट्री में वृत्त, परवलय, समीकरण से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।<br><br><br><br><br>फिजिक्स में बेस बनाएं मजबूत<br><br><br>फिजिक्स के कोर्स को भी मुख्यत: पांच हिस्सों में बांटकर पढ़ सकते हैं। मैकेनिक्स में वर्क, पावर, लीनियर मोमेंट्स और ऑसिलैटरी मोशन से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। थमोüडायनेमिक्स के प्रश्न थ्योरी पर अधिक आधारित होते हैं, इसलिए थ्योरी के कॉन्सेप्ट पर आपकी पकड़ मजबूत होनी चाहिए। इलेक्ट्रोस्टैटिक्स में इलेçक्ट्रसिटी, मैग्नेटिक इफेक्ट ऑफ करेंट से संबंधित प्रश्नों की संभावना ज्यादा होती है। फिजिक्स में परीक्षार्थियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एक जटिल टॉपिक होता है। लॉजिक गेट और डायोड, ट्रांजिस्टर से जुड़े प्रश्न भी आते हैं। इन प्रश्नों के कॉन्सेप्ट को समझना बेहद आवश्यक है, क्योंकि इसके चित्रों से जुड़े प्रश्न भी परीक्षा में पूछे जाते हैं। न्यूçक्लयर फिजिक्स में फॉमूüलों को ठीक से याद कर लेना चाहिए, क्योंकि फॉमूüला बेस्ड प्रश्न पूछे जाने की संभावना ज्यादा रहती है।<br><br><br><br><br>केमिस्ट्री में तर्कसंगत प्रश्नों का करें अभ्यास<br><br><br>केमिस्ट्री को मुख्यत: तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है- अकाबüनिक रसायन, काबüनिक रसायन और फिजिकल केमिस्ट्री। अकाबüनिक रसायन में कुछ सवाल आपकी स्मरणशक्ति पर आधारित होते हैं। एटॉमिक स्ट्रक्चर, केमिकल बांडिंग से जुड़े प्रश्न पूछे जाने की संभावना ज्यादा होती है। हाइड्रोजन पैराऑक्साइड, कॉपर सल्फेट, प्लास्टर ऑफ पेरिस, लेड, ब्लीचिंग पाउडर की प्रिपेरेशन और प्रापर्टीज के प्रश्न भी पूछे जाते हैं। काबüनिक रसायन में समावयता, पॉलिमर, काबोüहाइड्रेट और पैट्रोलियम से जुड़े प्रश्नों के आने की संभावना ज्यादा रहती है। फिजिकल केमिस्ट्री में रासायनिक साम्यावस्था, काइनेटिक्स, एçस्ाड बेस कॉन्सेप्ट से प्रश्न पूछे जाते हैं। ध्यान रखें कि ऑब्जेçक्टव प्रश्न के माध्यम से तथ्य और आंकडे़ याद करने की क्षमता की जांच होती है।लॉजिक समझने पर जोर दें।<br><br><br><br><br>योग्यता<br><br><br>उत्तर प्रदेश के छात्रों को वरीयता दी जाती है, लेकिन अन्य राज्यों के छात्र भी आवेदन कर सकते हैं। जो छात्र इंटरमीडिएट की परीक्षा दे रहे हैं, वे भी परीक्षा दे सकते हैंं। डिप्लोमाधारी अभ्यर्थी और बीएससी स्नातक सीधे बीटेक द्वितीय वर्ष में प्रवेश पाने के अधिकारी हैं। इसके लिए उन्हें भी प्रवेश परीक्षा के स्पेसीफायड पेपर का एग्जाम देना होगा।<br><br><br><br><br>सफल परीक्षार्थियों के टिप्स<br><br><br>तेज रखें प्रश्नों को हल करने की गति : अनुराग पांडेय<br><br><br>यूपीटेकपरीक्षा में निगेटिव माíकंग का विशेष ध्यान रखें। साथ ही प्रश्नों को हल करने की अपनी गति को तेज रखें। पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों को हल करने से आपको इस बात का अंदाजा लग जाएगा कि परीक्षा में किस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं। लंबे सवालों को कम समय में हल करने के लिए उनके कॉन्सेप्ट को बेहतर तरीके से समझें। गाणित में कैलकुलस, श्रेणियों, त्रिकोणमिति पर विशेष ध्यान दें। ये विषयसरल होने के साथ-साथ ज्यादा स्कोरिंग भी होते हैं।<br><br><br><br><br>बेहतर प्रदर्शन के लिए कान्सेप्ट अच्छे हों : गौरव खरे<br><br><br>इस परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए जरूरी है कि आपके कॉन्सेप्ट अच्छे हों। नींव मजबूत होगी, तो फल भी अच्छा मिलेगा। इसके अलावा फिजिक्स और गणित के कठिन प्रश्नों का अभ्यास ज्यादा से ज्यादा करें। प्रश्नों को कम समय में हल करने का अभ्यास करें। परीक्षा से पहले रिवाइज करना न भूलें।<br><br><br><br><br>अपने लिए रोज नया टारगेट सेट करें : राहुल भाटिया<br><br><br>सभी विषयों पर ध्यान दें और ज्यादा से ज्यादा प्रैçक्टस करें। अपने लिए रोज नया टारगेट सेट करें। पिछले दो-तीन वर्षों के प्रश्नपत्रों को निर्धारित समय सीमा में हल करने का प्रयास करें, इससे परीक्षा के दौरान परेशानी नहीं होगी। ध्यान रखिए, यूपीटेक की परीक्षा में आप लॉजिकली कितने मजबूत हैं, इस बात की जांच की जाती है।<br><br><br><br><br>पढ़ाई में गुणवत्ता हो, तो कंपनियां खुद आएंगी छात्रों के पास<br><br><br>प्रोफेसर प्रेमव्रत(कुलपति, उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय, लखनऊ)<br><br><br>ढाई लाख से ज्यादा विद्यार्थी 19 और 20 अप्रैल को होने वाली राज्य प्रवेश परीक्षा के जरिए इंजीनियरिंग और प्रबंधन के क्षेत्र में अपना भविष्य तलाशने जा रहे हैं। उम्मीदें आसमान पर हैं, तो बेहतर का चुनाव थोड़ा मुश्किल। `आईआईटियन´ जानते हैं कि `परफेक्ट मॉडल थ्योरी´ पर काम करके रिजल्ट कैसे हासिल किया जाता है। आईआईटीयन की एक पूरी पीढ़ी को अपने ज्ञान से तैयार करने वाले उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय (यूपीटीयू) के कुलपति होने के नाते मेरा सोच है कि हम छात्रों के लिए रोजगार लाने नहीं जा रहे हैं, बल्कि ऐसा गुणवत्तापूर्ण माहौल विकसित कर रहे हैं, जहां खुद कंपनियां छात्रों को हाथों-हाथ लें।<br><br><br><br><br>राज्य प्रवेश परीक्षा की तैयारी<br><br><br>इस बार पूरे प्रदेश में इंजीनियरिंग और प्रबंधन कोर्स में प्रवेश के लिए रिकòार्ड फार्म बिके हैं। ऐसे में एसईई की पूरी जानकारी यूपीटीयू की आधिकारिक बेवसाइट पर ऑनलाइन उपलब्ध करा दिया गया है। महिला अभ्यर्थियों को शिक्षा के ज्यादा अवसर प्रदान करने के लिए पहली बार प्रवेश परीक्षा फार्म की कीमत उनके लिए 500 रुपए यानी आधी की गई है। गुणवत्तापूर्ण प्रवेश के लिए विभिन्न श्रेणियों में प्रतिशत अंकों का निर्धारण किया गया है। मैनेजमेंट सीटों में प्रवेश के लिए भी एसईई या फिर एआईईईई को ही प्राथमिकता दी जाएगी। प्रदेश के सभी सरकारी संस्थानों में मैनेजमेंट सीटों में दाखिला प्रवेश परीक्षा के कट ऑफ माक्र्स के आधार पर ही होंगे। प्रश्नपत्र को पूरी तरह से वैकçल्पक रखा जाएगा।<br><br><br><br><br>और व्यावहारिक होगा पाठ्यक्रम<br><br><br>तकनीकी क्षेत्र में तेजी से होने वाले बदलाव के मद्देेनजर कोर्स को और व्यावहारिक बनाने की कोशिश हो रही है। अगले सत्र में बीटेक प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के लिए नया कोर्स लाने की तैयारी की जा रही है। बोर्ड आफ स्टडीज ने नए पाठ्यक्रम का प्रारूप तैयार कर लिया है। हालांकि अकादमिक काउंसिल से मंजूरी मिलनी बाकी है। ऐसे ही परीक्षा सुधार कार्यक्रम भी शामिल हैं। अगर सबकुछ ठीक-ठाक रहा, तो छात्रों की संपूर्ण प्रतिभा का आकलन वैकçल्पक, सृजनात्मक और थ्योरी प्रश्नों के जरिए किया जाएगा। अंकों की जगह ग्रेडिंग सिस्टम लागू करने पर विचार हो रहा है।<br><br><br><br><br>टीचरों को भी प्रशिक्षण<br><br><br>विश्वविद्यालय ने नोएडा में केंद्रीय प्लेसमेंट सेल की स्थापना की है। यहां पर कंपनियां खुद आकर छात्रों की प्रतिभा का आकलन करेंगी। इसके साथ आईबीएम और इंटेल के प्रोजेक्ट पर छात्र कार्य करके व्यावहारिक प्रशिक्षण ले रहे हैं। छात्रों को तकनीकी रूप से दक्ष करने के लिए गांवों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सबसे बड़ी समस्या लेटेस्ट तकनीक को लेकर शिक्षकों की अनभिज्ञता की होती है। ऐसे में यूपीटीयू से संबंद्ध तीन सौ से ज्यादा कॉलेजों के शिक्षकों को लेटेस्ट तकनीक से लैस करने के लिए शॉर्ट टर्म कोर्स आयोजित करने का फैसला लिया गया है। नोएडा में शिक्षकों के लिए अलग से इंस्टीट्यूट स्थापित किया गया है।<br><br><br><br><br>छात्रों के पास हो च्वॉइस<br><br><br>उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुलपति प्रोफेसर प्रेमव्रत के अनुसार वह चाहते हैं कि विद्यार्थी नैतिक, तकनीकी और मानसिक रूप से सक्षम हों। ऐसे में वे कंपनियों के आने का इंतजार न करें, बल्कि आईआईटी की तर्ज पर पासआउट होने वाले छात्रों के पास बेहतर कंपनी में काम करने का विकल्प मौजूद हो।<br><br><br>प्रस्तुति : मनीष शुक्ल</html>
<html>कंप्यूटर क्रांति तथा मल्टीनेशनल कंपनियों की आकर्षक नौकरियों की चकाचौंध में युवाओं के पसंदीदा कैरियर विकल्पों में रक्षा सेवाओं में रोजगार की मांग काफी निचले पायदान पर पहुंच गई है। यह नि:स्संदेह चिंता का विषय है।<br><br>आज आवश्यकता है कि युवाओं को रक्षा सेवाओं में कैरियर विकल्पों की अधिक से अधिक जानकारी दी जाए। अधिकांश लोगों को शायद ही पता हो कि भारतीय सेना को विश्व के विशालतम और अत्यंत आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से लैस सैन्य बल के रूप में जाना जाता है। रक्षा बलों में प्रवेश पाने के मुख्य दो रास्ते हैं। पहला है, नेशनल डिफेंस एकेडेमी (एनडीए) या राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एवं कंबाइंड डिफेंस सçर्वस (सीडीएस) या सçम्मलित रक्षा सेवा परीक्षा सरीखी देशव्यापी तौर पर आयोजित की जाने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर। दूसरा रास्ता है, विभिन्न राष्ट्रीय रुतर के समाचार पत्रों में वर्ष में प्राय: दो बार विज्ञापित होने वाले रिक्त पदों केआधार पर।<br><br><br>राष्ट्रीय रक्षा अकादमी परीक्षा<br><br>इस परीक्षा का आयोजन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा वर्ष में दो बार किया जाता है। यानी अप्रैल और अक्तूबर माह में इसके लिए आवेदन मंगाए जाते हैं। साढ़े सोलह वर्ष से उन्नीस वर्ष तक के बारहवीं पास युवा इसमें सçम्मलित हो सकते हैं। इसमें लिखित परीक्षा तथा मेडिकल टेस्ट के उपरांत अंतिम रूप से प्रवेश दिया जाता है। लिखित परीक्षा ऑब्जेçक्टव टाइप प्रश्नों पर आधारित होती है। परीक्षा में गणित और जेनरल एबिलिटी विषयों केअलग प्रश्न पत्र होते हैं। दोनों की अवधि ढाई-ढाई घंटे की होती है। गणित का प्रश्न पत्र 600 अंकों का होता है। जेनरल एबिलिटी के अंतर्गत अंगरेजी (200) तथा सामान्य ज्ञान के तहत भौतिकी, रसायन, सामान्य विज्ञान, इतिहास , भूगोल आदि विषयों से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। दूसरी ओर गणित के प्रश्नपत्र में अर्थमेटिक्स, मेंसुरेशन, एल्जेबरा, ज्योमेट्री, त्रिकोणमिति, स्टैटिस्टिक पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस परीक्षा के बारे में रोजगार समाचार में विज्ञापन देखे जा सकते हैं।<br><br><br>सçम्मलित रक्षा सेवा परीक्षा (सीडीएस)<br><br>इस परीक्षा का आयोजन भी संघ लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है। इसकी परीक्षा मई तथा अक्तूबर माह में होती है। इसमें स्नातक पास युवा ही शामिल हो सकते हैं। लिखित परीक्षा पास करने के बाद आपको एसएसबी और फिजिकल टेस्ट से गुजरना होता है। इन दोनों परीक्षाओं के अलावा रक्षा सेना में शॉर्ट सçर्वस कमीशन के जरिए भी भर्तियां की जाती हैं। इसके तहत थल सेना में पांच वषोZ की अवधि के लिए अधिकारी वर्ग के पदों पर लिखित परीक्षा, एसएसबी साक्षात्कार एवं मेडिकल के बाद नियुक्तियां की जाती हैं। पहले एक वर्षीय अवधि का प्रशिक्षण ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडेमी, चेन्नई से पूरा करना पड़ता है। सशस्त्र सेना की तीनों शाखाओं में उपरोक्त प्रतियोगी परीक्षाओं के अलावा भी सीधी नियुक्तियां की जाती हैं।<br><br>इनमें मैटि्रक, बारहवीं पास, ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट तथा तकनीकी डिगरी धारक युवा भी अपनी योग्यताओं केआधार पर विभिन्न प्रकार के पदों पर नियुक्त होते हैं।<br><br><br>थल सेना<br>रक्षा सेना के सबसे बड़े और शक्तिशाली अंग के रूप में थल सेना की पहचान है। इसमें इंफैंट्री, इंजीनियरिंग, रेजिमेंट तथा सिग्नल रेजिमेंट में भर्तियां प्रतियोगी परीक्षा अथवा एसएसबी के माध्यम से की जाती हैं। शैक्षिक योग्यता केआधार पर निम्न वगीüकरण के अनुसार रिक्तियां सीधे भरी जाती हैं।<br><br><br>टीजीसी (तकनीकी शाखा)<br><br>इसके लिए इंजीनियरिंग डिगरी धारक होना आवश्यक है। आयु 20 से 27 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। एसएसबी इंटरव्यू के आधार पर अंतिम चयन किया जाता है। विज्ञापन आमतौर से अप्रैल और अक्तूबर माह में प्रकाशित किए जाते हैं।<br><br><br>पोस्ट ग्रैजुएट (एईसी)<br><br>इसमें प्रवेश के लिए आयु सीमा 23 से 27 वर्ष तक होती है। यह भी आवश्यक है कि आवेदक ने अधिसूचित विषयों में से किसी एक में पीजी डिगरी दिए गए अंकों के आधार पर की हो। <br><br><br>डायरेक्ट यूनिवçर्सटी एंट्री<br><br>आमतौर से इस प्रकार के रिक्त पदों के लिए जुलाई माह में आवेदन मंगाए जाते हैं। आवेदक को कम से कम ग्रैजुएशन के अंतिम वर्ष का छात्र होना चाहिए। चयन एसएसबी इंटरव्यू के आधार पर होता है।<br><br><br>बारहवीं (टीईएस)<br>कम से कम 70 फीसदी अंकों से विज्ञान विषयों में (पीसीएम) में बारहवीं पास युवा इस प्रकार की सीधी भतीü के लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन वर्ष में दो बार यानी अप्रैल और सितंबर माह में आमंत्रित किए जाते हैं। थल सेना में भतीü से संबंधित अन्य विस्तृत जानकारी वेबसाइट डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू.इडियन आर्मी.एनआईसी.इन से प्राप्त की जा सकती है।<br><br><br>भारतीय वायु सेना<br>भारतीय वायु सेना के पायलटों को जेट विमानों के अलावा अत्याधुनिक विमानों को उड़ाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। रक्षा सेवा की इस शाखा में पायलट को तकनीकी कर्मी अथवा ग्राउंड डKूटी की विभिन्न उपशाखाओं में रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। एनडीए और सीडीएस के अलावा सीधे भी भतीü के विभिन्न प्रावधान हैं- जैसे तकनीकी शाखा में पदों की भतीü के लिए ईकेटी टेस्ट देना पड़ता है। यह मूलत: इंजीनियरिंग नॉलेज टेस्ट कहलाता है। दूसरी ओर नॉन टेçक्नकल शाखा के पदों के लिए ओएलक्यू टेस्ट यानी ऑफिसर लाइक क्वालिटी टेस्ट देना होता है। इसमें मनोवैज्ञानिक परीक्षा, साक्षात्कार तथा सामूहिक कार्यकलापों के जरिए अभ्यर्थी को परखा जाता है। वायु सेना में महिलाओं को बतौर पायलट, नेवीगेटर या तकनीकी कर्मी या ग्राउंड डKूटी कर्मी के रूप में काम करने के मौकेमिलते हैं। <br><br><br>भारतीय नौसेना<br>नौसेना में उपरोक्त दोनों प्रतियोगी परीक्षाओं के अतिरिक्त नाविक तथा अधिकारी नामक दो अलग-वर्गों में नियुक्तियों के अवसर मिल सकते हैं। नाविक समूह के पदों में नाविक, आर्टीफिशर, अप्रेंटिस, डिप्लोमाधारक, सीनियर सेकेंड्री शिक्षा वाले युवाओं की भतीü, मैटि्रक रिक्रूट म्यूजिशियन तथा नॉन मैटि्रक युवाओं की भतीü को शामिल किया जाता है। दूसरी ओर अधिकारी वर्ग के पदों में एग्जीक्यूटिव, लॉजिस्टिक एजुकेशन ऑफिसर, इंजीनियरिंग ऑफिसर, इलेçक्ट्रकल ऑफिसर, मेडिकल तथा डेंटल ऑफिसर का खासतौर पर उल्लेख किया जाता है। <br><br>नौसेना का बुनियादी प्रशिक्षण आईएनएस, चिल्का नामक जहाज पर दिया जाता है। इसके अलावा विदेशों में भी बेहतरीन अधिकारियों को प्रशिक्षण हेतु भेजने की व्यवस्था है। यही नहीं, एनसीसी तथा खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले युवाओं केलिए सीधी भतीü का विशेष तौर पर प्रावधान है। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर खेलने वाले युवाओं के लिए भी सीधी भतीü का प्रावधान है। सुपात्र युवा खिलाड़ी सीधे इस पते पर आवेदन कर सकते हैं- सेक्रेट्री इंडियन नेवी स्पोट्र्स कंट्रोल बोर्ड, रूम नंबर 78, सी विंग, आईएचक्यू, एमओडी (नेवी), सेना भवन, नई दिल्ली-110011<br><br>रक्षा सेवा में सिर्फ रोजगार ही नहीं बल्कि गौरव के साथ एक अनुशासित जीवन का भी आकर्षण है। वेतन-सुविधाओं, भत्तों तथा पदोन्नतियों की दृष्टि से यह क्षेत्र अन्य पेशों से किसी भी दृष्टि से कम नहीं कहा जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस सेवा के साथ राष्ट्र का स्वाभिमान भी जुड़ा है। हमेशा से युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करनेवाली इस सेवा में जो चार्म है उसका अनुभव एक सैन्य अधिकारी बनकर ही किया जा सकता है।<br><br> <br> अशोक सिंह <br><br></html>
<html>अभय चार साल से एक ही कंपनी में काम कर रहा था। वह कई कंपनियों में अपने रिज्यूमे भेज चुका था, लेकिन उसे कहीं से इंटरव्यू के लिए कॉल नहीं आ रही थी। अभय इस बात को समझ नहीं पा रहा था कि आखिरकार कमी कहां है? एक जॉब कंसल्टेंट ने उसे बताया कि उसका रिज्यूमे सही नहींं है, इसलिए उसे कंपनी से कॉल नहीं आ रही है। अभय ने उसके द्वारा दी गई सलाह के अनुसार रिज्यूमे बनाया। इस तरकीब ने काम भी किया। उसे इंटरव्यू कॉल आनी शुरू हो गई। अभय की सफलता एक उदाहरण है कि जॉब ढूंढ़ने के लिए अच्छा सीवी, रिज्यूमे या बायोडाटा कितना अहम् रोल अदा करते हैं। एक अच्छा रिज्यूमे ही आपको इंटरव्यू का प्लेटफॉर्म प्रदान करता है, इसलिए रिज्यूमे बनाने में बेहद सावधानी बरतनी चाहिए।<br><br><br><br><br>खुद की माकेüटिंग<br><br><br>रिज्यूमे माकेüटिंग पीस होता है, न कि कैरियर का संस्मरण। इसे देखकर मालूम होता है कि आप अपनी पिछली जॉब में कैसा परफॉर्म कर रहे हैं? आने वाले समय में कितना आगे जा सकते हैं? आपका ट्रैक रिकॉर्ड कैसा है? इसलिए इसे प्रभावी नहीं बनाया, तो कर्मचारी के नाते आपकी डिमांड भी प्रभावित हो सकती है।<br><br><br><br><br>रिज्यूमे कैसे-कैसे<br><br><br>हालांकि रिज्यूमे बनाने का एक ही फॉमूüला हर व्यक्ति के लिए लागू नहीं हो सकता। एक ही फॉमेüट का रिज्यूमे हर एक व्यक्ति की कैरियर कंडीशन के अनुसार सही नहीं बैठ सकता। यही कारण है कि रिज्यूमे को कुछ प्रमुख कैटेगरी में बांटा गया है।<br><br><br><br><br>क्रोनोलॉजिकल रिज्यूमे<br><br><br>इस प्रकार के रिज्यूमे व्यक्ति के व्यावसायिक जीवन के बारे में सामान्य जानकारी देते हैं। इसमें नौकरी में वर्तमान पद और जिम्मेदारियों का उल्लेख किया जाता है। पढ़ाई खत्म होने पर या किसी जगह नियुक्तियां निकलने पर जब आवेदन किया जाता है, तो आमतौर पर हम क्रोनोलॉजिकल रिज्यूमे ही बनाकर भेजते हैं, जिसमें समयवार और अवधि के अनुसार अब तक के सारे अनुभवों का उल्लेख होता है। इस तरह के रिज्यूमे पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है कि आपको किस कार्य के लिए बुलाना है।<br><br><br><br><br>फंक्शनल रिज्यूमे<br><br><br>इस प्रकार के रिज्यूमे कुशलता आधारित होते हैं। फंक्शनल रिज्यूमे उस समय बनाए जाते हैं, जब किसी एक खास पोस्ट के लिए आवेदन किया जा रहा हो। इसे यह सोचकर नहीं बनाया जाता कि काम चाहिए। बल्कि एक खास फील्ड में खास जिम्मेदारी वाले पद को टारगेट करके रिज्यूमे तैयार करके बनाया जाता है।<br><br><br><br><br>हाइब्रिड रिज्यूमे<br><br><br>हाइब्रिड रिज्यूमे क्रोनोलॉजिकल और फंक्शनल रिज्यूमे का मिला-जुला रूप ही होता है।<br><br><br><br><br>क्या चाहिए कंपनियों को<br><br><br>ओकाया में एचआर मैनेजर सौरभ बताते हैं कि आमतौर पर कंपनियों के पास जितने रिज्यूमे आते हैं, उनमें से पहले अनुभवी कैंडीडेट का चयन करते हैं। फिर यह देखते हैं कि उसने किस कंपनी में काम किया है और उसकी टीम कितने लोगों की है। किसी फ्रेशर के रिज्यूमे में उसकी एजुकेशन, बैकग्राउंड और अचीवमेंट्स्ा देखते हैं।<br><br><br>वहीं इंफोसिस में मैनेजर, कारपोरेट कम्यूनिकेशन सबरीना मुकुंद बताती हैं कि रिज्यूमे में दी गई जानकारी झूठ नहींं होनी चाहिए, क्योंकि इंटरव्यू के दौरान इस बात की जानकारी लग जाती है कि आपने जो इंफॉरमेशन दी है, वह कितनी सही है। वहीं एलजी में एचआर मैनेजर सुमन पाराशर कहती हैं कि अगर रिज्यूमे में दी गई जानकारी रिलीवेंट नहींं है, तो आपकी बड़ी से बड़ी उपलçब्ध बेकार हो जाती है।<br><br><br>सिस्टम इंफोटेक के एचआर अजय माहेश्वरी अपनी कंपनी की जॉब रिक्वायरमेंट, क्वालिफिकेशन और एक्स्ापीरिएंस के आधार पर किसी कैंडीडेट को कॉल करते हैं। इसलिए जरूरी है कि अपने सीवी में आप इसे बेहतर ढंग से प्रस्तुत करें।<br><br><br><br><br>कवरिंग लेटर साथ भेजें<br><br><br>कवरिंग लेटर रिज्यूमे के साथ भेजे जाते हैं। आमतौर पर किसी भी नियुक्ति के विज्ञापन में इसका उल्लेख नहीं होता है, लेकिन यह रिज्यूमे मैनर्स के तहत आता है। कवरिंग लेटर में आप वह सारी जानकारियां देे देते हैं, जिनका उल्लेख रिज्यूमे में नहीं किया जा सकता। लेटर एक पेज से बड़ा नहीं होना चाहिए। अगर आप ई-मेल से आवेदन कर रहे हैं, तो उसे बस इतना बड़ा रखें कि एक बार में स्क्रीन पर पढ़ने में आ जाए। इसे पढ़ने में बीस से तीस सेकेंड से ज्यादा का समय नहीं लगे।</html>
देश की इकोनॉमी जिस तेज रफ्तार से बढ़ रही है, उससे लगभग हर सेक्टर में बूम का माहौल है। चाहे वह सçर्वस सेक्टर हो या मैन्युफैक्चरिंग। हाल के वर्षों में महानगरों और टियर-2 शहरों, मसलन जयपुर, चंडीगढ़, इंदौर आदि में रिहाइशी और कॉमर्शियल, दोनों ही तरह की बिçल्डंग्स की बढ़ती मांग को देखते हुए रीयल इस्टेट कंपनियों की बाढ़ आ गई है।
नगरीकरण और निर्माण को इन दिनों प्रमुखता दी जा रही है। यही कारण है कि रीयल इस्टेट का क्षेत्र लगातार विकास कर रहा है। इसके साथ कैरियर को नए आयाम मिल रहे हैं। राजेंद्र गुप्ता का आलेख
रीयल इस्टेट आज के समय में सबसे तेजी से बढ़ता क्षेत्र है और इसमें पेशेवरों की मांग जबरदस्त तरीके से बढ़ी है। रीयल इस्टेट सेक्टर में तेजी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में शेयर बाजार में सूचीबद्ध हुई डीएलएफ सहित कई अन्य रीयल इस्टेट कंपनियों के शेयरों को निवेशकों का जोरदार समर्थन हासिल हुआ। इस क्षेत्र की तेजी की दूसरी वजह सरकार द्वारा ढांचागत क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना भी है, जिसके चलते राजमार्ग, कॉरिडोर, ओवरब्रिज आदि का तेजी से निर्माण किया जा रहा है।
क्षेत्र
रीयल इस्टेट के क्षेत्र में आर्किटेक्ट्स और सिविल इंजीनियर्स प्रमुख धारा के प्रोफेशनल्स हैं। इनके बिना तो कंस्ट्रकशन में आगे बढ़ ही नहीं सकता। इसके बाद कई ऐसे गैर तकनीकी क्षेत्र हैं, जहां लोगों के लिए नए अवसर हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, सौ एकड़ भूमि की एक परियोजना के विकास में करीब 500 लोगों की जरूरत होती है। इसमें लगभग साढ़े तीन सौ श्रमिक होते हैं, जबकि बाकी लोगों में विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवर शामिल हैं। परियोजना की शुरुआत में सबसे पहले ग्राउंडवर्क करना होता है। इसमें भूखंड की पहचान उसके बाद भूखंड की कीमत क्या होगी और विकास के बाद संपत्ति के मूल्य के आकलन के लिए संभाव्य अध्ययन करना होता है। इन कामों में लैंड सवेüयर की जरूरत होती है। इस दौरान कंपनियों को वकीलों की भी सेवाएं लेनी पड़ती हैं, जिससे भविष्य में आने वाली अड़चनों से बचा जा सके।
ग्राउंडवर्क खत्म होने के बाद परियोजना दूसरे चरण में पहुंचती है। अब तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, जैसे टाउन प्लानर, इंजीनियर और आर्किटेक्ट आदि। ये पेशेवर परियोजना की रूपरेखा तैयार करते हैं। इस दौरान कंपनियों को लायजन ऑफिसर की भी जरूरत होती है, जो विभिन्न सरकारी दफ्तरों से संपर्क के जरिये परियोजना को मंजूर कराते हैं। ये अधिकारी परियोजना के लिए सभी प्रकार की आवश्यक मंजूरी और लाइसेंस दिलाने में अहम भूमिका अदा करते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि परियोजना मॉल व मल्टीप्लेक्स की है, तो डेवलपर को इंटरटेनमेंट लाइसेंस हासिल करना पड़ेगा। क्योंकि परियोजना की मंजूरी और लाइसेंस मिल जाने पर ही डेवलपर निर्माण कार्य शुरू कर सकता है।
निर्माण कार्य के दौरान सिविल इंजीनियर, साइट सुपरवाइजर, क्वालिटी सुपरवाइजर, इंटीरियर डिजाइनर और प्रोजेक्ट मैनेजर आदि की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा डेवलपर को परियोजना की माकेüटिंग करने के लिए माकेüटिंग पेशेवरों की भी आवश्यकता होती है। वहीं इन परियोजना में खर्च आदि का हिसाब-किताब रखने और अन्य एकाउंटिंग कायोZ के लिए एकाउंटेंट की भी जरूरत होती है। एकाउंटेंट हिसाब-किताब में पारदर्शिता बरतते हुए परियोजना को सफल बनाने में अहम भूमिका अदा करते हैं।
रोजगार
रीयल इस्टेट क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवरों की बढ़ती मांग पूरी करने के लिए विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थान तैयारी में जुट गए हैं। इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विदेशी रीयल्टी कंपनियों के साथ गठबंधन और भारी विदेशी निवेश (एफडीआई) इस बात का संकेत देते हैं कि रीयल इस्टेट भविष्य का एक बड़ा कैरियर क्षेत्र है। इस संभावना को देखते हुए ही अब कई विश्वविद्यालय रीयल इस्टेट के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं। घरेलू रीयल्टी सेक्टर करीब 14 से 15 अरब डॉलर का है और यह सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
रीयल इस्टेट क्षेत्र की अग्रणी कंपनी बेस्ट ग्रुप के प्रबंध निदेशक हरजीत सिंह अरोड़ा के मुताबिक, `रीयल इस्टेट केक्षेत्र में सबसे ज्यादा मांग सिविल इंजीनियरों की है। इसके अलावा एमबीए प्रोफेशनल, एकाउंटेंट और आर्किटेक्ट की भी बड़ी संख्या में मांग है।´ अरोड़ा की माने, तो सरकारी परियोजनाओं के जोर पकड़ने से देश में सिविल इंजीनियरों की काफी कमी हो गई है, जिसके चलते निजी क्षेत्र की रीयल इस्टेट कंपनियां मोटी तनख्वाह पर इंजीनियरों की भरती कर रही हैं। रीयल्टी सेक्टर में आई तेजी को देखते हुए स्कूल ऑफ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर (एसपीए), गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय और सेंटर फॉर एनवारनमेंट प्लानिंग टेक्नोलॉजी (सीईपीटी) जैसे विश्वविद्यालयों ने रीयल इस्टेट में कोर्स भी शुरू कर दिया है।
एसपीए ने हाल ही में बिçल्डंग इंजीनियरिंग एेंड मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर प्रोग्राम के तहत अपना ध्यान प्रोजेक्ट मैनेजमेंट से हटाकर रीयल इस्टेट पर केंद्रित कर दिया है।
गुरु गोबिंद सिंह विश्वविद्यालय ने स्पा के गठबंधन में रीयल इस्टेट क्षेत्र में एमबीए का कोर्स शुरू किया है। यह कोर्स कामकाजी पेशेवरों के लिए भी काफी लाभदायक है, जिन्हें रीयल इस्टेट कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बातचीत करने और ज्ञान बढ़ाने का अवसर मिलता है। विश्वविद्यालय में एक प्लेसमेंट सेल का भी गठन किया गया है। रीयल इस्टेट उद्योग के जानकारों के मुताबिक हालांकि खास किस्म के कोर्स विद्यार्थियों को तकनीकी जानकारी से लैस करने में मदद करते हैं, लेकिन रीयल एस्टेट में व्यावहारिक अनुभव बेहद जरूरी है।
अहमदाबाद स्थित सीईपीटी के दि सेंटर फॉर कंटीन्यूइंग एजुकेशन संकाय ने रीयल इस्टेट में एक सांध्यकालीन डिप्लोमा कोर्स शुरू किया है। संस्थान के फैकल्टी ऑफ प्लानिंग एेंड पब्लिक पॉलिसी के अंतर्गत हाउसिंग में पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स रीयल इस्टेट क्षेत्र पर व्यापक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस कोर्स में नियमित तौर पर रीयल इस्टेट कंपनियों के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जाता है।
-सिविल इंजीनियरिंग
इस क्षेत्र में इच्छुक व्यक्ति देश के अग्रणी इंजीनियरिंग संस्थानों के अलावा किसी भी पॉलिटेçक्नक या आईटीआई से सिविल इंजीनियरिंग की डिगरी हासिल कर रीयल इस्टेट क्षेत्र में नौकरी हासिल कर सकते हैं। शुरुआती दौर में इंजीनियर को सीनियर इंजीनियर के अधीन काम करना पड़ता है और दस हजार रुपये के आसपास वेतन मि लता है। अनुभव होने के बाद यह सैलरी बीस से पचास हजार रुपये प्रति माह तक जा सकती है।
हरजीत सिंह का कहना है कि डिगरी और डिप्लोमाधारी सिविल इंजीनियरों के वेतन के बीच पांच से सात हजार रुपये का अंतर होता है। हालांकि अनुभव होने पर यह अंतर खत्म हो जाता है।
-आर्किटेक्ट
बड़ी परियोजनाओं का नक्शा आदि तैयार करने और इसकी आकर्षक डिजाइनिंग में आर्किटेक्ट की अहम भूमिका होती है। आमतौर पर आर्किटेक्ट की नियुक्ति रीयल इस्टेट कंपनियों द्वारा की जाती है और उन्हें परियोजना के मुताबिक वेतन दिया जाता है। आर्किटेक्ट बनने के लिए अभ्यर्थी विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ आर्किटेक्ट का कोर्स कर सकते हैं।
-माकेüटिंग
माकेüटिंग के क्षेत्र में दक्ष लोगों की मांग रीयल इस्टेट क्षेत्र में भी काफी बढ़ी है। प्रबंधन संस्थानों से पढ़ाई करने के बाद माकेüटिंग क्षेत्र के विद्यार्थी रीयल इस्टेट कंपनियों से जुड़ सकते हैं। यहां पर उन्हें प्रोजेक्ट की माकेüटिंग करनी होती है। रीयल्टी के क्षेत्र में काम करते हुए माकेüटिंग पेशेवर काम की बारीकियां सीखते हुए अनुभव हासिल कर सकते हैं। रीयल इस्टेट क्षेत्र में एमबीए करने के बाद शुरुआत में दस से पंद्रह हजार रुपये सैलरी की पेशकश की जाती है। हालांकि अनुभवी पेशेवर बीस से पचास हजार रुपये तक वेतन उठा सकते हैं।
-एकाउंटेंट
बड़ी रीयल इस्टेट परियोजनाओं में भारी निवेश किया जाता है, जिससे इनका हिसाब-किताब पारदर्शी तरीके से रखना जरूरी होता है। इसे देखते हुए एकाउंट पेशेवरों की भी भारी मांग है। रीयल इस्टेट क्षेत्र में एकाउंटेंट का काम, परियोजना की लागत, खर्च और अन्य निवेश का लेखा-जोखा रखना होता है।
-प्रोजेक्ट मैनेजर व सुपरवाइजर
प्रोजेक्ट मैनेजर और सुपरवाइजर के लिए रीयल इस्टेट कंपनियां स्थानीय लोगों को ज्यादा महत्व देती हैं। इस सेगमेंट में व्यक्ति व्यावहारिक अनुभव के आधार पर नौकरी प्राप्त कर सकता है। प्रोजेक्ट मैनेजर की तनख्वाह उसके पिछले प्रदर्शन और अनुभव के आधार पर तय होती है।
-इंटीरियर डिजाइनर
इंटीरियर डिजाइन के लिए देश में कई ऐसे संस्थान हैं, जो इंटीरियर डिजाइनिंग में डिगरी और डिप्लोमा प्रदान करते हैं। इन संस्थानों से पढ़ाई करने के बाद व्यक्ति रीयल इस्टेट में कैरियर बना सकता है।
विदेश में पढ़ने का सपना आपकी जिंदगी का टनिZग पॉइंट साबित हो सकता है। एक बार अगर आपको विदेश में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल जाता है, तो सब कुछ बदल जाता है। इसके बाद आपका दृष्टिकोण पहले से कहीं अधिक वैश्विक हो जाता है, आपके कैरियर स्किल्स का स्तर अंतरराष्ट्रीय हो जाता है, रिज्यूमे कहीं ज्यादा प्रभावशाली बन जाता है, कम्यूनिकेशन स्किल्स बहुत स्तरीय हो जाते हैं। पर विदेश पढ़ने जाने के केवल यही कारण नहीं हैं। कुछ फील्ड्स ऐसे हैं, जिनमें स्तरीय प्रोफेशनल ट्रेनिंग आपको विदेशी यूनिवçर्सटी में ही प्राप्त हो पाती है। कुछ फील्ड्स ऐसे हैं,जिनमें डिप्लोमा या डिगरी कोर्स अभी अपने यहां इंट्रोडKूस ही नहीं हुए हैं, लेकिन प्रतिçष्ठत विदेशी यूनिवçर्सटीज में कराए जा रहे हैं। इन कारणों से भी विदेशी शिक्षा का चयन किया जाता है। वैसे इस बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता है कि विदेशी यूनिवçर्सटी की डिगरी के बाद भविष्य को लेकर अनिश्चितता खत्म हो जाती है।
ऐसा इसलिए, क्योंकि विदेशी डिगरी आपके कैरियर में वैल्यू एडिशन करती है। इतना ही नहीं, विदेश की डिगरी के कारण आपके कार्यक्षेत्र का विस्तार होता है। आपकी प्रतियोगी क्षमता में इजाफा तो होता ही है, साथ ही आप विश्व भर में कहीं भी कार्य कर पाने में सक्षम होते हैं। लगभग सभी देश और प्रतिçष्ठत विदेशी यूनिवçर्सटीज विदेशी छात्रों को अपने यहां बढ़ावा दे रही हैं। इनमें छात्रों की सुविधा के लिए आर्थिक सहायता, कम खर्च, नौकरी और पढ़ाई जैसे ऑप्शंस भी दिए गए हैं। यानी एक बार जाने को मिल जाए, तो डिगरी हासिल करना मुश्किल काम नहीं रह जाता। इन यूनिवçर्सटीज में प्रवेश ऐसे ही नहीं मिल जाता है। इसके लिए कुछ मानक परीक्षण रखे गए हैं। हर देश का अपना अलग स्टैंडर्ड टेस्ट हो सकता है या फिर यूनिवçर्सटी विशेष का अपना टेस्ट। कुछ प्रमुख टेस्ट्स इस प्रकार हैं-
-जीआरई
(ग्रैजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशंस)
जीआरई के दो भाग होते हैं-जीआरई जनरल टेस्ट और जीआरई सब्जेक्ट टेस्ट। जीआरई जनरल टेस्ट में आपकी व्यक्तिगत योग्यताओं, जैसे कि चिंतन, लेखन और सांçख्यकी क्षमता की परख की जाती है। जीआरई सब्जेक्ट टेस्ट यूनिवçर्सटी एजुकेशन पर आधारित होता है। इसके आठ हिस्से होते हैं। कुछ यूनिवçर्सटी और कॉलेजों में इन दोनों टेस्ट्स में उत्तीर्ण छात्रों को ही लिया जाता है।
-टोएइक
(टेस्ट ऑफ इंगलिश फॉर इंटरनेशनल कम्यूनिकेशन)
यह टेस्ट उन लोगों के लिए होता है, जिनकी पहली भाषा अंगरेजी नहीं होती है और जो बाहर काम करने के लिए आवेदन करते हैं। इस टेस्ट को एजुकेशनल टेस्टिंग सçर्वस तैयार करती है। इसके दो भाग हैं। पहला है लिसनिंग यानी सुनना और दूसरा रीडिंग यानी पढ़ना। दोनों भागों में सौ प्रश्न होते हैं।
-टोफेल
(टेस्ट फॉर इंगलिश ऐज ए फॉरेन लैंग्वेज)
अमेरिका में एमबीए या बीए करने का सपना संजोए छात्रों के लिए टोफेल टेस्ट का आयोजन किया जाता है। इस टेस्ट के माध्यम से छात्रों की अंगरेजी भाषा में योग्यता का आकलन किया जाता है। अधिकतर यूनिवçर्सटीज या कॉलेजों में टेस्ट के लिए 450-550 केबीच की डिगरी स्वीकार की जाती है। इस टेस्ट के भी दो भाग हैं। इनमें अमेरिकी अंगरेजी को सुनकर समझने की क्षमता का आकलन, अंगरेजी के मानक नियमों की जानकारी की परख, अमेरिकी कॉलेज और यूनिवçर्सटीज में इस्तेमाल हो रही अंगरेजी को पढ़ने और समझने की क्षमता का आकलन और किसी विशिष्ट विषय पर अंगरेजी में लिखने की क्षमता का आकलन किया जाता है। अब आवेदनकर्ता की सुविधा के लिए इंटरनेट बेस्ड टोफेल टेस्ट भी उपलब्ध है। इस टेस्ट की मान्यता सभी देशों की लगभग 6,000 यूनिवçर्सटीज में है।
-सैट
(स्कॉलैस्टिक एप्टीटKूड टेस्ट)
सैट टेस्ट लगभग हर एकेडेमिक संगठन में मान्य है। इसके दो हिस्से होते हैं। एक तो सामान्य योग्यता और दूसरा प्रोफिशिएंसी। अमेरिका केअधिकतर स्कूल्स में सैट-वन के आधार पर ही प्रवेश मिल जाता है, लेकिन कुछ स्कूलों में सैट -टू उत्तीर्ण होना भी शर्त रखी जाती है। सैट-वन एक रीजनिंग टेस्ट होता है, जबकि सैट-टू सब्जेक्ट टेस्ट होता है। इन परीक्षणों को एग्जाम बोर्ड की ओर से तैयार किया जाता है।
-जीमैट
(ग्रैजुएट मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट)
विदेश से एमबीए करना है, तो जीमैट देकर वहां पढ़ने जाना ज्यादा उचित होगा। अमेरिका की लगभग सभी प्रतिçष्ठत यूनिवçर्सटीज ऐसे छात्रों को अपने यहां दाखिला देती हैं, जो जीमैट क्वालिफाएड हों। आमतौर से इसका स्कोर 650 के आसपास होना चाहिए। जीमैट कभी भी दिया जा सकता है। यह ऑनलाइन, पोस्ट सçर्वस, फैक्स या फोन के माध्यम से उपलब्ध है। इस टेस्ट को ग्रैजुएट मैनेजमेंट एडमिशन काउंसिल तैयार करती है।
-आईईएलटीएस
(इंटरनेशनल इंगलिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम)
यह टेस्ट इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड या कनाडा में बीए या एमबीए करने के इच्छुक छात्रों के लिए है। टेस्ट के दो भाग हैं। सामान्य व अकादमिक। जनरल ट्रेनिंग मॉड्यूल नॉनएकेडेमिक ट्रेनिंग या वर्क एक्सपीरिएंस या इमिग्रेशन परपज के लिए है। आईईएलटीएस अमेरिका के भी कुछ संस्थानों में मान्य है।
-एलसैट
(लॉ स्कूल एडमिशन टेस्ट)
विदेश में केवल एमबीए या बीए की पढ़ाई ही बढ़िया नहीं होती, बल्कि मेडिसिन और लॉ फील्ड के लिए भी विदेश में श्रेष्ठ शिक्षा उपलब्ध है। एलसैट विदेशी लॉ स्कूल्स में प्रवेश पाने के लिए है। इस टेस्ट के माध्यम से छात्र की रीडिंग और अंडरस्टैंडिंग क्षमता का आकलन किया जाता है। यह आधे दिन तक चलने वाला स्टैंडडाüइज्ड टेस्ट है। लॉ स्कूल एडमिशंस काउंसिल की ओर से इसे वर्ष में चार बार आयोजित किया जाता है। लॉ में कुछ एक क्षेत्रों में योग्यताएं सफलता के लिए अति आवश्यक होती हैं। उन्हीं की परख के लिए इस टेस्ट को डिजाइन किया गया है। यही कारण है कि इन देशों के लॉ कॉलेजों की ओर से अपने यहां आने वाले विदेशी छात्रों की रीडिंग और वबüल रीजनिंग एबिलिटी के आकलन के लिए इस टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि उनके कुल आकलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कठिन विषय को सही-सही पढ़ना और समझना, तथ्यों को सही तरीके से एकत्रित करना और उनमें से तर्कपूर्ण निष्कर्ष निकालने की क्षमता, आलोचनात्मक नजरिये से चिंतन करने की क्षमता और दूसरों के तर्क का सही विश्लेषण करने की योग्यता का परीक्षण इस टेस्ट के माध्यम से किया जाता है।
-एमसीएटी
(मेडिकल कॉलेज एडमिशन टेस्ट)
अमेरिका और कनाडा में मेडिकल क्षेत्र में विदेशी छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिए एमसीएटी रखा गया है। यह परीक्षण समस्या समाधान, तीव्र चिंतन, लेखन क्षमता और नियमों की जानकारी का आकलन करता है। उत्तरी अमेरिका केलगभग सभी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की यह अनिवार्य शर्त है। इसे अमेरिकन मेडिकल कॉलेजेज (एएएमसी) ने डिजाइन किया है। इसे वर्ष में दो बार अप्रैल और अगस्त में आयोजित किया जाता है। यह परीक्षा पूरे दिन की होती है। इसमें चार सेक्शंस होते हैं-वबüल रीजनिंग, फिजिकल साइंसेज, राइटिंग सैंपल और बायोलॉजिकल साइंसेज। यह बहुविकल्पीय प्रकार का टेस्ट है। इसमेंं परीक्षार्थी की समस्या समाधान योग्यता, आलोचनात्मक चिंतन व राइटिंग स्किल्स के साथ-साथ विज्ञान के सिद्धांतों व तथ्यों की जानकारी की परख की जाती है। इसकेमाध्यम से बायोलॉजी, केमिस्ट्री, फिजिक्स और विज्ञान संबंधी समस्या समाधान की योग्यता का भी आकलन होता है।
-एसीटी
(अमेरिकन कॉलेज टेस्टिंग) -असेसमेंट प्रोग्राम
अगर आपको अपनी कैरियर प्लानिंग संबंधी मदद चाहिए, तो इस टेस्ट की मदद ले सकते हैं। यह प्रोग्राम चार हिस्सों में बांटा गया है। एकेडेमिक टेस्ट सीमित अवधि और स्थितियों में लिया जाता है। इसके अलावा स्टूडेंट प्रोफाइल सेक्शन और इंटरेस्ट इन्वेंटरी भी होती है।
-जीसीई
(जनरल सटिüफिकेट ऑफ एजुकेशन)
यूनाइटेड किंगडम के विभिन्न बेसिक व उच्चस्तरीय कोर्सेज में प्रवेश के लिए जनरल सटिüफिकेट ऑफ एजुकेशन (जीसीई) एग्जाम के माध्यम से आपको आधारभूत योग्यता प्राप्त हो जाती है। यूनिवçर्सटी में जीसीई एग्जामिनेशन दो स्तरों पर आयोजित होता है, ऑडिüनरी और एडवांस। इनमें प्राप्त `ए लेवल´ रिजल्ट आपके लिए बहुत सी यूनिवçर्सटीज में प्रवेश का रास्ता खोल देेंगे। वैसे यह संस्थान पर भी निर्भर करेगा कि वह टोफेल की शर्त रखता है या नहीं।
आजादी के 60 सालों में हमने कामयाबियों की कई मंजिलें तय की। समूची दुनिया में आज हम एक स्वावलंबी और काबिल देश हैं। रोजगार और अवसरों के लिहाज से भी भारत की युवा शक्ति विश्व में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। हम सबसे युवा देश हैं। और इस युवा शक्ति का उपयोग करने केलिए विश्व के विकसित देश बेताब दिख रहे हैं। परिणामस्वरूप विदेशी शिक्षा को भी नए आयाम मिले हैं। सफलता की तलाश कर रहे युवाओं में एक नया चलन दिख रहा है। सफलता के लिए विदेशी शिक्षा एक गारंटी बन गई है और बढ़ी मांग के कारण विदेशी शिक्षण संस्थानों ने भी अपने द्वार भारतीय युवाओं के लिए उदारता से खोल दिए हैं।
कैरियर के लिहाज से विदेशी शिक्षा अब ट्रंप कार्ड का काम करती है। इसके लिए मिल रही सुविधाओं से यह रंग गाढ़ा ही होता जा रहा है। अनुराग मिश्र का आलेख
फॉरेन एजुकेशन का बढ़ता ट्रेंड
आंकड़़ेे बताते हैं कि प्रतिवर्ष लगभग एक लाख भारतीय छात्र पढ़़ने के लिए विदेश जा रहेे हैं। पहले जहां उच्च शिक्षा के लिए छात्रों की पसंद अमेरिका और इग्लैंड के संस्थान बनते थे, वहीं अब जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की ओर भी वे उड़ान भर रहे हैं। मतलब साफ है कि विभिन्न देशों में पढ़ाई के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है। जहां जर्मनी में पढ़़ने के लिए 2004 में औसतन 1000 छात्र जाया करते थे, वहीं 2006-07 में यह संख्या बढ़़कर 4000 हो गई। ब्रिटेन में पढ़़ने वाले युवा/युवतियोें की संख्या वर्तमान में करीब 23,000 है। 1994 में ऑस्ट्र्रेलिया के लिएजहां 273 वीजा जारी किए गए, वहीं 2006 में इस संख्या में 36 गुना बढ़ोतरी हो गई। सिंगापुर, न्यूजीलैंड, आयरलैंड, रूस, फ्रांस, दुबई जैसे देशों में भी भारतीय छात्रोंं की संख्या लगातार बढ़़ रही है। मेडिसिन और इंजीनियरिंंग के छात्रों के लिए रूस पहली पसंद बन गया हैै। वहां की स्टेेट मेडिकल यूनिवçर्सटी जैसे कि पिट्स्ाबर्ग, साराटोव ने भारतीय छात्रों के लिए 30 प्रतिशत सीटेें बढ़ा दी हैंै।
ब्रेन ड्रेन बनाम ब्रेन गेन
कभी हमारे देश के नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षण केंद्रों में विदेश से विद्याथीü शिक्षा ग्रहण करने आते थे, लेकिन अब यह चक्र बदल गया है और अब भारत के छात्र विदेश का रुख कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि भारत में अच्छी शिक्षा उपलब्ध नहीं है। सच तो यह है कि आज भारत के कई संस्थान विश्व पटल पर अपनी विशिष्ट पहचान बना रहेे हैैं। अभी हाल में ही `टाइम्स हायर एजुकेेशन सप्लीमेंट´ की ओर से करवाए गए सवेüक्षण में विश्व के टॉप 200 विश्वविद्यालयों में भारत के चार अग्रणी शिक्षण संस्थानों को जगह दी गई। सवोüच्च संस्थानों की इस रैंकिंग में आईआईटी को 57वां स्थान दिया गया है, जबकि आईआईएम 68वें नंबर पर हैै। जेएनयू को इस सूची में 183वें स्थान पर रहा, जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। तकनीक संस्थानों की लिस्ट में मैसाचुसेट््स इंस्टीट्यूट ऑफ टेेक्नोलòाजी, यूनिवçर्सटी ऑफ कैलीफोनिüया, बर्कले के बाद आईआईटी तीसरे नंबर पर है। श्रेष्ठ कला और मानविकी में डीयू को 75वां स्थान मिला है।
लेकिन भारत में उच्च गुणवत्ता वाले इन शिक्षण संस्थानों की संख्या सीमित है। ऐसे में, छात्रों के सामने विकल्पों की कमी है। इसके अलावा भारत में कई कोसोंü, जैसे बायोटेेक्नोलॉजी, नैनोेटेक्नोलॉजी, बायोइंफोüमेटिक्स, रोबोटिक्स जैसे पाठKक्रमों से जुड़़ेे विश्व स्तर के संस्थान नहीं हैं। ऐसे में उन्हें मजबूरी में विदेश का रुख करना पड़ रहा है।
विदेश मेंं रह रहेे भारतीयों द्वारा काफी मात्रा मेंं पैसा हमारेे मुल्क भ्ोजा जाता हैै। वहींं कुुछ भारतीय विदेशोंं से पैसा कमाने के बाद भारत मेंं आकर अपने व्यवसाय की शुरुआत करते हैैं। देश के लिएपूंजी और विकास कार्य की नजर से यह एक बड़ी उपलçब्ध है। उदाहरण के लिए माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में जानी-मानी हस्ती विक्रम अकूला येल यूनिवçर्सटी से मास्टर ऑफ साइंस करने के बाद अपने ज्ञान से भारत को लाभान्वित कर रहे हैं।
सहूलियतें बढ़ीं
असल में, अब विदेशी शिक्षा पहले की तुलना में आसान भी हुई हैै। कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों में एमबीए कोर्स दो वष्ाü की बजाय एक वष्ाü के होते हैं। इससे छात्रों के समय की बचत होती है। इसके अलावा जहां पहले विदेशी यूनिवçर्सटी में छात्रोंं पर इस बात की बंदिश थी कि वे पढ़़ाई केे दौरान कोई पार्ट टाइम जॉब नहीं कर सकते, वहां अब ऐसी कोई रोक नहीं है।
ऐसे में, अब विद्याथीü पढ़़ाई करने के साथ कॉल सेंटर जैसी पार्टü टाइम जॉब करके अपना जेब खर्च निकाल रहे हैं। इससे पढ़ाई के खर्चे वहन करने में आसानी होती है। पहले जहां किसी विदेशी यूनिवçर्सटी में दाखिले केे लिए आपके नंबरों को आधार बनाया जाता था, वहीं अब आपकी संपूर्ण योग्यता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।
आसान कानूनी प्रक्रिया
एक जमाना था, जब वीजा पाने के लिए आपको लंबी कतारों में घंटों इंतजार करना पड़़ता था, फिर कहीं जाकर आपको वीजा मिलता था। लेकिन अब हालात बदले हैं, वीजा पाने की प्रक्रियाएं पहले की तुलना में अब आसान हुई हैं। पढ़ाई के उद्देश्य से विदेश जाने वालों के लिए खास तौर पर एफ और जे वीजा उपलब्ध हैं।
प्रॉब्लम नहीं पैसा
कुुछ वर्ष पहले तक केवल धनाड््य लोग ही अपने बच्चों को पढ़़ाई के लिए विदेश भ्ोज पाने में सक्षम थे। लेकिन अब बैंंकों की लोन सुविधा ने सबकी राह आसान कर दी है। 2004-05 के बजट में शिक्षा के लिए लोन की सीमा चार लाख से बढ़़ाकर 7.5 लाख रुपये कर दी गई। जल्द ही आरबीआई ने इसे बढ़़ाकर 15 लाख रुपये कर दिया। इसे चुकाने के लिए पांच से सातवष्ाü की समय-सीमा दे दी गई है। लोन की ईएमआई भी तब ही शुरू होगी, जब आप जॉòब्ा में हों या फिर आपका कोर्स समाप्त हो चुका हो।
माकेüट सपोर्ट
युवा एक बड़़ा बाजार बनते जा रहेे हैं। ऐसे में हर कोई इस वर्ग पर कब्जा करना चाहता हैै। वर्तमान में विदेशी शिक्षा के प्रति छात्रों के बढ़़ते लगाव को देखते हुुए माकेüट इसे भुनाने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहता। अभी हाल ही में जेेट एअरवेज ने पढ़़ाई के लिए विदेश जाने वालों के लिए किराए में छूट देने की घोष्ाणा की हैै। एनडीटीवी ने भी टैैलेंट खोज प्रोगाम केे जरिये चुने गए पांच छात्रों को विदेश भ्ोजने की घोष्ाणा की है।
हमारेे देश में करीब 300 विश्वविद्यालय और 15,600 कॉलेज हैं। इनमेंे 25 लाख छात्र प्रतिवष्ाü शिक्षा ग्रहण करते हैंै। हमारे देश से हर साल 3,50,000 इंजीनियरिंंग की पढ़़ाई पूरी करते हंैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी हैै कि विदेशी शिक्षा के नाम पर छात्रोंं का çक्वट इंडिया मूवमेंट क्यों?
संतोष की बात यह है कि पहले जहां विदेश में शिक्षा ग्रहण करने गए छात्र वहीं अपना बसेरा बना लिया करते थे, अब वे अपने वतन लौट रहे हैं और इसकी गवाही सिलिकॉन वैली में काम कर रहे हजारों पेशेवर दे रहे हैं।
सफल शिक्षक वह है, जो विद्याçथüयों में रचनात्मक सोच को बढ़ावा देने, कौशल विकसित करने और साथ ही जीवन भर सीखने की प्रवृत्ति पैदा करने में कामयाब हो। शिक्षण एक महान कार्यक्षेत्र है। इसे छात्रों के भाग्य का निर्माण करने की क्षमता रखने वाला कार्यक्षेत्र समझा जाता है। प्रशासक, डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर और अन्य सभी व्यवसायी एक सक्षम शिक्षण व्यवस्था की गौरवशाली परिणति होते हैं। जहां तक अनुभव, ज्ञान और भावनात्मक संतुष्टि का संबंध है, शिक्षण कार्य स्वत: फल देने वाला है। इस पेशे में आप चंूकि युवाओं के बीच रहते हैं, इसलिए काम करके धन अर्जित करने के साथ-साथ अपने को हमेशा युवा भी महसूस करते हैं। टीचिंग में भी आपके लिए अनेक विकल्प हैं। आप प्री-प्राइमरी एजुकेशन, प्राइमरी एजुकेशन, स्कूल स्तर की शिक्षा, सब्जेक्ट के अनुसार टीचिंग, जनरल टीचिंग, फिजिकल एजुकेशन आदि में से चयन कर सकते हैं।
सबको मिले प्राथमिक शिक्षा, हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य है। इसीलिए अधिक से अधिक प्राथमिक शिक्षकों की भतीü पर जोर है। प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण और प्राथमिक शिक्षण में अवसरों पर दुगाü प्रसाद पांडेय का आलेख
देश में अध्यापकों की लाखों की संख्या में आवश्यकता है। आज की तारीख में हजारों पद खाली पड़े हैं। जितनी जल्दी हो सके, देश में सौ प्रतिशत साक्षरता हासिल करने का सरकार का लक्ष्य है। इसलिए खासकर प्राथमिक शिक्षक के रूप में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।
प्राइमरी शिक्षक के तौर पर कुछ प्रमुख कार्यक्षेत्र निम्न प्रकार से हैं-
प्री. प्राइमरी / एनटीटी टीचर
ये शिक्षक नर्सरी अथवा किंडरगार्टन कक्षाओं के विद्याçथüयों को पढ़ाते हैं। ये शिक्षा की मोंटेसर या खेल पद्धति अपनाते हैं। उन्हें अपने विद्याçथüयों में आज्ञाकारिता, स्वच्छता, समय की पाबंदी और परस्पर सहयोग की भावना विकसित करने पर बल देना होता है। आमतौर पर एक ही अध्यापक स्कूल में पूरा दिन विद्याçथüयों के एक समूह को पढ़ाने का दायित्व निभाता है। उसे इन विद्याçथüयों द्वारा की गई विभिन्न गतिविधियों पर निगरानी रखनी होती है।
प्राइमरी स्कूल टीचर
प्राथमिक स्कूल शिक्षक प्राइमरी कक्षाओं यानी कक्षा एक से कक्षा पांच तक के बच्चों को पढ़ाता है। उसे परीक्षणों और परीक्षाओं के आयोजन तथा परीक्षा परिणाम तैयार करने जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभाने होते हैं।
प्रशिक्षण
प्राथमिक/नर्सरी शिक्षक बनने के लिए आपको एक या दो वष्ाü का विशेष्ा प्रशिक्षण प्राप्त करना होता है, जिसके लिए प्रत्येक राज्य द्वारा पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है, जैसे उत्तर प्रदेश द्वारा बीटीसी, दिल्ली द्वारा जेबीटी और एनसीईआरटी द्वारा ईटीसी अन्य राज्यों में भी इसी तरह के प्रोग्राम संचालित किए जाते हैं।
इन संस्थानों में प्रशिक्षण के लिए जिला स्तर पर सामूहिक परीक्षा का आयोजन किया जाता है, जिसमें लिखित परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इसको उत्तीर्ण करने के बाद इन संस्थानों में प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें आपको स्कूल में छात्रों को पढ़ाने से लेकर उनको कंट्रोल करने जैसे कार्य में दक्ष बनने की सीख दी जाती है। इसमें अध्यापन के साथ-साथ प्रोजेक्ट वर्क भी करने होते हैं। दो वष्ाü के प्रशिक्षण के बाद आप किसी भी स्कूल में नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं।
जेबीटी और ईटीसी
जेबीटी और ईटीसी दो वष्ाीüय डिप्लोमा पाठ्यक्रम हैं। इसमें प्रवेश के लिए उम्मीदवार को 50 प्रतिशत के साथ 12वीं उत्तीüण होना आवश्यक है। गौरतलब है कि अभ्यथीü ने बारहवीं की यह परीक्षा दिल्ली के विद्यालय से ही उतीर्ण की हो। इसमें प्रवेश के लिए उम्मीदवार की आयु 17 से 30 वष्ाü के बीच होनी चाहिए। इसमें चयन प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार के आधार पर होता है। दिल्ली में 9 डाएट्स हैं तथा चार प्राइवेट संस्थान हैं, जो एनसीईआरटी से मान्यता प्राप्त हैं। प्राइवेट संस्थानों में सिर्फ महिलाओं को प्रवेश मिलता है, शेष 9 डाएट्स सहशिक्षा के हैं।
पता है :
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन, बाबा फूल सिंह मार्ग, पुराना राजेंद्र नगर, नई दिल्ली-60
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, केशवपुरम दिल्ली-36
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, मोती बाग, नई दिल्ली।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट कड़कड़डूमा इंस्टीट्यूटशनल एरिया, दिल्ली।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, दरिया गंज, दिल्ली।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, घुम्मनहेड़ा, दिल्ली।
-डिस्टिक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, एफ.यू. ब्लॉक पीतमपुरा, दिल्ली।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग सेंटर, भोलानाथ नगर, शाहदरा, दिल्ली।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, आर के पुरम, सेक्टर सात, नई दिल्ली।
बीटीसी
बीटीसी दो वष्ाीüय डिप्लोमा पाठ्यक्रम है। इसमें प्रवेश के लिए उम्मीदवार को 50 प्रतिशत के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है। गौरतलब है कि अभ्यथीü उत्तर प्रदेश का मूल निवासी हो या यह परीक्षा उत्तर प्रदेश से çस्थति विद्यालय से ही उतीर्ण की हो। इसमें प्रवेश के लिए उम्मीदवार की आयु 17 से 30 वष्ाü के बीच होनी चाहिए। इसमें प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार के आधार पर होता है। यह प्रकिया लगभग सभी राज्यों में अपनाई जाती है।
अधिक जानकारी : इसके लिए जिला के बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से संपर्क करके जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
-अलीगढ़ मुस्ालिम विश्वविद्यालय, डिपार्टमेंट आफ एजुकेशन अलीगढ़
-फोर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, ग्रीन पार्क, मवाना रोड, मेरठ।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, विवेक नगर, सीतापुर।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, गोरखपुर।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, भाग्ाौन , मैनपुरी।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, फरीदपुर, बरेली।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, फतेहपुर।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, छत्रामऊ, फरुüखाबाद।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, नगलाअमन, फिरोजाबाद।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, गवनüमेंट स्कूल प्रयागपुर, बहराइच।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, सरकारी स्कूल, हापुड़, गाजियाबाद।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, सरकारी स्कूल, नरवाल, कानपुर।
यह ट्रेनिंग सेंटर सभी जिले के मुख्यालय पर çस्थत हैं।
उत्तराखंड
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, आर आई, एजुकेशन, अल्मोड़ा।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, गढ़वाल, पौढ़ी।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, चमोली।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, सरकारी स्कूल भीमताल, नैनीताल।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, सरकारी स्कूल पिथौरागढ़।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, सरकारी स्कूल-2, सुभाष्ा रोड, देहरादून।
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ट्रेनिंग, सरकारी स्कूल, रुड़की, हरिद्वार
-डिस्टि्रक इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन टं्रेनिग, बरकोट उत्तर, काशी।
व्यक्तिगत योग्यता
शिक्षक बनने वाले व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि उसमें विभिन्न वातावरणों से सामंजस्य करने की क्षमता, स्पष्ट अभिव्यक्ति, औसत से ऊपर बुद्धिमता, सीखने और अध्ययन करने की प्रवृत्ति, आत्म-अनुशासन, विनोदी स्वभाव और निष्पक्षता, अनुकूलन और शिक्षण विष्ाय की समग्र जानकारी आदि गुण हों। प्राथमिक शिक्षक के लिए तो संवेदनशीलता का गुण बहुत ही आवश्यक है। इस कार्य के दौरान आपको नन्हे बच्चों से ही व्यवहार करना होता है। एक श्रेष्ठ प्राथमिक शिक्षक तभी बन पाते हैं, जब आप बच्चों के मन को समझ भी सकें यानी संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।
अवसर
देश के हर राज्य में सभी जिलों में प्राइमरी स्कूल्स हैं, जहां पर अध्यापकों की आवश्यकता होती है। साथ निजी स्कूलों में भी प्रशिक्षित अध्यापकों की मांग बढ़ती जा रही हैं। ऐेसे में, अगर आप बीटीसी, ईटीसी या बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त करते है, तो आपका भविष्य सुरक्षित मान लिया जाता है।
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">भारत का शेयर बाजार
इस समय पूरी दुनिया में सबसे शानदार नतीजे दे रहा है। यही वजह है कि न
सिर्फ निवेशक बल्कि करियर की तलाश में लगे युवा भी शेयर बाजार की तरफ
आकर्षित हो रहे हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">अभी
कुछ दशकों पहले तक सिर्फ मुंबई, कोलकाता, दिल्ली के शेयर बाजारों की ही
चर्चा होती थी। जबकि आज देश के हर महानगर में शेयर बाजार है और इन सभी
स्टॉक एक्सचेंजों में अच्छी-खासी ट्रेडिंग भी हो रही है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">शेयर
बाजार में कई तरह के चमकदार करियर मौजूद हैं। मसलन, इकोनॉमिस्ट,
एकाउंटेंट, फाइनेंशियल एनालिस्ट, इन्वेस्ट एनालिस्ट, कैपिटल मार्केट
एनालिस्ट, फ्यूचर प्लानर्स, सिक्योरिटी एनालिस्ट, इक्विटी एनालिस्ट वगैरह।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">शेयर
बाजार में सबसे महत्वपूर्ण शख्स होता है स्टॉक ब्रोकर। यह कमीशन लेकर किसी
व्यक्ति या संस्था के लिए सिक्योरिटीज खरीदने का काम करता है। आम भाषा में
इसे शेयर दलाल भी कहते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">चूँकि
पूँजी बाजार के जटिल चरित्र को समझना, उसकी भविष्यवाणी करना और इस
भविष्यवाणी के आधार पर नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर खरीद-फरोख्त करना, यह
काम दक्षता तो माँगता ही है, अतिरिक्त मानसिक सजगता और एक खास किस्म की
सिक्स्थ सेंस की भी दरकार रखता है। इसलिए स्टॉक ब्रोकर बनने के लिए शेयर
बाजार में रुचि, काम में लगन तो होना ही चाहिए। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">अर्थव्यवस्था
की तथ्यात्मक जानकारी के अलावा देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक
संदर्भों की संवेदनशील समझ होनी जरूरी है। कुछ स्टॉक ब्रोकर निजी ग्राहकों
के लिए काम करना पसंद करते हैं तो कुछ विभिन्न संस्थाओं के साथ जुड़कर उनके
लिए काम करते हैं। ऐसे शेयर ब्रोकर जो संस्थाओं के लिए काम करते हैं,
उन्हें सिक्योरिटी ट्रेडर भी कहा जाता है। कुछ ब्रोकर वित्तीय संस्थाओं के
लिए कंसल्टेंसी का भी काम करते हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">संस्थाओं
के लिए सिक्योरिटी खरीदने-बेचने वाले स्टॉक ब्रोकर कमीशन के आधार पर काम
करते हैं। यही तरीका निजी ग्राहकों के साथ भी अपनाया जाता है। हाँ, जो
स्टॉक ब्रोकर किसी वित्तीय संस्था के लिए कंसल्टेंसी का काम करता है, उसे
जरूर एक निश्चित तनख्वाह मिलती है।<br><br></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जहाँ तक न्यूनतम और
अधिकतम आय का प्रश्न है, तो किसी भी शेयर ब्रोकर की न्यूनतम आय 10 हजार
रु. प्रतिमाह से ज्यादा होती है और अधिकतम की कोई सीमा नहीं होती। स्टॉक
ब्रोकर की तरह सिक्योरिटी एनालास्टि जैसे प्रोफेशनल्स की भी माँग बड़ी तेजी
से बढ़ रही हैं, क्योंकि शेयर बाजार हमेशा लाभ ही नहीं देता। कई बार निवेशक
गच्चा भी खा जाते हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">सिक्योरिटी
विश्लेषक दरअसल इस रिस्क फैक्टर का विश्लेषण करता है इसलिए उसकी गाइड लाइन
पर होने वाले निवेश में नुकसान की न्यूनतम आशंकाएँ रहती हैं। इसी वजह से
विभिन्न कंपनियाँ जो अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश करती हैं, सिक्योरिटी
एनालिस्ट की सेवाएँ लेती हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">ये
सिक्योरिटी एनालिस्ट अपने निष्कर्ष निकालने के लिए बाजार को अपनी
साइंटिफिक कसौटी में अलग-अलग ढंग से कसते हैं और बाजार में फायदे-नुकसान
की भविष्यवाणी करते हैं। एक आम सिक्योरिटी एनालिस्ट की आय 10 से 15 हजार
रुपए न्यूनतम होती है। यहाँ भी अधिकतम की कोई सीमा नहीं है। जो सिक्योरिटी
एनालिस्ट जितना सटीक विश्लेषण करता है, उसकी मार्केट वेल्यू उतनी ही
ज्यादा होती है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">शेयर
बाजार का एक और महत्वपूर्ण शख्स है इक्विटी एनालिस्ट। यह भारतीय कैपिटल
मार्केट के विकास और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते पैदा हुआ नया प्रोफेशनल
है। इक्विटी एनालिस्ट किसी व्यक्ति या संस्था को वित्तीय निवेश के बारे
में राय देते हैं। ऐसे समय में जब बाजार की शक्तियाँ प्रभावी भूमिका निभा
रही हों, यानी जब बाजार बनावटी तेजी या बनावटी मंदी का शिकार हो, उस समय
इक्विटी एनालिस्ट ही निवेशक को बताते हैं कि उन्हें निवेश करना चाहिए या
नहीं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">शेयर
बाजार के अन्य महत्वपूर्ण मानव संसाधनों में इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट,
सिक्योरिटी रिप्रजेंटेटिव तथा एकाउंट एक्जीक्यूटिव भी हैं। इन सबके लिए भी
मूलतः शेयर बाजार की समझ, उसकी भविष्य की चाल और उसके प्रबंधन की जानकारी
का होना जरूरी है।<br><br></font></html>
प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित हो चुका है। अब सिविल सेवा परीक्षा का अगला चरण मुख्य परीक्षा है। जाहिर है अब तक आपने मुख्य परीक्षा के पाठ्यक्रम के अधिकांश हिस्से की तैयारी कर ली होगी और बाकी बचे समय में शेष हिस्से की तैयारी कर लेंगे। लेकिन मुख्य परीक्षा के पूर्व यह जान लेना जरूरी है कि इस परीक्षा की प्रकृति कैसी है और संघ लोक सेवा आयोग इस परीक्षा के माध्यम से अभ्यर्थियों में किन गुणों की तलाश करना चाहता है। साथ ही, यह भी जानना जरूरी है कि मुख्य परीक्षा प्रारंभिक परीक्षा से कैसे भिन्न है, ताकि स्पष्ट रूप से ज्ञात हो सके कि मुख्य परीक्षा में करना क्या है।
प्रिलिमिनरी से क्या अलग है
मुख्य परीक्षा कई लिहाज से प्रारंभिक परीक्षा से भिन्न होती है। मुख्य परीक्षा में सही विकल्प का चुनाव करने और उसे ओएमआर शीट में चित्रित करने के बजाय परीक्षार्थियों को एक शब्द सीमा एवं समय सीमा का ध्यान रखते हुए विस्तृत उत्तर लिखने पड़ते हैं। प्रारंभिक परीक्षा के लिए जहां तथ्यों, आंकड़ों आदि को याद रखना होता है, वहीं मुख्य परीक्षा के लिए पढ़ी गई विषय वस्तुओं का विश्लेषण और अपना विचार देना अहम होता है। संघ लोक सेवा आयोग अभ्यर्थियों से यह आशा करता है कि उन्होंने किसी विषय का गहन विश्लेषण किया होगा और उसके बारे में अपने विचार विकसित किए होंगे। इसलिए प्रवेशार्थियों को मुख्य परीक्षा की तैयारी के दौरान हर विषय पर अपने विचार या व्यू पॉइंट विकसित करते रहना चाहिए।
मुख्य परीक्षा के लिए कैसे पढ़ें
यहां एक सवाल उठता है कि मुख्य परीक्षा के लिए पढ़ा कैसे जाए। `जहां तक संभव हो, ज्यादा-से-ज्यादा पढ़ें।´ ऐसा सिर्फ प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी के लिए कहा जाता है। लेकिन मुख्य परीक्षा के लिए समग्र अध्ययन के बदले चयनात्मक अध्ययन करना ज्यादा फायदेमंद होता है। खासकर वैकçल्पक विषयों की तैयारी के दौरान पिछले वर्ष के प्रश्न पत्रों के आधार पर प्रश्नों का बुद्धिमानी के साथ गेस तैयार करें। लेकिन ध्यान रखें ऐसा करते समय पाठ्यक्रम के 60 से 70 प्रतिशत हिस्से को जरूर कवर करें। मुख्य परीक्षा की तैयारी यदि नीचे दी गई `पीक्यूआरटूडब्ल्यू´ तकनीक के आधार पर किया जाए, तो लाभदायक होगा।
पी: परपसपफुल रीडिंग
परीक्षार्थियों को यह ज्ञात होना चाहिए कि वे अध्ययन किस परपस या उद्देश्य के लिए कर रहे हैं। यह सोचना जरूरी है कि किसी टॉपिक या पुस्तक का अध्ययन महज ज्ञान के लिए किया जाना है या उसका उद्देश्य मुख्य परीक्षा में बेहतर कर सिविल सेवा परीक्षा के अगले चरण में पहंुचना है। ऐसे कई अभ्यर्थियों का उदाहरण मिलता है, जो एक वैकçल्पक विषय पर पुस्तकों का ढेर लगा देते हैं। इतना ही नहीं, वे उन पुस्तकों को पढ़ते भी हैं, लेकिन उनका अध्ययन दिशाहीन होने की वजह से अंतत: सिविल सेवा परीक्षा में सफल नहीं हो पाते। इसलिए जो कुछ भी पढ़ें, एक स्पष्ट उद्देश्य के साथ पढे़ं।
क्यू : क्वेश्चन बेस्ड रीडिंग
किसी भी टॉपिक पर अध्ययन करने से पहले उस पर पिछले वर्षों के दौरान आए प्रश्नों और इस वर्ष के लिए संभावित प्रश्नों की एक लिस्ट बना लें। इसके बाद आप निर्धारित करें कि इन प्रश्नों के जवाब के लिए आपको क्या और कैसे तैयारी करनी चाहिए।
आर : रिफ्लेçक्टंग आफ्टर रीडिंग
इसका आशय यह है कि आप, जो कुछ भी पढ़ें, वह आपके मन में रिफ्लेक्ट अवश्य हो। आप जो पढे़ं, उसका मन में विश्लेषण अवश्य करें और सभी बिंदुओं को प्रश्नों की जरूरत के अनुसार सॉल्व करें।
आर : रिवाइज रेगुलरली
जो कुछ भी पढे़ं, उसे एक नियमित अंतराल पर दोहराएं जरूर। इससे आपकी याददाश्त में बढ़ोतरी होती है।
डब्ल्यू: राइटिंग स्किल
कहा जाता है कि मुख्य परीक्षा में सफलता पढ़ने से ज्यादा सोचने, अथाüत विश्लेषण करने और सोचने से ज्यादा लिखने पर निर्भर करती है। इसलिए बराबर लेखन-अभ्यास करते रहें। जो कुछ लिखें, वह सुस्पष्ट, सरल और टु-द-पॉइंट हो। प्रश्नों की भाषा पर विशेष रूप से ध्यान दें और देखें कि प्रश्न में क्या करने को कहा जा रहा है। उत्तर लिखने से पहले प्रश्न के मंतव्य को अच्छी तरह समझने का प्रयास करें। कहीं ऐसा न हो कि प्रश्न में पूछा कुछ और गया हो और आप उसी विषय पर कोई रटा-रटाया उत्तर लिख रहे हों। इससे अच्छे अंक प्राप्त होने की संभावना काफी कम होती है।
मुख्य परीक्षा में ज्ञान के अलावा विषय एवं समस्याओं से संबंधित समझ बनाने, उस पर अपनी मौलिक धारणा विकसित करने एवं इन सबको सही समय पर अभिव्यक्त करने की आवश्यकता होती है। इन सबकी अभिव्यक्ति लेखन के माध्यम से ही संभव होती है। इन सबके लिए सारगçर्भत एवं प्रासंगिक उत्तर लिखना इस परीक्षा की सबसे जरूरी मांग है। इसमें हमेशा मौलिकता तथा अभिव्यक्ति के स्वाभाविक ढंग से दिए गए उत्तरों को महत्व दिया जाता है। किसी भी विषय या टॉपिक को पढ़ें, उसे समझें और तत्पश्चात उस पर अपनी धारणा विकसित करें। आपकी समझ और धारणा ही आपके उत्तर को मौलिक बनाएगी और एक मौलिक उत्तर ही आपको अन्य अभ्यर्थियों से अधिक अंक दिलाएगा। लेखन के दौरान हमेशा इस बात का ध्यान हो कि `क्या लिखना चाहिए´ और इससे भी ज्यादा जरूरी इस बात का ध्यान रखना होता है कि `क्या नहीं लिखना चाहिए´। नकारात्मक दृष्टिकोण से की गई प्रस्तुति परीक्षक का आपके प्रति नजरिया भी बदल देती है। मुख्य परीक्षा में लेखन के माध्यम से ही आपका ज्ञान, आपकी समझ व सोच तथा किसी विषय पर आपकी धारणा अभिव्यक्त होती है। रटे-रटाए उत्तर में किसी विषय पर आपकी सोच और आपके व्यक्तित्व की झलक नहीं मिलेगी, उससे तो एक औसत दजेü के व्यक्तित्व का ही प्रतिबिंब दिखाई देगा। अत: इस परीक्षा में मौलिक होना अति आवश्यक है।
किसी भी कंपनी के सही प्रबंधन के लिए कंपनी सेक्रेटरी अति आवश्यक है। कंपनी सेक्रेटरी के काम में इतनी विविधता होती है कि उसे बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के उपयुक्त ढंग से अंजाम दे पाना कठिन है। वह कंपनी, उसके बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स, शेयरहोल्डर्स और सरकारी और नियामक इकाइयों के बीच एक सूत्र की तरह काम करता है। कंपनी सेके्रटरी अपनी फर्म के लिए कॉरपोरेट योजनाएं बनाता है और स्ट्रैटेजिक मैनेजर की तरह भी काम करता है। इन सभी कायोZ के अलावा वह फाइनेन्स, अकाउंट्स, लीगल, पर्सनेल और एडमिनिस्ट्रेटिव फंक्शन्स भी देखता है। सेंट्रल/स्टेट सेल्स टैक्स, एक्साइज लॉ, लेबर लॉ और कॉरपोरेट लॉ आदि से संबंधित कंपनी की गतिविधियों में भी कंपनी सेक्रेटरी का दखल होता है। अगर आप सीएस का कोर्स कर चुके हैं, तो इतना जान लीजिए कि इतने सारे और विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्य आपके लिए मुश्किल नहीं हैं।
कोर्स
पांच साल के इस कोर्स में आपको कंपनी संबंधी कार्य और कंप्यूटर से संबंधित सारी जानकारियां दी जाती हैं। यह कोर्स बारहवीं के बाद भी हो सकता है और ग्रैजुएशन के बाद भी। बारहवीं के बाद आपको पहले फाउंडेशन कोर्स पूरा करना पड़ेगा, जिसकी अवधि आठ महीने की होती है। ग्रैजुएशन के बाद आपको फाउंडेशन कोर्स पूरा करने की कोई जरूरत नहीं होती है। लेकिन यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कितने सालों में पूरा करते हैं। ग्रैजुएट विद्यार्थी इसे अपनी काबिलियत पर ढाई वर्ष में भी पूरा कर सकता है। वैसे इस कोर्स की वैलिडिटी पांच साल की होती है, और जो विद्यार्थी इसे पांच साल में भी पूरा नहीं कर पाते हैं, वे उसे बाद में रिन्यू करा सकते हैं।
योग्यता
कंपनी सेके्रटरी का कोर्स इंस्टीटKूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया के माध्यम से छात्रों के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है।
इस कोर्स को तीन मुख्य भागों में बांटा गया है-फाउंडेशन, इंटरमीडिएट और फाइनल। फाइन आट्र्स के छात्रों को छोड़कर किसी भी ब्रांच से ग्रैजुएट या पोस्टग्रैजुएट या आईसीडब्लूएआई या आईसीएआई या इंस्टीटKूट काउंसिल की ओर से मान्यताप्राप्त किसी भी संस्थान से अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण छात्र संस्थान के इंटरमीडिएट कोर्स में सीधे प्रवेश ले सकते हैं। इंटरमीडिएट कोर्स उत्तीर्ण कर लेने केबाद फाइनल कोर्स केलिए अप्लाई कर सकते हैं।
प्रवेश
सेमेस्टर के आधार पर साल में दो बार (जून और दिसंबर महीने में) आप अपना दाखिला करा सकते हैं। लेकिन इसके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि प्रवेश करने के लिए दस महीने पहले रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। रजिस्ट्रेशन के दस महीने बाद एग्जामिनेशन होता है। अगर आप मार्च 2007 में अपना रजिस्ट्रेशन कराते हैं, तो आपका इसी वर्ष दिसंबर में पेपर होगा, लेकिन अगर आप अपना रजिस्ट्रेशन सितंबर में कराते हैं, तो आपका पेपर अगले वर्ष जून में होगा। फाउंडेशन में आपके एडमिशन की मान्यता तीन वर्ष तक रहती है।
अवसर
सीएस के विद्यार्थियों के लिए एक बड़ी सहूलियत की बात यह है कि हेडक्वार्टर और रीजनल ऑफिस उनके लिए बहुत सारे अवसर उपलब्ध कराते हैं। इंटरमीडिएट या फाइनल पास विद्यार्थियों की नियुक्ति में भी वे बढ़-चढ़कर सहयोग करते हैं। ये संस्थान बहुत सी कंपनियों में अपने स्टूडेंट का नाम खुद ही प्रस्तावित करते हैं। सीएस करने के बाद आप इस विषय में लेक्चरर के लिए भी अप्लाई कर सकते हैं। सीएस के विद्यार्थियों के लिए अवसरों की कमी नहीं है। तब तो और, जबं भूमंडलीकरण के रास्ते देश में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने पांव पसार रही हैं।ेआईसीएसआई पोस्ट मेंबरशिप क्वालिफिकेशन (पीएमक्यू) कोर्स भी शुरू करने जा रहा है। खासकर कैपिटल मार्किट और फाइनेçन्शयल सçर्वस में।
विनीता झा
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इन दिनों स्पोर्ट्स
मैनेजमेंट के रूप में करियर बनाने की होड़-सी मची हुई है। जिस तरह से
फिल्मी सितारे अपने करियर को गति प्रदान करने के लिए सेक्रेटरियों को
नियुक्त करते हैं, उसी तर्ज पर लोकप्रिय खिलाड़ी भी अपने लिए अलग से
स्पोर्ट्स मैनेजर रखने लगे हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इन
मैनेजरों का काम उनके ग्राहकों का टाइम टेबल बनाना, उनके करियर को आगे
बढ़ाने की गतिविधियों को देखना और मीडिया तथा पब्लिक रिलेशंस जैसे काम
देखना भी है। यदि बतौर खिलाड़ी आपका करियर थम गया हो या आपमे खेल भावना हो,
लेकिन आप राष्ट्रीय स्तरतक नहीं पहुँच पाए हैं तो आप एमबीए कर स्पोर्ट्स
मैनेजर के रूप में सफलता के झंडे गाड़ सकते हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>कई मैदान में मार सकते हैं बाज</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ी</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जिनकी
संप्रेषण कला अच्छी हो, वह संजय मांजरेकर, रवि शास्त्री और हर्ष भोगले की
तरह नाम कमा सकते हैं। खेल के मैदान में रनिंग कमेंटरी कर सकते हैं या
स्पोर्ट्स जर्नलिज्म का पेशा अपना सकते हैं।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> <div class="innerBlock_Right"><br></div><!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">टीवी,
समाचार पत्र या पत्रिकाओं के खेल स्तंभों को सजा सकते हैं या स्टार
स्पोर्ट्स, इएसपीएन, टेन स्पोर्ट्स तथा डीडी स्पोर्ट्स पर अपनी चमक
बिखेर सकते हैं। यही </font><font style="font-size: 10pt;">नही</font><font style="font-size: 10pt;">ं,
वे कमेंटेटर, पे्रजेंटर, प्रोग्राम प्रोडयूसर, डायरेक्टर बन सकते हैं।
यानी कि खेल के क्षेत्र में कई खेल दिखा सकते हैं, लेकिन स्पोर्ट्स
मैनेजमेंट का काम सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित है। इस रूप में वे स्थापित
खिलाड़ियों पर अपना रंग जमाने में भी कामयाब होते हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>करियर कोर्स : स्पोर्ट्स मैनेजमें</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ट</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">आप
इस बात को कतई भी झुठला नहीं सकते कि अपने जीवन में आपको कभी भी किसी भी
खेल से प्यार नहीं रहा है । यह लगभग तय है कि हर इंसान के मन में एक
खिलाड़ी छिपकर बैठा रहता है। बचपन से ही हम किसी ख्यातिप्राप्त खिलाड़ी की
तरह बनना चाहते हैं, लेकिन किसी न किसी कारण से हमारी यह तमन्ना पूरी नहीं
हो पाती है, लेकिन हमारे मन में बैठा खिलाड़ी हमें खेलों से जोड़े रखता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जो
लोग खेल में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन मैदान में गोल नहीं या रनों की
बरसात नहीं कर पाए हैं, वे स्पोर्ट्स मैनेजमेंट को करियर बनाकर पैसों की
बरसात जरूर कर सकते है। इस क्षेत्र में वैसे तो अम्पायर, रेफरी, कोच और
इंस्ट्रक्टर भी बना जा सकता है, लेकिन उसके लिए मैदानी दमखम आवश्यक है। इन
सबसे अलग एक करियर जो आधुनिक जगत में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है, वह है
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>क्या है स्पोर्ट्स मैनेजमेंट?</i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">एक
तरह से देखा जाए तो स्पोर्ट्स मैनेजमेंट खेल तथा मार्केटिंग अथवा बिजनेस
का मिला-जुला रूप है। मैनेजमेंट वह क्रियाकलाप अथवा प्रबंधन कला है जो
टीमों, खेल संगठन तथा दफ्तर की देख-रेख करता है तथा उस पर नियंत्रण भी
रखता है। उसे यह सुनिश्चित करना होता है किखेलकूद की गतिविधियाँ निर्बाध
रूप से संपन्न हो।<br><br></font><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">स्पोर्ट्स
मैनेजमेंट वह डिसिप्लिनरी क्षेत्र है, जिसमें प्रबंधन, व्यावसायिक नेतृत्व
तथा टीम भावना के सिद्धांत एक साथ खेल पर लागू होते हैं। बतौर एक पेशे तथा
एक शैक्षणिक विषय के रूप में स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की परिधि में प्रोफेशनल
स्पोर्ट्स, रिक्रिएशनल स्पोर्ट्स, कॉलेज या यूनिवर्सिटी एथलेटिक्स,
हेल्थ क्लब, जिम्नेशियम, फिटनेस सेंटर स्पोर्ट्स फेसिलिटी मैनेजमेंट आदि
सब कुछ शामिल होता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">स्पोर्ट्स
मैनेजमेंट एक तरह से इंटर डिसिप्लिनरी क्षेत्र है, जिसमें खेल के साथ-साथ
अर्थशास्त्र, लेखा, मार्केटिंग, साइकोलॉजी, विधि तथा दूरसंचार जैसे
क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के पेशे में तीन
प्रमुख तत्व शामिल हैं जिन्हें इवेंट्स, खिलाड़ी (सेलिब्रिटी तथा नए
खिलाड़ी) तथा इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में पहचाना गया है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>क्या करते हैं स्पोर्ट्स मैनेजर?</i></b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">आमतौर
पर कोई भी स्पोर्ट्स मैनेजर इवेंट तैयार कर उसकी मार्केटिंग है। उन सारी
गतिविधियों का प्रबंधन करता है जो किसी खिलाड़ी को ब्राण्ड के रूप में
रूपांतरित करता है। उदाहरण के लिए टेनिस स्टार सानिया मिर्जा से जुड़ा
स्पोर्ट्स मैनेजर सानिया की पैकिंग और माक्रेटिंग के लिए इस तरह काम करता
है जैसे कि सानिया कोई खिलाड़ी नहीं बल्कि एक ब्रॉण्ड है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">यदि
आज सानिया इतनी चर्चित और लोकप्रिय है तो यह सब मीडिया के साथ उसके
पारस्परिक संबंधों के कारण संभव हुआ है और इन सब गतिविधियों में पर्दे के
पीछे रहने वाला शख्स और कोई नहीं सानिया का स्पोर्ट्स मैनेजर ही है !
इसका दूसरा उदाहरण इएसपीएन द्वारा अपनाई गई मार्केटिंग रणनीति है जिसे
उसने हॉकी के प्रमोशन के लिए अपनाई थी। इसके लिए उसने प्रीमियर हॉकी लीग
की शुरुआत की, इससे हॉकी का मार्केट कई गुना बढ़ गया है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>विशिष्ट क्षेत्</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">र</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">स्पोर्ट्स
मैनेजमेंट के क्षेत्र में केवल प्रबंधकीय कौशल ही काम नहीं आता है। इसके
साथ कुछ अन्य विशिष्ट क्षेत्र भी जुड़े हैं जिनमें स्पोर्ट्स मेडिसिन,
स्पोर्ट्स साइकोलॉजी, स्पोर्ट्स कॉमेंटरी तथा स्पोर्ट्स जर्नलिज्म भी
शामिल है। बतौर स्पोर्ट्स मैनेजर ये सभी दायित्व निभाना होते हैं। उसे
खिलाड़ी के मैचों के टाइमटेबल का भी ख्याल रखना होता है, उसे अपने
खिलाड़ियों की फिटनेस पर भी नजर रखनी पड़ती है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इसके
लिए चिकित्सकों और फिजियोथैरेपिस्ट से एपॉइंटमेंट, प्रेस और मीडिया से भी
संपर्क बनाए रखना पड़ता है। खेल अनुबंधों को भी देखना पड़ता है और विज्ञापन
तथा मार्केटिंग की रणनीति भी बनानी पड़ती है। वह बजट जैसा प्रशासकीय कार्य
भी देखता है और अन्य फाइनेंस तथा लॉजिस्टिक्स का काम भी देखता है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>पात्रत</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ा</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">स्पोर्ट्स
मैनेजर के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में पोस्ट
ग्रेजुएट डिप्लोमा है। इसे कोई भी स्नातक कर सकता है। यदि किसी ने फिजीकल
एजुकेशन में स्नातक उपाधि प्राप्त की हो तो उनके लिए स्पोर्ट्स मैनेजमेंट
का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा सोने पर सुहागा की तरह काम करता है।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>कोर्</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">स</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">देश
के विभिन्न विश्वविद्यालयों में स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के प्रोफेशनल कोर्स
उपलब्ध हैं। दो मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों द्वारा स्पोर्ट्स
मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा (पीजीडीएसएम) संचालित किए जाते
हैं। ये हैं-तमिलनाडु स्थित अलगप्पा यूनिवर्सिटी और इंदिरा गाँधी नेशनल
इंस्टीट्यूट </font><font style="font-size: 10pt;">ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ फिजीकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंस, नई दिल्ली। यह एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">कोलकाता
स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वेलफेयर एंड बिजनेस मैनेजमेंट द्वारा भी
पीजीडीएसएम पाठयक्रम संचालित किया जाता है। इसके अलावा कई विश्वविद्यालयों
में स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में अंडर ग्रेजुएट तथा पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स
संचालित किए जाते हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b><i>अवसर तथा संभावनाए</i></b></font><font style="color: rgb(0, 0, 0);">ँ</font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">देश-विदेश
में खेल प्रतियोगिताओं के लगातार आयोजन, टीवी पर स्पोर्ट्स चैनलों की
बढ़ती संख्या तथा खिलाड़ियों को प्रतिष्ठित कंपनियों द्वारा ब्रांड
एम्बेसेडर बनाए जाने की परंपरा ने स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के लिए जितनी अधिक
संभावनाएँ पैदा की हैं, उतने ही ज्यादा अवसर भी निर्मित हुए हैं। इसे
अपनाकर विभिन्न कंपनियों, सरकारी संगठनों, खेल आयोजकों, खेल पत्रिकाओं में
बतौर मैनेजर, एजेंट, प्रचारक के रूप में शानदार करियर बनाकर खिलाड़ियों की
तरह अच्छा पैसा कमाया जा सकता है।</font><br></html>
<html><span style="color: rgb(1, 0, 0);">( पाञ्चजन्य से, साभार )</span><br><br>सुमंगलम्-12<br>स्वदेशी तकनीकी संरक्षण एवं विकास<br>डा. बजरंग लाल गुप्ता<br>सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री, क्षेत्र संघचालक, उत्तर क्षेत्र, रा.स्व.संघ<br><br>--------------------------------------------------------------------------------------<br><br>भारत में उपयुक्त तकनोलाजी के विकास के लिए हमें दो दिशाओं में प्रयास करने होंगे-<br><br>1. देश में पहले से उपलब्ध परंपरागत तकनोलाजी में सुधार करना- देश के भावी विकास की दृष्टि से इस क्षेत्र में काफी बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं। भारत में बुनाई, जूता बनाने, बढ़ईगिरी, लोहारी, तेल निकालने वाली घानियों, बर्तन, चमड़ा जैसे वर्तमान ग्रामीण हस्तशिल्प एवं कुटीर उद्योग-धंधों में प्रयुक्त परंपरागत तकनीक को उन्नत करने की आवश्यकता है। इस दृष्टि से खुरजा (उ.प्र.) में बर्तन उद्योग की तकनीकी को उन्नत करने का सफल प्रयोग हुआ है। आज खुरजा के बर्तन देश और विदेश में काफी लोकप्रिय हुए हैं। इसी प्रकार के प्रयोग चिन्हट एवं गौरा (लखनऊ‚ के पास के गांव) तथा फूलपुर (इलाहाबाद के पास) में भी हुए हैं। इस प्रकार भारत के कस्बों एवं ग्रामीण क्षेत्र में चलने वाले कुटीर-धंधों एवं हस्तकलाओं का क्रमबद्ध अध्ययन करके विज्ञान एवं नवीन ज्ञान के आधार पर उनमें तकनीकी सुधार करके उत्पादकता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि की जा सकती है। इस प्रकार का प्रयास कम साधनों से अधिक उपयोगी साबित हो सकता है। भारत में खादी एवं ग्रामीण उद्योग कमीशन तथा कुछ व्यक्तियों जेसे कोयम्बतूर में बालसुंदरम्, सूरत में मोहन पारीख, पूना में मनीभाई देसाई, वर्धा में जन्नासाहेब सहस्त्रबुद्धे और गोंडा में नानाजी देशमुख द्वारा भी इस प्रकार के सफल प्रयोग हुए हैं।<br><br>2. आधुनिक तकनोलाजी को देशानुकूल बनाना- अन्य देशों में विकसित आधुनिक तकनोलाजी को हमारे देश की परिस्थितियों, आवश्यकताओं व साधनों के अनुरुप ढालना। विदेशी तकनोलाजी का सीधा हस्तांतरण एक खतरनाक प्रक्रिया है। अत: तकनोलाजी हस्तांतरण की बजाय हमें तकनोलाजी अनुकूल की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए। जिस प्रकार की किसी सर्जन द्वारा मानव शरीर में अंग प्रत्यारोपित को करने से पहले उत्तकों का मिलान किया जाता है, उसी प्रकार किसी बाहरी तकनोलाजी को ग्रहण करने से पहले यह देखना चाहिए कि वह हमारे राष्ट्र शरीर के अनुकूल है अथवा नहीं।<br><br>भारत में इस दृष्टि से कुछ विचार तो प्रारंभ हुआ है, किन्तु संपूर्ण देश की दृष्टि से सर्वांगीण योजना बनाकर, क्रमबद्ध प्रयास में अभी काफी कुछ कमी है। हमारे देश का योजना आयोग एवं सरकार अभी तक दुविधा की स्थिति में फंसे हुए हैं। हम अभी तक विकसित देशों की तकनीकी के प्रयोग के मोह से मुक्त नहीं हो पाए हैं और यही कारण है कि बड़े पैमाने पर अपने देश में उपयुक्त तकनीकी के विकास एवं प्रयोग को अभी तक गति नहीं मिल पाई है। हमें तकनीकी कैसी अथवा तकनीकी विकास पर कितना व्यय जैसे प्रश्नों में ही न उलझकर "तकनीकी किनके लिए" सबसे पहले इस प्रश्न का उत्तर देना होगा। जब हम इस निष्कर्ष पर पहुंच जाएंगे कि हमारे देश की सबसे पहली और प्रमुख आवश्यकता गरीब लोगों की दशा में सुधार करने के लिए तकनीकी के प्रयोग की है तो हमारी तकनीकी की दृष्टि से दिशा स्पष्ट हो जाएगी। यह प्रश्न हमारे जीवन के दृष्टिकोण एवं मूल्यों से जुड़ा है। इसके लिए हमें अपने मूल्यों में परिवर्तन करना होगा तभी हम इस कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू कर पाएंगे। जब हम भारत के लिए हर क्षेत्र में उपयुक्त तकनीकी आवश्यक रूप से परंपरागत छोटे पैमाने की लघु एवं कुटीर उद्योगों वाली तकनीकी ही होगी। भारत एक इतना विशाल और विस्तृत देश है कि यह अपने आपमें एक संसार ही है। यहां कुछ काम व क्षेत्र ऐसे भी हो सकते हैं कि जिनमें बड़े पैमाने की पूंजी गहन तकनीकी अधिक उपयुक्त हो। उदाहरण के लिए कृषि व लघु उद्योगों में काम आने वाले अनेक उपकरण व यंत्रों के उत्पादन के लिए हमें बड़े पैमाने की पूंजी-गहन तकनीकी का प्रयोग करना ही पड़ेगा। यही बात अंतरिक्ष विज्ञान, सूचना तकनोलाजी, परमाणुशक्ति संयंत्रों आदि के बारे में सच है। अत: हमें उचित समन्वय के साथ आगे बढ़ना होगा जिससे विदेशी निर्भरता के बिना अपने देश की सामान्य जनता के जीवन-स्तर को उन्नत बनाया जा सके।<br><br><big><big>ग्राम-संकुल आधारित विकेन्द्रित स्वावलंबी अर्थतंत्र</big></big><br>गांधीजी ने ग्राम स्वराज की बात कही थी और उसके अंतर्गत देश के प्रत्येक गांव को एक स्वावलंबी गांव बनाने की कल्पना की गई थी। किन्तु आज परिवहन और संचार के जिस प्रकार के साधन हो गए हैं और लोगों की कई प्रकार की नई आवश्यकताएं पैदा हो गई हैं, इस स्थिति में एक अकेले गांव का स्वावलंबी हो पाना अर्थात अपनी आवश्यकता की सभी वस्तुओं को स्वयं पैदा कर लेना संभव नहीं लगता। अत: हमें दस-पंद्रह गांवों को मिलाकर ग्राम-समूहों या ग्राम परिवारों की रचना करनी पड़ेगी। इसे ही मैंने ग्राम-संकुल कहा है। इस प्रकार के ग्राम-संकुलों की रचना भौगोलिक, वानस्पतिक एवं जलवायु आदि बातों को ध्यान में रखकर करनी होगी। इस प्रकार का ग्राम संकुल कमोबेश रूप में स्वावलंबी बन सके, इसका प्रयास करना होगा। इस सबके बावजूद भी प्रत्येक ग्राम-संकुल पूर्णतया स्वावलंबी नहीं बन सकता। ऐसी स्थिति में एक ग्राम संकुल यदि कोई वस्तु उत्पन्न नहीं कर रहा है तो वह उस वस्तु को पड़ोस के ग्राम संकुल से प्राप्त करे। इस प्रकार निकट के ग्राम-संकुलों के बीच वस्तुओं का विनिमय हो और फिर भी यदि वे अपनी आवश्यकता की वस्तुएं प्राप्त नहीं कर पा रहे हो तो देश के दूर-दराज के दूसरे ग्राम संकुलों से प्रापत करें। इस प्रकार घरेलू अर्थव्यवस्था में निकट से दूर के ग्राम-संकुलों से प्रापत करें। इस प्रकार घरेलू अर्थव्यवस्था में निकट से दूर के ग्राम-संकुलों के बीच क्रमश: विनिमय की प्रक्रिया चले। जिन वस्तुओं का देश की घरेलू अर्थव्यवस्था में उत्पादन करना संभव व लाभप्रद न लगता हो उन्हें दुनिया के अन्य बाजारों से प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार ग्राम-संकुलों के आधार पर समूचे अर्थतंत्र की पुनर्रचना करनी होगी। इस प्रकार की रचना में स्थानीय संसाधनों, स्थानीय कौशल और स्थानीय श्रम के आधार पर स्थानीय आवश्यकताओं की अधिकाधिक पूर्ति हो सकेगी। इससे साधनों का अपव्यय, परिवहन लागत और प्रदूषण घटेगा और रोजगार बढ़ेगा।<br><br><big><big>त्रिक्षेत्रीय अर्थतंत्र को अपनाना</big></big><br>भारतीय अर्थव्यवस्था एकरूप अर्थतंत्र वाली अर्थव्यवस्था नहीं है, यहां विविधता है। यह विविधता हमारी समृद्धि और सामथ्र्य का स्त्रोत है, इसे समझकर ही योजनाएं बनानी होंगी। भारतीय अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से तीन भागों में वगीÇकृत किया जा सकता है: वनतंत्र (ट्रायबल इकोनामी), ग्राम तंत्र (रूरल इकोनामी) और नगर तंत्र (अरबन इकोनामी) अत: हमें इस त्रिक्षेत्रीय अर्थतंत्र के अनुरूप ही मंगल-विकास की योजनाएं बनानी होगी। इस विविधता के महत्व को ठीक से न समझ पाने के कारण हम कई बार जल्दबाजी में वनवासी क्षेत्र या गांव को शहर जैसा बना देने को ही विकास मान बैठते हैं। हम इस बात को भुला बैठते हैं कि इन अलग-अलग क्षेत्रों के संसाधन, समस्याएं और आवश्यकताएं अलग-अलग हैं, अत: हमें उनको ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ना चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि एक ही आवश्यकता की पूर्ति सब क्षेत्रों में एक जैसी ही वस्तु के उत्पाद से पूरा करना भी उचित नहीं होता। एक उदाहरण- स्वास्थ्य के लिए दांतों का साफ रहना आवश्यक है। चूंकि शहरों में आसानी से दातुन नहीं मिल पाती, अत: नगरवासियों द्वारा दांत साफ करने के लिए टूथपेस्ट का प्रयोग करना किसी एक हद तक उचित हो सकता है। किन्तु वनवासी या ग्रामीण क्षेत्रों में जहां दातुन आसानी से मिल जाता है, विकास के नाम पर उन्हें टूथपेस्ट बेचना कहां तक उचित है? यह तो साधनों का अपव्यय है। मूल उद्देश्य तो दांत साफ रखना है। किन्तु हमने ऐसा मानस और माहौल बना दिया है कि टूथपेस्ट की उपलब्धि व प्रयोग को ही विकास का मानक मान लिया है। बड़े-बड़े महानगरों के होटलों में व्यक्ति सलाद के नाम पर रे‡फ्रजरेटर में रखे गाजर, मूली व टमाटर आदि का उपभोग करता है और ऐसे व्यक्तियों को ऊ‚ंचे रहन-सहन के स्तर वाला कहा जाता है। दूसरी ओर गांव का व्यक्ति अपने खेत में से निकालकर और धोकर जब ताजा गाजर, मूली व टमाटर खाता है तो उसे पिछड़ा करार दिया जाता है। इसी प्रकार के दृष्टिकोण के कारण हम गांवों व नगरों के जल संसाधनों, उत्पादन के तौर-तरीकों, भवन-निर्माण, उपभोग शैली आदि में अंतर नहीं कर पाते। अत: हमें विविधता के इस अंतर को ठीक प्रकार से समझना होगा।<br><br>आमतौर पर वनवासी जनसंख्याएं अल्पकेन्द्रित और ग्राम जनसंख्याएं आत्मतुष्ट होती हैं। सभी अर्थतंत्रों का शहरीकरण अनुचित भी है और अवैज्ञानिक भी है। इसलिए हमें तीनों अर्थ तंत्रों के स्वायत्त और संपूरक विकास के संबंध में अधिक सतर्कता व कुशलता के साथ दीर्घकालीन धारणक्षम संतुलित कार्य-योजनाएं बनानी होंगी। तीनों अर्थतंत्रों की प्राथमिकताओं का क्रम अलग-अलग रखना होगा।<br><br>वनतंत्र की रचना में इस बात पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा कि वनों की सभी उत्पादक भूमियों का संरक्षण व समुचित उपयोग हो, वनवासियों को उनकी वन उपज के उपयोग के लिए शिक्षित किया जाए और वन उपज को उनकी आमदनी और आजीविका का साधन बना सकने वाले तरीके व तकनीक विकसित की जाए।<br><br>ग्रामतंत्र के अंतर्गत ग्रामोद्योग, कृषि-आधारित उद्योग एवं ग्रामीण उत्पादनों की विविधता में वृद्धि हो, खाद्य व अखाद्य फसलों के बीच देश की आवश्यकता के अनुरूप उचित संतुलन बना रहे, पशुपालन और पंचगव्य आधारित उत्पादन तंत्र को बल मिले।<br><br>नगरतंत्र में नवीन तकनोलाजी पर आधारित वनतंत्र व ग्रामतंत्र के पोषक प्रदूषण मुक्त उद्योगों तथा विपणन व वित्तीय संस्थाओं की संरचना हो। कुल मिलाकर हमें जल, जमीन, जंगल, जीव और जन के बीच समुचित संतुलन बनाते हुए अपनी रचना-योजना बनाना होगा। (क्रमश...)<br><br></html>
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में कैरियर का मुकाम समाज में न सिर्फ सम्मानजनक नजरिए से देखा जाता है, अपितु इस व्यवसाय में अच्छे पैसे के साथ सेवा भाव भी छिपा हुआ है। किसी चिकित्सकीय संस्थान को चलाने के लिए चिकित्सकों के अलावा अन्य सेवाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस तरह के मामलों में आज देश में बेहतर प्रशिक्षण सुविधाएं मुहैया हैं। जिनका लाभ उठाकर युवा अपने लिए सुखमय भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
अस्पताल प्रबंधक दवाओं की व्यवस्था, नए उपकरणों की खरीद, कर्मचारियों का पर्यवेक्षण, जनसंपर्क तथा विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञों से संपर्क करने का काम करते हैं।
किसी भी अस्पताल, मेडिकल कॉलेज अथवा नसिZग होम को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए दो तरह के लोगों की आवश्यकता होती है- एक, योग्य व दक्ष चिकित्सकों की जो चिकित्सा संबंधी मामलों की देखभाल करते हैं, तथा दूसरे उन व्यक्तियों की,जो अस्पताल विस्तार कार्यक्रम, नए उपकरणों की खरीद, उनके उपयोग आदि की देखभाल, दवाओं की व्यवस्था, कर्मचारियों का पर्यवेक्षण, जनसंपर्क तथा विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञों से संपर्क आदि का कार्य करते हैं।
इन सभी मामलों में प्रशिक्षित व्यक्ति अस्पताल प्रबंधन के योग्य होते हैं। ऐसे ही प्रतिभाशाली व्यक्तियों को हॉçस्पटल मैंनेजमेंट के लिए तैयार किया जाता है। अस्पताल प्रबंधन पाठ्यक्रम में चिकित्सा से संबंधित सभी प्रकार की शब्दावली तथा मानव शरीर रचना के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाती है। यही नहीं शल्य क्रिया में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार केउपकरणों तथा उनके उपयोग की सामान्य जानकारी भी दी जाती है। एक अस्पताल प्रबंधक को दवाओं की साज-संभाल, भारी एवं कीमती उपकरणों केरख-रखाव, लेखा विभाग के काम-काज तथा कार्मिक विभाग के कायोZ की भी संक्षिप्त जानकारी दी जाती है, ताकि वे स्वतंत्र रूप से अस्पताल के सभी विभागों के कायोZ का कुशलता से पर्यवेक्षण कर सकें।
योग्यता
इस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए न्यूनतम योग्यता किसी भी विष्ाय में स्नातक की डिग्री है। विज्ञान स्नातक अभ्यर्थियों को नामांकन में वरीयता प्रदान की जाती है। कुछ संस्थानों में इस पाठ्यक्रम की अवधि दो वर्ष, तो कुछ संस्थानों में एक वर्ष है। डिप्लोमा लेने के पश्चात प्रशिक्षित युवक-युवती प्रबंधक, अधीक्षक अथवा प्रशासक का पद प्राप्त कर सकते हैं।
वेतन
इन पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित युवा विभिन्न सरकारी तथा निजी क्षेत्र के अस्पतालों में 4 हजार रुपए से लेकर 10 हजार रुपए महीने तक कमा रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सूचना सभी स्तरीय अखबारों के जरिए विज्ञापित की जाती है। प्रवेश से पूर्व सामान्यत: लिखित परीक्षा का प्रावधान है, जिसमें अंग्रेजी, सामान्य ज्ञान, तर्कशक्ति परीक्षण तथा गणित आदि से जुडे़ सवाल होते हैं। लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को साक्षात्कार प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। उसमें सफलता के बाद ही प्रवेश दिया जाता है।
प्रशिक्षण संस्थान
-ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली-29
(मास्टर इन हॉçस्पटल एडमिनिस्टे्रेशन-दो वर्षीय )
-मुंबई मैनेजमेंट एसोसिएशन-9 पोद्दार हाउस, तीसरी मंजिल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस रोड,चर्च गेट, मुंबई-400004
(नेशनल लनिZग कोर्स ऑफ हॉçस्पटल एेंड हेल्थ केयर मैनेजमेंट- एक वर्षीय)
-वाईएमसीए इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, नई दिल्ली-1
(डिप्लोमा इन हॉçस्पटल एडमिनिस्ट्रेशन-एक वर्षीय)
-पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च, चंडीगढ़
(डिप्लोमा इन हॉçस्पटल एडमिनिस्ट्रेशन-एक वर्षीय)
-इंडियन हॉçस्पटल एसोसिएशन सी-11/72, शाहजहां मार्ग, नई दिल्ली-29
(शॉर्ट कोर्स इन हॉçस्पटल एडमिनिस्ट्रेशन)
-क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्ल्ाौर, तमिलनाडु
(सटिüफिकेट कोर्स इन हॉçस्पटल एडमिनिस्ट्रेशन-एक वर्षीय)
-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेशल साइंसेज, सायन ट्रांबे रोड, देवनगर, मुंबई-88
(डिप्लोमा इन हॉçस्पटल मैनेजमेंट - एक वर्षीय पत्राचार पाठ्यक्रम)
-जे.जे. हॉçस्पटल, चेन्नई
(पीजी डिप्लोमा इन एचपी-एक वर्षीय)
-छत्रपति साहू सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट, एेंड रिसर्च, कोल्हापुर
(डिप्लोमा इन हॉçस्पटल मैनेजमेंट-एक वर्षीय)
प्रोफेसर पी.के. आर्य
<html><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">हेल्थ केयर सर्विसेज
की माँग इतनी विस्तारित हो गई है कि देश के तमाम विकसित देशों को पीछे
छोड़ते हुए यह उद्योग 70,000 करोड़ रु. का आँकड़ा पार कर गया है। जबकि केंद्र
तथा राज्य सरकारों द्वारा ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में अनिवार्य
अस्पताल सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं, इस सेवाओं की बुनियादी अधोसंरचनाएँ
तथा गुणवत्ता अपर्याप्त हैं, जिससे बढ़ती आबादी की बढ़ती आवश्यकताओं की
पूर्ति नहीं हो पाती है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">हमारी
स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने के लिए आज न केवल अधिक से अधिक
चिकित्सकों और विशेषज्ञों की जरूरत है बल्कि अस्त-व्यस्त पड़े अस्पतालों को
सुव्यवस्थित बनाए रखने के लिए प्रशिक्षित लोगों की प्रोफेशनल सेवाओं की भी
आवश्यकता है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">पिछले
दस वर्षों से निजी संगठनों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्वास्थ्य
सेवाओं के क्षेत्र में प्रवेश करने से इस क्षेत्र की सूरत और सीरत दोनों
में खासा बदलाव आया है। इस बदलाव ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था
के लिए प्रशिक्षित प्रोफेशनल्स की माँग को बढ़ाया है। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>क्या है हॉस्पिटल मैनेजमेंट?</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">हॉस्पिटल
मैनेजमेंट जिसे हेल्थ केयर एडमिनिस्ट्रेशन भी कहा जाता है, स्वास्थ्य
संबंधी देखभाल सेवाएँ प्रदान करने के लिए प्रबंधकीय कौशल प्रदान करता है।
अभी तक चिकित्सकों और विशेषज्ञों द्वारा बिना किसी प्रबंधन प्रशिक्षण के
अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्र की देखभाल की जाती रही है। इससे न तो
स्वास्थ्य केंद्रों का ठीक से रख-रखाव हो पाता था और न ही मरीजों को मिलने
वाला बहुमूल्य समय मरीजों की सेवा के उपयोग में लग पाता था।<!--begin inline--><!--@@StartRightBlock@@--> <!--@@EndRightBlock@@--><!--end inline--> </font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">इसलिए
आखिरकार अधिकांश बड़े और मध्यम आकार के अस्पतालों में स्वास्थ्य संबंधी
सेवाओं और चिकित्सकीय स्टॉफ के प्रबंधन, नियोजन और नियंत्रण, सामग्रियों
की सतत आपूर्ति तथा चिकित्सकीय और अनुसंधान कार्यों की देखरेख के लिए
प्रबंधन दल के साथ हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर की सेवाएँ ली जा रही हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>कैसा होता है हॉस्पिटल मैनेजमेंट का सेट-अप</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">अधिकांश
बड़े अस्पतालों में चिकित्सकीय और गैर चिकित्सकीय एडमिनिस्ट्रेटरों का
प्रशासकीय सेट-अप होता है। जबकि उपकरणों की खरीदी रिसर्च कार्य, मेडिकल
स्टॉफ की भर्ती और प्रशिक्षण, दवाइयों की खरीदी तथा चिकित्सकीय सेवाओं
जैसे तकनीकी पक्षों को चिकित्सकीय प्रशासकों या डॉक्टरों द्वारा देखा जाता
है, हॉस्पिटल मैनेजमेंट प्रोफेशनल अन्य दायित्वों को संभालते हैं।</font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 255);"><b>कैसे चयन करें यह क्षेत्र?</b></font><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">जिन्हें
चिकित्सकीय क्षेत्र में अभिरुचि है उनके लिए हॉस्पिटल मैनेजमेंट एक अच्छा
विकल्प है। इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए आप हॉस्पिटल मैनेजमेंट में
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कर सकते हैं या पब्लिक हेल्थ केयर या हेल्थ केयर
सर्विसेज में स्नातक स्तर का पाठ्यक्रम अपना सकते हैं। एसएनडीटी वूमेंस
यूनिवर्सिटी मुंबई, सीम्बोसिस सेंटर ऑव हेल्थ केयर पुणे और इंडियन
इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च, जयपुर तथा मणिपाल अकेडमी ऑव हायर
एजुकेशन मणिपाल जैसे कुछ संस्थान हैं, जो किसी भी विषय के स्नातकों के लिए
हेल्थ केयर/हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स
करवाते हैं। </font><br><br><font style="font-size: 10pt; color: rgb(0, 0, 0);">पुणे
विश्वविद्यालय द्वारा हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन में बीएससी के साथ-साथ
हेल्थ एजुकेशन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा प्रदान किया जाता है। टाटा
इंस्टीट्यूट ऑव सोशल सर्विसेज मुंबई और अपोलो इंस्टीट्यूट ऑ</font><font style="font-size: 10pt;">फ </font><font style="font-size: 10pt;">हॉस्पिटल
एडमिनिस्ट्रेशन, हैदराबाद 50 प्रश अंकों वाले मेडिकल और नान मेडिकल
ग्रेजुएट्स के लिए मास्टर्स इन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन कोर्स चलाया जाता
है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑव हेल्थ एंड फेमिली वेलफेयर नई दिल्ली और इग्नू
द्वारा स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण प्रबंधन में पत्राचार द्वारा
पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। </font><br><br><a href="http://www.naidunia.com/avsar/1122/default.asp" target="_blank">स्रोत : नईदुनिया अवसर</a></html>